UP Board Class 9 Social Science Economics | भारत में खाद्य सुरक्षा

By | April 15, 2021

UP Board Class 9 Social Science Economics | भारत में खाद्य सुरक्षा

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 4 भारत में खाद्य सुरक्षा

अध्याय 4.                  भारत में खाद्य सुरक्षा
                                          अभ्यास
NCERT प्रश्न
प्रश्न 1. भारत में खाद्य सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाती है?
उत्तर― भारत सरकार ने गरीबों की खाद्य सुरक्षा के लिये अनेक योजनाएँ शुरू की हैं, जिनमें से कुछ
मुख्य निम्नलिखित हैं―
(i) खाद्यान्नों का बफर स्टॉक बनाए रखना―भारतीय खाद्य निगम द्वारा भारत, पंजाब और
हरियाणा आदि राज्यों से गेहूँ और चावल खरीदकर बड़े-बड़े गोदामों में उन्हें जमा कर लेती
है। ऐसा अनाज, बाढ़ों और सूखे जैसे आपदाओं और संकटों से बचने में बड़ा सहायक सिद्ध
होता है। आवश्यकता पड़ने पर अनाज गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को भी कम दामों पर दे
दिया जाता है ताकि उनमें कोई भी खाद्य से वंचित न रह जाए।
 
(ii) सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था― जैसा कि ऊपर कहा गया है यह इकट्ठा किया
गया अनाज गरीबों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा आवश्यकता पड़ने पर बाँट दिया
जाता है। देश भर में लगभग 4.6 लाख से अधिक राशन की दुकानें हैं जिनके माध्यम से यह
अनाज बाजार कीमत से कम कीमत पर गरीब लोगों को बेचा जाता है। राशन कार्ड रखने
वाला कोई भी व्यक्ति एक निश्चित मात्रा में प्रति माह यह अनाज अपनी निकटवर्ती राशन
की दुकान से खरीद सकता है।
 
(iii) विभिन्न गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम―सरकार ने गरीबी दूर करने के अनेक कार्यक्रम शुरू
कर रखे हैं ताकि गरीब लोग खाद्य असुरक्षा का शिकार न बन सके। ऐसी कुछ योजनाओं
और कार्यक्रमों में ग्रामीण वेतन रोजगार गारंटी योजना, सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना,
दोपहर का भोजन, एकीकृत बाल विकास सेवाएँ, राष्ट्रीय काम के बदले अनाज और
अंत्योदय अन्न योजना (Antyodaya Anna Yojana) आदि कुछ विशेष हैं जिनके द्वारा
लोगों की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने का प्रयत्न किया गया है। इनमें से कुछ अन्य
योजनाएँ गरीब लोगों को ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में काम चलाने में सहयोग देती हैं। कुछ
अन्य कार्यक्रम गरीबी रेखा से नीचे के गरीब लोगों को सस्ते दामों पर अनाज उपलब्ध कराने
में बड़े सहायक सिद्ध हुए हैं। परन्तु ये सभी योजनाएँ और कार्यक्रम कहीं फाइलों में ही
दबकर न रह जाएँ और नौकरशाही की लापरवाही, अयोग्यता और लालच के कारण कुछ
भी सहायता गरीब लोगों तक न पहुँच पाए। इनका ध्यान रखने की बड़ी आवश्यकता है।
 
प्रश्न 2. कौन लोग खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हो सकते हैं?
उत्तर― (क) ग्रामीण क्षेत्र-ग्रामीण क्षेत्रों में निम्नलिखित लोग खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हो
सकते हैं―
(i) भूमिहीन लोग जो थोड़ी अथवा नगण्य भूमि पर निर्भर रहते हैं।
(ii) पारम्परिक दस्तकार जो पारम्परिक सेवाएँ प्रदान करते हैं।
(iii) छोटा-मोटा काम करने वाले कामगार।
(iv) निराश्रित और भिखारी आदि।
(ख) शहरी क्षेत्र―शहरी क्षेत्र में निम्नलिखित लोग खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हो सकते हैं-
(i) अनियमित मजदूर।
(ii) कम वेतन-वाले व्यवसायों में लगे कामगार।
(ii) मौसमी कार्यों में लगे कामगार।
 
प्रश्न 3. भारत में कौन-से राज्य खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हैं?
उत्तर― खाद्य असुरक्षा की स्थिति देश के किसी भी भाग में फसल के बर्बाद हो जाने, किसी भी
प्राकृतिक आपदा; जैसे―सूखा पड़ने, भूकम्प, बाढ़, सूनामी चक्रवाती तूफान आ जाने या किसी
महामारी के फैल जाने आदि से पैदा हो सकती है। परन्तु ऐसी परिस्थितियाँ स्थायी नहीं होती और
कभी-कभी ही पैदा होती हैं।
परन्तु कुछ राज्य तो निरन्तर ही खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त हैं। ओडिशा ऐसे राज्यों में से एक है जहाँ,
विशेषकर इसके कालाहांडी और काशीपुर जैसे स्थानों में खाद्य असुरक्षा की स्थिति काफी समय से बनी
हुई है। इसी प्रकार झारखण्ड राज्य, विशेषकर इसका पालामू जिला खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त है।
ओडिशा, राजस्थान, झारखण्ड के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और
महाराष्ट्र आदि राज्यों के बहुत-से भाग खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हैं।
 
प्रश्न 4.क्या आप मानते हैं कि हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बना दिया
है? कैसे?
उत्तर― जब भारत स्वाधीन हुआ तो देश में खाद्यान्नों की भीषण कमी थी। इसके फलस्वरूप भारत
को अन्य देशों से विशाल मात्रा में अनाजों का आयात करना पड़ता था। यह अनाज अधिकतर अमेरिका,
ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों से मँगाया जाता था। इस स्थिति का सामना करने के लिए भारत सरकार ने
कृषि की स्थिति सुधारने के लिए विभिन्न प्रौद्योगिकीय और संस्थागत सुधार किये जो निम्नलिखित हैं-
प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि को विशेष महत्त्व दिया गया है। सिंचाई के लिए कई योजनाएं बनाई गई
और कम उपजाऊ भूमि को भी खेती योग्य बनाने के लिए कदम उठाए गए। नए और वैज्ञानिक ढंग से
कृषि के साधन अपनाए गए। नए और अधिक उपज देने वाले बीज तैयार किए गए। किसानों को खाद
इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया गया जो उन्हें कम कीमत पर देने का प्रबन्ध किया गया। इन
सब उपायों के फलस्वरूप ही छठे दशक में कृषि में एक महान क्रान्ति हुई और कृषि वस्तुओं का
उत्पादन तेजी से बढ़ा। विशेष रूप से गेहूँ और चावल आदि खाद्यान्नों के उत्पादन में पंजाब और
हरियाणा के राज्यों में रिकॉर्ड वृद्धि हुई। कृषि उत्पादन में हुई इस महान क्रांति को ‘हरित क्रांति’ का नाम
दिया गया है।
इस हरित क्रांति ने न केवल गेहूँ और चावल आदि के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया है वरन् भारतीय
समाज पर बड़े गहरे सामाजिक-आर्थिक प्रभाव डाले हैं। अब हम कृषि के क्षेत्र में प्राप्त की गई अपनी
सफलता पर गर्व कर सकते हैं। अब हमें अपना भोजन दूसरे देशों से नहीं मँगवाना पड़ता। क्या यह
हमारी महान सफलता नहीं है। भोजन माँगने की ऐसी अवस्था हमारे लिए कितनी लज्जाजनक थी।
इसके अतिरिक्त अब हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप बहुत-सी विदेशी मुद्रा बच जाती है जो पहले
खाद्यान्न के आयात पर हमें व्यय करनी पड़ती थी। अब जब हम खाद्यान्नों के मामले में स्वावलम्बी बन
चुके हैं हमें यह स्थिति बरकरार रखनी चाहिए। इसके लिए जहाँ हमें कृषि के क्षेत्र में अधिक
खाद्य-पदार्थ तथा अन्य कृषि-सम्बन्धी सामग्री पैदा करनी चाहिए वहाँ अपनी जनसंख्या को भी सीमित
रखना होगा। अपनी जनसंख्या को नियन्त्रण में रखने के लिए हमें समाज कल्याण के सभी ढंग अपनाने
चाहिए।
हरित क्रांति नि:संदेह ही हमारे देश के लिए एक वरदान है, हमें अपनी मूर्खता से इसके लाभों से वंचित
नहीं हो जाना चाहिए। हमें अपनी जनसंख्या की वृद्धि पर रोक लगानी ही होगी।
 
प्रश्न 5.भारत में लोगों का एक वर्ग अब भी खाद्य से वंचित है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर― हम समाचार-पत्रों में नित्यप्रति यह पढ़ते हैं कि देश के किसी-न-किसी भाग में भूख के
कारण लोगों की मौतें हो रही हैं। ऐसी घटनाएँ यह स्पष्ट करती हैं कि भारत में लोगों का एक वर्ग अब
भी खाद्य से वंचित है।
ग्रामीण क्षेत्रों को भूमिहीन किसान, पारंपरिक दस्तकार, पारंपरिक सेवा प्रदान करने वाले लोग, अपना
छोटा-मोटा काम करने वाले कामगार, निराश्रित और भिखारी आदि वर्ग खाद्य असुरक्षा से अधिक
प्रभावित होते हैं।
शहरी क्षेत्रों में प्रायः कम वेतन वाले व्यवसायों में काम करने वाले मजदूर, अनियमित श्रम-बाजार में
काम करने वाले लोग, मौसमी कार्यों में लगे कामगारों को भी साल के किसी-न-किसी हिस्से में खाद्य
असुरक्षा का अवश्य सामना करना पड़ता है।
यदि कोई आपदा या संकट आन पड़े तो उपरोक्त वर्गों के अतिरिक्त अन्य वर्गों को भी रोटी के लाले
पड़ जाते हैं और भूख के कारण अनेक मौत का शिकार बन जाते हैं।
इसमें सन्देह नहीं कि सरकार इन लोगों की सहायता करने का हर सम्भव प्रयत्न करती है परन्तु कई
बार ऐसी सहायता पहुंचने में देर हो जाती है या अयोग्य और घूसखोर सरकारी अधिकारियों के कारण
यह सहायता उन तक पहुँच ही नहीं पाती।
कुछ आलोचकों का यह भी कहना है कि भारतीय खाद्य निगम के गोदामों के खाद्यान्नों से भरे होने के
बावजूद कुछ लोग भूखे रह जाते हैं क्योंकि कुछ अनाज तो चूहों की भेंट चढ़ जाता है और कुछ पड़ा
रहने के कारण सड़कर बर्बाद हो जाता है।
 
प्रश्न 6. जब कोई आपदा आती है तो खाद्य पूर्ति पर क्या प्रभाव होता है?
उत्तर― आपदा के खाद्य पूर्ति पर निम्नलिखित प्रभाव होते हैं-
(i) सूखा आदि आपदा आने से खाद्यान्न की कुल उपज में गिरावट आ जाती है।
(ii) खाद्य की कमी के कारण कीमतें बढ़ जाती हैं।
(iii) भुखमरी बढ़ जाती है और अकाल की सी स्थिति बन जाती है।
(iv) कई लोगों की मृत्यु हो जाती है।
 
प्रश्न 7.मौसमी भुखमरी और दीर्घकालिक भुखमरी में भेद कीजिए।
उत्तर― भुखमरी खाद्य असुरक्षा का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। इसके दो आयाम (Dimensions)
होते हैं―मौसमी भुखमरी और दीर्घकालिक भुखमरी।
(i) मौसमी भुखमरी―मौसमी भुखमरी मौसम के कुछ विशेष भाग या महीनों तक ही सीमित
रहती है। जब खेतों में फसल पकने और फसल कटने के चार महीनों तक कोई विशेष काम
नहीं होता तो मौसमी भुखमरी जैसी स्थिति पैदा हो जाती है। नगरीय क्षेत्रों में मौसमी भुखमरी
की स्थिति तब पैदा होती है जब बरसात के दिनों में निर्माण कार्य बन्द हो जाता है तो निर्माण
श्रमिकों के लिए मौसमी भुखमरी की सी स्थिति पैदा हो जाती है। ऐसी मौसमी भुखमरी के
शिकार एक पेंटर ने अपने उद्गारों को इस प्रकार प्रकट किया है―
इतना बरसा नहीं पानी जितने मैंने आँसू बहाए हैं।
क्यों सारी दुनिया के दुख-दर्द मेरे ही हिस्से आए हैं।।
(ii) दीर्घकालिक भुखमरी―जब आहार की मात्रा निरन्तर कम हो या गुणवत्ता के आधार पर
कम हो तो इसे दीर्घकालिक भुखमरी कहते हैं। इस भुखमरी के शिकार प्राय: गरीब लोग होते
हैं जो अपनी निम्न आय के कारण या तो पूरा भोजन प्राप्त नहीं कर सकते या फिर उचित
प्रकार का भोजन प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं।
 
प्रश्न 8.गरीबों को खाद्य सुरक्षा देने के लिए सरकार ने क्या किया? सरकार की ओर से
शुरू की गई किन्हीं दो योजनाओं की चर्चा कीजिए।
उत्तर― भारत सरकार ने गरीबों की खाद्य सुरक्षा के लिये अनेक योजनाएं शुरू की हैं, जिनमें से कुछ
मुख्य निम्नलिखित हैं―
(i) खाद्यान्नों का बफर स्टॉक बनाए रखना―भारतीय खाद्य निगम द्वारा भारत, पंजाब और
हरियाणा आदि राज्यों से गेहूँ और चावल खरीदकर बड़े-बड़े गोदामों में उन्हें जमा कर लेती
है। ऐसा अनाज, बाढ़ों और सूखे जैसे आपदाओं और संकटों से बचने में बड़ा सहायक सिद्ध
होता है। आवश्यकता पड़ने पर अनाज गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को भी कम दामों पर दे
दिया जाता है ताकि उनमें कोई भी खाद्य से वंचित न रह जाए।
 
(ii) सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था―जैसा कि ऊपर कहा गया है यह इकट्ठा किया
गया अनाज गरीबों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा आवश्यकता पड़ने पर बाँट दिया
जाता है। देश भर में लगभग 4.6 लाख से अधिक राशन की दुकानें हैं जिनके माध्यम से यह
अनाज बाजार कीमत से कम कीमत पर गरीब लोगों को बेचा जाता है। राशन कार्ड रखने
वाला कोई भी व्यक्ति एक निश्चित मात्रा में प्रति माह यह अनाज अपनी निकटवर्ती राशन
की दुकान से खरीद सकता है।
 
(iii) विभिन्न गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम―सरकार ने गरीबी दूर करने के अनेक कार्यक्रम शुरू
कर रखे हैं ताकि गरीब लोग खाद्य असुरक्षा का शिकार न बन सके। ऐसी कुछ योजनाओं
और कार्यक्रमों में ग्रामीण वेतन रोजगार कार्यक्रम रोजगार गारंटी योजना, सम्पूर्ण ग्रामीण
रोजगार योजना, दोपहर का भोजन, एकीकृत बाल विकास सेवाएँ, राष्ट्रीय काम के बदले
अनाज और अंत्योदय अन्न योजना (Antyodaya Anna Yojana) आदि कुछ विशेष हैं
जिनके द्वारा लोगों की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने का प्रयत्न किया गया है। इनमें से
कुछ योजनाएँ गरीब लोगों को ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में काम चलाने में सहयोग देती हैं।
कुछ अन्य कार्यक्रम गरीबी रेखा से नीचे के गरीब लोगों को सस्ते दामों पर अनाज उपलब्ध
कराने में बड़े सहायक सिद्ध हुए हैं। परन्तु ये सभी योजनाएँ और कार्यक्रम कहीं फाइलों में
ही दबकर न रह जाएँ और नौकरशाही की लापरवाही, अयोग्यता और लालच के कारण
कुछ भी सहायता गरीब लोगों तक न पहुँच पाए। इनका ध्यान रखने की बड़ी आवश्यकता
है।
गरीबों को खाद्य सुरक्षा देने के लिये सरकार की ओर से अनेक योजनाएँ शुरू की गई हैं जिनमें दो मुख्य
निम्नलिखित हैं―
(i) अंत्योदय अन्न योजना―यह योजना दिसम्बर 2000 ई० को शुरू की गई। इस योजना के
अन्तर्गत सार्वजनिक वितरण प्रणाली में कोई एक करोड़ निर्धनता रेखा के नीचे आने वाले
परिवारों की पहचान की गई। ऐसे परिवारों की आर्थिक सहायता के लिए उन्हें ₹ 2 प्रति
किलोग्राम की दर से गेहूँ और ₹ 3 प्रति किलोग्राम की दर से चावल उपलब्ध कराया गया।
अनाज की मात्रा पहले 2002 में जो 25 किलोग्राम प्रति परिवार रखी गई थी। वह अगले वर्ष
अर्थात् 2003 में बढ़ाकर 35 किलोग्राम प्रति परिवार कर दी गई। बाद में दो बार पहले जून,
2003 को और दूसरी बार अप्रैल, 2004 को, इस योजना के अन्तर्गत 50–50 लाख निर्धन
रेखा के नीचे के और नए परिवारों को जोड़ दिया गया। इस प्रकार इस योजना के अन्तर्गत
आने वाले परिवारों की गणना लगभग 2 करोड़ हो गई। इस प्रकार अंत्योदय अन्न योजना से
रहा
एक बड़ी संख्या में (लगभग 2 करोड़) निर्धन रेखा के नीचे के परिवारों को लाभ हो
है।
 
(ii) राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम―यह कार्यक्रम 14 नवम्बर, 2004 को देश के
सर्वाधिक 150 पिछड़े जिलों में प्रारम्भ किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य श्रम रोजगार
(Wage Employment) के सृजन को और तीव्र करना है। यह कार्यक्रम उन सभी ग्रामीण
गरीबों के लिए है जो अकुशल शारीरिक श्रम करने के इच्छुक हैं। ऐसे काम करने वाले
ग्रामीण गरीबों को काम के बदले अनाज दिया जाता है। इस कार्यक्रम को पूरा करने के लिए
2004-05 को केन्द्रीय सरकार ने राज्य सरकारों को 20 लाख टन अनाज मुहैया कराया।
 
प्रश्न 9.सरकार बफर स्टॉक क्यों बनाती है?
उत्तर― भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से भारत सरकार जो अनाज, विशेषकर गेहूँ और चावल का
भंडार इकट्ठा करती है उसे बफर स्टॉक कहा जाता है। भारतीय खाद्य निगम गेहूँ और चावल अधिक
मात्रा में पैदा करने वाले राज्यों के किसानों से सीधे खरीदती है। इन खाद्य-वस्तुओं की कीमत फसल के
उगाने से पहले ही घोषित कर दी जाती है ताकि किसान लोग इन फसलों को विशेष रूप से पैदा करें।
इस पहले से घोषित मूल्य को न्यूनतम समर्थित मूल्य कहा जाता है। भारतीय खाद्य निगम द्वारा किसानों
से सीधा खरीदा गया गेहूँ और चावल का स्टॉक भारतीय सरकार अपने विशालकाय खाद्य भंडारों में
रखती है।
(i) सरकार बफर स्टॉक क्यों बनाती है? यह बफर स्टॉक आवश्यकता पड़ने पर जहाँ
विभिन्न राज्यों को भेज दिया जाता है वहाँ अकालग्रस्त लोगों की सहायता करने के लिए भी
इसका लाभकारी प्रयोग किया जाता है।
(ii) केवल यही नहीं सूखा पड़ने या बातें आ जाने से अन्न की कमी हो जाती है तो इस बफर
स्टॉक से अनाज की कमी को पूरा किया जाता है।
(iii) इस बफर स्टॉक का प्रयोग गरीबी रेखा के नीचे के लोगों की सहायता करने में भी प्रयोग
किया जाता है। कई लोगों को तो काम के बदले यह अनाज ही दिया जाता है।
(iv) यह बफर स्टॉक सार्वजनिक वितरण प्रणाली की रीढ़ की हड्डी है। इसके बिना राशन
व्यवस्था को सुव्यवस्थित ढंग से चलाना कठिन हो जाता है।
 
प्रश्न 10.टिप्पणी लिखें―
(क) न्यूनतम समर्थित कीमत
(ख) बफर स्टॉक
(ग) निर्गम कीमत
(घ) उचित दर की दुकान
उत्तर―(क) किसानों को उनकी फसल के लिए पहले से घोषित कीमतें दी जाती हैं। इसी मूल्य को
न्यूनतम समर्थित कीमत या मूल्य कहा जाता है। यह मूल्य किसानों को प्रोत्साहन देने के
लिए बुआई के मौसम से पहले सरकार प्रति वर्ष घोषित करती रहती है।
 
(ख) छात्र उपर्युक्त प्रश्न 9 का उत्तर देखें।
 
(ग) समाज के गरीब वर्गों को विशेषकर कमी वाले क्षेत्रों में सहायता के रूप में बाजार कीमत से
कम कीमत पर जो अनाज दिया जाता है, उस कम कीमत को निर्गम कीमत कहा जाता है।
 
(घ) सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सफल बनाने के लिए राशन की जिन दुकानों की व्यवस्था
की जाती है, ऐसी दुकानों को उचित दर की दुकान कहते हैं।
 
प्रश्न 11.राशन की दुकानों के संचालन में क्या समस्याएँ हैं?
उत्तर― राशन की दुकानों के संचालन में समस्याएँ-भारतीय खाद्य निगम द्वारा एकत्रित किया
गया अनाज निर्धन लोगों को राशन की दुकानों द्वारा उपलब्ध कराया जाता है जो देश के बहुत-से
भागों―गाँवों, जिलों, कस्बों और नगरों में स्थापित की गई हैं। इस समय देश में कोई 4.6 लाख से भी
अधिक राशन की दुकानें हैं। यह राशन की दुकानें लोगों को गेहूँ, चावल, चीनी और मिट्टी का तेल
आदि वस्तुएँ बाजार की कीमत से कम कीमत पर उपलब्ध कराते हैं। कोई भी गरीब परिवार ये चीजें
अपनी निकट की राशन की दुकान से प्राप्त कर सकता है। परन्तु हाल में राशन की इन दुकानों के
संचालन में अनेक त्रुटियाँ दृष्टिगोचर हुई हैं और अनेक समस्याएँ पाई गई हैं, जो निःसन्देह एक सोच
का विषय है―
(i) सर्वप्रथम, यह कहा जाता है कि निर्धन लोगों को राशन की दुकानों से जो चीजें मिलती हैं वे
घटिया प्रकार की होती हैं, इसलिये उनको अपनी आवश्यकता की चीजें बाजार से ही
खरीदनी पड़ती हैं।
 
(ii) दूसरे, राशन की दुकानों के डीलर राशन के सामान को अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से
खुले बाजार में बेच देते हैं। कई बार उन्हें चक्की वालों को गेहूँ बेचते हुए प्रायः देखा जा
सकता है।
 
(iii) कुछ राशन डीलर कम तोल पर भी गरीबों को ठगने का प्रयास करते हैं।
 
(iv) कुछ राशन डीलर कभी-कभार अपनी दुकानें खोलते ही नहीं ताकि निर्धन लोग अपने राशन
को ले न सकें।
 
(v) कई बार भारतीय खाद्य निगम की ओर से ही राशन के दुकानदारों को घटिया प्रकार की
सामग्री मिल जाती है, जो काफी समय तक उनकी दुकानों पर ही सड़ती रहती है।
 
(vi) तीन प्रकार के कार्डों के बनाने से राशन की दुकानों का सारा काम ही काफी उलझनपूर्ण हो
गया है किसको किस मूल्य से राशन देना है, काफी उलझनें पैदा कर देता है इसलिये
बहुत-से राशन डीलर अपने-आप ही अपना काम बन्द करने को विवश हो जाते हैं।
 
(vii) विशेषकर ऐसे परिवार जो गरीबी रेखा से ऊपर हैं, उन्हें इन राशन की दुकानों का कोई लाभ
नहीं क्योंकि उन्हें राशन की दुकानों से बाजार मूल्य पर ही चीजें मिलती हैं इसलिये वे राशन
की दुकानों से राशन लेना बन्द कर देते हैं।
 
प्रश्न 12.खाद्य और संबंधित वस्तुओं को उपलब्ध कराने में सहकारी समितियों की भूमिका
पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर― खाद्य और संबंधित वस्तुओं को उपलब्ध कराने में सहकारी समितियों की भूमिका―
देश के कुछ विशेष भागों, विशेषकर दक्षिण और पश्चिम के भागों में, सहकारी समितियाँ भी खाद्य
सुरक्षा में बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। ये समितियाँ गरीब लोगों के लिए बड़ी सहायता का
कार्य करती हैं। उन्हें खाद्य सस्ते दामों पर मिल सकें इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये वे कम कीमत वाली
दुकानें खोलती है। निम्नलिखित क्षेत्रों में उनकी भूमिका प्रशंसनीय है―
(i) ऐसा देखा गया है कि तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों में राशन की जितनी भी दुकानें हैं उनका
94% भाग इन सहकारी समितियों के माध्यम से ही चलाया जाता है।
 
(ii) दिल्ली जैसे स्थानों पर इन सहकारी समितियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है।
उदाहरण―दिल्ली में मदर डेयरी (Mother Dairy) उपभोक्ताओं को काफी उचित मूल्य
पर दूध और कई अन्य सब्जियाँ भी सप्लाई करती है।
 
(iii) गुजरात में अमूल (Amul) जैसी अनेक सहकारी समितियाँ हैं जिन्होंने वहाँ बड़े उचित दामों
में लोगों को दूध और दूध की बनी चीजें सप्लाई करना शुरू किया हुआ है। इसने अब
गुजरात से बाहर भी दूध और दूध उत्पादों को लोगों तक उचित दामों में पहुँचाना शुरू कर
दिया है। इस प्रकार इस समिति ने देश में श्वेत क्रान्ति ला दी है।
 
(iv) केवल यही नहीं महाराष्ट्र में एक अन्य सहकारी संस्था, एकेडमी ऑफ डेवलपमेंट ऑफ
साइंस (Academy of Development of Science) ने विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों की
अनाज बैंकों की स्थापना में विशेष सहायता की है। इन अनाज बैंकों ने जनसाधारण,
विशेषकर निर्धन वर्ग, के लोगों को खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा
की है।
 
                                    अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
 
                                      बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. भारत में 1943 में सबसे भयानक अकाल कौन-सा था?
(क)बंगाल का अकाल
(ख) पंजाब का अकाल
(ग) तमिलनाडु का अकाल 
(घ) आंध्र प्रदेश का अकाल
                                    उत्तर―(क) बंगाल का अकाल
 
प्रश्न 2.एफ०सी० आई० का क्या अर्थ है?
(क) फेयर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया
(ख) फूड कमीशन ऑफ इंडिया
(ग) फूड कंपनी ऑफ इंडिया 
(घ) फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया
                                         उत्तर―(घ) फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया
 
प्रश्न 3.जुलाई, 1968 में कौन-सी क्रांति लाई गई?
(क) खाक्ष सुरक्षा क्रांति
(ख) बी० पी० एल०
(ग) ए० डी० एस०
(घ) ए० पी० एल०
                       उत्तर―(ख) बी० पी० एल०
 
प्रश्न 4.इनमें से राशन कार्ड का प्रकार कौन-सा नहीं है?
(क) अंत्योदय
(ख) नवयुवक
(ग) कुछ उच्च वर्ग के लोग
(घ) इनमें से कोई नहीं
                             उत्तर―(ग) कुछ उच्च वर्ग के लोग
 
प्रश्न 5.अंत्योदय कार्ड किनके लिए होते हैं?
(क) गरीबों में भी सर्वाधिक गरीब
(ख) सभी
(ग) औसत आय वाले लोग
(घ) निर्धनता रेखा से नीचे वाले लोग
                                    उत्तर―(क) गरीबों में भी सर्वाधिक गरीब
 
प्रश्न 6. राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम कब लागू किया गया?
(क) 14 नवंबर, 2006 को
(ख) 24 अप्रैल, 2004 को
(ग) 14 नवंबर, 2004 को
(घ) 19 अपैल, 2004 को
                                   उत्तर―(ग) 14 नवंबर, 2004 को
 
प्रश्न 7.ए० ए० वाई० का पूरा नाम है―
(क) अमूल अन्न योजना
(ख) अन्नपूर्णा अन्न योजना
(ग) अंत्योदय अन्न योजना 
(घ) अकेडमी अन्न योजना
                                 उत्तर―(ग) अंत्योदय अन्न योजना
 
प्रश्न 8. कौन लोग खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त हैं?
(क) भूमिहीन जो थोड़ी-बहुत अथवा नगण्य भूमि पर निर्भर हैं
(ख) अपना छोटा-मोटा काम करने वाले कामगार
(ग) अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों के कुछ वर्गों के
लोग
(घ) उपर्युक्त सभी
                       उत्तर―(घ) उपर्युक्त सभी
 
प्रश्न 9.दीर्घकालिक भुखमरी से लोग ग्रस्त क्यों होते हैं?
(क) कम आय के कारण
(ख) खाद्यान्न की कमी के कारण
(ग) खाद्यान्न की अधिक कीमत के कारण 
(घ) इनमें से कोई नहीं
                           उत्तर―(क) कम आय के कारण
 
प्रश्न 10. सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थित कीमत की घोषणा कब की जाती है?
(क) दो वर्षों में एक बार
(ख) पाँच वर्षों में एक बार
(ग) बुआई के मौसम से पहले
(घ) बुआई के मौसम के बाद
                                      उत्तर―(ग) बुआई के मौसम से पहले
 
                               अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. अकाल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर― अकाल के दौरान बड़े पैमाने पर मौतें होती हैं तथा लोग भुखमरी से विवश होकर दूषित जल
या सड़े भोजन के प्रयोग से फैलने वाली महामारियों तथा उत्पन्न कमजोरी से रोगों के शिकार होते हैं।
 
प्रश्न 2. उचित दर वाली दुकानों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर― राशन की दुकानों में जिन्हें उचित दर वाली दुकानें कहा जाता है, जहाँ चीनी, खाद्यान्न और
खाना पकाने के लिए मिट्टी के तेल का भंडार होता है। ये सामान लोगों को बाजार कीमत से कम कीमत
पर वितरण किया जाता है।
 
प्रश्न 3.राशन कार्ड रखने वाले परिवार को लगभग कितना सामान प्रति माह मिलता है?
उत्तर― राशन कार्ड रखने वाले कोई भी परिवार प्रतिमाह इनकी एक अनुबंधित मात्रा (जैसे 35
किलोग्राम अनाज, 5 लीटर मिट्टी का तेल, 5 किलोग्राम चीनी आदि) निकटवर्ती राशन की दुकान से
खरीद सकता है।
 
प्रश्न 4. भारत में राशन-व्यवस्था की शुरुआत कब और क्यों हुई?
उत्तर― भारत में राशन की शुरुआत बंगाल के अकाल की पृष्ठभूमि में 1940 की दशक में हुई।
हरित क्रांति से पूर्व भारतीय खाद्य संकट के कारण 1960 के दशक के दौरान राशन प्रणाली पुनर्जीवित
की गई।
 
प्रश्न 5.सार्वजनिक वितरण प्रणाली को किन आधारों पर कड़ी आलोचना का सामना
करना पड़ा है?
उत्तर― सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अनेक आधारों पर बड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा
है। अनाजों से ठसाठस भरे अन्न भंडारों के बावजूद भुखमरी की घटनाएं हो रही हैं। भारतीय खाद्य
निगम के भंडार अनाज से भरे हैं। कहीं अनाज सड़ रहा है तो कुछ स्थानों पर चूहे अनाज खा रहे हैं।
 
प्रश्न 6.सहायिकी (सब्सिडी) क्या है?
उत्तर― सहायिकी (सब्सिडी) वह भुगतान है जो सरकार द्वारा किसी उत्पादक को बाजार कीमत की
अनुपूर्ति के लिए किया जाता है। सहायिकी से घरेलू उत्पादकों के लिए ऊँची आय कायम रखते हुए,
उपभोक्ता कीमतों को कम किया जा सकता है।
 
प्रश्न 7.न्यूनतम समर्थित कीमत में वृद्धि से किसानों तथा फसलों पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर― न्यूनतम समर्थित कीमत में वृद्धि से विशेषतया खाद्यान्नों के अधिशेष वाले राज्यों के किसानों
को अपनी भूमि पर मोटे अनाजों की खेती समाप्त कर धान और गेहूँ उपजाने के लिए प्रेरित किया है
जबकि मोटे अनाज गरीबों का प्रमुख भोजन है। धान की खेती के लिए सघन सिंचाई से पर्यावरण और
जल-स्तर में गिरावट आई है।
 
प्रश्न 8. सार्वजनिक वितरण प्रणाली की विफलता के मुख्य कारण क्या हैं? उदाहरण
सहित बताइए।
उत्तर― सार्वजनिक वितरण प्रणाली की विफलता के मुख्य कारण अखिल भारतीय स्तर पर
सार्वजनिक वितरण प्रणाली की खाद्यान्नों की औसत उपभोग मात्रा 1 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिमाह है।
बिहार, उड़ीसा (ओडिशा) और उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति उपभोग का आँकड़ा 300 ग्राम प्रति व्यक्ति
प्रतिमाह से भी कम है।
 
प्रश्न 9.दिल्ली और गुजरात का उदाहरण देते हुए यह बताइए कि कैसे सहकारी समितियों ने
खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कराई है?
उत्तर― दिल्ली में मदर डेयरी उपभोक्ताओं को दिल्ली सरकार द्वारा निर्धारित नियंत्रित दरों पर दूध
और सब्जियाँ उपलब्ध कराती है। गुजरात में दूध तथा दुग्ध उत्पादों में अमूल एक और सफल सहकारी
समिति के उदाहरण हैं।
 
प्रश्न 10. महाराष्ट्र के एकेडमी ऑफ डेवलपमेंट साइंस की खाद्य सुरक्षा में भूमिका की
व्याख्या कीजिए।
उत्तर― महाराष्ट्र में एकेडमी ऑफ डेवलमेंट साइंस (ए०डी०एस०) ने विभिन्न क्षेत्रों में अनाज बैंकों
की स्थापना के लिए गैर-सरकारी संगठनों के नेटवर्क में सहायता की है। ए०डी०एस० गैर-सरकारी
संगठनों के लिए खाद्य सुरक्षा के विषय में प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम संचालित करती है।
 
                            लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. खाद्य सुरक्षा का क्या अर्थ है? खाद्य सुरक्षा के कितने आयाम है?
उत्तर― खाद्य सुरक्षा का अर्थ है―
सभी लोगों के लिए हर समय खाद्य उपलब्धता, खाद्य पहुँच,
खाद्य सामर्थ्य का होना। खाद्य सुरक्षा के निम्नलिखित आयाम हैं―
(i) खाद्य उपलब्धता―इसका संबंध देश में खाद्य उत्पादन, खाद्य आयात और सरकारी अनाज
भंडारों में संचित पिछले वर्षों के स्टॉक से है।
 
(ii) पहुँच―इसका अर्थ है, खाद्य प्रत्येक व्यक्ति को मिलता रहे।
 
(iii) सामर्थ्य―इसका अर्थ है, लोगों के पास अपनी भोजन-आवश्यकताओं को पूरा करने के
लिए पर्याप्त और पौष्टिक भोजन खरीदने के लिए धन उपलब्ध हो।
 
प्रश्न 2. भारत में खाद्य सुरक्षा के लिए दो घटक कौन-से हैं?
उत्तर― भारत में खाद्य सुरक्षा के लिए दो घटक इस प्रकार हैं―
(i) बफर स्टॉक―बफर स्टॉक भारतीय खाद्य निगम (एफ०सी०आई०) के माध्यम से सरकार
द्वारा अधिप्राप्त अनाज, गेहूँ और चावल का भंडार होता है। बफर स्टॉक अनाज की कमी
वाले क्षेत्रों और अन्य समाज के गरीब लोगों को बाजार कीमत से कम कीमत पर दिया जाता
है। ये बफर स्टॉक प्राकृतिक आपदा; जैसे―सूखा या भूकंप के समय प्रयोग किया जाता है।
 
(ii) सार्वजनिक वितरण प्रणाली―भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज को सरकार
विनियमित राशन दुकानों के माध्यम से समाज के गरीब वर्गों में वितरित करती है। इसे
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पी०डी०एस०) कहते हैं।
 
प्रश्न 3.पी०डी०एस० के दो प्रकार कौन-से हैं?
उत्तर― पी०डी०एस० के दो प्रकार निम्नलिखित है―
(i) संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (आर०पी०डी०एस०)―सन् 1992 में देश के
1700 ब्लॉकों में संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली शुरू की गई। इसका लक्ष्य
दूर-दराज और पिछड़े क्षेत्रों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली से लाभ पहुँचाना था।
 
(ii) लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टी०पी०डी०एस०)―जून, 1997 से ‘सभी क्षेत्रों
में गरीबों को लक्षित करने के सिद्धांत को अपनाने के लिए लक्षित सार्वजनिक वितरण
प्रणाली (टी०पी०डी०एस०) प्रारंभ की गई। यह पहला मौका था जब निर्धनों और
गैर-निर्धनों के लिए विभेदक कीमत नीति अपनाई गई।
 
प्रश्न 4.राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम को कब और किन उद्देश्यों के लिए लागू
किया गया?
उत्तर― राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम 14, नवंबर, 2004 को पूरक श्रम रोजगार के सृजन
को तीव्र करने के उद्देश्य से देश के 150 सर्वाधिक पिछड़े जिलों में प्रारंभ किया गया था। यह कार्यक्रम
उन समस्त ग्रामीण गरीबों के लिए है, जिन्हें वेतन रोजगार की आवश्यकता है और जो अकुशल
शारीरिक श्रम करने के इच्छुक हैं। इसे शत-प्रतिशत केंद्र द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम के रूप में लागू किया
गया और राज्यों को नि:शुल्क अनाज मुहैया कराया जाता रहा है। जिला स्तर का कलेक्टर शीर्ष
अधिकारी हैं और उन पर इस कार्यक्रम की योजना बनाने, कार्यान्वयन, समन्वयन और पर्यवेक्षण की
जिम्मेदारी है। वर्ष 2004-05 में इस कार्यक्रम के लिए 20 लाख टन अनाज के अतिरिक्त ₹ 2,020
करोड़ नियत किए गए हैं।
 
प्रश्न 5.अंत्योदय अन्न योजना से आप क्या समझते हैं? संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर― अंत्योदय अन्न योजना दिसंबर, 2000 में शुरू की गई थी। इस योजना के अंतर्गत लक्षित
सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आने वाले निर्धनता रेखा से नीचे के परिवारों में से एक करोड़ लोगों की
पहचान की गई। संबंधित राज्य के ग्रामीण विकास विभागों ने गरीबी रेखा से नीचे के गरीब परिवारों को
सर्वेक्षण के द्वारा चुना। र 2 प्रति किलोग्राम गेहूँ और र3 प्रति किलोग्राम की अत्यधिक आर्थिक सहायता
प्राप्त दर पर प्रत्येक परिवार को 25 किलोग्राम अनाज उपलब्ध कराया गया। अनाज की यह मात्रा
अप्रैल, 2002 में 25 किलोग्राम से बढ़ाकर 35 किलोग्राम कर दी गई। जनू, 2003 और अगस्त, 2004
में इसमें 50-50 लाख अतिरिक्त बीपीएल परिवार दो बार जोड़े गए। इससे इस योजना में आने वाले
परिवारों की संख्या 2 करोड़ हो गई।
 
प्रश्न 6.हमारे देश में खाद्य सुरक्षा आवश्यक क्यों है?
उत्तर― भारत का सबसे भयानक अकाल बंगाल प्रांत में पड़ा था। परन्तु भारत में बंगाल जैसा
अकाल पुनः कभी नहीं पड़ा। लेकिन यह चिंता का विषय है कि आज भी ओडिशा में कालाहांडी तथा
काशीपुर जैसे स्थान हैं, जहाँ अकाल जैसी दशाएँ अनेक वर्षों से बनी हुई हैं और ऐसी भी सूचना मिली
है कि वहाँ भूख के कारण कुछ लोगों की मृत्यु भी हुई है। हाल के कुछ वर्षों में राजस्थान के बारन
जिले, झारखंड के पलामू जिले तथा अन्य सुदूरवर्ती क्षेत्रों में भूख के कारण लोगों की मृत्यु की सूचना
मिली है। अत: किसी भी देश में खाद्य सुरक्षा आवश्यक होती है ताकि सदैव खाद्य की उपलब्धता
सुनिश्चित की जा सके।
 
प्रश्न 7.स्वतंत्रता के बाद खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर होना भारत का लक्ष्य रहा है। वर्णन करें।
उत्तर― स्वतंत्रता के पश्चात् खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के सभी उपाय किए गए। भारत ने
कृषि में एक नयी रणनीति अपनाई, जिसकी परिणति हरित क्रांति से हुई, विशेषकर गेहूँ के उत्पादन में।
गेहूँ की सफलता के बाद चावल के क्षेत्र में इस सफलता की पुनरावृत्ति हुई। पंजाब और हरियाणा में
सर्वाधिक वृद्धि दर दर्ज की गई, जहाँ अनाजों का उत्पादन 1964-65 के 72.3 लाख टन की तुलना में
बढ़कर 2015-16 में 18.5 मिलियन टन पर पहुँच गया, जो अब तक का सर्वाधिक ऊँचा रिकॉर्ड था।
दूसरी तरफ, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में चावल के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। भारत पिछले
तीस वर्षों के दौरान खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर बन गया है। सरकार द्वारा सावधानीपूर्वक तैयार
की गई खाद्य सुरक्षा व्यवस्था के कारण देश में (खराब मौसम स्थितियों के बावजूद अथवा किसी अन्य
कारण से) अनाज की उपलब्धता और भी सुनिश्चित हो गई।
 
प्रश्न 8. प्राकृतिक आपदा के समय खाद्य सुरक्षा कैसे प्रभावित होती है?
उत्तर― सामान्यत: समाज के निर्धन वर्ग खाद्यान्न के मामले में असुरक्षित होते हैं परंतु कई बार जब
देश राष्ट्रीय या प्राकृतिक आपदा; जैसे―भूकंप, बाढ़, सूनामी, फसलें, खराब होने से पड़े अकाल
आदि के कारण प्रभावित होते हैं जो निर्धनता रेखा से ऊपर रहने वाले लोग भी खाद्यान्न की दृष्टि से
असुरक्षित हो जाते हैं। प्राकृतिक आपदा; जैसे―सूखे के कारण खाद्यान्न की कुल उपज में गिरावट
आती है। इससे प्रभावित क्षेत्रों में खाद्य की कमी हो जाती है। खाद्य की कमी के कारण कीमतें बढ़ जाती
कुछ लोग ऊँची कीमतों पर खाद्य पदार्थ नहीं खरीद सकते। अगर यह आपदा अधिक लंबे समय
तक बनी रहती है तो भुखमरी की स्थिति पैदा हो सकती है, जो अकाल की स्थिति बन सकती है।
 
प्रश्न 9.भुखमरी से आप क्या समझते हैं? भारत में भुखमरी के कितने प्रकार हैं?
उत्तर― भुखमरी खाद्य की दृष्टि से असुरक्षा को इंगित करने वाला एक दूसरा पहलू है। भुखमरी
गरीबी की एक अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, यह गरीबी लाती है। इस तरह खाद्य की दृष्टि से सुरक्षित होने
से वर्तमान में भुखमरी समाप्त हो जाती है और भविष्य में भुखमरी का खतरा कम हो जाता है।
भुखमरी के प्रकार―
(i) दीर्घकालिक भुखमरी―मात्रा एवं/या गुणवत्ता के आधार पर अपर्याप्त आहार ग्रहण करने
के कारण होती है। गरीब लोग अपनी अत्यंत निम्न आय और जीवित रहने के लिए खाद्य
पदार्थ खरीदने में अक्षमता के कारण दीर्घकालिक भुखमरी से ग्रस्त होते हैं।
 
(ii) मौसमी भुखमरी―फसल उपजाने और काटने के चक्र से संबंधित है। यह ग्रामीण क्षेत्रों
की कृषि क्रियाओं की मौसमी प्रकृति के कारण तथा नगरीय क्षेत्रों में अनियमित श्रम
के कारण होती है; जैसे—बरसात के मौसम में अनियत निर्माण श्रमिक को कम काम रहता है।
 
                                  दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.निम्नांकित आरेख का अध्ययन कीजिए और नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर
दीजिए―
(i) हाल में किस वर्ष में सरकार के पास खाद्यान्न का स्टॉक सबसे अधिक था?
(ii) एफ०सी०आई० का न्यूनतम बफर स्टॉक प्रतिमान क्या है?
(iii) एफ०सी०आई० के भंडारों में खाद्यान्न भंडार ठसाठस क्यों भरे हुए हैं?
उत्तर―(i) जुलाई, 2016 में एफ०सी०आई० का अनाज भंडारण सबसे अधिक था। इस वर्ष उसके
पास वास्तविक (एक्चुअल) 54.5 करोड़ टन अनाज भंडार था।
 
(ii) एफ०सी०आई का न्यूनतम बफर प्रतिमान स्टॉक 21.14 करोड़ टन था जो कि जनवरी,
2018 में था।
 
(iii) एफ०सी०आई० के खाद्यान्न भंडार ठसाठस भरे हुए हैं क्योंकि सार्वजनिक वितरण प्रणाली
उचित नहीं है। खाद्यान्न भंडारण के लिए मूल्यों का पुनःनिर्धारण नहीं किया गया है। हालाँकि
पी०डी०एस० ने खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ाया है और कई क्षेत्रों के किसानों के लिए आय
सुरक्षा प्रदान की है परंतु इसी के कारण एफ०सी०आई० के खाद्यान्न ठसाठस भरे हुए हैं
जहाँ अनाज सड़ रहा है या उसे चूहे खा रहे हैं।
 
प्रश्न 2.खाद्य और संबंधित वस्तुओं को उपलब्ध कराने में सहकारी समितियों और
गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर― खाद्य और संबंधित वस्तुओं को उपलब्ध कराने में सरकारी समितियाँ और गैर-सरकारी
संगठनों की भूमिका निम्नवत् है―
● भारत में विशेषकर देश के दक्षिणी और पश्चिमी भागों में सहकारी समितियाँ भी खाद्य सुरक्षा में
एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
● सहकारी समितियाँ निर्धन लोगों की खाद्यान्न की बिक्री के लिए कम कीमत वाली दुकानें खोलती
● दिल्ली में मदर डेयरी उपभोक्ताओं को दिल्ली सरकार द्वारा निर्धारित नियंत्रित दरों पर दूध और
सब्जियाँ उपलब्ध कराने में तेजी से प्रगति कर रही है।
● गुजरात में दूध तथा दुग्ध उत्पादों में अमूल एक और सफल सहकारी समिति का उदाहरण है।
इसने देश में श्वेत क्रांति ला दी है।
● भारत में सहकारी समितियों के कई उदाहरण हैं जो समाज के विभिन्न वर्गों की खाद्य सुरक्षा के
लिए अच्छा काम कर रहे हैं।
● भारत में गैर-सरकारी संगठन भी खाद्य सुरक्षा के लिए अच्छा काम कर रहे हैं।
● इसी तरह, महाराष्ट्र में एकेडमी ऑफ डेवलपमेंट साइंस (ए०डी०एस०) ने विभिन्न क्षेत्रों में
अनाज बैंकों की स्थापना के लिए गैर-सरकारी संगठनों के नेटवर्क में सहायता की है।
● ए०डी०एस० गैर-सरकारी संगठनों के लिए खाद्य सुरक्षा के विषय में प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण
कार्यक्रम संचालित करती है।
● अनाज बैंक अब धीरे-धीरे महाराष्ट्र के विभिन्न भागों में खुलते जा रहे हैं।
● अनाज बैंकों की स्थापना, गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से उन्हें फैलाने और खाद्य सुरक्षा पर
सरकार की नीति को प्रभावित करने में ए०डी०एस० की कोशिश रंग ला रही है।
● ए०डी०एस० अनाज बैंक कार्यक्रम को एक सफल और नए प्रकार के खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के
रूप में स्वीकृति मिली है।

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