UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 3 न गङ्गदतः पुनरेति कूपम् (कथा – नाटक कौमुदी)

By | May 23, 2022

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 3 न गङ्गदतः पुनरेति कूपम् (कथा – नाटक कौमुदी)

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 3 न गङ्गदतः पुनरेति कूपम् (कथा – नाटक कौमुदी)

पाठ-सारांश

परिचय-संस्कृत साहित्य में कथा-लेखन की परम्परा अत्यधिक प्राचीन है। तत्कालीन समय में इन कथाओं की रचना का उद्देश्य धर्म, अर्थ एवं काम की प्राप्ति हुआ करता था। इनके अतिरिक्त संस्कृत वाङ्मय में नीति और उपदेशात्मक कथाओं की भी एक दीर्घ श्रृंखला प्राप्त होती है जिनमें ‘पञ्चतन्त्रम्, ‘हितोपदेशः’, ‘बृहत्कथामञ्जरी’, ‘कथासरित्सागर’, ‘वेतालपञ्चविंशतिका’, ‘भोजप्रबन्ध’, ‘भट्टकद्वात्रिंशतिका’ आदि उल्लेखनीय हैं। इस सभी कथा-श्रृंखलाओं में ‘पञ्चतन्त्रम्’ नामक कथा-संग्रह सर्वाधिक प्रसिद्ध है। इसके रचयिता  विष्णुशर्मा नाम के एक ब्राह्मण थे। इन्होंने महिलारोप्य नगर के राजा अमरशक्ति के अयोग्य एवं विवेकशून्य पुत्रों को शिक्षित करने के लिए इस ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्थ. में शिष्टाचार, सदाचार, राजनीति एवं लोक-नीति से सम्बद्ध विषयों का कथाओं के माध्यम से अच्छा प्रतिपादन किया गया है। इसकी कथाओं के माध्यम से प्राप्त ज्ञान के द्वारा राजा अमरशक्ति के पुत्र अत्यधिक ज्ञानी और विवेकशील हो गये।

इस ग्रन्थ में पशु-पक्षियों, मानवों आदि के माध्यम से प्रत्येक कथा को विस्तार दिया गया है। इस ग्रन्थ के पाँच तन्त्र (भाग) हैं-‘मित्रभेदः’, ‘मित्र-सम्प्राप्तिः’, ‘काकोलूकीयम्’, ‘लब्धप्रणाशम् तथा ‘अपरीक्षितकारकम्’। इस ग्रन्थ का रचनाकाल 300 ईस्वी के आसपास माना जाता है। प्रस्तुत कथा इसी ग्रन्थ के चतुर्थ तन्त्र ‘लब्धप्रणाशम्’ से ली गयी है।

भागीदारों से बदला लेने का उपाय- किसी कुएँ में गंगदत्त नाम को मेढकों का राजा रहता था। वह अपने भागीदारों से अत्यधिक परेशान होकर एक दिन रहट की बाल्टी में चढ़कर कुएँ से बाहर निकल आया। उसने अपने भागीदारों से बदला लेने का विचार करके बिल में प्रवेश करते हुए एक काले सर्प को देखा और उसकी सहायता से अपने भागीदारों के विनाश करने का निश्चय किया। उसने बिल के द्वार पर जाकर सर्प को बुलाया और उससे मैत्री करने का प्रस्ताव किया। पहले तो सर्प (प्रियदर्शन) इसके लिए तैयार न हुआ, किन्तु बाद में गंगदत्त की करुण कहानी सुनकर और उसके द्वारा भोज्य को सुलभतापूर्वक प्राप्त होता देककर उसके मैत्री प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। गंगदत्त ने उसे पक्के कुएँ में रहट के मार्ग से ले जाकर जल के पास स्थित कोटर (वह खोखला अंश, जिसमें पक्षी, साँप आदि रहते हैं।) में बैठकर सुख से भागीदारों का विनाश करने के लिए कहा और अपने परिवार वालों के भक्षण का निषेध कर दिया।

मेढकों का समूल विनाश- गंगदत्त ने सर्प को अपने भागीदार दिखा दिये। सर्प धीरे-धीरे उसके ‘समस्त भागीदारों को, कुछ को उसकी उपस्थिति में और कुछ को उसकी अनुपस्थिति में; चट कर गया। मेढकों के समाप्त हो जाने पर सर्प ने गंगदत्त से कहा कि मैंने तुम्हारे शत्रुओं को खा लिया है, अब मुझे दूसरा भोजन लाकर दो। इसके बाद गंगदत्त ने उसे अपने परिवार का एक मेढक प्रतिदिन देना प्रारम्भ कर दिया। सर्प उसे खाकर उसके पीछे दूसरों को भी खा लेता था। इसी प्रकार एक दिन उसने दूसरे मेढकों को खाकर गंगदत्त के पुत्र यमुनादत्त को भी खा लिया। कुछ दिनों बाद केवल गंगदत्त शेष रह गया।

गंगदत्त को कुएँ से बाहर जाना- एक दिन सर्प प्रियदर्शन ने गंगदत्त से कहा कि मैं भूखा हूँ, मुझे कुछ भोजन दो। गंगदत्त ने कहा कि तुम चिन्ता मत करो, मैं दूसरे कुएँ से मेंढक लाकर तुम्हें दूंगा और वह रहट की बाल्टी में चढ़कर कुएँ से बाहर आ गया। बहुत दिनों तक गंगदत्त के न आने पर प्रियदर्शन ने  अन्य कोटर में रहने वाली गोध्रा से कहा कि तुम गंगदत्त को खोजकर मेरा सन्देश उससे कहो कि यदि दूसरे मेढक नहीं आते हैं तो तुम अकेले ही आ जाओ, मैं (प्रियदर्शन) तुम्हारे बिना नहीं रह सकता।

गंगदत्त का न लौटना- गोधा ने सर्प के कहने से गंगदत्त को खोजकर कहा कि तुम्हारा मित्र (प्रियदर्शन) तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है, तुम वहाँ शीघ्र चलो। तब गंगादत्त ने गोधा से कहा कि “भूखा  कौन-सा पाप नहीं करता; अतः हे भद्रे! प्रियदर्शन से कहो कि गंगदत्त पुनः कुएँ में वापस नहीं जाएगा।’ ऐसा कहकर उसने गोधा को वापस भेज दिया।

चरित्र-चित्रण

गंगदत्त 
परिचय- मेढकों का राजा गंगदत्त कुएँ में रहता है। वह अपने वंश के मेढकों से बहुत परेशान है। और उनसे बदला लेने की बात सोचकर कुएँ से बाहर आता है। वह मेढक जाति के जन्मजात शत्रु काले सर्प से मित्रता करके अपने वंश का समूल विनाश कर देता है। उसके चरित्र में निम्नांकित । विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं

(1) अविवेकी व्यक्ति का प्रतीक- गंगदत्त एक ऐसे अविवेकी व्यक्ति का प्रतीक है, जो अपने वंश के सगे-सम्बन्धियों का विनाश करने के लिए अपने जन्मजात शत्रु से सहायता लेता है और उनके साथ अपने परिवार के भी समूह विनाश को देखकर पश्चात्ताप की अग्नि में जलता रहता है। उसे तभी सद्बुद्धि आती है, जब उसका परिवार भी समूल नष्ट हो जाता है। बिना बिचारे जो करै, सो पाछे पछिताय।’ जैसी कहावतें वास्तव में गंगदत्त जैसे अविवेकी व्यक्ति पर ही चरितार्थ होती हैं।

(2) मूर्ख- गंगदत्त इतना मूर्ख मेढक है कि वह अपने जन्मजात शत्रु को अपने परिवार वालों के पास शरण देता है। अन्ततः उसे अपनी मूर्खता का दुष्परिणाम भुगतना ही पड़ता है।

(3) भीरु– गंगदत्त भीरु प्रकृति का है। वह कायरों की भाँति अपने प्राण बचाकर अन्य मेढकों को लाने के बहाने कुएँ से बाहर चला जाता है। गोधा द्वारा बुलाये जाने पर भी वह नहीं आता। उसे डर है। कि सर्प भूखा होने के कारण उसे भी खा जाएगा। उसकी यही दुर्बलता उसमें प्रारम्भ में भी देखने को मिलती है। यदि ऐसा न होता तो वह अपने भागीदारों का सामना करता और उनसे डरकर न भागता। उसकी भीरुता ही उसे पश्चात्तापमय जीवन व्यतीत करने को बाध्य करती है। |

(4) घोर स्वार्थी–गंगदत्त घोर स्वार्थी है। स्वार्थ-साधन के लिए वह औचित्य-अनौचित्य का भी ध्यान नहीं रखता। उसकी स्वार्थपरता का अन्त वंश के संमूलोच्छेद से होता है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि गंगदत्तं प्रतिशोधी स्वभाव का अविवेकी, भीरु और वज्रमूर्ख मेढक है, जो अपने वंशोच्छेद के बाद पश्चात्ताप की अग्नि में जलने के लिए बच जाता है।

प्रियदर्शन 

परिचय- प्रियदर्शन एक काला साँप है। गंगदत्त उससे मित्रता र्करके अपने सगे-सम्बन्धियों के विनाश के लिए उसे कुएँ में ले जाता है। वहाँ प्रियदर्शन गंगदत्त के सम्बन्धियों के साथ-साथ उसके परिवार का भी भक्षण कर जाता है। उसके चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

(1) नीतिज्ञ— प्रियदर्शन नीति को जानने वाला है। गंगदत्त के पुकारने पर वह तुरन्त बिल से बाहर नहीं आता। उसे शंका है कि वह किसी मन्त्र, वाद्य, औषध से आकृष्ट करके उसे बन्धन में डालना चाहता है। वह गंगदत्त के मित्र बनने के प्रस्ताव पर भी सहसा विश्वास नहीं करता है। अन्ततः वह गंगदत्त को कुलांगार जानकर उससे मित्रता करता है। वह सोचता है कि मैं कुएँ में आराम से रहूँगा और मेंढकों को खा जाऊँगा। अब अपने भोजन की चिन्ता मुझे नहीं करनी होगी।

(2) कपटी- मित्र-प्रियदर्शन गंगदत्त से मित्रता कर कपट करता है। वह वंशद्रोही गंगदत्त से इसलिए मित्रता करता है कि उसे आराम से भोजन मिलेगा। वह गंगदत्त के वंश-के साथ उसके पुत्र और पत्नी को भी खा जाता है और अन्त में गंगदत्त को भी अपनी मीठी बातों में फंसाकर खा जाना चाहता

(3) कृतघ्न- प्रियदर्शन कृतघ्न है। गंगदत्त की मूर्खता से उसे मेढकों के भक्षण का अवसर मिल जाता है, लेकिन उसकी लालसा बढ़ती ही जाती है। वह गंगदत्त के परिवार के मेढकों को खाकर अपनी कृतघ्नता का परिचय देता है। उसे मित्र के साथ विश्वासघात के दोष से मुक्त नहीं किया जा सकता।

(4) मूर्ख- प्रियदर्शन नीतिज्ञ होते हुए भी मूर्ख है। वह गंगदत्त की इस बात पर विश्वास कर लेता है कि वह उसे और मेढक लाकर देगा। अपनी मूर्खता के कारण ही उसे कुएँ में अकेले रहने के लिए विवश होना पड़ता है।

(5) दूरदर्शी- प्रियदर्शन एक दूरदर्शी सर्प है। वह प्रत्येक कार्य को करने से पहले उसके दूरगामी . परिणाम को सोचता है। जब वह इस निष्कर्ष पर पहुँच जाता है कि गंगदत्त के साथ कुएँ में जाने से उसे कोई हानि नहीं है, तब ही वह उसके साथ कुएँ में जाता है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि सर्प प्रियदर्शन के चरित्र में उपर्युल्लिखित समस्त विशेषताएँ पूर्णरूपेण विद्यमान हैं। इन विशेषताओं के सन्दर्भ में उसे बुरे-से-बुरे पात्र का प्रतीक माना जा सकती है।

लघु-उत्तरीय संस्कृत प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिए

प्रश्‍न 1
गङ्गदत्तः कुत्रे प्रतिवसति स्म?
उत्तर
गङ्गदत्तः एकस्मिन् कुपे प्रतिवसति स्म।

प्रश्‍न 2
गङ्गदत्तः किं कर्तुं प्रियदर्शनमाहूतवान्?
उत्तर
गङ्गदत्तः स्व दायादानां विनाशं कर्तुं प्रियदर्शनम् आहूतवान्।

प्रश्‍न 3
मण्डूकोभावे सर्पेण गङ्गदत्तः किमभिहितः?
उत्तर
मण्डूकाभावे सर्प: गङ्गदत्तम् अवदत्–भद्र! प्रयच्छ मे किञ्चिद् भोजनम्।

प्रश्‍न 5
गङ्गदत्तः स्वपल्या कथं निन्दितः?.,
उत्तर
गङ्गदत्त: स्वपल्या स्वपक्षक्षयकारणात् निन्दितः।

प्रश्‍न 5
गोधा प्रियदर्शनस्य कं सन्देशं गङ्गदत्तमकथयत्?
उत्तर
गोधा प्रियदर्शनस्य आगम्यतामेकाकिनापि भवता द्रुततरं, यदन्ये मण्डूकाः नागच्छन्ति। इति सन्देशं गङ्गदत्तमकथयत्।

प्रश्‍न 6
का निष्करुणा भवन्ति?
उत्तर
क्षीणाः नराः निष्करुणा भवन्ति।

वस्तुनिष्ठ  प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों में से प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए

1. ‘न गङ्गदत्तः पुनरेति कूपम्’ नामक पाठ किस ग्रन्थ से लिया गया है?
(क) बृहत्कथामञ्जरी से
(ख) पञ्चतन्त्रम् से 
(ग) हितोपदेश से
(घ) कथासरित्सागर से

2. ‘पञ्चतन्त्रम्’ के रचयिता कौन हैं?
(क) महाकवि भास
(ख) पण्डित विष्णु शर्मा
(ग) गुणाढ्य ।
(घ) शर्ववर्मा

3. पंण्डित विष्णु शर्मा ने पञ्चतन्त्रम् की रचना किसलिए की थी?
(क) अपने पुत्रों को शिक्षा देने के लिए।
(ख) सातवाहन के पुत्रों को शिक्षा देने के लिए
(ग) अमरशक्ति के पुत्रों को शिक्षा देने के लिए।
(घ) अमरशक्ति को शिक्षा देने के लिए

4. गंगदत्त कौन है?
(क) एक मगरमच्छ
(ख) एक सर्प
(ग) एक कछुआ
(घ) एक मेंढक

5. गंगदत्त कहाँ रहता था? 
(क) सरोवर में
(ख) कूप में,
(ग) बिल में
(घ) कोटर में

6. प्रियदर्शन किसका नाम है? 
(क) गंगदत्त के पुत्र का
(ख) यमुनादत्त के पिता का
(ग) एक मगरमच्छ का
(घ) एक सर्प का 

7. गंगदत्त प्रियदर्शन को कुएँ में क्यों लाया था? …………।
(क) वह प्रियदर्शन को अपना घर दिखाना चाहता था ,
(ख) प्रियदर्शन गंगदत्त का सम्बन्धी था ।
(ग) गंगदत्त प्रियदर्शन को दिखाकर अपने बन्धुओं को डराना चाहता था ।
(घ) गंगदत्त प्रियदर्शन के द्वारा अपने भागीदारों का विनाश कराना चाहता था।

8. गंगदत्त की पत्नी ने गंगदत्त की निन्दा क्यों की?
(क) गंगदत्त द्वारा लाये गये सर्प ने उसके पुत्र यमुनादत्त को खा लिया था
(ख) गंगदत्त अपने बन्धुओं के साथ मित्रता से नहीं रह रहा था।
(ग) गंगदत्त की पत्नी को प्रियदर्शन से भय लगता था ।
(घ) प्रियदर्शन सर्प ने गंगदत्त की पत्नी को खाना चाहा था।

9. ‘स्वभाववैरी त्वमस्माकम्’ में किसको किसका वैरी कहा गया है?
(क) मेढक को गोधा का
(ख) गोधा को मेढक का
(ग) मेढक को साँप का
(घ) साँप को मेढक का

10. प्रियदर्शन सर्प ने गंगदत्त मेढक को कुएँ से बाहर क्यों जाने दिया?
(क) प्रियदर्शन कुएँ में अकेला रहना चाहता था,
(ख) प्रियदर्शन ने गंगदत्त के द्वारा अपने घर सन्देश भेजा था।
(ग) गंगदत्त ने बाहर से मेढकों को लाने का आश्वासन दिया था
(घ) गंगदत्त के शरीर से बहुत दुर्गन्ध आती थी।

11. गंगदत्त लौटकर कुएँ में क्यों नहीं गया?
(क) उसको कुएँ से अच्छा निवासस्थान मिल गया था।
(ख) उसको कुएँ में शीत सताती थी।
(ग) उसको प्रियदर्शन द्वारा खाये जाने का भय था
(घ) वह कुएँ में उतरने में असमर्थ था

12. ‘बुभुक्षितः किं न करोति पापं’ इस पंक्ति में बुभुक्षित किसको कहा गया है?
(क) गंगदत्त को
(ख) यमुनादत्त को
(ग) प्रियदर्शन को
(घ) गोधा को

13. ‘न गङ्गदत्तः पुनरेति कूपम्’, पाठ में कपटी मित्र कौन है?
(क) गोधा
(ख) यमुनादत्त
(ग) गंगदत्त
(घ) प्रियदर्शन

14. ‘भो गङ्गदत्त, बुभुक्षितोऽहम्। निःशेषिताः सर्वे मण्डूकाः।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) गोधा ।
(ख) यमुनादत्तः
(ग) प्रियदर्शनः
(घ) मण्डूक

15. ‘अथ मण्डूकाभावे सर्पणाभिहितम्-भद्र, निःशेषितास्ते •••••••••••।’ में वाक्यपूर्ति होगी–
(क) परिजनाः
(ख) रिपवः
(ग) सुहृदाः
(घ) मित्राणि

16. ‘भो! अश्रद्धेयमेतत् यत्तृणानाम् अग्निना सह सङ्गमः।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) गोधा
(ख) यमुनादत्त
(ग) प्रियदर्शनः
(घ) मण्डूकः

17. ‘तस्य मध्ये जलोपान्ते रम्यतरं कोटरम् अस्ति।’ वाक्यस्य वक्ता कोऽस्ति?
(क) गोधा
(ख) यमुनादत्तः
(ग) गङ्गदत्तः
(घ) प्रियदर्शन:

18. ‘अथान्यदिने सर्पेणगङ्गदत्तसुतो •••••••••• भक्षितः।’ वाक्य में रिक्त-स्थान में जाएगी
(क) प्रियदर्शनो
(ख) सरयूदत्तो
(ग) भगीरथो,
(घ) यमुनादत्तो

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