UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 5 क्षीयते खलसंसर्गात् (कथा – नाटक कौमुदी)

By | May 23, 2022

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 5 क्षीयते खलसंसर्गात् (कथा – नाटक कौमुदी)

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 5 क्षीयते खलसंसर्गात् (कथा – नाटक कौमुदी)

परिचय–प्रस्तुत कॅथा ‘हितोपदेश’ नामक ग्रन्थ से संकलित की गयी है। इसके लेखक नारायण पण्डित हैं। बंगाल के राजा धवलचन्द्र ने इसका संकलन कराया था। इस कथा-संग्रह में रोचक कथाओं के माध्यम से नीति और धर्म की शिक्षा दी गयी है। कथाओं की रोचकता, सरलता और उपदेशात्मकता के कारण ही इसको संस्कृत वाङमय में आदरणीय स्थान प्राप्त है। इस ग्रन्थ में घशु-पक्षियों आदि से सम्बद्ध नीति-कथाएँ हैं, जो मानव-मात्र के लिए रोचक और उपादेय तो हैं ही, साथ ही इनमें जीवन का । व्यावहारिक पक्ष भी वर्णित है। ‘हितोपदेश’  की कथा-शैली सरल, सुबोध होने के साथ-साथ । उपदेशात्मक भी है। इसकी कथाओं में प्रवाह और रोचकता दृष्टिगोचर होती है। इस ग्रन्थ का रचना-काल दसवीं शताब्दी (ईस्वी) के लगभग माना जाता है। इसमें चार परिच्छेद हैं-मित्रलाभ, सुहृद्भेद, विग्रह और सन्धि। इस ग्रन्थ को पंचतन्त्र से भी अधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई है।

पाठ-सारांश

संजीवक का वन में छूटना- दक्षिणापथ में सुवर्ण नाम की नगरी में वर्धमाने नाम का एक व्यापारी रहता था। एक बार उसने अधिक धन कमाने के उद्देश्य से संजीवक और नन्दक नाम के दो बैलों की जोड़ी को जोड़कर गाड़ी में अनेक प्रकार के सामान भरकर कश्मीर की ओर प्रस्थान किया। मार्ग में ऊबड़-खाबड़ भूमि वाले एक महावन में टाँग टूट जाने से संजीवक चलते-चलते गिर पड़ा। अनेक उपाय करने पर भी जब वह स्वस्थ न हो सका तो उसका स्वामी वर्धमान उसे वहीं छोड़कर आगे चल दिया।

पिंगलक को भय- संजीवक स्वेच्छा से उस महावन में आहार-विहार करता हुआ कुछ ही दिनों में हष्ट-पुष्ट हो गया। उसी महावन का राजा पिंगलक नाम का सिंह एक दिन यमुना के तट पर पानी पीने के लिए आया। वहाँ संजीवक की महान् गर्जना को सुनकर और भयभीत होकर बिना जल पीये ही घबराया हुआ-सा अपने स्थान पर आकर चुपचाप बैठ गया। उसके मन्त्री के ‘करटक’ और ‘दमनक नाम के दो पुत्रों ने उसे  घबराया हुआ देखकर उसकी चिन्ता का कारण जानने का विचार किया। बहुत सोच-विचार कर दमनक ने साष्टांग प्रणाम करके पिंगलक से उसकी चिन्ता का कारण पूछा। पिंगलक ने किसी बलवान् पशु की भयंकर आवाज सुनने को अपने भय का कारण बताया।

करटक और दमनक को संजीवन के पास जाना— दमनक ने पिंगलक के भय का कारण सुनकर कहा कि हे स्वामी! जब तक मैं जीवित हूँ, तब तक आपको भय नहीं करना चाहिए, लेकिन आप ‘करटक’ को भी अपने विश्वास में लीजिए, जिससे इस विपत्ति के समय में वह भी हमारा सहायक हो सके। तब करटक और दमनक दोनों ही पिंगलक के पास से सम्मानसहित विदा होकर उसके भय का प्रतिकार करने के लिए चल दिये। दमनक ने मार्ग में करटेक को बताया कि स्वामी के भय का कारण बैल का भयानक शब्द है। तब वे दोनों संजीवक के पास गये। करंटक पहले ही कहीं वृक्ष के नीचे बैठ गया था। दमनक ने संजीवक से कहा कि मैं इस महावन के रक्षक रूप में नियुक्त किया गया हूँ। आप शीघ्र मेरे सेनापति करटक के पास जाकर प्रणाम कीजिए या वन को छोड़कर चले. जाइए। संजीवक ने डरते-डरते करटक के पास पहुँचकर उसको साष्टांग प्रणाम किया।

संजीवक और पिंगलक की मैत्री– करटक ने संजीवक से कहा कि यदि तुम्हें इस वन में रहना हो तो हमारे स्वामी पिंगलक को जाकर प्रणाम करो। वे दोनों उसे स्वामी से अभयदान का आश्वासन देकर अपने साथ पिंगलक के पास ले गये। पहले उसे कुछ दूर बैठाकर उन्होंने पिंगलक से कहा कि हे स्वामिन्! वह बहुत बलवान् है किन्तु आपसे मिलना चाहता है। उसकी स्वीकृति लेकर उन दोनों ने संजीवक को लाकर राजा से मिलवाया। संजीवक ने पिंगलक के पास जाकर उसको प्रणाम किया और तत्पश्चात् वे दोनों बड़े प्रेम से वहीं रहने लगे।

दमनक की उपेक्षा – एक दिन पिंगलक का भाई स्तब्धकर्ण वहाँ आया। उसने देखा कि करटक और दमनक दोनों अत्यधिक मनमानी करते हैं, खूब खाते हैं, मनमाना खर्च करते हैं, फेंकते भी हैं। उसने पिंगलक को समझाया कि दमनक और करटक सन्धिविग्रह के अधिकारी हैं, इन्हें खजाने  की रक्षा का काम नहीं सौंपना चाहिए। इसलिए आप संजीवक को आय-व्यय के अधिकार में लगा दीजिए। ऐसा करने पर पिंगलक और संजीवक का समय बड़े प्रेम से सुखपूर्वक बीतने लगा।

दमनक की भेद- नीति-करटक और दमनक ने स्वयं को और भाई-बन्धुओं को भोजन मिलने में शिथिलता देख विचार किया और इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि संज़ीर्वक और पिंगलक को मिलाना ही हमारी भूल थी। दमनक ने पिंगलक से कहा कि हे देव! यह संजीवक आपके प्रति दुर्भावना रखता है, वह आपका अनिष्ट करना चाहता है और आपका राज्य लेना चाहता है। सभी मन्त्रियों को त्यागकर इसे ही सब कार्यों का अधिकारी बनाना आपकी बड़ी भूल है। फिर वह संजीवक के पास जाकर बोला कि स्वामी आप पर दुष्ट भाव रखते हैं, वह आपको मारकर अपने परिवार को तृप्त करना चाहते हैं। ऐसा कहकर दमनक ने उसे अपना पराक्रम दिखाने के लिए उकसा दिया।

संजीवक का विनाश- संजीवक ने शेर का बिगड़ा रूप देखकर अपनी शक्ति के अनुसार बल प्रदर्शन किया। दोनों के युद्ध में संजीवक मारा गया। पिंगलक अपने सेवक  संजीवक को मारकर बड़ा दुःखी हुआ। उसे ‘:ख देखकर दमनक ने कहा-स्वामिन्! शत्रु को मारकर ‘सन्ताप करना उचित नहीं है। दमनक द्वारा : दये जाने पर पिंगलक धीरे-धीरे अपनी स्वाभाविक अवस्थी को प्राप्त हो गया।

चरित्र-चित्रण

दमनक

परिचय– दमनक पिंगलक नामक सिंह के मन्त्री का पुत्र है। वह जाति से शृगाल और प्रकृति से अत्यन्त दुष्ट है। वह कुटिल, राजनीतिज्ञ, अवसरवादी एवं स्वार्थ-सिद्धि में अत्यन्त कुशल है। वह ही इस कथा का मुख्य पात्र है। उसके चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) अवसरवादी– दमनक को अवसरवादी व्यक्ति के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। वह अपने राजा का सान्निध्य प्राप्त करने के लिए कोई भी अवसर हाथ से नहीं जाने देना चाहता। अवसर का लाभ उठाकर वह पिंगलक एवं संजीवक की मित्रता कराकर दोनों को सान्निध्य प्राप्त कर मनमानी करता है। अपनी उपेक्षा को देखकर वह संजीवक का वध करा देता है और फिर से सम्मान प्राप्त करता है।

(2) कुशल कूटनीतिज्ञ- कूटनीति में दमनक करटक की तुलना में अत्यधिक कुशल है। वह कूटनीति का सहारा लेकर और पिंगलक के भय का निवारण कर सम्मानित स्थान प्राप्त करता है। राजा द्वारा अपनी उपेक्षा किये जाने पर कूटनीतिक चाल चलकर वह पिंगलक एवं संजीवक में फूट डालकर संजीवक को मरवा देता है और अपना खोया हुआ पद पुन: प्राप्त कर लेता है।

(3) वाक्पटु एवं स्वार्थी– स्वार्थी व्यक्ति के लिए वाक्पटु होना बहुत आवश्यक है। दमनक अपनी वाक्पटुता के बल पर करटक की सहायता से अपना स्वार्थ सिद्ध करता है। संजीवक और पिंगलक की मित्रता उसकी वाक्पटुता का ही परिणाम है। उसकी वाक्पटुता का ज्ञान संजीवक और पिंगलक से  की गयी अलग-अलग बातों से होता है। अपने स्वार्थ में वह इतना अन्धा है कि उसकी सिद्धि के लिए वह किसी की हत्या तक कराने में भी नहीं हिचकिचाता। वह संजीवक की अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए बलि चढ़ा देता है। उसका भाई करटक उसके स्वार्थ-पूर्ति के मार्ग में केवल उसकी बतायी गयी भूमिका में ही साधक सिद्ध होता है। |

(4) धृष्ट एवं चतुर- दमनक स्वभाव से धृष्ट एवं बुद्धि से चतुर है। बुद्धिचातुर्य के द्वारा वह संजीवक एवं पिंगलक दोनों पर अप्रत्यक्ष रूप से शासन करता है। उसकी स्वाभाविक धृष्टता की पूर्ति में उसका बुद्धिचातुर्य उसका सहायक होता है। उसकी बुद्धि की चतुरता का उदाहरण है कि वह एक ओर तो संजीवक को सिंह का भय दिखाता है तथा दूसरी ओर पिंगलक को बताता है कि वह सामान्य बैल न होकर  महादेव (शिव) का शक्तिशाली बैल है। इस प्रकार दोनों में सामंजस्य कराकर मेल करा देता है। अपने धृष्ट स्वभाव के कारण ही वह मनमानी करने लगता है और उस पर अंकुश लगाये जाने पर संजीवक एवं पिंगलक में एक-दूसरे के प्रति द्वेष की चिनगारी उत्पन्न कर देता है, यह उसकी धृष्टता का चरम-बिन्दु है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि दमनक को कुटिल राजनीतिज्ञ के रूप में चित्रित करके राजनीति की घिनौनी चालों को उजागर किया गया है।

लघु-उत्तरीय संस्कृत प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिए

प्रश्‍न 1
सञ्जीवकः कः आसीत्?
उत्तर
सञ्जीवकः एकः वृषभः आसीत्।

प्रश्‍न 2
पिङ्गलकः किमर्थं पानीयमपीत्वा तूष्णीं स्थितः?
उत्तर
पिङ्गलक: सञ्जीवकस्य घोरशब्दात् भीत: सन् पानीयम् अपीत्वा तूष्णीं स्थितः।

प्रश्‍न 3
दमनकः पिङ्गलकसमीपं गत्वा किमब्रवीत्?
उत्तर
दमनकः पिङ्गलकसमीपं गत्वा अब्रवीत् यद् उदकार्थी स्वामी पानीयम् अपीत्वा किमर्थं विस्मिता इव तिष्ठति।।

प्रश्‍न 4
स्तब्धकर्णः कः आसीतू?
उत्तर
स्तब्धकर्णः पिङ्गलकस्य भ्राता आसीत्।

प्रश्‍न 5
दमनकः सञ्जीवकसमीपं गत्वा किमब्रवीत्?
उत्तर
दमनकः सञ्जीवकसमीपं गत्वा अब्रवीत–अरे वृषभ! एषोऽहं राजा पिङ्गलकोऽ’रण्यरक्षार्थे नियुक्तः। सेनापतिः करटकः समाज्ञापयति, सत्वरमागच्छ न चेदस्मादरण्याद् दूरमपरसर अन्यथा ते विरुद्धं फलं भविष्यति।

प्रश्‍न 6
पिङ्गलक-सञ्जीवकयोयुद्धे कः केन व्यापादितः?
उत्तर
पिङ्गलक-सञ्जीवकयोयुद्धे सञ्जीवकः पिङ्गलकेन व्यापादितः।

वस्तुनिष्ठ प्रश्‍नेवर

अधोलिखित प्रश्नों में से प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए

1. ‘क्षीयते खलसंसर्गात् पाठ किस ग्रन्थ से उदधृत है?
(क) “बृहत्कथामञ्जरी’ से
(ख) “हितोपदेश’ से ।
(ग) “कथासरित्सागर’ से ।
(घ) ‘पञ्चतन्त्रम्’ से

2. ‘हितोपदेश’ नामक कथा-संग्रह के लेखक हैं
(क) बाणभट्ट
(ख) नारायण पण्डित
(ग) विष्णु शर्मा
(घ) शर्ववर्मा

3. दक्षिणापथ में कौन-सी नगरी थी?
(क) सुवर्णा नगरी
(ख) उज्जयिनी नगरी
(ग) साकेत नगरी
(घ) कौशल नगरी

4. संजीवक’ और ‘स्तब्धकर्ण’ कौन थे?
(क) सिंह और वृषभ
(ख) शृगाल और वृषभ ।
(ग) वृषभ और सिंह
(घ) दोनों शृगाल

5. वर्धमान ने संजीवक को किस वन में छोड़ा था?
(क) दण्डक नामक अरण्य में
(ख) नन्दन नामक अरण्य में
(ग) दुर्ग नामक अरण्य में।
(घ) अभयारण्य में

6. पिंगलक कौन था? उसने भयंकर आवाज किसकी सुनी थी?
(क) सिंह था, संजीवक की
(ख) वृषभ था, करटक और दमनक क्री
(ग) सिंह था, स्तब्धकर्ण की
(घ) सिंह था, नन्दक की

7. संजीवक और पिंगलक में किसने मित्रता करायी?
(क) करटक नामक शृगाले ने ।
(ख) दमनक नामक शृगाल ने
(ग) स्तब्धकर्ण नामक सिंह ने
(घ) नन्दक नामक बैल ने।

8. वर्धमान वणिक् ने संजीवक को वन में क्यों छोड़ दिया?
(क) उसे संजीवक की आवश्यकता नहीं थी
(ख) संजीवक नन्दक को मारने लगा था
(ग) वह संजीवक से छुटकारा पाना चाहता था
(घ) संजीवक को.एक पैर टूट गया था

9. पिंगलक नदी के पास जाकर बिना पानी पिये क्यों लौट आया था?
(क) क्योंकि पिंगलक को प्यास नहीं थी।
(ख) क्योंकि नदी का पानी गन्दा था
(ग) क्योंकि नदी में पानी नहीं था।
(घ) क्योंकि संजीवक को गर्जन सुनकर वह डर गया था

10. पिंगलक सिंह ने संजीवक बैल को अपना मित्र क्यों बना लिया?
(क) संजीवक के समान पिंगलक भी शाकाहारी था ।
(ख) पिंगलक को मन्त्री के रूप में बैल की ही आवश्यकता थी
(ग) पिंगलक संजीवक के अच्छे स्वास्थ्य से भयभीत था। |
(घ) पिंगलक के मन्त्री-पुत्र करटक-दमनक ने उसे सलाह दी थी

11. पिंगलक सिंह ने संजीवक बैल को अपना अर्थमन्त्री क्यों बनाया?
(क) क्योंकि संजीवक मांस नहीं खाता था।
(ख) क्योंकि स्तब्धैकर्ण ने ऐसी ही सलाह दी थी
(ग) क्योंकि पिंगलक के सभी साथी ऐसा ही चाहते थे।
(घ) क्योंकि संजीवक ने इसके लिए अनुरोध किया था

12. पिंगलक और संजीवक में किसने युद्ध करवाया
(क) करटक ने
(ख) स्तब्धकर्ण ने
(ग) नन्दक ने
(घ) दमनक ने

13. पिंगलक ने संजीवक को क्यों मार डाला?
(क) क्योंकि पिंगलक संजीवक का मांस खाना चाहता था
(ख) संजीवक ने पिंगलक पर आक्रमण किया था।
(ग) क्योंकि पिंगलक के भाई स्तब्धकर्ण ने ऐसा करने के लिए कहा था
(घ) क्योंकि पिंगलक को विश्वास दिलाया गया था कि संजीवक तुम्हें मारना चाहता है।

14. ‘अनुजीविना कुतः कुशलम्’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) पिङ्गलकः
(ख) दमनकः  
(ग) सञ्जीवकः
(घ) करटकः

15.’•••••••••••••••• सह मम महान् सनेहः’ में रिक्त पद की पूर्ति होगी
(क) ‘सञ्जीवकः’ से
(ख) “सञ्जीवकस्य’ से
(ग) ‘सञ्जीवकेन’ से
(घ) “सञ्जीवकम्’ से

16. ‘सिंहस्य भ्राता •••••••••••••••••नामा सिंहः समागतःवाक्य में रिक्त-पद की पूर्ति होगी— 
(क) ‘दमनक’ से
(ख) “स्तब्धकर्ण’ से
(ग) “करटक’ से
(घ) “संजीवक’ से

17. देव! सञ्जीवकस्तोपर्यसदृश व्यवहारः अवलक्ष्यते।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) स्तब्धकर्णः
(ख) नन्दकः,
(ग) दमनकः
(घ) वर्धमानः

18. ‘अयं स्वामी तवोपरि विकृतबुद्धी रहस्यमुक्तवान्।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) दमनकः
(ख) करटकः
(ग) सञ्जीवकः
(घ) पिङ्गलकः

19. ‘ततस्तयोर्युद्धे सञ्जीवकः•••••••••••••••••• व्यापादितः।’ में रिक्त पद की पूर्ति होगी
(क) ‘सिंहात्’ से
(ख) “सिंहेन’ से
(ग) “सिंहै:’ से
(घ) ‘सिंहम्’ से

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