UP Board Class 10 Social Science Geography | विनिर्माण उद्योग

By | April 23, 2021

UP Board Class 10 Social Science Geography | विनिर्माण उद्योग

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Geography Chapter 6 विनिर्माण उद्योग

अध्याय 6.                      विनिर्माण उद्योग
 
                   अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर के प्रश्न
(क) एन०सी०ई० आर०टी० पाठ्य-पुस्तक
                    बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. (i) निम्न में से कौन-सा उद्योग चूना-पत्थर को कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त करता है?
(क) एल्युमीनियम उद्योग
(ख) सीमेंट उद्योग
(ग) चीनी उद्योग
(घ) पटसन उद्योग
                        उत्तर―(ख) सीमेंट उद्योग
 
(ii) निम्न में से कौन-सी एजेंसी सार्वजनिक क्षेत्र में स्टील को बाजार में उपलब्ध कराती
(ख) टाटा स्टील
(क) हेल (HAIL)
(ग) सेल (SAIL)
(घ) एम.एन.सी.सी (MNCC)
                                        उत्तर―(ग) सेल (SAIL)
 
(iii) निम्न में से कौन-सा उद्योग बॉक्साइट को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करता है?
(क) एल्युमीनियम प्रगलन
(ख) कागज
(ग) सीमेंट
(घ) स्टील
             उत्तर―(क) एल्युमीनियम प्रगलन
 
(iv) निम्न में से कौन-सा उद्योग दूरभाष, कंप्यूटर आदि संयंत्र निर्मित करता है?
(क) स्टील
(ख) इलेक्ट्रोनिक्स
(ग) एल्युमीनियम प्रगलन
(घ) सूचना-प्रौद्योगिकी
                              उत्तर―(ख) इलेक्ट्रोनिक्स
 
प्रश्न 2.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए―
(i) विनिर्माण क्या है?
उत्तर― कच्चे माल को मूल्यवान उत्पाद में परिवर्तित करके अधिक मात्रा में वस्तुओं के
उत्पादन को ‘विनिर्माण’ अथवा ‘वस्तु-निर्माण’ कहा जाता है; जैसे-लकड़ी से कागज का
निर्माण करना, गन्ने से चीनी का निर्माण करना, लौह-अयस्क से इस्पात का निर्माण करना तथा
बॉक्साइट से एल्युमीनियम का निर्माण करना विनिर्माण के ही उदाहरण हैं।
(ii) उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले तीन भौतिक कारक बताइए।
उत्तर―उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले तीन भौतिक कारकों का संक्षिप्त
उल्लेख निम्नलिखित है―
1. कच्चे माल की उपलब्धता―अधिकांश उद्योग वहीं स्थापित किए जाते हैं, जहाँ उनके
लिए कच्चा माल सरलता से उपलब्ध हो सके; जैसे-अधिकांश लौह-इस्पात उद्योग
प्रायद्वीपीय भारत में ही हैं, क्योंकि वहाँ लोहे की खानें हैं और कच्चा माल आसानी से 
उपलब्ध हो जाता है।
2. शक्ति के विभिन्न साधन―उद्योगों को चलाने के लिए शक्ति के विभिन्न साधनों की
भी आवश्यकता होती है। इसलिए जहाँ ये साधन सुलभ होंगे, वहीं उद्योगों की स्थापना
सम्भव हो सकेगी।
3. जल की सुलभता―विभिन्न उद्योगों के लिए जल की भी आवश्यकता होती है। जिन
स्थानों में जल पर्याप्त मात्रा में सुलभ हो जाता है, वहीं उद्योगों की स्थापना की जाती है।
उदाहरण के लिए, पश्चिमी बंगाल में जूट की अधिकांश मिलें स्थापित होने का एक
प्रमुख कारण यही है कि वहाँ हुगली नदी से आसानी से पानी सुलभ हो जाता है।
 
(iii) औद्योगिक अवस्थिति को प्रभावित करने वाले तीन मानवीय कारक बताइए।
उत्तर―औद्योगिक अवस्थिति को प्रभावित करने वाले तीन मानवीय कारकों का संक्षिप्त
परिचय निम्नवत् है―
1. सस्ते श्रमिकों क उपलब्धता―जहाँ विभिन्न उद्योगों में काम करने हेतु सस्ते श्रमिक
उपलब्ध होते हैं, वहीं अधिकांश उद्योग स्थापित किए जाते हैं।
2. संचार एवं परिवहन के साधनों की सुलभता―विभिन्न उद्योगों में कच्चा माल
पहुँचाने तथा तैयार माल को बाजार तक ले जाने के लिए संचार एवं परिवहन के अच्छे
साधन आवश्यक हैं। जहाँ ये साधन अच्छी प्रकार से सुलभ होते हैं, वहीं अधिकांश
उद्योगों की स्थापना की जाती है।
3. पूँजी व बैंक की सुविधाएँ―विभिन्न प्रकार के उद्योगों को स्थापित करने हेतु पूँजी की
भी आवश्यकता होती है। जिन क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाएँ अच्छी होती हैं, वहीं अधिकांश
उद्योग लगाए जाते हैं।
(iv) ‘आधारभूत उद्योग क्या है? उदाहरण देकर बताइए।
उत्तर―ऐसे उद्योग; जो केवल अपने लिए ही महत्त्वपूर्ण नहीं हैं, वरन् उनकी महत्ता
इसलिए भी होती है, क्योंकि बहुत-से दूसरे उद्योग भी जिन पर आश्रित होते हैं, ऐसे उद्योगों
को ही ‘आधारभूत उद्योग’ कहा जाता है। उदाहरण के लिए, लौह-इस्पात उद्योग एक
आधारभूत उद्योग है, क्योंकि अन्य सभी भारी, हल्के और मध्यम उद्योग इनसे बनी
मशीनरियों पर निर्भर होते हैं। अनेक प्रकार के इंजीनियरिंग सामान, निर्माण सामग्री, रक्षा,
चिकित्सा, टेलीफोन, वैज्ञानिक उपकरण व विभिन्न प्रकार की उपभोक्ता वस्तुओं के
उत्पादन एवं निर्माण के लिए इस्पात की ही आवश्यकता होती है।
 
प्रश्न 3.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए―
(i) समेवित इस्पात उद्योग मिनी इस्पात उद्योगों से कैसे भिन्न है? इस उद्योग की क्या
समस्याएँ हैं? किन सुधारों के अन्तर्गत इसकी उत्पादन क्षमता बढ़ी है?
उत्तर―समेवित इस्पात उद्योग और मिनी इस्पात उद्योग-समेवित इस्पात उद्योग लोहा
तथा इस्पात उद्योग एक आधारभूत उद्योग हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-संकलित उद्योग तथा
मिनी इस्पात उद्योग। भारत में 10 मुख्य संकलित उद्योग तथा बहुत-से छोटे इस्पात संयंत्र हैं।
एक समेवित अथवा संकलित इस्पात संयत्र बड़ा संयंत्र होता है, जिसमें कच्चे माल को एक
स्थान पर एकत्रित करने से लेकर इस्पात बनाने, उसे ढालने और उसे आकार देने तक की
प्रत्येक क्रिया होती है। मिनी इस्पात उद्योग छोटे संयंत्र हैं, जिनमें विद्युत भट्टी, रद्दी इस्पात व
स्पंज-आयरन का प्रयोग होता है। इनमें रि-रोलर्स होते हैं, जिनमें इस्पात सिल्लियों का प्रयोग
किया जाता है। ये हल्के स्टील या निर्धारित अनुपात के मृदु व मिश्रित इस्पात का उत्पादन
करते हैं।
लोहा-इस्पात उद्योग की प्रमुख समस्याएँ―लोहा-इस्पात उद्योग के सामने कई समस्याएँ
रही हैं। इनमें से कुछ प्रमुख समस्याओं का उल्लेख इस प्रकार है―
1. उच्च लागत तथा कोकिंग कोयले की सीमित उपलब्धता।
2. कम श्रमिक उत्पादकता।
3. ऊर्जा की अनियमित आपूर्ति।
4. अविकसित अवसंरचना।
उपर्युक्त समस्याओं को दूर करके उत्पादन क्षमता में वृद्धि करने हेतु कुछ सुधार करने की
आवश्यकता थी। इसलिए निजी क्षेत्रों में उद्यमियों के प्रयास से तथा उदारीकरण व प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ने
इस उद्योग को प्रोत्साहन दिया है। इस्पात उद्योग को अधिक स्पर्द्धावान बनाने के लिए अनुसंधान करने और
विकास के संसाधनों को नियत करने की भी काफी आवश्यकता है।
(ii) उद्योग पर्यावरण को कैसे प्रदूषित करते हैं?
उत्तर―यद्यपि उद्योगों की भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि व विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका
है। उद्योगों ने अनेक लोगों को काम दिया है और राष्ट्रीय आय में वृद्धि की है। फिर भी इनके
द्वारा बढ़ते भूमि, जल, वायु तथा पर्यावरण प्रदूषण को भी नकारा नहीं जा सकता है। संक्षेप
में उद्योग चार प्रकार के प्रदूषण के लिए उत्तरदायी होते हैं-वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, भूमि
प्रदूषण तथा ध्वनि प्रदूषण। इन चारों प्रकार के प्रदूषणों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित
है―
1. वायु-प्रदूषण―अधिक अनुपात में अवांछित गैसों की उपस्थिति; जैसे-सल्फर
डाइ-ऑक्साइड तथा कार्बन मोनो-ऑक्साइड; वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं।
रसायन व कागज उद्योग, ईंटों के भट्टे, तेल-शोधनशालाएँ, प्रगलन उद्योग, जीवाश्म
ईंधन दहन तथा छोटे-बड़े कारखाने, प्रदूषण के नियमों का उल्लंघन करते हुए धुआँ
निष्काषित करते हैं। इसका बहुत भयावह और दूरगामी प्रभाव हो सकता है। वायु
प्रदूषण; मानव के स्वास्थ्य, पशुओं, पौधों, इमारतों व पूरे पर्यावरण पर अपना प्रभाव
डालता है।
2. जल-प्रदूषण―उद्योगों द्वारा कार्बनिक तथा अकार्बनिक अपशिष्ट पदार्थों को नदी में
छोड़ने से जल प्रदूषण फैलता है। जल प्रदूषण के मुख्य कारक; कागज, लुगदी,
रसायन, वस्त्र व रँगाई उद्योग, तेल-शोधनशालाएँ और चमड़ा उद्योग हैं, जो रंग,
अपमार्जक, अम्ल, लवण तथा भारी धातुएँ: जैसे-सीसा, पारा, उर्वरक, कार्बन तथा
रबर सहित कृत्रिम रसायन जल में प्रदूषण करते हैं। इन सबके परिणामस्वरूप जल
किसी भी काम के योग्य नहीं रहता है तथा उसमें पनपने वाले जीव भी खतरे में पड़
जाते हैं।
3. भूमि-प्रदूषण या भूमि का क्षरण―कारखानों से निकलने वाले विषैले द्रव्य पदार्थ
और धातुयुक्त कूड़ा-कचरा; भूमि व मिट्टी को प्रदूषित करता है। जब इस प्रकार का
विषैला जल काफी समय तक किसी भी स्थान पर रहता है तो वह जल भूमि के क्षरण
का एक बड़ा कारण सिद्ध होता है।
4. ध्वनि-प्रदूषण―औद्योगिक तथा निर्माण कार्य, कारखानों के उपकरण,
जेनरेटर,
लकड़ी चीरने के कारखाने, गैस-यांत्रिकी तथा विद्युत ड्रिल-ध्वनि; ध्वनि-प्रदूषण का
कारण बनते हैं। ध्वनि प्रदूषण से श्रवण-असक्षमता, रक्तचाप व हृदय सम्बन्धी
बीमारियों के फैलने की सम्भावना बनती है।
5. औद्योगिक बस्तियों का पर्यावरण पर प्रभाव―औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप
गदा औद्योगिक बस्तियों का निर्माण हो जाता है, जिससे आस-पास का सम्पूर्ण क्षेत्र ही
गंदा हो जाता है। इसके कारण प्रदूषण फैलता है और अनेक प्रकार की बीमारियाँ भी
फैलती हैं।
(iii) उद्योगों द्वारा पर्यावरण निम्नीकरण को कम करने के लिए उठाए गए विभिन्न उपायों की
चर्चा करें।
उत्तर―उद्योगों द्वारा पर्यावरण निम्नीकरण को कम करने के लिए उठाए गए विभिन्न
उपायों का संक्षिप्त उल्लेख अग्रलिखित है―
1. नदियों व तालाबों में गर्म जल तथा अपशिष्ट पदार्थों को प्रवाहित करने से पहले उनका
शोधन करना चाहिए, जिससे जल प्रदूषित न हो।
2. कोयल, लकड़ी व खनिज तेल से उत्पन्न की गयी विद्युत, जो हवा को प्रदूषित करती
है, उसके स्थान पर जल द्वारा उत्पन्न की गयी विद्युत का प्रयोग किया जाना चाहिए।
इससे वातावरण के शुद्ध रहने की सम्भावना में वृद्धि होगी।
3. वायु प्रदूषण को कम करने के लिए कारखानों में ऊँची चिमनियाँ, चिमनियों में
इलेक्ट्रॉनिक अवक्षेपण, स्क्रबर उपकरण तथा गैसीय प्रदूषक पदार्थों को जड़तत्त्वीय
रूप से पृथक् करने के लिए वांछित उपकरण होने चाहिए। कारखानों में कोयले की
अपेक्षा तेल व गैस के प्रयोग से धुएँ के निष्कासन में कमी लायी जा सकती है।
4. ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए जेनरेटरों में साइलेंसर लगाए जाने चाहिए। साथ
ही इस प्रकार के मशीनी उपकरणों का प्रयोग किया जाए जो कम ध्वनि-प्रदूषण करें।
ध्वनि को अवशोषित करने वाले उपकरणों के साथ यह भी आवश्यक है कि कानों में
ध्वनि-नियंत्रण उपकरणों का प्रयोग किया जाए।
5. फैक्ट्रियों से निकले प्रदूषित जल को वहीं एकत्रित करके रासायनिक प्रक्रिया के द्वारा
उसे स्वच्छ किया जाए तथा बार-बार प्रयोग में लाया जाए। इन उपायों के माध्यम से
नदियों व उनके आस-पास की भूमि का प्रदूषण काफी सीमा तक नियंत्रित हो जाएगा।
 
क्रियाकलाप
उद्योगों के सन्दर्भ में प्रत्येक के लिए एक शब्द दीजिए (संकेतिक अक्षर संख्या कोष्ठक में दी गई है
तथा उत्तर अंग्रेजी के शब्दों में हैं।)
(i) मशीनरी चलाने में प्रयुक्त                        (5)P  ………
(ii) कारखानो में काम करने वाले व्यक्ति        (6)W ………
(iii) उत्पाद को जहाँ बेचा जाता है               (6)M ………
(iv) वह व्यक्ति, जो सामान बेचता है            (8)R  ………
(v) वस्तु-उत्पादन                                     (7)P  ……..
(vi) निर्माण या उत्पादन                          (11)M  …….
(vii) भूमि, जल तथा वायु अवनयन             (9)P   ……..
उत्तर―(i) POWER, (ii) WORKER, (ii) MARKET, (iv) RETAILER,
(v) PRODUCT, (vi) MANUFACTURE, (vii) POLLUTION.
प्रोजेक्ट कार्य
अपने क्षेत्र के एक कृषि-आधारित तथा एक खनिज-आधारित उद्योग को चुनें।
(i) ये कच्चे माल के रूप में क्या प्रयोग करते हैं?
(ii) विनिर्माण प्रक्रिया में अन्य निवेश क्या हैं जिनसे परिवहन लागत बढ़ती है?
(iii) क्या ये कारखाने पर्यावरण नियमों का पालन करते हैं?
उत्तर―एक कृषि-आधारित उद्योग (चीनी उद्योग)―
(i) ये चीनी उद्योग कच्चे माल के रूप में गन्ने का प्रयोग करते हैं।
(ii) चीनी उद्योग की विनिर्माण प्रक्रिया में अन्य निवेश हैं-श्रम, पूँजी, विद्युत और जला
(iii) चीनी उद्योग पर आधारित ये कारखाने पर्यावरण नियमों का पालन कदापि नहीं करते हैं।
 
क्रियाकलाप
निम्न वर्ग-पहेली में क्षैतिज अथवा ऊर्ध्वाधर अक्षरों को जोड़ते हुए निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए―
नोट―पहेली के उत्तर अंग्रेजी के अक्षरों में हैं।
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(i) वस्त्र, चीनी, वनस्पति तेल तथा रोपण-उद्योग, जो कृषि से कच्चा माल प्राप्त करते हैं,
उन्हें कहते हैं …
(ii) चीनी-उद्योग में प्रयुक्त होने वाला कच्चा पदार्थ।
(iii) इस रेशे को गोल्डन फाइबर (Golden Fibre) भी कहते हैं।
(iv) लौह-अयस्क, कोकिंग कोयला तथा चूना-पत्थर इस उद्योग के प्रमुख कच्चे माल हैं।
(v) छत्तीसगढ़ में स्थित सार्वजनिक क्षेत्र का लौहा-इस्पात उद्योग।
(vi) उत्तर प्रदेश में इस स्थान पर डीजल रेलवे इंजन बनाए जाते हैं।
उत्तर―(i) VARANASI, (ii) AGROBASED, (iii) SUGARCANE, (iv) JUTE,
(v) BHILAI, (vi) IRONSTEEL.
 
(ख) अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
                                   बहुविकल्पीय प्रश्न
1. निम्नलिखित में से कौन-सा कृषि-आधारित उद्योग नहीं है?
(क) सूती वस्त्र उद्योग
(ख) चाय उद्योग
(ग) चीनी उद्योग
(घ) पेट्रो-रसायन उद्योग
                                उत्तर―(घ) पेट्रो-रसायन उद्योग
 
2. स्वामित्व के आधार पर किस उद्योग का एक विभाजन नहीं है?
(क) सार्वजनिक
(ख) निजी
(ग) सहकारी
(घ) उपभोक्ता उद्योग
                            उत्तर―(घ) उपभोक्ता उद्योग।
 
3. सूती वस्त्र उद्योग का कच्चा माल है―
(क) कपास
(ख) जूट
(ग) बाँस
(घ) सोयाबीन
                  उत्तर―(क) कपास।
 
4. ‘लूमेज’ का सम्बन्ध किस उद्योग से है?
(क) वस्त्र उद्योग
(ख) रसायन उद्योग
(ग) बरतन उद्योग
(घ) सिलाई मशीन निर्माण
                                   उत्तर―(क) वस्त्र उद्योग
 
5. भारत के किस राज्य में सर्वाधिक जूट मिलें स्थित हैं?
(क) बिहार
(ख) कर्नाटक 
(ग) पश्चिमी बंगाल 
(घ) असम
              उत्तर―(ग) पश्चिमी बंगाल
 
                      अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. भारत में चीनी उत्पादन में शीर्षस्थ राज्य कौन-सा है?
उत्तर―भारत में चीनी उत्पादन में शीर्षस्थ राज्य उत्तर प्रदेश है।
 
प्रश्न 2. लोहा-इस्पात क्षेत्र का सर्वाधिक संकेन्द्रण किस क्षेत्र में है?
उत्तर―लोहा-इस्पात क्षेत्र का सर्वाधिक संकेन्द्रण छोटानागपुर क्षेत्र में है।
 
प्रश्न 3. एल्युमीनियम उद्योग के लिए कच्चा माल क्या है?
उत्तर―एल्युमीनियम उद्योग के लिए कच्चा माल बॉक्साइट है।
 
प्रश्न 4. भारत में कितने सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क स्थित हैं?
उत्तर― भारत में 58 सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क स्थित हैं।
 
प्रश्न 5. भारत के किस शहर को देश की इलेक्ट्रॉनिक राजधानी कहते हैं?
उत्तर― भारत के बंगलूरु शहर को ‘देश की इलेक्क्ट्रॉनिक राजधानी’ कहते हैं।
 
                        लघु उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. चीनी उद्योग के लिए आदर्श स्थितियाँ क्या हैं?
उत्तर― चीनी उद्योग के लिए आदर्श स्थितियाँ निम्नलिखित हैं―
(i) चीनी उद्योग के लिए सबसे पहली और अति आवश्यक आदर्श स्थिति यह है कि ये उद्योग गन्ना
उत्पादक क्षेत्रों के पास ही स्थापित होने चाहिए। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश को गन्ने का घर’
कहा जाता है। इसका कारण यह है कि यहाँ गन्ने के लिए उत्पादन सभी आवश्यक सुविधाएँ
उपलब्ध हैं।
(ii) जिन क्षेत्रों में गन्ने की फसल पैदा की जानी है, वहाँ की मिट्टी उपजाऊ होनी आवश्यक है।
(iii) उस क्षेत्र की जलवायु गर्म तथा आई होनी चाहिए।
(iv) उस क्षेत्र में 100 सेमी से अधिक वर्षा होनी चाहिए।
(v) वहाँ खिली हुई धूप और सिंचाई की सुविधाएँ भी उपलब्ध होनी चाहिए।
(vi) गन्ने के मिलों के लिए विपुल मात्रा में विद्युत-ऊर्जा की सुविधा होनी चाहिए।
 
प्रश्न 2. भारत में लोहा-इस्पात उद्योग से सम्बन्धित वृहद् संयंत्रों के बारे में बताइए।
उत्तर―लोहा-इस्पात उद्योग एक आधारभूत या कोर-उद्योग है। अन्य सभी उद्योगों की मशीनरी इसी
उद्योग पर निर्भर है। वैज्ञानिक उपकरण, इंजीनियरिंग सम्बन्धी सामान आदि के लिए इसी उद्योग की
आवश्यकता होती है। वर्तमान में भारत में 10 मुख्य इस्पात उद्योग हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के सभी इस्पात उद्योग
अपने संयंत्रों में तैयार इस्पात को ‘स्टील अथॉरिटी ऑफ इण्डिया’ के माध्यम से विक्रय की प्रक्रिया से जोड़ते
है। 1950 ई० के दशक में भारत व चीन ने एकसमान इस्पात उत्पादित करना शुरू किया था। आज चीन
विश्व का शीर्षस्थ इस्पात उत्पादक राज्य है। भारत के छोटानागपुर के पठारी क्षेत्र में लोहा-इस्पात उद्योग
केन्द्रित है।
लोहे से इस्पात बनाने की प्रक्रिया के अन्तर्गत कच्चे माल को लोहा एवं इस्पात संयंत्रों तक ढोया जाता है।
इसके बाद अयस्क को झोंकदार भट्टी में डालकर उसे गलाया जाता है। फिर इसमें चूना-पत्थर मिलाया जाता
है तथा धातु के मैल को हटाया जाता है। अब पिघली हुई धातु को साँचों में डालकर ढलवाँ लोहा तैयार किया
जाता है। इसके उपरान्त ढलवां लोहे को फिर से गलाकर ऑक्सीकरण के द्वारा उसकी अशुद्धि को दूर किया
जाता है और इसमें मैंगनीज, निकल व क्रोमियम मिलाकर शुद्ध किया जाता है। अन्त में रोलिंग, प्रेसिंग, ढलाई
और गढ़ाई की प्रक्रियाएँ पूरी की जाती हैं।
 
प्रश्न 3. भारत में ‘एल्युमीनियम प्रगलन संयंत्र’ किन राज्यों में स्थित हैं?
उत्तर― एल्युमीनियम प्रगलन; लोहा-इस्पात उद्योग के बाद भारत का दूसरा सर्वाधिक महत्वपूर्ण
धातु-शोधन उद्योग है। एल्युमीनियम हल्का, जंगरोधी, ऊष्मा का सुचालक और धातुओं के मिश्रण से कठोर
बनाया जाता है। इसका उपयोग हवाईजहाज, बरतन व तारों आदि को बनाने हेतु किया जाता है। भारत में
एल्युमीनियम प्रगलन संयंत्र; ओडिशा, पश्चिमी बंगाल, केरल, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र व तमिलनाडु
राज्यों में स्थित हैं। इस उद्योग में बॉक्साइट का उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जाता है।
 
प्रश्न 4. ‘कृषि-पृष्ठप्रदेश’ किसे कहते हैं?
उत्तर― स्वाधीनता से पूर्व भारत के अधिकांश विनिर्माण उद्योगों की स्थापना; पश्चिमी देशों के साथ
व्यापार करने आदि के उद्देश्यों से की गयी। उस समय मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई आदि में स्थापित विनिर्माण
उद्योग; ब्रिटेन के लिए उत्पादों का निर्माण करते थे। इसी कारण भारत में स्थापित ये औद्योगिक केन्द्र ‘ग्रामीण
कृषि पृष्ठप्रदेश’ से घिरे रहते थे। यहाँ से इन्हें अपने उद्योगों के लिए अनेक प्रकार की आवश्यक सुविधाएँ
प्राप्त होती थीं।
 
प्रश्न 5. ‘समूहन बचत’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर― औद्योगीकरण की प्रक्रिया के साथ ही नगरीकरण की प्रक्रिया भी आरम्भ हो जाती है।
कभी-कभी उद्योगों को शहरों के निकट ही लगाया जाता है, जिससे औद्योगीकरण और नगरीकरण की
प्रक्रिया साथ-साथ चलती रहे। ये नगर; उद्योगों को बाजार तथा आवश्यक सेवाएँ सुलभ कराते हैं। इन
सेवाओं के अन्तर्गत बैंकिंग, बीमा, परिवहन, श्रमिक तथा विभिन्न प्रकार की वित्तीय सुविधाएँ सम्मिलित हैं।
इस प्रकार नगरीय केन्द्रों द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं से लाभान्वित होकर उद्योगों का नगरों के निकट
संकेन्द्रित होना ‘समूहन बचत’ या ‘समूहन बचत अर्थव्यवस्था’ कहलाता है। इस प्रकार के स्थानों पर
धीरे-धीरे वृहद् औद्योगिक समूह संकेन्द्रित होने लगते हैं।
 
                                    दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. सीमेण्ट उद्योग समृद्धि के लिए किस प्रकार महत्त्वपूर्ण है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर― सीमेण्ट आधारभूत ढाँचे के विस्तार का सबसे महत्त्वपूर्ण पदार्थ है। घर, कारखाने, पुल, सड़कें,
हवाई अड्डा, बाँध तथा वाणिज्यिक संयंत्र के निर्माण में सीमेण्ट प्रमुख अवयव होता है। सीमेण्ट उद्योग को
भारी तथा स्थूल कच्चे माल की जरूरत होती है; जैसे-चूना पत्थर, जिप्सम, एल्युमिना, सिलिका इत्यादि।
विद्युत ऊर्जा तथा कोयला का उपयोग वृहद् मात्रा में किया जाता है। रेल परिवहन की अनिवार्यता भी सीमेण्ट
उद्योग की अवस्थिति को अनुकूल बनाते हैं।
भारत की कई महत्त्वपूर्ण सीमेंट उद्योग की इकाइयाँ गुजरात में लगायी गई हैं क्योंकि यहाँ से खाड़ी देशों में
बाजार की बेहतर उपलब्धता है।
भारत में सीमेण्ट का पहला कारखाना वर्ष 1904 में चेन्नई (तमिलनाडु) में लगाया गया तथा। स्वतंत्रता के
उपरान्त सीमेण्ट उद्योग ने अधिक विस्तार किया है।
वर्ष 1989 में सीमेण्ट उद्योग के विस्तार के लिए नीतिगत सुधारों को जारी किया गया। मूल्य तथा वितरण में
नियंत्रण की प्रक्रिया को समाप्त कर दिया गया।
नीतिगत सुधारों के बाद सीमेण्ट उद्योग ने क्षमता, प्रक्रिया तथा प्रौद्योगिकी के माध्यम से बेहतर तरक्की की
है। इस समय भारत में 128 वृहद् सीमेण्ट संयंत्र तथा 332 लघु सीमेण्ट संयंत्र है।
गुणवत्ता में सुधार के कारण भारत से सीमेण्ट की माँग पूर्वी एशिया, अफ्रीका तथा महत्त्वपूर्ण में अधिक है।
इधर दक्षिण एशिया के देशों में भी भारत में उत्पादित सीमेण्ट की मांग बढ़ी है। इस उद्योग के विस्तार के लिए
घरेलू तथा अन्तर्राष्ट्रीय मांगों की पूर्ति को सुनिश्चित करना जरूरी है।
 
प्रश्न 2. पर्यावरण निम्नीकरण नियंत्रण के लिए किन बातों को ध्यान रखना जरूरी है?
उत्तर―इसमें सन्देह नहीं है कि उद्योगों का भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान है।
फिर भी विभिन्न प्रकार के ये उद्योग अनेक प्रकार के प्रदूषण के लिए भी उत्तरदायी हैं। इनमें प्रमुख प्रदूषण
हैं―वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण तथा ध्वनि प्रदूषण। इन समस्त प्रकार के प्रदूषणों को नियंत्रित
करने के लिए निम्नलिखित उपायों को ध्यान में रखा जाना आवश्यक है―
1. वायु प्रदूषण को कम करने के लिए कारखानों में ऊँची चिमनियाँ, चिमनियों में इलेक्ट्रॉनिक
अवक्षेपण स्क्रबर उपकरण तथा गैसीय प्रदूषक पदार्थों को जड़तत्त्वीय रूप से पृथक् करने के
लिए वांछित उपकरण होने चाहिए। कारखानों में कोयले की अपेक्षा प्राकृतिक गैस तथा बिजली
से चलने वाली मशीनों को लगाया जाना चाहिए।
2. ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए जेनरेटरों में साइलेंसर लगाए जाने चाहिए। साथ ही इस
प्रकार के मशीनी उपकरणों का प्रयोग किया जाए, जो कम ध्वनि-प्रदूषण करें। ध्वनि को
अवशोषित करने वाले उपकरणों के साथ यह भी आवश्यक है कि कानों में ध्वनि-नियंत्रण
उपकरणों का प्रयोग किया जाए।
3. फैक्ट्रियों से निकले प्रदूषित जल को वहीं एकत्रित करके रासायनिक प्रक्रिया के द्वारा उसे
स्वच्छ किया जाए तथा बार-बार प्रयोग में लाया जाए। इन उपायों के माध्यम से नदियों व उनके
आस-पास की भूमि का प्रदूषण काफी सीमा तक नियंत्रित हो जाएगा। इसके अतिरिक्त नदियों
व तालाबों में गर्म जल तथा अपशिष्ट पदार्थों को प्रवाहित करने से पहले उनका शोधन करना
चाहिए, जिससे जल प्रदूषित न हो।
4. कोयला, लकड़ी व खनिज तेल से उत्पन्न की गयी विद्युत, जो हवा को प्रदूषित करती है, उसके
स्थान पर जल द्वारा उत्पन्न की गयी विद्युत का प्रयोग किया जाना चाहिए। इससे वातावरण के
शुद्ध रहने की सम्भावना में वृद्धि होगी।
5. भारत में विद्युत उत्पादन की सबसे बड़ी सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी राष्ट्रीय ताप विद्युत गृह
(एन०टी०पी०सी०) है। इसके पास पर्यावरण प्रबंधन प्रणाली के लिए आई०एस०ओ०
प्रमाण-पत्र है। यह कम्पनी जल, गैस तथा ईंधन के संरक्षण का प्रचार-प्रसार भी करती है।
पर्यावरण के हित में यह कम्पनी पर्यावरण-नियंत्रण सम्बन्धी संयंत्रों की स्थापना भी करती है।
इस कम्पनी के द्वारा पर्यावरण नियंत्रण हेतु जिन उपायों पर बल दिया गया है, उनमें प्रमुख
हैं―अपशिष्ट उत्पन्न करने वाले पदार्थों का कम-से-कम उपयोग करना, हरित क्षेत्र की सुरक्षा
करना एवं वृक्षारोपण को प्रोत्साहन देना, आधुनिक प्रौद्योगिकी पर आधारित उपकरणों का सही
एवं व्यावहारिक रूप से प्रयोग करना तथा तरल अपशिष्ट-प्रबंधन व राखयुक्त जलीय अपशिष्टों
का पुनर्चक्रण के माध्यम से प्रदूषण कम करना।
 
प्रश्न 3. कच्चे माल के स्रोत के आधार पर उद्योगों के वर्गीकरण को समझाइए।
उत्तर―कच्चे माल के स्रोत के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण निम्नवत् किया गया है―
1. कृषि-आधारित उद्योग―इस प्रकार के उद्योग कृषि उत्पादों पर आधारित होते हैं। कृषि से
प्राप्त कच्चे माल का प्रयोग करके ही इन उद्योगों में आगे की प्रक्रिया सम्भव होती है और इन
उद्योगों में किसी उत्पाद का निर्माण हो पाता है। सूती वस्त्र उद्योग, ऊनी वस्त्र उद्योग, पटसन
या जूट उद्योग, रेशम के वस्त्रों का उद्योग तथा चीनी, चाय, कॉफी व वनस्पति तेल उद्योग इसी
प्रकार के प्रमुख उद्योग हैं।
कृषि पर आधारित उद्योगों में अनेक प्रकार के कच्चे माल का प्रयोग करके विभिन्न उपयोगी
वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। उदाहरण के लिए, सूती वस्त्र उद्योग कच्चे माल के रूप में
कपास पर निर्भर है। कपास के बिना सूती वस्त्रों का निर्माण असम्भव है। यही कारण है कि
सूती वस्त्र उद्योगों के मालिक कपास की खेती करने वालों, कपास को चुनने वालों और उसकी
गाँठे बनाने वालों को प्रोत्साहित करते हैं। जहाँ एक ओर कपास का उत्पादन करने वाले किसान
वस्त्र उद्योगों पर आश्रित होते हैं, वहीं ये उद्योग भी कपास उत्पादकों पर आश्रित होते हैं। सूती
वस्त्रों का निर्माण जापान में भी काफी किया जाता है। वहाँ के सूती वस्त्र उद्योगों के लिए भारत
से ही कपास भेजी जाती है।
इसी प्रकार पटसन का उद्योग कच्चे माल के रूप में जूट पर निर्भर है। भारत के अनेक राज्यों में
जूट का उत्पादन होता है और वहाँ के अनेक लोग पटसन उद्योग से जुड़कर रोजगार प्राप्त करते
हैं। कृषि-आधारित उद्योगों चीनी उद्योगों का भी अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है। चीनी उद्योगों का
कच्चा माल गन्ना है। भारत के उत्तर प्रदेश और बिहार राज्यों में गन्ने का बहुत अधिक उत्पादन
होता है। इसी कारण चीनी उद्योग अधिकांशत; उन्हीं क्षेत्रों के निकट हैं, जहाँ गन्ने की बेहतर
फसल होती है।
2. खनिज-आधारित उद्योग―ये उद्योग विभिन्न प्रकार के खनिजों की सहायता से ही अपने
उत्पादों का निर्माण कर पाते हैं। इनमें प्रमुख उद्योग हैं―लोहा-इस्पात उद्योग, एल्युमीनियम
उद्योग, सीमेण्ट उद्योग तथा मशीन, औजार व पेट्रो-रसायन सम्बन्धी उद्योग। हम जानते हैं
कि खनन के द्वारा हमारे देश के विभिन्न राज्यों में अनेक प्रकार के खनिज निकाले जाते हैं। देश
के अनेक छोटे-बड़े उद्योग इन खनिजों पर ही आधारित हैं। उदाहरण के लिए, सीमेण्ट उद्योग
में खनन से प्राप्त चूना पत्थर को कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार
लौह-इस्पात उद्योग में इस्पात को बनाने के लिए जिस लौह-अयस्क को कच्चे माल के रूप में
प्रयुक्त किया जाता है, वह एक खनिज है और खुदाई करके खानों से निकाला जाता है। इसी
प्रकार एल्युमीनियम उद्योग कच्चे माल के रूप में बॉक्साइट पर निर्भर है। यह बॉक्साइट भी
खनन के उपरान्त खानों से ही एक खनिज के रूप में प्राप्त होता है।

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