UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 9 प्राचीनाः पञ्चवैज्ञानिकाः (कथा – नाटक कौमुदी)

By | May 23, 2022

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 9 प्राचीनाः पञ्चवैज्ञानिकाः (कथा – नाटक कौमुदी)

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 9 प्राचीनाः पञ्चवैज्ञानिकाः (कथा – नाटक कौमुदी)

परिचय- मनुष्य के मन में ब्रह्माण्ड के ग्रहों, उपग्रहों, नक्षत्रादि को देखकर इनके सम्बन्ध में सृष्टि , के प्रारम्भ से ही जिज्ञासा रही है। भारत के ज्योतिर्विद् आचार्यों ने बड़े परिश्रम से इनके बारे में सूक्ष्म जानकारी प्राप्त की। इस दिशा में सबसे पहले आचार्य वराहमिहिर ने ईसा की चौथी शती के उत्तरार्द्ध में ‘पञ्चसिद्धान्तिका’ नामक ग्रन्थ लिखकर पूर्व-प्रचलित सिद्धान्तों का परिचय दिया। इनके पश्चात्

आर्यभट ने ईसा की छठी शती के पूर्वार्द्ध में ‘आर्यभटीय’ और ‘तन्त्र’ नामक दो ग्रन्थों की रचना की। इनके लगभग सौ वर्षों के पश्चात् भास्कराचार्य (प्रथम) नामक ज्योतिर्विद् ने ‘आर्यभटीय’ पर भाष्य लिखा तथा ‘लघु-भास्कर्य’ और ‘महा-भास्कर्य’ नामक दो ग्रन्थों की रचना कर उन्हीं (आर्यभट) के सिद्धान्तों का प्रसार किया। इनके पश्चात् ब्रह्मगुप्त नाम के अत्यन्त प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य हुए, जिन्होंने ‘खण्डखाद्यक’ और ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त’ नामक दो ग्रन्थों की रचना की। इनके पश्चात् ग्यारहवीं शताब्दी ईस्वी में भास्कराचार्य (द्वितीय) हुए, जिन्होंने चार प्रसिद्ध ज्योतिष-ग्रन्थों ‘लीलावती’, ‘बीजगणित’, ‘सिद्धान्तशिरोमणि’ और ‘करणकुतूहल’ की रचना की। प्रस्तुत पाठ में इन्हीं भारतीय विद्वानों का परिचय कराया गया है।

पाठ-सारांश

(1) वराहमिहिर— यह रत्नगर्भा भारतभूमि अनेक वैज्ञानिकों की जन्मदात्री रही है। राजा विक्रमादित्य की सभा के नवरत्नों में वराहमिहिर नाम के एक गणितज्ञ विद्वान् थे। इनके पिता आदित्यदास भगवान् सूर्य के उपासक थे। सूर्य की उपासना से प्राप्त अपने पुत्र का नाम उन्होंने वराहमिहिर रखा। वराहमिहिर की विद्वत्ता से प्रभावित होकर ‘विक्रमादित्य’ उपाधिधारी सम्राट चन्द्रगुप्त ने इन्हें अपनी सभा के नवरत्नों में स्थान दिया।

वराहमिहिर राजकीय कार्य के पश्चात् अपने समय का उपयोग ग्रहों की गणना और पुस्तक लिखने में किया करते थे। फलित ज्योतिष में अधिक रुचि होते हुए भी इन्होंने अपने ‘वृहत्संहिता नामक ग्रन्थ में ग्रह-नक्षत्र की गणना से संवत् का निर्धारण, सप्तर्षि मण्डल के उदय तथा अस्त के काल को निश्चित किया।

वराहमिहिर ने प्राचीन और मध्यकाल के राजाओं की उत्पत्ति का समय भी निर्धारित किया। इन्होंने अपने ‘पञ्चसिद्धान्तिका’ ग्रन्थ की रचना करके लोगों को पूर्व प्रचलित पितामह, रोमक, पोलिश, सूर्य, वशिष्ठ आदि के सिद्धान्तों से अवगत कराया। इन्होंने पृथ्वी के उत्पत्तिविषयक और धूमकेतु के उत्पत्तिविषयक और धूमकेतु के उत्पत्ति सम्बन्धी सिद्धान्तों की भी खोज की।

(2) आर्यभट्ट– आर्यभट्ट भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी और गणितज्ञ थे। इन्होंने ‘आर्यभटीय’ और ‘तन्त्र’ नामक दो ग्रन्थों की रचना की। इन्होंने आर्यभटीय ग्रन्थ में वृत्त का व्यास और परिधि, अनुपात

आदि विषय प्रस्तुत किये। इन्होंने सूर्य और चन्द्र-ग्रहण के विषय में राहु और केतु द्वारा ग्रसे जाने की प्रचलित धारणी का तर्को से खण्डन किया और सिद्ध किया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर सूर्य के चारों ओर चक्कर लग्नाती है। इन्होंने अपने आर्यभटीय ग्रन्थ में शून्य का महत्त्व, रेखागणित, बीजगणित, अंकगणित आदि के विषयों का अन्तर स्पष्ट किया। इनके कार्यों के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए ही भारत के प्रथम उपग्रह का नाम आर्यभट्ट’ रखा गया।

(3) भास्कराचार्य (प्रथम)- भारतीय खगोल-वैज्ञानिकों में दो भास्कराचार्य हुए। इनमें से प्रथम भास्कराचार्य 600 ईसवी में दक्षिण भारत में हुए। इन्होंने ‘आर्यभटीय भाष्य’, ‘महाभास्कर्य’ और ‘लघुभास्कर्य’ नामक तीन ग्रन्थों की रचना करके आर्यभट्ट के सिद्धान्तों को ही विवेचन किया।

(4) ब्रह्मगुप्त- ब्रह्मगुप्त ने 598 ईसवी में ‘ब्रह्मसिद्धान्त’ ग्रन्थ की रचना की। भास्कर द्वितीय ने इन्हें ‘गणक चक्र-चूड़ामणि’ की उपाधि से विभूषित किया। ब्रह्मगुप्त ने आर्यभट्ट के द्वारा स्थापित सिद्धान्तों का खण्डन किया। इन्होंने पूर्वकाल के श्रीसेन, विष्णुचन्द्र, लाट, प्रद्युम्न आदि विद्वानों के सिद्धान्तों की भी आलोचना की। इनके ‘खण्डखाद्यक’ और ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त’ नामक दो ग्रन्थों का अनुवांद ‘अरबी भाषा में हुआ।

(5) भास्कराचार्य (द्वितीय)- भास्कराचार्य द्वितीय प्राचीन वैज्ञानिकों में सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। इन्होंने अपना जन्म-स्थान ‘विज्जऽविड’ तथा जन्म-समय 1114 ईसवी लिखा है। इनकी प्रसिद्धि ‘सिद्धान्तशिरोमणि’, ‘लीलावती’, ‘बीजगणित’ और ‘करणकुतूहल’ नामक पुस्तकों के कारण हुई। इनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना ‘लीलावती’ है। इनकी ‘सूर्यसिद्धान्त’ पुस्तक के अंग्रेजी अनुवाद को पढ़कर अनेक पाश्चात्य विद्वान् अत्यधिक प्रभावित हुए।

इन्होंने सिद्ध किया कि गोलाकार पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है। इन्होंने बताया कि सूर्य के ऊपर चन्द्रमा की छाया पड़ने के कारण सूर्यग्रहण तथा चन्द्रमा के ऊपर पृथ्वी की छाया पड़ने से चन्द्र-ग्रहण होता है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक न्यूटन के पूर्व ही भास्कराचार्य ने बता दिया था कि पृथ्वी अपने केन्द्र से सभी वस्तुओं को खींचती है तथा पृथ्वी ग्रह-नक्षत्रों की आपसी आकर्षणशक्ति से ही इस रूप में स्थित है।

भास्कराचार्य ने बीजगणित विषय में भी अनेक नये तथ्यों का आविष्कार किया था। उन्होंने बाँस की नली की सहायता से ही गणना करके अपने सिद्धान्तों की पुष्टि करके झूठे विचारों का खण्डन किया। बाद में उनके गणित के सिद्धान्त वैज्ञानिक उपकरणों से परीक्षित करने पर शुद्ध पाये गये। वे एक-एक नक्षत्र के बारे में सोचते हुए रात-रातभर नहीं सोते थे। उनके कार्यों की स्मृति में ही आधुनिक भारतीयों ने दूसरे उपग्रह का नाम भास्कर रखा।

चरित्र चित्रण

 आर्यभट्ट

परिचय- वैदेशिक वैज्ञानिक आये-दिन नित नये सिद्धान्तों के प्रतिपादन की बात करते हैं, जब . कि भारतीय वैज्ञानिकों ने उन सिद्धान्तों का प्रतिपादन आज से हजारों वर्ष पूर्व कर दिया था। यह भारत

की विडम्बना ही है कि हमने अपने वैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों का प्रचार-प्रसार नहीं किया, जब कि उन्हीं सिद्धान्तों को दूसरे वैज्ञानिक आज अपने नामों से प्रचारित-प्रसारित कर रहे हैं। हमारे ऐसे ही प्राचीन वैज्ञानिकों में एक नाम है–आर्यभट्ट का। उनके चरित्र की जितनी प्रशंसा की जाये, कम है। उनका चरित्र-चित्रण निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है|

(1) महान् संस्कृतज्ञ– आर्यभट्ट वैज्ञानिक होने के साथ-साथ महान् संस्कृतज्ञ भी थे। उन्होंने उत्कृष्ट संस्कृत में ‘आर्यभटीय’ और ‘तन्त्र’ नामक दो ग्रन्थों की रचना की, जिन पर अनेक भाष्य और व्याख्याएँ लिखी गयीं।

(2) महान् ज्योतिर्विद्- भारत क्या, अपितु विश्व के महान् ज्योतिषाचार्यों की गणना में आर्यभट्ट का स्थान सर्वोपरि है। उन्होंने प्राचीन परम्परा से चली आ रही ज्योतिषविषयक राहु-केतु जैसे ग्रहों की अवधारणाओं को खण्डन करके उनके विषय में वैज्ञानिक और तर्कसंगत सिद्धान्तों का प्रतिपादन करके ज्योतिष को वैज्ञानिक रूप प्रदान किया। |”

(3) मूर्धन्य खगोलज्ञ- अन्तरिक्ष एवं ग्रहों से सम्बन्धित प्रामाणिक जानकारी महान् वैज्ञानिक आर्यभट्ट ने ही विश्व को उपलब्ध करायी। उन्होंने सर्वप्रथम इस तथ्य का रहस्योद्घाटन किया कि पृथ्वी स्थिर नहीं है, वरन् वह अपने स्थान पर घूमती रहती है। सूर्य, चन्द्रमा, अन्य ग्रहों और उपग्रहों के विषय में भी उन्होंने अनेक रहस्यों का उद्घाटन करके विश्व को आश्चर्यचकित कर दिया।

(4) श्रेष्ठ गणितज्ञ- आर्यभट्ट एक महान् वैज्ञानिक होने के साथ-साथ एक श्रेष्ठ गणितज्ञ भी थे। उन्होंने अपने ‘आर्यभटीय’ नामक ग्रन्थ में शून्य के महत्त्व को प्रतिपादित करने के अतिरिक्त रेखागणित, बीजगणित और अंकगणित के अनेक सिद्धान्तों के प्रतिपादन के साथ ही इनके सूक्ष्म अन्तरों के विवेचन को भी स्पष्ट किया। | निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि आर्यभट्ट विलक्षण मेधा के धनी वैज्ञानिक थे, जिन्होंने विज्ञान, ज्योतिष, गणित एवं खगोल के क्षेत्र में भारतीय मेधा का लोहा विश्व से मनवाकर हमारे राष्ट्रीय गौरव को उन्नत किया।

कुछ महत्त्वपूर्ण प्रश्‍न

प्रश्‍न 1
आचार्य वराहमिहिर ने सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण एवं सप्तर्षिमण्डल-विषयक किन . तथ्यों को प्रस्तुत किया है? लिखिए।
उत्तर
प्रस्तुत प्रश्न का पूर्व अर्द्धश त्रुटिपूर्ण है; क्योंकि सूर्य-ग्रहण एवं चन्द्र-ग्रहण के विषय में वराहमिहिर ने कोई तथ्य प्रस्तुत नहीं किया है, वरन् इनसे सम्बन्धित तथ्य आर्यभट्ट ने प्रस्तुत किये हैं। : हाँ, सप्तर्षिमण्डल विषयक तथ्य इन्हीं के द्वारा प्रतिपादित हैं। इन्होंने सप्तर्षिमण्डले के उदय तथा अस्त होने के निश्चित समय का उद्घाटन किया था।

प्रश्‍न 2
आचार्य आर्यभट्ट के अवदानों और उनके व्यक्तिगत जीवन के सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर
आचार्य आर्यभट्ट ने अवदानस्वरूप वृत्त के व्यास, परिधि, अनुपात आदि गणित-विषयक, सूर्य-ग्रहण, चन्द्र-ग्रहण एवं पृथ्वी के अपने स्थान पर घूमने सम्बन्धी और सूर्य की । परिक्रमा करने के भूगोलविषयक तथ्य प्रस्तुत किये।

इनका जन्म तथा शिक्षा कुसुमपुर में हुई। ये गणित तथा ज्योतिष के महान् ज्ञाता थे। इन्होंने ‘आर्यभटीय’ तथा ‘तन्त्र’ नामक दो ग्रन्थों की रचना की। इनकी श्लाघनीय खोजों के लिए भारत सरकार ने इनके सम्मान में प्रथम उपग्रह का नाम आर्यभट्ट रखा।

प्रश्‍न 3
भास्कराचार्य प्रथम कहाँ के निवासी थे? उनके समय और लिखी गयी पुस्तकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
भास्कराचार्य प्रथम दक्षिण भारत के निवासी थे। विद्वान् इनका समय 600 ईसवी निर्धारित करते हैं। इन्होंने आर्यभटीय भाष्य, महाभास्कर्य एवं लघुभास्कर्य नामक तीन ग्रन्थों की रचना की।

प्रश्‍न 4
आचार्य ब्रह्मगुप्त के बारे में पाठ के आधार पर हिन्दी में 15 पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर
महान् ज्योतिर्विद् ब्रह्मगुप्त का जन्म 598 ईसवी में हुआ। भास्कराचार्य प्रथम के उपरान्त इनका आविर्भाव हुआ। इन्होंने ‘ब्रह्मसिद्धान्त’ नामक ग्रन्थ की रचना की। इनकी विद्वत्ता का परिचय इस बात से मिलता है कि भास्कराचार्य द्वितीय ने इन्हें ‘गणकचक्रचूड़ामणि’ की उपाधि से अलंकृत किया। इन्होंने आर्यभट्ट द्वारा प्रतिपादित एवं भास्कराचार्य प्रथम द्वारा पुनरीक्षित सिद्धान्तों का खण्डन किया। इन्होंने अपने पूर्ववर्ती श्रीसेन, विष्णुचन्द्र, लाट, प्रद्युम्न आदि विद्वानों के सिद्धान्तों की भी सम्यक्

आलोचना की। इनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों का प्रायः इनके बाद के सभी वैज्ञानिकों ने अनुकरण किया। इनके सिद्धान्तों की सत्यता, उपयोगिता के कारण ही इनके ग्रन्थों का विदेशी भाषाओं में भी अनुवाद किया गया। इनके ‘खण्डखाद्यक’ एवं ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त’ नामक दो ग्रन्थों का अनुवाद अरबी भाषा में हुआ। विज्ञान के क्षेत्र में इनका योगदान अविस्मरणीय है।

प्रश्‍न 5
भास्कराचार्य द्वितीय ने किन सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया? लिखिए।
उत्तर
भास्कराचार्य द्वितीय ने पृथ्वी के गोल होने, सूर्य के चारों ओर निश्चित कक्षा में पृथ्वी के घूमने, सूर्य के ऊपर चन्द्रमा की छाया पड़ने पर सूर्य-ग्रहण तथा पृथ्वी की छाया चन्द्रमा के ऊपर पड़ने पर चन्द्रग्रहण होने, पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण शक्ति के होने, ग्रह-नक्षत्रों की आकर्षण शक्ति के कारण पृथ्वी के ब्रह्माण्ड में वर्तमान स्थिति में स्थित होने तथा बीजगणित के अनेकानेक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया।

लघु-उतरीय संस्कृत प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों के संस्कृत में उत्तर लिखिए

प्रश्‍न 1
अस्मिन् अध्याये वर्णिताः वैज्ञानिकाः के के सन्ति?
उत्तर-
अस्मिन्  अध्याये वर्णिताः वराहमिहिरः, आर्यभट्टः, भास्कराचार्यः प्रथमः, ब्रह्मगुप्तः, भास्कराचार्यः द्वितीय: चेति पञ्चवैज्ञानिकाः सन्ति।

प्रश्‍न 2
तेषां पुस्तकानां नामानि कानि सन्ति?
उत्तर
तेषां पुस्तकानां नामानि निम्नांकितानि सन्ति
वैज्ञानिकाः
वृहत्संहिता
आर्यभट्टः
भास्कराचार्यः (प्रथमः)

ब्रह्मगुप्तः
भास्कराचार्य (द्वितीयः)

पुस्तकानां नामानि  ।

(i) पञ्चसिद्धान्तिका, (ii) वृहत्संहिता। आर्यभट्टः ।
(i) आर्यभटीयम्,       (ii) तन्त्रम्।
(i) आर्यभटीयम् भाष्यम्, (ii) महाभास्कर्यम्,
(ii) लघुभास्कर्यम्। ब्रह्मगुप्तः
(i) खण्डखाद्यक, (ii) ब्रह्मस्फुटसिद्धान्तः भास्कराचार्य (द्वितीयः)
(i) सिद्धान्तशिरोमणिः, (ii) लीलावती,
(iii) बीजगणित, | (iv) करणकुतूहलम्।

प्रश्‍न 3
ग्रहणविषये पूर्वे का धारणासी?
उत्तर
ग्रहणविषये पूर्वेषां धारणा आसीत् यत् सूर्यचन्द्रमसौ राहु-केतुभ्यां ग्रस्येते।

प्रश्‍न 4
आर्यभटीयं केन विरचितम्?
उत्तर
आर्यभटीयम् आर्यभट्टेन विरचितम्।

प्रश्‍न 5
भास्कराचार्यः केन यन्त्रसाहाय्येन नक्षत्राणां परीक्षणमकरोत्?
उत्तर
भास्कराचार्यः वंशनलिका साहाय्येन नक्षत्राणां परीक्षणमकरोत्।

प्रश्‍न 6
भारतवर्षस्य प्रथमोपग्रहः कस्य नाम सूचयति?
उत्तर
भारतवर्षस्य प्रथमोपग्रहः ‘आर्यभट्टः आर्यभट्टस्य नाम सूचयति।

प्रश्‍न 7
गणकचक्रचूडामणिः कस्य पदव्यासीत्?
उत्तर
गणकचक्रचूडामणिः ब्रह्मगुप्तस्य पदव्यासीत्।

प्रश्‍न 8

वराहमिहिरस्य पितुः नाम किमासीत्?
उत्तर
वराहमिहिरस्य पितुः नाम आदित्यदासः आसीत्।

प्रश्‍न 9
चन्द्रगुप्तविक्रमादित्येन स्वसभायां कस्मै कुत्र च स्थानं दत्तम्।
उत्तर
चन्द्रगुप्तविक्रमादित्येन स्वसभायां वराहमिहिराय नवरत्नेषु स्थानं दत्तम्।

प्रश्‍न 10
आर्यभट्टप्रस्थापितसिद्धान्तानां प्रत्याख्याता कः आसीत्?
उत्तर
आर्यभट्टप्रस्थापितसिद्धान्तानां प्रत्याख्याता ब्रह्मगुप्तः आसीत्?

प्रश्‍न 11
वराहमिहिरेण स्वग्रन्थे के पञ्चसिंद्धान्तोः प्रस्तुतः?
उत्तर
वराहमिहिरेण स्वग्रन्थे पैतामह-रोमक-पोलिश-सूर्य-वशिष्ठादीनां सिद्धान्ताः प्रस्तुताः

प्रश्‍न 12
भारतवर्षस्य द्वितीयोपग्रहः कस्य नाम सूचयति?
उत्तर
भारतवर्षस्य द्वितीयोपग्रहः ‘भास्करः’ भास्कराचार्य द्वितीयस्य नाम सूचयति।

वस्तुनिष्ठ प्रनोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों में से प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए

1. विक्रमादित्य की सभा के नवरत्नों में से एक कौन थे?
(क) ब्रह्मगुप्त
(ख) वराहमिहिर
(ग) भास्कराचार्य प्रथम
(घ) आर्यभट्ट

2. वराहमिहिर की रचना का क्या नाम है?
(क) करणकुतूहलम् ।
(ख) पञ्चसिद्धान्तिका
(ग) सिद्धान्तशिरोमणि
(घ) तन्त्रम् ।

3. वराहमिहिर राजकीय कार्य से बचे समय का उपयोग किस रूप में करते थे?
(क) ग्रन्थों की रचना करते थे
(ख) अपने परिवार के साथ विनोद करते थे
(ग) भगवान सूर्य की उपासना करते थे
(घ) भ्रमण करते थे ।

4. सूर्य और चन्द्रग्रहण के विषय में प्रचलित अवधारणा का खण्डन किसने किया था?
(क) वराहमिहिर ने
(ख) भास्कराचार्य द्वितीय ने
(ग) ब्रह्मगुप्त ने ।
(घ) आर्यभट्ट ने।

5. भास्कराचार्य प्रथम का समय और विषय-क्षेत्र क्या है?
(क) 498 ई०/गणितज्ञ
(ख) 1114 ई०/ज्योतिर्विद
(ग) 600 ई०/खगोलज्ञ
(घ) 500 ई०/खगोलज्ञ

6. ब्रह्मगुप्त द्वारा ब्रह्मसिद्धान्त’ ग्रन्थ की रचना की गयी ।
(क) 598 ई० में
(ख) 698 ई० में
(ग) 498 ई० में :
(घ) 398 ई० में

7. ‘गणकचक्रचूड़ामणि’ की उपाधि ब्रह्मगुप्त को किसके द्वारा प्रदत्त की गयी थी?
(क) आर्यभट्ट द्वारा
(ख) भास्कराचार्य प्रथम द्वारा।
(ग) भास्कराचार्य द्वितीय द्वारा
(घ) वराहमिहिर द्वारा

8. ‘पृथ्वी गोल है और सूर्य का चक्कर लगाती है’ इस तथ्य के प्रथम प्रतिपादक थे
(क) ब्रह्मगुप्त ।
(ख) आर्यभट्ट
(ग) भास्कराचार्य द्वितीय
(घ) भास्कराचार्य प्रथम

9.’लीलावती’ और ‘बीजगणित’ नामक रचनाओं के रचयिता हैं.
(क) आदित्यदास
(ख) ब्रह्मगुप्त
(ग) श्रीसेनविष्णुचन्द्र
(घ) भास्कराचार्य द्वितीय

10. भारत द्वारा प्रेषित प्रथम उपग्रह का क्या नाम था?
(क) वराहमिहिर
(ख) भास्कर
(ग) आर्यभट्ट
(घ) एस० एन० एल० वी

11. कस्य जनकः आदित्यदासः आसीत्?
(क) ब्रह्मगुप्तस्य
(ख) भास्कराचार्यस्य
(ग) वराहमिहिरस्य
(घ) आर्यभट्टस्य

12. केन प्रतिपादितं यत् पृथ्वी स्वस्थाने भ्रमन्ती सूर्यं परिक्रामति?
(क) आर्यभट्टेन
(ख) वराहमिहिरेण
(ग) भास्कराचार्येण
(घ) ब्रह्मगुप्तेन ।

13.’•••••••••• उषित्वा आर्यभट्टः विद्यार्जनम् अकरोत्।’ वाक्य में रिक्त स्थान की पूर्ति होगी
(क) ‘प्रयागे’ से
(ख) “कुसुमपुरे’ से
(ग) वाराणस्याम्’ से
(घ) “काम्पिल्ये’ से ।

14. ‘खण्डखाद्यक ब्रह्मस्फुटसिद्धान्तयोरनुवादः •••••••••••••• भाषायामपि जातः।’ में वाक्य-पूर्ति
(क) “हिन्दी’ से ।
(ख) “लैटिन’ से ,
(ग) “आंग्ल’ से
(घ) “अरबी’ से

15. केन निर्धारितं यद् गोलकाकारा पृथ्वी परिक्रामति सूर्यम्? |
(क) वराहमिहिर ।
(ख) ब्रह्मगुप्त
(ग) आर्यभट्ट
(घ) भास्कराचार्य (द्वितीय)

16. ‘सूर्योपरि चन्द्रस्य छाया यदा पतति तदा ••••••••••••••• भवति।’ वाक्य में रिक्त-पद की पूर्ति होगी
(क) पूर्णिमा’ से
(ख) सूर्यग्रहणम्’ से
(ग) ‘उल्कापातम्’ से
(घ) चन्द्रग्रहणम्’ से

17. बीजगणित विषयेऽपि केन अनेकानां नूतनतथ्यानामाविष्कारः कृतः?
(क) वराहमिहिरेण
(ख) ब्रह्मगुप्तेन
(ग) भास्कराचार्यद्वितीयेन ।
(घ) आर्यभट्टेन

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