UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 नारी-महिमा (पद्य-पीयूषम्)

By | May 23, 2022

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 नारी-महिमा (पद्य-पीयूषम्)

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter नारी-महिमा (पद्य-पीयूषम्)

परिचय-सामाजिक एवं व्यक्तिगत जीवन के विविध पक्षों पर प्रकाश डालने वाले ग्रन्थों को स्मृति कहते हैं। श्रुति’ से जिस प्रकार वेद, ब्राह्मण, आरण्यक् और उपनिषद् ग्रन्थों का बोध होता है; उसी प्रकार ‘स्मृति’ को ग्रन्थकारों ने धर्मशास्त्र का पर्याय माना है। धर्मशास्त्र उस शास्त्र को कहते हैं, जिसमें राजा-प्रजा के अधिकार, कर्तव्य, सामाजिक आचार-विचार, व्यवस्था, वर्णाश्रम, धर्मनीति, सदाचार और शासन सम्बन्धी नियमों और व्यवस्थाओं का वर्णन होता है। स्मृतियाँ अनेक हैं किन्तु प्रमुख स्मृतियों की संख्या अठारह मानी जाती है। मनु, याज्ञवल्क्य, अत्रि, विष्णु, हारीत, उशनस्, अंगिरा, यम, कात्यायन, बृहस्पति, पराशर, व्यास, दक्ष, गौतम, वसिष्ठ, नारद, भृगु आदि प्रमुख स्मृतिकार माने जाते हैं। मनु को मानव जाति के आदि पुरुष के रूप में वेदों में भी स्मरण किया गया है। मनु द्वारा रचित ‘मनुस्मृति’ न केवल सर्वाधिक प्राचीन है अपितु यह सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण भी है। न्यायालयों में भी हिन्दू-विधि के लिए मनुस्मृति’ को ही प्रामाणिक माना जाता हैं।

प्रस्तुत पाठ के श्लोक ‘मनुस्मृति’ के द्वितीय अध्याय से संगृहीत हैं। इन श्लोकों में समाज और परिवार में नारी के महत्त्व को बताया गया है। अनेक लोग प्राचीन भारत में नारी की स्थिति को निम्न और अपमानपूर्ण बताते हैं। इन संगृहीत श्लोकों से उनकी धारणा भ्रान्तिपूर्ण सिद्ध होती है।

पाठ-सारांश

जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। जहाँ नारियों की पूजा नहीं होती, वहाँ सभी क्रियाएँ असफल हो जाती हैं। स्त्रियों के प्रसन्न रहने पर पूरा कुल प्रसन्न रहता है। इसीलिए नारियाँ सदैव आभूषण, वस्त्र एवं भोजन द्वारा पूजनीय हैं। सांसारिक ऐश्वर्य की इच्छा करने वाले मनुष्यों को चाहिए कि सदैव उत्सवों में इनका सत्कार करें। कल्याण चाहने वाले पिता, भाइयों, पति, देवरों द्वारा नारियों का सम्मान किया जाना चाहिए तथा इन्हें अलंकारों से भूषित किया जाना चाहिए। उपाध्याय से दस गुना आचार्य, आचार्य से सौ गुना पिता तथा पिता से हजार गुना माता गौरव में बढ़कर होती है। स्त्रियाँ सौभाग्यशालिनी तथा पुण्यशालिनी होती हैं। ये गृह की शोभा तथा लक्ष्मी होती हैं। इसलिए इनकी विशेष रूप से रक्षा की जानी चाहिए।

पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या

(1)
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते, सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ॥

शब्दार्थ
यत्र = जहाँ, जिस घर, स्थान, समाज या देश में।
नार्यः = स्त्रियाँ।
पूज्यन्ते = पूजी जाती हैं।
रमन्ते = निवास करते हैं। तत्र । वहाँ।
यत्रैतास्तु (यत्र + एताः + तु) = जहाँ ये नारियाँ।
सर्वास्तत्रफलाः (सर्वाः + तत्र + अफलाः) = वहाँ सभी क्रियाएँ निष्फल होती हैं।

सन्दर्भ
प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत पद्य-पीयूषम्’ के ‘नारी-महिमा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है।

[संकेत-इस पाठ के शेष सभी श्लोकों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में स्त्रियों के महत्त्व का वर्णन किया गया है।

अन्वय
यत्र नार्यः तु पूज्यन्ते, तत्र देवताः रमन्ते। यत्र एताः तु ने पूज्यन्ते, तत्र सर्वाः क्रिया: अफलाः (भवन्ति)।

व्याख्या
जिस देश, समाज या घर में स्त्रियाँ पूजी जाती हैं; अर्थात् सम्मानित होती हैं, वहाँ देवता प्रसन्नतापूर्वक निवास करते हैं। जहाँ पर ये पूजी, अर्थात् सम्मानित नहीं की जाती हैं, वहाँ पर किये गये यज्ञादि सभी कर्म निष्फल हो जाते हैं।

(2)
स्त्रियां तु रोचमानायां, सर्वं तद्रोचते कुलम् ।
तस्यां त्वरोचमानायां, सर्वमेव न रोचते ॥

शब्दार्थ
स्त्रियां = स्त्रियों के।
रोचमानायाम् = वस्त्र, आभूषण आदि से प्रसन्न रहने पर।
रोचते  = अच्छा लगता है, शोभित होता है।
अरोचमानायाम् = अच्छी न लगने पर।
सर्वमेव = सभी कुछ।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में स्त्री के पारिवारिक महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है।

अन्वय
स्त्रियां तु रोचमानायां सर्वं तद् कुलं रोचते। तस्याम् अरोचमानायां तु सर्वम् एव न रोचते।

व्याख्या
स्त्रियों के आभूषण-वस्त्र आदि से प्रसन्न रहने पर उसका वह सारा कुल शोभित होता है। उनके प्रसन्न न रहने पर सभी कुछ अच्छा नहीं लगता है। तात्पर्य यह है कि जिस घर में स्त्रियाँ सुखी हैं, उसी घर में समृद्धि और प्रसन्नता विद्यमान रहती हैं। जहाँ स्त्रियाँ प्रसन्न नहीं रहती हैं, वहाँ कुछ भी अच्छा नहीं लगता है; अर्थात् सम्पूर्ण कुल मलिन रहता है।

(3)
तस्मादेताः सदा पूज्या, भूषणाच्छादनाशनैः।
भूतिकामैनरैर्नित्यं, सत्यकार्येषुत्सवेषु च ॥

शब्दार्थ
सदा पूज्याः = सर्वदा पूजनीय हैं।
भूषणाच्छादनाशनैः = (भूषण + आच्छादन + अशनैः) = आभूषणों, वस्त्रों और भोजन के द्वारा
भूतिकामैः = समृद्धि चाहने वालों को।
सत्कार्येषुत्सवेषु (सत्कार्येषु + उत्सवेषु) = सत्कार्यों में और विवाहादि उत्सवों में। |

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में सत्कार्यों और उत्सवों के अवसर पर नारी को सम्मानित करने की बात कही गयी है।

अन्वय
तस्मात् भूतिकामैः नरैः सत्कार्येषु उत्सवेषु च एताः भूषणाच्छादनाशनैः सदा पूज्याः।।

व्याख्या
इस कारण से समृद्धि चाहने वाले मनुष्यों को शुभ कार्यों और उत्सवों में इनका अर्थात् स्त्रियों का आभूषण, वस्त्र और भोजन द्वारा सदा सम्मान करना चाहिए।

(4)
पितृभिर्भातृभिश्चैताः पतिभिर्देवरैस्तथा। । 
पूज्या भूषयितव्याश्च बहुकल्याणमीप्सुभिः ॥

शब्दार्थ
पितृभिः = पिता आदि द्वारा।
भ्रातृभिः = भाइयों द्वारा।
पतिभिः = पति द्वारा।
देवरैः = देवरों द्वारा।
भूषयितव्याश्च = वस्त्र और अलंकार द्वारा सजाना चाहिए।
बहुकल्याणम् ईप्सुभिः = अधिक कल्याण चाहने वालों को।।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में परिवारजनों द्वारा नारी को सम्मानित करने की बात कही गयी है।

अन्वय
बहु कल्याणम् ईप्सुभिः पितृभिः, भ्रातृभिः, पतिभिः तथा देवरैः एताः पूज्याः भूषयितव्याः च।।

व्याख्या
अपना अधिक कल्याण चाहने वाले माता-पिता आदि द्वारा, भाइयों द्वारा, पतियों तथा देवरों द्वारा इन स्त्रियों को वस्त्र-आभूषण आदि द्वारा अलंकृत करना चाहिए; अर्थात् स्त्री चाहे जिस रूप में; माता, बहन, पत्नी अथवा अन्य कोई भी; हो, उसका सम्मान अवश्य करना चाहिए।

(5)
उपाध्यायान्दशाचार्य आचार्याणां शतं पिता ।
सहस्त्रं तु पितृन्माता, गौरवेणीतिरिच्यते ॥

शब्दार्थ
उपाध्यायन्= वेतनभोगी शिक्षक।
आचार्यः = जिसके गुरुकुल में ब्रह्मचारी विद्या ग्रहण करते हैं।
शतम्= सौ गुना।
सहस्रम् = हजार गुना।
गौरवेण= श्रेष्ठता में।
अतिरिच्यते = श्रेष्ठ होती है।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में नारी के माता रूप के गौरव का वर्णन किया गया है।

अन्वय
दश उपाध्यायान् (अपेक्ष्य) आचार्यः, आचार्याणां शतं (अपेक्ष्य) पिता, सहस्रं पितृन् (अपेक्ष्य) तु माता गौरवेणे अतिरिच्यते।। व्याख्या-दस उपाध्यायों की अपेक्षा आचार्य श्रेष्ठ होता है। सौ आचार्यों की अपेक्षा पिता श्रेष्ठ होता है। हजार पिता की अपेक्षा माता श्रेष्ठ होती है। तात्पर्य यह है कि सबसे ऊँचा स्थान माता का, उसके पश्चात् पिता का, फिर आचार्य का और तत्पश्चात् उपाध्याय का मान्य होता है।

(6)
पूजनीया महाभागाः पुण्याश्च गृहदीप्तयः ।। 
स्त्रियः श्रियो गृहस्योक्ताः तस्माद्रक्ष्या विशेषतः ॥

शब्दार्थ
पूजनीया = पूजा अर्थात् सम्मान के योग्य।
महाभागाः = महान् भाग्यशालिनी।
गृहदीप्तयः = घर की शोभास्वरूप।
श्रियः = लक्ष्मी।
उक्ताः = कही गयी हैं।
रक्ष्या = रक्षा करनी चाहिए।
विशेषतः = विशेष रूप से।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में बताया गया है कि स्त्री सभी दृष्टियों से पूजा करके प्रसन्न रखे जाने •. योग्य है।

अन्वय
पूजनीयाः, महाभागाः, पुण्याः गृहदीप्तयः च स्त्रियः गृहस्य श्रियः उक्ता। तस्मात् । विशेषत: रक्ष्याः। |

व्याख्या
सम्मान के योग्य, महाभाग्यशालिनी, पुण्यशीला और घर की शोभास्वरूप स्त्रियाँ घर की लक्ष्मी कही गयी हैं। इसलिए इनकी विशेष रूप से रक्षा करनी चाहिए। तात्पर्य यह है कि स्त्री सर्वविध पूजनीय और रक्षणीय है।

सूक्तिपरक वाक्य की व्याख्या

(1)
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। 
सन्दर्थ
प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत पद्य-पीयूषम्’ के ‘नारी-महिमा’ पाठ से उद्धृ त है। ।
[संकेत-इस शीर्षक के अन्तर्गत आने वाली शेष सभी सूक्तियों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग
प्रस्तुत सूक्ति में नारियों की महिमा बतायी गयी है। अर्थ-जिस स्थान पर नारियों का सम्मान होता है, वहाँ देवता निवास करते हैं।

व्याख्या
प्रस्तुत सूक्ति में स्त्रियों का सम्मान करने पर बल दिया गया है और कहा गया है कि सदा स्त्रियों का सम्मान करना चाहिए। स्त्रियाँ देवी और लक्ष्मी के समान होती हैं; क्योंकि उनमें मातृत्व पाया जाता है। माता सदा सभी जगह वन्दनीय होती है। नारी के सतीत्व से यमराज भी पराजित हो गये। थे। स्त्रियों का सम्मान जिस घर में होता है, वह घर स्वर्गतुल्य हो जाता है और उस घर में रहने वाले लोगों का जीवन देवताओं के समान सुखी हो जाता है।

(2)
सहस्त्रं तु पितृन्माता गौरवेणातिरिच्यते।
प्रसंग
प्रस्तुत सूक्ति में माता के गौरवशाली स्वरूप का वर्णन किया गया है।

अर्थ
माता गौरव में हजारों पिताओं से बढ़कर होती है।

व्याख्या
माता का पद सर्वाधिक गौरवशाली होता है। उसका. गौरव उपाध्याय, आचार्य और पिता से बढ़कर होता है। समाज में वेतनभोगी शिक्षक का पद भी गौरवशाली होता है, लेकिन वेतनभोगी शिक्षक से आचार्य का पद दस गुना गौरवपूर्ण होता है। सौ आचार्यों से पिता का गौरव अधिक होता है। और हजारों पिताओं से भी माता अधिक गौरवशालिनी होती है। इस प्रकार माता को गौरव गुरु, आचार्य और पिता सबसे अधिक होता है।

(3)
स्त्रियः श्रियो गृहस्योक्ताः तस्मादक्ष्या विशेषतः ।
प्रसंग
प्रस्तुत सूक्ति में स्त्रियों की प्रत्येक परिस्थिति में रक्षा करने की बात कही गयी है।

अर्थ
स्त्रियाँ घर की शोभा कही गयी हैं, इसलिए इनकी विशेष रूप से रक्षा करनी चाहिए।

व्याख्या
घर की शोभा उसको सजाने-सँवारने तथा घर में आये अतिथियों के मान-सम्मान तथा आदर-सत्कार से होती है। इन सभी कार्यों का उत्तरदायित्व स्त्रियों का होता है। पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियाँ ही इन कार्यों को भली प्रकार सम्पादित कर पाती हैं। इसीलिए तो स्त्रियों को घर की शोभा का पर्याय मानकर यह कहा जाने लगा है कि स्त्रियाँ ही घर की शोभा होती हैं।
एक स्त्री घर के इन उत्तरदायित्वों का भली प्रकार निर्वाह तभी कर पाती है, जब वह अपने को आर्थिक तथा सामाजिक सभी प्रकार से सुरक्षित अनुभव करती है। इसलिए घर की शोभा को बनाये रखने हेतु घर की स्त्रियों को उचित मान-सम्मान और सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए।

श्लोक का संस्कृत-अर्थ

(1) यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते ••• तत्राफलाः क्रिया ॥ (श्लोक 1)
संस्कृतार्थः-
महर्षिः मनुः मनुस्मृतौ नारीणां सम्मानं कर्तुम् उपदिशति यत् एषु गृहेषु स्थानेषु वा जनाः नारीणां यथोचितं सम्मानं कुर्वन्ति, तेषु गृहेषु सुख-सम्पत् प्रदातारः सुराः निवासं कुर्वन्ति। यत्र एतासां सम्मानं न भवति, तत्र यानि अपि-कर्माणि क्रियन्ते, तानि फलदानि न भवन्ति। अतः नारीणां सम्मानम् अवश्यं करणीयम्।

(2) स्त्रियां तु रोचमानायां•••न रोचते ॥ (श्लोक 2).
संस्कृतार्थः-
महर्षिः मनुः नारीणां महत्त्वं वर्णयन् कथयति यत् यस्मिन् कुले समाजे वा स्त्रियः स्वयोग्यतया न शोभन्ते, यत् सर्वं कुलं न शोभते। यस्मिन् कुले नारी शोभां प्राप्तुं न शक्नोति तत् सर्वं कुलं समाजे शोभां न प्राप्नोति।

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