UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 7 जडभरतः (कथा – नाटक कौमुदी)

By | May 23, 2022

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 7 जडभरतः (कथा – नाटक कौमुदी)

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 7 जडभरतः (कथा – नाटक कौमुदी)

परिचय- भारतीय वाङमय में पुराणों का विशिष्ट स्थान है। इनकी संख्या कुल अठारह मानी गयी है। पुराणों में श्रीमद्भागवत पुराण एक अनुपम, ऐतिहासिक एवं धार्मिक ग्रन्थ है। इसमें समस्त पुराणों का सार संगृहीत है। इसीलिए अन्य पुराणों की तुलना में इसका सर्वाधिक प्रचार-प्रसार है। इसमें बारह स्कन्ध और अठारह हजार श्लोक हैं। प्रस्तुत कथा श्रीमद्भागवत् पुराण के पंचम स्कन्ध में वर्णित है।।
राजर्षि भरत एक महान् भक्त थे, किन्तु एक मृगशावक के मोह में पड़कर मृत्यु के समय भी उसी का स्मरण करते रहे और अगले जन्म में मृगयोनि में उत्पन्न हुए। भगवत्कृपा से पूर्वजन्म का स्मरण बना रहने से मृगयोनि को त्यागकर पुन: उच्च ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुए और संसार से विरक्त रहकर अवधूत वृत्ति से जीवन व्यतीत करते रहे। इन्होंने चोरों के सरदार का चण्डिका देवी के द्वारा विनाश कराया तथा राजा रहूगण को उपदेश देकर उनका अज्ञान दूर किया।

पाठ-सारांश

राजा भरत– प्राचीनकाल में भारत में एक धर्मनिष्ठ और प्रजापालक भरत नाम के राजा हुए। बहुत समय तक राज्य करके, पुत्रों को राज्य-भार देकर वे स्वयं मुनि पुलह के आश्रम में हरिक्षेत्र चले गये। वहाँ वे भगवत्पूजा में सुखपूर्वक अपना जीवन बिताने लगे।

हरिण-शावक का मोह- एक दिन भरत गण्डकी नदी के किनारे ईश्वर-नाम का जप कर रहे थे। वहाँ जल पीने के लिए आयी हुई हिरनी सिंह के भयंकर शब्द को सुनकर नदी के पार चली गयी। नदी लाँघते समय उसका गर्भ नदी के प्रवाह में गिर पड़ा। जल-प्रवाह में बहते हुए मृगशिशु को उठाकर राजर्षि भरत अपने आश्रम में ले आये और बड़े प्रेम से उस्का पालन-पोषण करने लगे। जब वह मृगशावक बड़ा हुआ तो वह ऋषि को छोड़कर भाग गया। उसके वियोग में भरत इतने दु:खी हुए कि उसका स्मरण करते-करते ही उन्होंने प्राण  त्याग दिये और अपने अगले जन्म में मृगयोनि को प्राप्त किया। भगवदाराधना के कारण उनकी पूर्वजन्म की स्मृति नष्ट नहीं हुई थी। अपने मृगयोनि में जन्म लेने के मृगशावक के मोह के कारण को जानकर उन्हें बहुत दु:ख हुआ और वैराग्य-प्राप्त कर उन्होंने मृग-शरीर को त्याग दिया।

ब्राह्मण कुल में जन्म- भरत ने अगले जन्म में अंगिरा गोत्र के ब्राह्मण कुल में जन्म लिया। ब्राह्मण जाति में भी वह भगवान् का ध्यान करते हुए जड़, अन्धे, बहरे के समान आचरण करते थे। पिता की मृत्यु के बाद उनके भाइयों ने उन्हें जड़ (मूर्ख) जानकर घर से निकल दिया। घर छोड़ने के बाद वह मैले-कुचैले वस्त्र पहनकर तत्पश्चात् सर्दी, गर्मी, बरसात में बिना शरीर ढके और बिना स्नान किये घूमते रहते थे।

देवी के द्वारा, रक्षा- एक बार चोरों का सरदार पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से देवी को बलि देने के लिए लाये गये पुरुष के भाग जाने पर भरत को चण्डी देवी के मन्दिर में बलि हेतु ले गया।  चोरों ने उन्हें देवी के सामने बैठाया और उनका सिर काटने के लिए तलवार उठायी। भद्रकाली ने ब्राह्मण को बलि के अयोग्य मानते हुए प्रकट होकर क्रोध से पापी चोरों के सिर काट दिये।

राजा रहूगण को उपदेश– एक बार सिन्धु-सौवीर देशों के राजा रहूगण ने कपिलाश्रम को जाते समय भरत को हृष्ट-पुष्ट समझकर पालकी ढोने के काम में लगा लिया। भरत पालकी ढोते समय भूमि को शुद्ध देखकर चल रहे थे; अतः पालकी को बार-बार ऊपर-नीचे होते देख रहूगण ने भरत को व्यंग्य भरे शब्द कहे। उपहास करते हुए रहूगण से जड़भरत ने कहा-“हे राजन्! आप ठीक कहते हैं। यदि कोई बोझ है तो वह शरीर का है, मेरा नहीं। मोटापा, दुबलापन, बीमारी आदि शरीर की हैं, मेरी नहीं; क्योंकि मैं देह के अभिमान से मुक्त हूँ।”

राजा ने ब्राह्मण के शास्त्रसम्मत वचन सुनकर पालकी से उतरकर उन्हें प्रणाम किया और पूछा कि आप दत्तात्रेय आदि में से कौन-से अवधूत हैं? मैं इन्द्र के वज्र से, शिव के शूल से, यम के दण्ड से भी इतना नहीं डरता, जितना ब्राह्मण कुल के अपमान से डरता हूँ। विज्ञान, रूप और प्रभाव को छिपाये जड़वत् घूमने वाले आप कौन हैं? तब जड़भरत ने राजा से कहा कि “हे राजन्! तुम अज्ञानी होते हुए भी ज्ञानी की तरह  बोल रहे हो। जब तक यह जीव माया को छोड़कर आत्म-तत्त्व को नहीं जानता, तब तक संसार में भटकता रहता है। इस प्रकार जड़भरत रहूगण को तत्त्व-ज्ञान का उपदेश देकर पुनः स्वच्छन्द विचरण करने लगे। राजा रहूगण ने भी देहाभिमान को त्याग दिया।

चरित्र चित्रण

जड़भरत

परिचय-जड़भरत का जन्म राजपरिवार में हुआ था। बाद में मृग-शिशु के मोह में पड़कर इन्होंने मृगयोनि में जन्म लिया। अन्त में अंगिरा गोत्र के ब्राह्मण कुल में जन्म लिया। इनके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) महान् ईश्वर-भक्त–जड़भरत राजा होते हुए भी ईश्वर के परम भक्त थे। राज्य का सुख भोगकर ये भगवद्-भजन के लिए हरिक्षेत्र चले गये थे। ये अनेक पुष्प, तुलसी, जल से भगवान् की पूजा किया करते थे। मृग की योनि में भी इन्हें भगवत्कृपा से पूर्व जन्म का स्मरण था। ब्राह्मण कुल में  जन्म लेने पर इन्होंने अपने असली स्वरूप को छिपाकर जड़, अन्ध और बधिर के समाने आचरण किया। अपने तीनों ही जन्मों में ये पूर्वजन्म के ज्ञाता रहे और सद्भावक भी। सांसारिक मायाजन्य पापकर्म इन्हें किसी भी जन्म में छू तक नहीं पाया था। नर बलि दिये जाने के लिए प्रस्तुत किये जाने पर देवी द्वारा रक्षा किया जाना इनकी भगवद्-भक्ति का ही प्रभाव था।

(2) मृग-शावक के प्रति मोह- भगवत्पूजी में सुखपूर्वक जीवन बिताने पर भी भरत को मृर्ग-शावक का पालन करने के कारण उसके प्रति मोह हो गया था। उसके भाग जाने पर इन्होंने बहुत विलाप किया और उसी का स्मरण करते हुए देह-त्याग किया।

(3) समत्व योगी- जड़भरत की मान-अपमान में कोई रुचि नहीं थी। ब्राह्मण कुल में जन्म पाकर भी ये अपने वास्तविक स्वरूप को छिपाकर जड़, अन्ध और बधिरवत् आचरण करते रहे, जिसके परिणामस्वरूप भाइयों द्वारा घर से निकाल दिये गये। ये मैले-कुचैले वस्त्र पहनकर, सर्दी, गर्मी, वर्षा में शरीर को न ढककर, बिना स्नान किये विचरण करते थे। अज्ञ जनों के उपहास की इन्हें परवाह न थी। चोरों द्वारा नर बलि  के लिए ले जाने पर भी इन्होंने विरोध नहीं किया। ये राजा रहूगण द्वारा पालकी ढोने के काम में लगाये गये और इन्होंने उसके व्यंग्य-वचनों को ऐसे सह लिया, जैसे किसी ने कुछ कहा ही नहीं।

(4) अहिंसक वृत्ति- पालकी ढोते समय साफ भूमि देखकर चलना उनकी अहिंसक वृत्ति का परिचायक है।

(5) उच्च ज्ञानी एवं सदुपदेशक- जड़भरत परम ज्ञानी थे। रहूगण द्वारा अपमान किये जाने पर . भी उन्होंने उसे तत्त्व-ज्ञान की शिक्षा दी। उन्हें देहाभिमान नहीं था। सांसारिक माया को वे संसारपरिभ्रमण का कारण मानते थे। वे ब्रह्मनिष्ठ एवं आत्मज्ञानी पुरुष थे। उन्होंने राजा रहूगण को जिस उपदेशामृत का पान कराया उससे राजा रहूगण का देहाभिमान छूट गया और उसने सत्संगति के लिए ज्ञान के महत्त्व को  भली-भाँति जान लिया। अन्ततः उसने भी राज-पाठ को छोड़ दिया और देहाभिमान । से मुक्त हो गयी। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि जड़भरत अहिंसक वृत्ति के, समत्वयोगी, अध्यात्मनिष्ठ, परम ज्ञानी एवं ईश्वर-भक्त पुरुष थे।

लघु उत्तरीय संस्कृत  प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित  प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिए

प्रश्‍न 1
नृपः भरतः सर्वं विहाय कुत्र गतः?
उत्तर
नृपः भरतः सर्वं विहाय पुलहाश्रमं हरिक्षेत्रम् अगच्छत्।

प्रश्‍न 2
राजर्षिः मृगयोनिं कथं प्राप्तः?
उत्तर
राजर्षे: मरणकाले मृगशावके आसक्तिः आसीत्, अतएव राजर्षिः मृगयोनिं प्राप्तः।

प्रश्‍न 3
भरतः मृगशरीरं विहाय कस्मिन् कुले जन्म लेभे?
उत्तर
भरत: मृगशरीरं विहाय अङ्गिरागोत्रस्य ब्राह्मणकुले जन्म लेभे?

प्रश्‍न 4
भद्रकाली देवी भरतस्य रक्षणाय किमकरोत्?
उत्तर
भद्रकाली देवी भरतस्य रक्षणाय पापिष्ठानां चौराणां वधमकरोत्।

प्रश्‍न 5
चौरराजः कस्माद् हेतोः पुरुषपशु भद्रकाल्यै दातुमियेष?
उत्तर
चौरराजः पुत्र कामनया पुरुषपशु भद्रकाल्यै दातुमियेष।

प्रश्‍न 6
रहूगणः कः आसीत्?
उत्तर
रहूगण: सिन्धुः सौवीरदेशयोः राजा आसीत्।।

प्रश्‍न 7
भरतः रहूगणाय किमुपादिशत्?
उत्तर
भरत: रहूगणाय देहाभिमानं त्यक्तुं मनोरूपं शत्रु हन्तुं हरेश्चरणोपासितुं च उपादिशत्।

वस्तुनिष्ठ प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों में से प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए-

1. ‘जडभरतः’ नामक पाठ किस ग्रन्थ से लिया गया है?
(क) ‘अग्निपुराण’ से
(ख)’रामायण’ से
(ग) “श्रीमद्भागवत् पुराण’ से
(घ) ‘महाभारत’ से

2. ‘श्रीमद्भागवत् पुराण’ के रचयिता कौन हैं?
(क) मनु
(ख) महर्षि अंगिरा
(ग) महर्षि वेदव्यास ।
(घ) महर्षि वाल्मीकि

3. ‘श्रीमद्भागवत्’ पुराण में कितने स्कन्ध और कितने श्लोक हैं?
(क) 12 स्कन्ध, 18 हजार श्लोक
(ख) 18 स्कन्ध, 12 हजार श्लोक
(ग) 18 स्कन्ध, 18 हजारे श्लोक
(घ) 5 स्कन्ध, 15 हजार श्लोक।

4. राजा भरत क्या करके पुलहाश्रम हरिक्षेत्र गये?
(क) बहुत काल तक राज्य-सुख भोगकर
(ख) पुत्रों में धन का विभाजन करके
(ग) सभी सम्पत्ति त्यागकर
(घ) उपर्युक्त तीनों कार्य करके

5. भरत किस नदी के तट पर प्रणव-जप कर रहे थे?
(क) गंगा के
(ख) नर्मदा के
(ग) गण्डकी के
(घ) गोमती के

6. भरत अगले जन्म में किस योनि में उत्पन्न हुए?
(क) देवयोनि में
(ख) गोयोनि में .
(ग) सिंहयोनि में ।
(घ) मृगयोनि में

7. चोरों के राजा द्वारा दी जा रही बलि से जड़भरत की रक्षा कैसे हुई?
(क) जड़भरत अवसर देखकर भाग आये
(ख) पुरोहित ने उन्हें बलि के अयोग्य बताया।
(ग) चोरों के राजा को जड़भरत पर दया आ गयी।
(घ) चण्डी ने प्रकट होकर जड़भरत की रक्षा की

8. ‘सिन्धसौवीर’ देश के राजा का नाम था
(क) भरत
(ख) रहूगण
(ग) पुलह
(घ) दत्तात्रेय

9. रहूगण ने जडभरत की बातों से उनको क्या समझा?
(क) तत्त्वज्ञानी
(ख) असत्यभाषी
(ग) मूर्ख
(घ) पागल

10. रहूगण ने पालकी से उतरकर किसको प्रणाम किया?
(क) जड़भरत को ,
(ख) दत्तात्रेय को।
(ग) चोरों के सरदार को
(घ) भद्रकाली को

11. ‘त्वं सत्यं जानासि ज्ञानिनस्तु मिथ्यात्वेन जानन्ति’, में त्वं’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ। है?
(क) जड़भरत के लिए।
(ख) रहूगण के लिए।
(ग) भद्रकालीन के लिए
(घ) चोरों के सरदार के लिए

12. ‘हे राजन्! त्वमविद्वानपि ज्ञानीव वदसि। अतस्त्वं ज्ञानिनां मध्ये श्रेष्ठो न भवसि।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) चौरराजः
(ख) रहूगणः
(ग) जडभरतः
(घ) भद्रकाली

13. ‘तं श्रुत्वा हरिणी •••••••••• सहसैव नदीमुल्लङ्कितवती।’ वाक्य में रिक्त-पद की पूर्ति होगी
(क) “वृकभयेन’ से ।
(ख) ‘गजभयेन से
(ग) ‘सिंहभयेन’ से
(घ) “शृगालभयेन’ से

14. ‘चौरराजः ••••••••••• सन् भद्रकाल्यै पुरुषपशुमालब्धं प्रवृत्तः।’ वाक्य में रिक्त-स्थान की पूर्ति होगी
(क) ‘सिद्धिकाम:’ से
(ख) अर्थकामः’ से
(ग) ‘राज्यकामःसे।
(घ) “पुत्रकाम: से

15. साधु गच्छत्, कथं यानं विषमं नीयते?’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) रहूगणः
(ख) चौरराजः
(ग) जडभरतः
(घ) वोढारः

16. “हे वीर! यदि कश्चिद् भारः स्यात् स हि वोढुः देहस्य न मम।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) रहूगणः
(ख) चौरराजः
(ग) जडभरतः
(घ) भद्रकाली

17. ‘हे राजन्! त्वमविद्वानपि ••••••••••वदसि।’ वाक्य में रिक्त-पद की पूर्ति होगी ।
(क) ज्ञानीव
(ख) अज्ञानीव
(ग) मूढेव
(घ) जडमिव

18. ‘तव मुर्हतमात्रसङ्गात् मम अविवेको नष्टः।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति? ।
(क) रहूगणः
(ख) जडभरतः
(ग) चौरराजः
(घ) चण्डिका

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