UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 7 हर्षवर्धन (महान व्यक्तित्व)

By | May 25, 2022

UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 7 हर्षवर्धन (महान व्यक्तित्व)

UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 7 हर्षवर्धन (महान व्यक्तित्व)

पाठ का सारांश

रानी यशोमति के गर्भ से 590 ई० में ज्येष्ठ महीने में कृष्ण पक्ष की द्वादशी को हर्ष का जन्म हुआ था। उसके पिता प्रभाकर वर्धन थानेश्वर के योग्य एवं प्रतापी शासक थे, जिन्होंने भारत पर आक्रमण करने वाले हूणों का बड़ी कुशलता से दमन किया था। पिता की मृत्यु के बाद हर्षवर्धन के बड़े भाई राज्यवर्धन गद्दी पर बैठे। इसी बीच मालवा के राजा ने हर्ष की छोटी बहन राज्यश्री के पति ग्रहवर्मा की हत्या कर दी। राज्यश्री को कैद करके कारागार में डाल दिया गया था। इस अपमान का बदला लेने के लिए राज्यवर्धन ने मराठों पर चढ़ाई कर दी और युद्ध में वह विजयी हुआ किन्तु लौटते समय बंगाल के राजा शशांक द्वारा मार डाला गया।

हर्ष अभी सोलह वर्ष का भी नहीं हुआ था। वह भाई राज्यवर्धन की मृत्यु पर अत्यधिक दुःखी हुआ और राज-पाट छोड़ने को तैयार हो गया। इस पर मन्त्रियों ने उसे बहुत समझाया और राजा बनने की सविनय प्रार्थना की, तब शीलादित्य उपनाम ग्रहण करके हर्ष 606 ई० में कन्नौज के सिंहासन पर बैठा। हर्ष के कर्मचारियों ने उसे दिग्विजय के लिए प्रेरित किया। हर्ष ने पहले शशांक को परास्त किया, उसके बाद राज्यश्री का पता लगाया, जो जंगल में चितों में जलने जा रही थी और उसे जीवन पर्यन्त अपने पास रखा। अपनी योग्यता के बल पर वह 40 वर्ष से अधिक समय तक शान्ति के साथ राज्य करने में समर्थ रहा। हर्ष के समय में भारत को, अपने इतिहास के एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण युग को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

हर्ष धार्मिक विषयों में उदार और विद्या प्रेमी था। आरम्भ में वह शैव किन्तु दिग्विजयों के उपरान्त उसने तथा उसकी बहन राज्यश्री ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। हर्ष ने संस्कृत भाषा में ‘रलावली’, ‘नागानन्द’ और ‘प्रियदर्शिका’ नामक नाटक लिखे, साथ ही उसने एक व्याकरण ग्रन्थ की भी रचना की। हर्ष सरकारी जमीन की आय का एक चतुर्थांश विद्वानों को पुरस्कृत करने में और दूसरा चतुर्थांश विभिन्न सम्प्रदायों को दान देने में खर्च करता था। उसने अपने राज्य में सर्वत्र मांसाहार का निषेध कर दिया था। ह्वेनसांग ने उस काल के नाना प्रकार के वस्त्रों का विशेष उल्लेख किया है। हर्ष बहुत उदार तथा दयालु प्रकृति का शासक था। वह एक साथ ही राजा और कवि, योद्धा और विद्वान, राजसी और साधु स्वभाव का था।

बौद्ध धर्म का अध्ययन पूरा कर ह्वेनसांग चीन लौट गया। उसने लिखा है- “मैं अनेक राजाओं के सम्पर्क में आया किन्तु हर्ष जैसा कोई नहीं। मैंने अनेक देशों में भ्रमण किया है किन्तु भारत जैसा कोई देश नहीं। भारत वास्तव में महान देश है और उसकी महत्ता का मूल है- उसकी जनता तथा हर्ष जैसे उसके शासक।”

अभ्यास-प्रश्न

प्रश्न 1.
हर्षवर्धन किन परिस्थितियों में सिंहासन पर बैठा?
उत्तर :
हर्षवर्धन अपने भाई राज्यवर्धन की मृत्यु पर अत्यधिक दुःखी हुआ और राजपाट छोड़ने को तैयार हो गया। मन्त्रियों के समझाने पर, राजा शीलादित्य उपनाम ग्रहण करके हर्ष 606 ई० में कन्नौज के सिंहासन पर बैठा।

प्रश्न 2.
हर्ष के दान से संबंधित किसी घटना का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
एक बार राजा हर्षवर्धन दान-दक्षिणा की सभी वस्तुओं को, यहाँ तक कि राज्यकोष की सम्पूर्ण सम्पत्ति और अपने शरीर के समस्त आभूषणों को पण्डितों व विद्वानों को जंब दान दे चुके तो ‘ एक व्यक्ति ऐसा रह गया, जिसे देने के लिए उनके पास कुछ शेष नहीं था। दानार्थी बोला-राजन! आपके पास मुझे देने के लिए कुछ नहीं बचा, मैं वापस जाता हूँ। राजा ने कहा- ठहरो! अभी मेरे वस्त्र शेष हैं जिन्हें मैंने दान नहीं दिया है और पास खड़ी बहन से अपना तन ढकने के लिए दूसरा वस्त्र माँगकर उसने अपने वस्त्र उतारकर उस याचक को दे दिए।

प्रश्न 3.
हर्षकालीन भारत का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
हर्ष के समय में, भारत को अपने इतिहास के एक अत्यन्त भव्य युग को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

प्रश्न 4.
हुवेनसांग ने हर्ष की प्रशंसा में क्या कहा था?
उत्तर :
हवेनसांग ने हर्ष की प्रशंसा में कहा है कि “अनेक राजाओं के सम्पर्क में मैं आया किन्तु हर्ष जैसा कोई नहीं। मैंने अनेक देशों में भ्रमण किया है किन्तु भारत जैसा कोई देश नहीं। भारत वास्तव में महान देश है और महत्ता का मूल है- उसकी जनता तथा हर्ष जैसे उसके शासक।”

प्रश्न 5.
कैसे पता चलता है कि हर्ष की नीति अहिंसावादी थी?
उत्तर :
हर्षवर्धन ने अपने राजय में सर्वत्र माँसाहार को निषेध कर दिया था। उन्होंने जीव हिंसा पर रोक लगा दी थी तथा आदेश के उल्लंघन करने पर कठोर दण्ड का प्रावधान किया था। इससे पता चलता है कि हर्ष नीति की अहिंसावादी थी।

 

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