UP Board Solutions for Class 7 Hindi Chapter 16 क्या निराश हुआ जाय (मंजरी)

By | May 26, 2022

UP Board Solutions for Class 7 Hindi Chapter 16 क्या निराश हुआ जाय (मंजरी)

UP Board Solutions for Class 7 Hindi Chapter 16 क्या निराश हुआ जाय (मंजरी)

महत्त्वपूर्ण गद्यांश की व्याख्या

व्यक्ति-चित्त ………………………… देने लगे हैं।

संदर्भ:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मंजरी’ के क्या  निराश हुआ जाय’ नामक निबन्ध से लिया गया है। यह निबन्ध हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखा गया है।

प्रसंग:
भारतवर्ष में भौतिक संग्रह को महत्त्व न देकर आन्तरिक तत्त्व पर बल दिया गया है। लोभ-मोह, काम-क्रोध पर समय का बन्धन रखे जाने का महत्त्व माना गया है। फिर भी भूख व बीमारी की दवा और परोपकारी कार्यों की उपेक्षा नहीं की जा सकती।

व्याख्या:
मनुष्य हमेशा उच्च आदर्शों को आधार मानकर ही आगे नहीं बढ़ता। कुछ विकार जैसेलोभ, मोह विकसित होकर उसे लक्ष्य से डिगाते रहे हैं। उच्च आदर्श और संयम आदि नगण्य हो गए हैं। जो कुछ विपरीत हुआ है, उससे उच्च आदर्शो, संयम और विधानोक्त कर्मों की उपयोगिता अब और अधिक सामने आ गई है।

समाज के ऊपरी …………… संग्रह करते हैं।

संदर्भ: पूर्ववत्।

प्रसंग:
आजकल लोग कानून की त्रुटियों से लाभ उठाने में संकोच नहीं करते। धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता, जबकि कानून को दिया जा सकता है।

व्याख्या:
अब यह आम धारणा बन गई है कि भारतवर्ष में धर्म, कानून से बड़ी चीज है। आस्तिकता, सत्य, ईमानदारी, मानव प्रेम आदि की मान्यता अब भी है और रहेगी। दूसरों को पीड़ा पहुँचाना, ठगी, चोरी, डकैती, तस्करी, आदि महापाप हैं। परहित, दरिद्र सेवा, नारी सम्मान और मानव प्रेम आज भी परम पुण्य माने जाते हैं। सभी व्यक्ति इन गुणों को अपने अन्दर अच्छा समझते हैं और नैतिक समर्थन देते हैं।

पाठ का सर (सारांश)

लेखक का मन वर्तमान की घटनाओं से आशंकित है। बेईमानी के माहौल में ईमानदारी से जीविका चलाने वाले पिस रहे हैं। ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है। ऐसी स्थिति में प्रश्न उठता है कि क्या निराश हुआ जाय। वस्तुतः मनुष्य की उन्नति के जितने विधान बनाए गए हैं, उतनी ही मात्रा में लोभ, मोह जैसे विकार भी विस्तृत हो गए। इससे भारत के पुराने आदर्श और भी अधिक महान और उपयोगी दिखाई देने लगे हैं। लेखक ने एक टिकट बाबू की ईमानदारी और एक बस कंडक्टर की कर्तव्यपरायणता का उदाहरण देकर सन्तोष व्यक्त किया है। उसने लिखा है कि जीवन में ऐसी घटनाएँ भी घटित हुईं, जब लोगों ने अकारण ही सहायता की। निराश मन को ढाँढस बँधाया और हिम्मत दिलाई। इसीलिए अभी भी आशा की ज्योति बुझी नहीं है। महान् भारतवर्ष को पाने की सम्भावना बनी हुई है। और बनी रहेगी।

प्रश्न-अभ्यास

  • कुछ करने को                                       नोट-विद्यार्थी स्वयं करें।
  • विचार और कल्पना                               नोट-विद्यार्थी स्वयं करें।
  • निबन्ध से

प्रश्न 1:
क्या कारण है कि आजकल हर व्यक्ति संदेह की दृष्टि देखा जा रहा है?
उत्तर:
आजकल लोग दोषी अधिक और गुणी कम दिखाई देते हैं। इसका कारण यह है कि गुणों पर कम ध्यान दिया जाता है और दोषों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाने लगा है।

प्रश्न 2:
जीवन के महान मूल्यों के बारे में लोगों की आस्थाएँ क्यों हिलने लगी हैं?
उत्तर:
आजकल समाचार-पत्रों में ठगी, डकैती, चोरी, तस्करी और भ्रष्टाचार के समाचार भरे रहते हैं। आरोप-प्रत्यारोप का कुछ ऐसा वातावरण बन गया है कि लगता है, देश में कोई ईमानदार आदमी रह नहीं गया है। हर व्यक्ति सन्देह की दृष्टि से देखा जा रहा है।  जो जितने ऊँचे पद पर हैं, उनमें उतने ही अधिक दोष दिखाए जाते हैं। बेईमान, स्वार्थी, धूर्त लोग फल-फूल रहे हैं किन्तु गरीब, ईमानदार और श्रमजीवी लोग दिनोंदिन पिस रहे हैं। समाज में जो भीरु और बेबस लोग हैं, उन्हें दबाया जाता है। ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है। जीवन के महान नैतिक मूल्यों एवं आदर्शों का मजाक उड़ाया जा रहा है। इसलिए जीवन के महान मूल्यों के बारे में आज हमारी आस्था हिलने लगी है।

प्रश्न 3:
किन घटनाओं के आधार पर लेखक को लगा कि मनुष्यता अभी समाप्त नहीं हुई है?
उत्तर:
एक टिकट-बाबू की ईमानदारी और एक बस कंडक्टर की कर्तव्यपरायणता की घटनाओं के आधार पर लेखक को यह लगा कि मनुष्यता अभी समाप्त नहीं हुई है।

प्रश्न 4:
‘बुराई में रस लेना बुरी बात है, अच्छाई में उतना ही रस लेकर उजागर न करना और भी बुरी बात है।’ क्यों?
उत्तर:
लेखक कहता है कि लोग एक-दूसरे की बुराई को बड़ा रस लेकर उद्घाटित करते हैं, जो बहुत बुरी बात है। किन्तु दूसरे की अच्छाई को उतना ही रस लेकर प्रकट करने में संकोच करना तो और भी बुरी बात है। हमारे आस-पास असंख्य घटनाएँ ऐसी घटती हैं, जिन्हें यदि उजागर (प्रकट) किया जाए, तो लोगों के दिल में अच्छाई के प्रति अच्छी भावना जाग सकती है। अतः अच्छाई को प्रकट करने में कभी पीछे नहीं रहना चाहिए।

प्रश्न 5:
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए

(क) ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है, सच्चाई केवल भीरु और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है।
उत्तर:
वर्तमान समय में धन का महत्व इतना बढ़ गया है बेईमानी से कमाए गए धन से धनवान लोग भी सम्मान की नजरों से देखे जाते हैं। समाज में उनकी खूब प्रतीष्ठा है। फलतः लोग चालाकी से, बेईमानी से धन कमाने में लगे हैं। जो ईमानदार बने रहने की कोशिश करता है, समाज उसे मूर्ख समझता है क्योंकि उसके पास धन का अभाव होता है। सच्चाई का पालन करने वाले वास्तव में बेबस लोग ही हैं यानी जो गलत कार्य करने से डरते हैं या  जिनके पास गलत तरीके से धन कमाने का कोई रास्ता नहीं है, वही सच्चे और ईमानदार बने हुए हैं।

(ख) केवल उन्हीं बातों का हिसाब रखो, जिनमें धोखा खाया है तो जीवन कष्टकर हो। जाएगा।
उत्तर:
यदि हम केवल जीवन उन्हीं बातों को ध्यान में रखें, जिनमें हमारे साथ धोखा हुआ है या हमें किसी तरह से तकलीफ पहुँचाई गई हो तो हमारा जीवन कष्टकर हो जाएगा। ऐसे में हम जीवन का आनंद नहीं ले सकेंगे और अतीत की बुरी घटनाओं की याद में उलझे रहेंगे।  आशय यह है कि हमें नकारात्मक घटनाओं पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए बल्कि जीवन में घटने वाली संकारात्मक घटनाओं से आशान्वित होना चाहिए।

(ग) भूख की उपेक्षा नहीं की जा सकती, बीमार के लिए दवा की उपेक्षा नहीं की जा सकती।
उत्तर:
हमारे देश में वैसे तो भौतिक वस्तुओं के संग्रह और लोभ-मोह-क्रोध जैसे विकारों को ‘महत्व नहीं दिया गया है परंतु यदि कोई व्यक्ति भूखा है तो उसे अपने लिए भोजन जुटाने का उपाय
करना ही पड़ेगा। वैसे ही यदि कोई व्यक्ति बीमार है तो वह बीमारी की उपेक्षा नहीं कर सकता, उसे दवा हर हाल में चाहिए। ठीक इसी प्रकार यदि समाज में या देश में कोई व्यक्ति गलत काम करने लगा है, कानून का उल्लंघन कर मनमानी करने लगा है, अपराध में लिप्त हो गया है तो उसे सुधारने के लिए उसे सजा देनी ही पड़ेगी अन्यथा वह दूसरों को दुखी करता रहेगा।

(घ) महान भारतवर्ष के पाने की सम्भावना बनी हुई है, बनी रहेगी।
आशय:
लेखक का कथन हमें यह सन्देश देता है कि केवल कुछ बुराइयों को देखकर निराश नहीं हो जाना चाहिए। इस देश में ईमानदार, कर्तव्यपरायण और अच्छे लोगों की कमी नहीं है। हमारा देश बुराइयों पर अवश्य विजय प्राप्त कर लेगा।  अतः महान भारतवर्ष को पाने की पूरी सम्भावना है।

भाषा की बात

प्रश्न 1:
नीचे कुछ अव्यय शब्द दिए गये हैं, उनकी प्रयोग करते हुए एक-एक वाक्य बनाइए
क्योंकि, किन्तु, परन्तु, अथवा, इसलिए, चूंकि, तथा, अतः
उत्तर:
क्योंकि                       –                     मैं यहाँ रुकना नहीं चाहती क्योंकि यहाँ मेरा मन नहीं लग रहा है।
किंतु                          –                    वह गरीब था, किन्तु उसकी ईमानदारी में कोई कमी नहीं थी।
परन्तु                         –                    वह आपसे ही मिलने आया था परन्तु आप शहर से बाहर थे।
अथवा                        –                    तुम अंग्रेजी अथवा हिंदी में कोई एक भाषा चुन लो।।
इसलिए                      –                    रमा मेरी बात नहीं मानती इसलिए मैंने उससे कुछ कहना ही छोड़ दिया है।
चूंकि                          –                    चूँकि तुम एक मंत्री के बेटे हो, इसलिए तुम किसी पर भी अपनी मर्जी थोप सकते हो?
तथा                           –                     ईमानदारी, सच्चाई, कर्तव्यनिष्ठा, स्वाभिमान, साहस तथा आत्मनिर्भरता वीर पुरुषों के गुण है।
अतः                           –                    वह आपसे मिलना नहीं चाहता अतः आप यहाँ से चले जाएँ।

प्रश्न 2:
ईमानदार’ तथा ‘मूर्ख’ शब्द गुणवाचक विशेषण हैं, इनमें क्रमशः ई” तथा “ता’ प्रत्यय लगाकर भाववाचक संज्ञा शब्द ‘ईमानदारी’ तथा ‘मूर्खता’ बनाया गया है। नीचे लिखे गये विशेषण शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए- निर्भीक, जिम्मेदार,  कायर, अच्छा, लघु, बुरा।
उत्तर:
शब्द                                        भाववाचक संज्ञा
निर्भीक                                         निर्भीकता
जिम्मेदार                                      जिम्मेदारी
कायर                                           कायरता
अच्छा                                            अच्छाई
लघु                                                 लघुता
बुरा                                                 बुराई

प्रश्न 3:
इस पाठ में सरल, मिश्र और संयुक्त तीनों प्रकार के वाक्य आये हैं। नीचे दिये गये वाक्यों को पढ़िए और बताइए कि वे किस प्रकार के वाक्य हैं
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