UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 5 समुद्रगुप्त (महान व्यक्तित्व)

By | May 25, 2022

UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 5 समुद्रगुप्त (महान व्यक्तित्व)

UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 5 समुद्रगुप्त (महान व्यक्तित्व)

पाठ का सारांश

चन्द्रगुप्त प्रथम का पुत्र समुद्रगुप्त मगध का सम्राट था। उसकी माता कुमार देवी उदार और करुण स्वभाव की महिला थीं। समुद्रगुप्त में बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा, साहस वीरता, न्याय प्रियता, परोपकार और राष्ट्र-प्रेम की भावना थी। उसने सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में बाँधकर उसे एक सुदृढ़ राष्ट्र का स्वरूप प्रदान किया। सभी विपक्षी राजाओं ने उसके सम्मुख आत्मसमर्पण कर दिया था। अतः सम्पूर्ण भारत पर विजय-पताका फहराने के बाद समुद्रगुप्त ने अश्वमेध यज्ञ किया। उसके 50 वर्ष के शासनकाल में प्रजा सुखी और समृद्ध थी। वह सभी धर्मों का आदर करता था। साहित्य और संगीत में उसकी  विशेष रुचि थी। उसने अदम्य इच्छा-शक्ति और अपार पौरुष बल पर एक प्रबल केन्द्रीय सत्ता की स्थापना की और पाँच सदी से छिन्न-भिन्न हुई राजनीतिक राष्ट्रीय एकता पुनः स्थापित हुई।

अभ्यास-प्रश्न

प्रश्न 1.
समुद्रगुप्त कौन था?
उत्तर :
समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त प्रथम का पुत्र था।

प्रश्न 2.
समुद्रगुप्त की विजय यात्रा को मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर :
समुद्रगुप्त की विजय यात्रा का मुख्य उद्देश्य भारत में राष्ट्रीय एकता की स्थापना करना था।

प्रश्न 3.
समुद्रगुप्त की विजय का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
समुद्रगुप्त ने भारत की राष्ट्रीय एकता की स्थापना हेतु विजय यात्रा प्रारम्भ की। उसने उत्तर भारत के राजाओं को परास्त किया और उनके राज्यों को अपने साम्राज्य में मिला लिया। उसके साहस और पौरुष की  चारों ओर चर्चा होने लगी। अपनी सेना का संचालन वह स्वयं करता था और एक सैनिक की भाँति युद्ध में भाग लेता था। धीरे-धीरे उसने पूर्व में, बंगाल तक अपना राज्ये फैलाया। पूर्वी तट के द्वीपों पर आक्रमण के लिए उसने नौ सेना का गठन किया।

प्रश्न 4.
अश्वमेध यज्ञ किसे कहते हैं? इस अवसर पर समुद्रगुप्त को क्या उपाधि दी गयी थी?
उत्तर :
अश्वमेध यज्ञ में एक घोड़ा छोड़ा जाता था और सेना उसके पीछे चलती थी। यदि कोई घोड़ा पकड़ लेता था तो राजा उससे युद्ध करता था अन्यथा जब घोड़ा विभिन्न राज्यों की सीमाओं से होकर वापस आता था तब यह यज्ञ पूर्ण माना जाता था और राजा दिग्विजयी समझा जाता था। इसे ही अश्वमेध यज्ञ कहते हैं। इस अवसर पर समुद्रगुप्त को ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि दी गई थी।

प्रश्न 5.
समुद्रगुप्त की शासन व्यवस्था का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
समुद्रगुप्त की शासन व्यवस्था इतनी सुदृढ़ थी कि उसके लगभग पचास वर्ष के शासनकाल में किसी भी क्षेत्र में न अशान्ति हुई और न किसी ने साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह करने का साहस किया। उस समय  उत्तर भारत में सती प्रथा का प्रचलन था। समुद्रगुप्त ने न केवल इस सती प्रथा को समाप्त किया वरन् महिलाओं की मर्यादा और प्रतिष्ठा को भी यथोचित महत्त्व प्रदान किया। उस समय खेती और व्यापार उन्नत दशा में थे। भारत-भूमि धन-धान्य से परिपूर्ण थी।

प्रश्न 6.
समुद्रगुप्त के शासन काल को स्वर्णयुग क्यों कहा जाता है?
उत्तर :
समुद्रगुप्त शासन के संचालन में सद्व्यवहार, न्याय, समता और लोक-कल्याण पर अधिक ध्यान देता था। उस समय खेती और व्यापार उन्नत दशा में थे। नहरों एवं सड़कों का जाल सा बिछा था। भारत-भूति धन धान्य से परिपूर्ण थी। पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता थी। समुद्रगुप्त की उदारता की प्रशंसा बौद्ध भिक्षु भी करते थे। अतः समुद्रगुप्त के शासनकाल को स्वर्ण युग कहा जाता है।

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