UP Board Class 9 Social Science Civics | चुनावी राजनीति

By | April 12, 2021

UP Board Class 9 Social Science Civics | चुनावी राजनीति

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 4 चुनावी राजनीति

अध्याय 3.                         चुनावी राजनीति
                                             अभ्यास
NCERT प्रश्न
प्रश्न 1. चुनाव क्यों होते हैं, इस बारे में इनमें से कौन-सा वाक्य ठीक नहीं है?
(क) चुनाव लोगों को सरकार के कामकाज का फैसला करने का अवसर देते हैं।
(ख) लोग चुनाव में अपनी पसन्द के उम्मीदवार का चुनाव करते हैं।
(ग) चुनाव लोगों को न्यायपालिका के कामकाज का मूल्यांकन करने का अवसर देते हैं।
(घ) लोग चुनाव से अपनी पसन्द की नीतियाँ बना सकते हैं।
उत्तर―(ग) चुनाव लोगों को न्यायपालिका के कामकाज का मूल्यांकन करने का अवसर देते हैं।
 
प्रश्न 2. भारत के चुनाव लोकतान्त्रिक हैं, यह बताने के लिए इनमें कौन-सा वाक्य सही
कारण नहीं देता?
(क) भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा मतदाता हैं।
(ख) भारत में चुनाव आयोग काफी शक्तिशाली है।
(ग) भारत में 18 वर्ष से अधिक उम्र का हर व्यक्ति मतदाता है।
(घ) भारत में चुनाव हारने वाली पार्टियाँ जनादेश स्वीकार कर लेती हैं।
                           उत्तर―(क) भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा मतदाता हैं।
 
प्रश्न 3. निम्नलिखित में मेल ढूँढ़ें―
(क) समय-समय पर मतदाता सूची का      1. समाज के हर तबके का समुचित प्रतिनिधित्व
       नवीनीकरण आवश्यक है ताकि              हो सके।
(ख) कुछ निर्वाचन-क्षेत्र अनु० जाति और    2. हर एक को अपना प्रतिनिधि चुनने का समान
       अनु० जनजाति के लिए आरक्षित हैं       अवसर मिले।
        ताकि
(ग) प्रत्येक को सिर्फ एक वोट डालने           3. हर उम्मीदवार को चुनावों में लड़ने का
       का हक है ताकि                                     समान अवसर मिले।
 
(घ) सत्ताधारी दल को सरकारी वाहन के      4. सम्भव है कुछ लोग उस जगह से अलग चले
इस्तेमाल की अनुमति नहीं क्योंकि                   गए हों जहाँ उन्होंने पिछले चुनाव में मतदान
                                                                 किया था।
                    उत्तर― (क)→4; (ख)→1; (ग) →2 ; (घ) → 3.
 
प्रश्न 4. इस अध्याय में वर्णित चुनाव सम्बन्धी सभी गतिविधियों की सूची बनाएँ और इन्हें
चुनाव में सबसे पहले किए जाने वाले काम से लेकर आखिर तक के क्रम में
सजाएँ। इनमें से कुछ मामले हैं―
चुनाव घोषणा-पत्र जारी करना, वोटों की गिनती, मतदाता सूची बनाना, चुनाव
अभियान, चुनाव नतीजों की घोषणा, मतदान, पुनर्मतदान के आदेश, चुनाव
प्रक्रिया की घोषणा, नामांकन दाखिल करना।
उत्तर― चुनाव सम्बन्धी विभिन्न गतिविधियों की क्रमानुसार सूची इस प्रकार है-
(i) मतदाता सूची बनाना।
(ii) चुनाव प्रक्रिया की घोषणा।
(iii) नामांकन दाखिल करना।
(iv) चुनाव अभियान।
(v) चुनाव घोषणा-पत्र जारी करना।
(vi) मतदान।
(vii) वोटों की गिनती।
(viii) चुनाव नतीजों की घोषणा।
(ix) पुनर्मतदान।
 
प्रश्न 5. सुरेखा एक राज्य विधानसभा क्षेत्र में स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनाव कराने वाली
अधिकारी है। चुनाव के इन चरणों में उसे किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए?
(क) चुनाव प्रचार
(ख) मतदान के दिन
(ग) मतगणना के दिन
उत्तर― (क) चुनाव प्रचार के समय ध्यान देने वाली बातें-
(i) चुनाव सभाएँ अपने निश्चित समय और स्थान पर हों।
(ii) राजनीतिक पार्टियों द्वारा जुलूस निकालते समय कोई गड़बड़ न हो।
(iii) पोस्टर द्वारा नागरिकों की दीवारों को खराब न किया जाए।
(iv) भाषण देते समय कोई व्यक्ति गलत न बोले और दूसरों पर कीचड़ नहीं उछाले आदि।
(ख) मतदान के दिन ध्यान देने वाली बातें-मतदान के दिन चुनाव अधिकारी सुरेखा को
निम्नलिखित बातों पर अपना विशेष ध्यान देना होगा―
(i) मतदान शान्तिमय ढंग से हो।
(ii) कोई भी गलत वोट न डाल सके।
(iii) हर मतदान केन्द्र पर पुलिस की व्यवस्था होनी चाहिए।
(iv) कोई भी असामाजिक तत्त्व किसी केन्द्र में घुसने नहीं पाए।
(v) कोई भी व्यक्ति या दल मतदान केन्द्र पर कब्जा न कर पाए।
(vi) चुनाव के पश्चात् मत पेटियाँ या इलेक्ट्रॉनिक मशीनें गिनती केन्द्र पर ठीक-ठाक पहुँच
जाएँ।
(ग) मतगणना के दिन ध्यान देने योग्य बातें―मतगणना वाले दिन चुनाव अधिकारी सुरेखा
को और सतर्क रहने की आवश्यकता है। उसे निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना होगा―
(i) मतगणना केन्द्रों पर विभिन्न उम्मीदवारों के प्रतिनिधियों के बैठने की उचित व्यवस्था
हो।
(ii) मतगणना केन्द्रों पर पुलिस का उचित प्रबन्ध हो ताकि कोई भी गड़बड़ी न हो सके।
(iii) कोई भी असामाजिक तत्त्व किसी मतगणना केन्द्र में घुसने न पाए।
(iv) वोटों की गिनती का काम सभी प्रतिनिधियों के सामने हो और किसी को भी कोई
आपत्ति न हो।
(v) परिणाम घोषित होने के पश्चात् विभिन्न पार्टियों या उसके प्रतिनिधियों में कोई झगड़ा
न होने पाए और न कोई भड़काने वाली भाषणबाजी होने पाए।
 
प्रश्न 6. नीचे दी गई तालिका बताती है कि अमेरिकी कांग्रेस के चुनावों के विजयी
उम्मीदवारों में अमेरिकी समाज के विभिन्न समुदाय के सदस्यों का क्या अनुपात
था। ये किस अनुपात में जीते, इसकी तुलना अमेरिकी समाज में इन समुदायों की
आबादी के अनुपात से कीजिए। इसके आधार पर क्या आप अमेरिकी संसद के
चुनाव में भी आरक्षण का सुझाव देंगे? अगर हाँ तो क्यों और किस समुदाय
के लिए? अगर नहीं, तो क्यों?
                  समुदाय का प्रतिनिधित्व (प्रतिशत में)
                  अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में          अमेरिकी समाज में
अश्वेत                   8                                            13
हिस्पैनिक             5                                            13
श्वेत                      86                                          70
उत्तर― (i) अश्वेत लोगों के अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में कम सदस्य (8%) हैं, जबकि उनकी
आबादी समाज में अधिक (कोई 13%) है इसलिए अमेरिकी संसद के चुनाव में
इनको आरक्षण अवश्य मिलना चाहिए, तभी उनके साथ पूरा न्याय हो सकेगा।
 
(ii) जहाँ तक हिस्पैनिक लोगों का सम्बन्ध है उन्हें तो आरक्षण की अधिक आवश्यकता है
क्योंकि उनके अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में सदस्य बहुत कम (केवल 5%) हैं, जबकि
अमेरिकी समाज में उनकी गिनती अधिक (13%) है।
 
(iii) जहाँ तक श्वेत लोगों का सम्बन्ध है उन्हें पहले ही अपनी आबादी (70%) के मुकाबले
अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में पहले ही अधिक (86%) सीटें मिली हुई हैं। उनको किसी
आरक्षण की कोई आवश्यकता नहीं।
 
प्रश्न 7. क्या हम इस अध्याय में दी गई सूचनाओं के आधार पर निम्नलिखित निष्कर्ष
निकाल सकते हैं? इनमें से सभी पर अपनी राय के पक्ष में दो तथ्य प्रस्तुत
कीजिए―
(क) भारत के चुनाव आयोग को देश में स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनाव करा सकने लायक
पर्याप्त अधिकार नहीं हैं।
(ख) हमारे देश के चुनाव में लोगों की जबर्दस्त भागीदारी होती है।
(ग) सत्ताधारी पार्टी के लिए चुनाव जीतना बहुत आसान होता है।
(घ) अपने चुनावों को पूरी तरह से निष्पक्ष और स्वतन्त्र बनाने के लिए कई कदम उठाने
जरूरी हैं।
उत्तर― (क) यह कहना गलत होगा कि हमारे देश में चुनाव आयोग को देश में स्वतन्त्र और
निष्पक्ष चुनाव करा सकने लायक पर्याप्त अधिकार नहीं हैं। भारत में चुनाव आयोग चुनाव करवाने में
हर प्रकार से सक्षम है―(i) सर्वप्रथम चुनाव-कमिश्नर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है, परन्तु
वह अपने काम के लिए न राष्ट्रपति और न ही सरकार के प्रति उत्तरदायी है। 
 
(ii) दूसरे, चुनाव कमिश्नर चुनाव के दिनों में सरकार को कुछ निर्देश दे सकता है। 
 
(iii) तीसरे, यदि वह समझता है कि किसी चुनाव क्षेत्र में चुनाव ठीक ढंग से नहीं हुए हैं 
तो वह दोबारा चुनाव कराने के आदेश दे सकता है।
 
(iv) चौथे, चुनाव के दिनों में जो भी अधिकारी चुनाव के काम में लग जाते हैं वह चुनाव 
आयोग के अधीन काम करते हैं न कि सरकार के अधीन।
 
(ख) इस बात में तनिक भी सन्देह नहीं कि हमारे देश के चुनाव में लोगों की जबरदस्त भागीदारी
होती है। ऐसा देखा गया है कि पिछले 50 वर्षों में जहाँ उत्तरी अमेरिका और यूरोप में चुनावों
में लोगों की भागीदारी कम हुई है, वहीं हमारे देश में या तो यह बराबर रही है या कुछ
अधिक हुई है। हमारे देश में गरीबों, अनपढ़ों और निचली श्रेणी के लोगों ने चुनावों में
अधिक वोट डाले हैं और अमीर और ऊँचे तबके के लोगों ने कम।
 
(ग) यह कहना बिलकुल गलत है कि सत्ता वाली पार्टी के लिए चुनाव जीतना बहुत आसान होता
है। यदि ऐसा हो तो कांग्रेस जैसी पार्टी के महान नेता श्रीमती इन्दिरा गांधी को एक
साधारण-से नेता राज नारायण से कभी भी हार का मुँह न देखना पड़ता। चुनाव कमिश्नर
यहाँ ध्यान रखता है कि सरकारी वाहनों, हवाई जहाजों या सरकारी अमले का कोई नाजायज
लाभ न उठाए। चुनाव आयोग सत्ता पार्टी की धाँधली पर पूरी निगरानी रखता है।
 
(घ) विश्व भर में कोई भी ऐसी व्यवस्था नहीं जहाँ सुधार की गुंजाइश नहीं होती। इसलिए हमारे
यहाँ भी चुनावों को पूरी तरह निष्पक्ष और स्वतन्त्र बनाने के लिए कई कदम सुझाए जा
सकते हैं; जैसे―धन की महत्ता को कम करना चाहिए ताकि एक साधारण व्यक्ति भी
चुनाव लड़ सके। दूसरे, घूसखोर और संदिग्ध चरित्र के व्यक्तियों को चुनाव में भाग लेने से
रोकना चाहिए।
 
प्रश्न 8. चिनप्पा को दहेज के लिए अपनी पत्नी को परेशान करने के जुर्म में सजा मिली
थी। सतबीर को छुआछूत मानने का दोषी माना गया था। दोनों को अदालत ने
चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं दी। क्या यह फैसला लोकतान्त्रिक चुनावों के
बुनियादी सिद्धान्तों के खिलाफ जाता है? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर― इन दोनों ही केसों में, चिनप्पा (Chinappa) और सतबीर (Satbir) को दोषी मानते हुए
अदालत ने चुनाव न लड़ने की आज्ञा देकर बहुत अच्छा किया। यह फैसला लोकतान्त्रिक चुनावों के
बुनियादी सिद्धान्तों के खिलाफ नहीं जाता। अपनी पत्नी को परेशान करने के जुर्म में दोषी पाए जाने
वाले व्यक्तियों और छुआछूत को बढ़ावा देने वाले व्यक्तियों को चुनाव में कभी भी भाग लेने नहीं देना
चाहिए। ऐसा करने के लिए अदालत धन्यवाद की पात्र है।
 
प्रश्न 9. यहाँ दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में चुनावी गड़बड़ियों की कुछ रिपोर्ट दी गई
हैं। क्या ये देश अपने यहाँ के चुनावों में सुधार के लिए भारत से कुछ बातें सीख
सकते हैं? प्रत्येक मामले में आप क्या सुझाव देंगे?
(क) नाइजीरिया के एक चुनाव में मतगणना अधिकारी ने जान-बूझकर एक उम्मीदवार को
मिले वोटों की संख्या बढ़ा दी और उसे जीता हुआ घोषित कर दिया। बाद में अदालत
ने पाया कि दूसरे उम्मीदवार को मिले पाँच लाख वोटों को उस उम्मीदवार के पक्ष में
दर्ज कर लिया गया था।
(ख) फिजी में चुनाव से ठीक पहले एक परचा बाँटा गया जिसमें धमकी दी गई थी कि
अगर पूर्व प्रधानमन्त्री महेंद्र चौधरी के पक्ष में वोट दिया गया तो खून-खराबा हो
जाएगा। यह धमकी भारतीय मूल के मतदाताओं को
गई थी।
(ग) अमेरिका के हर प्रान्त में मतदान, मतगणना और चुनाव संचालन की अपनी-अपनी
प्रणालियाँ हैं। सन् 2000 के चुनाव में फ्लोरिडा प्रान्त के अधिकारियों ने जॉर्ज बुश के
पक्ष में अनेक विवादास्पद फैसले लिए पर उनके फैसले को कोई भी नहीं बदल सका।
उत्तर―(क) नाइजीरिया के मतगणना अधिकारी ने जो कुछ किया बिलकुल गलत है। इस धाँधली
को समाप्त करने के लिए एक तो भारत की भाँति वहाँ वोट देने के लिए इलेक्ट्रॉनिक
मशीनों का प्रयोग होना चाहिए और दूसरे वोटों की गिनती करते समय सभी
उम्मीदवारों के प्रतिनिधि मौजूद होने चाहिए ताकि कोई भी मतगणना अधिकारी कोई
भी गलत काम न कर सके।
(ख) फिजी में जो कुछ किया गया बिलकुल गलत है जो लोकतान्त्रिक मापदण्ड पर कभी भी
सही नहीं ठहराया जा सकता पहले तो वोटरों को डराने और धमकाने का प्रयत्न करना
सरासर गलत है। दूसरे, चुनाव से ठीक पहले किसी भी प्रकार का कोई परचा बाँटना
सरासर गलत है। भारत में ऐसा करना अवैध है इसलिए भारत की ही भाँति उस देश के
न्यायालय को ऐसी अन्यायपूर्ण हरकतों को अवैध घोषित करके उस सारी चुनाव प्रक्रिया को
दोबारा शुरू करना चाहिए।
 
(ग) अमेरिका के हर प्रान्त में मतदान, मतगणना और चुनाव संचालन की जो अलग-अलग
प्रणालियाँ हैं बिलकुल गलत हैं। भारत के हर राज्य में मतदान, मतगणना और चुनाव
संचालन की एक-जैसी ही प्रणाली का प्रचलन है जो हर लिहाज से उचित लगता है।
अमेरिका को इस क्षेत्र में भारत से कुछ सीख लेना चाहिए।
 
प्रश्न 10. भारत में चुनावी गड़बड़ियों से सम्बन्धित कुछ रिपोर्ट यहाँ दी गई हैं। प्रत्येक
मामले में समस्या की पहचान कीजिए। इन्हें दूर करने के लिए क्या किया जा
सकता है?
(क) चुनाव की घोषणा होते ही मन्त्री महोदय ने बंद पड़ी चीनी मिल को दोबारा खोलने के
लिए वित्तीय सहायता देने की घोषणा की।
(ख) विपक्षी दलों का आरोप था कि दूरदर्शन और आकाशवाणी पर उनके बयानों और
चुनाव अभियान को उचित जगह नहीं मिली।
(ग) चुनाव आयोग की जाँच से एक राज्य की मतदाता सूची में 20 लाख फर्जी मतदाताओं
के नाम मिले।
(घ) एक राजनैतिक दल के गुंडे बंदूकों के साथ घूम रहे थे, दूसरी पार्टियों के लोगों को
मतदान में भाग लेने से रोक रहे थे और दूसरी पार्टी की चुनावी सभाओं पर हमले कर
रहे थे।
उत्तर― (क) ऐसा करके मन्त्री महोदय ने दो बातों में गलती की। पहली यह कि चुनाव की घोषणा
के पश्चात् किसी भी प्रकार की बड़ी-बड़ी घोषणाएँ करना सरासर गलत है। दूसरी, वित्तीय सहायता
की घोषणा करके उसने लोगों को प्रलोभन देने का प्रयल किया जो सरासर गलत है।
 
(ख) विपक्षी दलों के इस आरोप को दूर करने का एक अच्छा ढंग यह है कि दूरदर्शन और
आकाशवाणी को सरकारी नियन्त्रण से स्वतन्त्र कर देना चाहिए और उन्हें स्वतन्त्र संस्थाओं
के रूप में बदल देना चाहिए ताकि वे निष्पक्ष रूप से अपना कार्य कर सकें। सरकारी
नियन्त्रण को खत्म करना उचित हल है।
 
(ग) फर्जी मतदाताओं का मतदाता सूची में पाया जाना बिलकुल गलत है। चुनाव आयोग को
चाहिए कि वह ऐसे राज्य में नई मतदाता सूची तैयार करने के तुरन्त आदेश दे।
 
(घ) किसी भी राजनीतिक दल के गुंडों का बंदूकों के साथ घूमना, विशेषकर मतदान के दिन
घूमना, दूसरी पार्टी के मतदाताओं को मतदान में भाग लेने से रोकना तथा दूसरी पार्टी की
चुनावी सभाओं पर हमले करना सब कुछ अलोकतान्त्रिक है। भारतीय चुनाव आयोग ऐसे
राजनीतिक दल के विरुद्ध कार्यवाही कर सकता है और ऐसी पार्टी को अवैध घोषित कर
सकता है और उसकी मान्यता को समाप्त कर सकता है। ऐसा सब कुछ करने के लिए
भारतीय चुनाव आयोग पूरी तरह से सक्षम है।
 
प्रश्न 11. जब यह अध्याय पढ़ाया जा रहा था तो रमेश कक्षा में नहीं आ पाया था। अगले दिन
कक्षा में आने के बाद उसने अपने पिताजी से सुनी बातों को दोहराया। क्या आप
रमेश को बता सकते हैं कि उसके इन बयानों में क्या गड़बड़ी है?
(क) औरतें उसी तरह वोट देती हैं जैसा पुरुष उनसे कहते हैं इसलिए उनको मताधिकार
देने का कोई मतलब नहीं है।
(ख) पार्टी-पॉलिटिक्स से समाज में तनाव पैदा होता है। चुनाव में सबकी सहमति वाला
फैसला होना चाहिए, प्रतिद्वंद्विता नहीं होनी चाहिए।
(ग) सिर्फ स्नातकों को ही चुनाव लड़ने की इजाजत होनी चाहिए।
उत्तर―(क) यह कहना कि औरतें उसी तरह से वोट देती हैं जैसे पुरुष उनसे कहते हैं, सरासर
गलत है। लोकतन्त्र लोगों का होता है, लोगों के लिए होता है और लोगों द्वारा होता है,
पुरुषों का होता है, यह कहीं भी नहीं माना गया कि लोकतन्त्र केवल पुरुषों के लिए
होता है और केवल पुरुषों द्वारा चलाया जाता है। यह सरासर गलत बात है कि औरतों
की लगभग 50% आबादी को उनके मताधिकार से ही वंचित कर दें। लिंग पर
आधारित लोकतन्त्र को सच्चा लोकतन्त्र, बल्कि लोकतन्त्र कहा ही नहीं जा सकता।
ऐसा देखा गया है कि पुरुष तो एक पार्टी का सदस्य है जबकि उसकी अपनी पत्नी
दूसरे दल की सदस्य है। आचार्य कृपलानी समाजवादी पार्टी का नेता था जबकि उनकी
धर्मपत्नी श्रीमती सुचेता कृपलानी कांग्रेस की लोकप्रिय नेता थीं। फिर यह इलजाम
लगाना कि औरतें उसको वोट देती हैं जैसा उनके पुरुष उनसे कहते हैं गलत है और
इस आधार पर उनसे वोट का अधिकार छीन लेना तो सरासर गलत है।
 
(ख) जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि लोकतन्त्र में विभिन्न दलों का होना आवश्यक है और
उनमें आपसी प्रतिद्वंद्विता का होना भी स्वाभाविक है। इस प्रतिद्वंद्विता से यदि कोई पैदा भी
होता है तो वह प्रायः अस्थायी होता है और चुनावों के साथ ही समाप्त हो जाता है। इस
चुनावी प्रतिद्वंद्विता के कारण ही वोटरों के सामने कई नए तथ्य आते हैं, जिनसे उनकी
जानकारी काफी बढ़ जाती है। अब वे इतने परिपक्व हो जाते हैं कि वे ठीक उम्मीदवार को
ही वोट देते हैं। अन्यथा वे अँधेरे में ही रह जाएँ और किसी गलत उम्मीदवार को चुन बैठे।
 
(ग) केवल स्नातकों को ही चुनाव लड़ने की इजाजत होनी चाहिए, यह भी सरासर गलत है। यदि
यह शर्त लगा दी जाए तो भारत के 90% लोग चुनाव के लिए खड़े ही नहीं हो सकते। इस
प्रकार 90% लोगों को चुनाव लड़ने के अधिकार से महरूम करना सरासर अनुचित होगा।
दूसरे, भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में सभी लोग पढ़े-लिखे और अनपढ़ों ने बराबर का साथ
दिया इसलिए ऐसे लोगों के साथ चुनाव लड़ने का अधिकार छीनना सरासर गैर-इंसाफी
होगी। जब स्वतन्त्रता के लिए उन्होंने मार खाई है तो अब उन्हें स्वतन्त्रता के मीठे फल का
भी स्वाद लेने का पूरा अधिकार है।
 
                                         अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. चौधरी देवीलाल ने किस राज्य में 1987 में मुख्यमंत्री की कुर्सी सँभाली? 
(क) मध्य प्रदेश
(ख) हरियाणा
(ग) राजस्थान
(घ) उत्तर प्रदेश
                     उत्तर―(ख) हरियाणा
 
प्रश्न 2. हरियाणा विधानसभा चुनाव में लोकदल ने अकेले 90 में से कितनी सीटें जीतीं?
(क)57
(ख)58
(ग) 59
(घ)60
        उत्तर―(घ) 60
 
प्रश्न 3. भारत में कितने वर्ष की आयु का व्यक्ति मतदान कर सकता है?
(क) 17
(ख) 18
(ग) 19
(घ) 20
          उत्तर―(ख) 18
 
प्रश्न 4. चुनाव की घोषणा कौन करता है?
(क) प्रधानमंत्री
(ख) वित्त मंत्री
(ग) लोकसभा अध्यक्ष
(घ) निर्वाचन आयोग
                           उत्तर―(घ) निर्वाचन आयोग
 
प्रश्न 5. भारत के कितने निर्वाचन आयुक्त 1993 से हैं?
(क) 2
(ख) 3
(ग) 4
(घ) 5
        उत्तर―(ख) 3
 
प्रश्न 6. ‘लोकतंत्र बचाओं का नारा जनता पार्टी ने कब दिया?
(क) 1976 में
(ख) 1977 में
(ग) 1978 में 
(घ) 1979 में
                  उत्तर―(ख) 1977 में
 
प्रश्न 7. भारत के प्रथम मुख्य चुनाव आयुक्त कौन थे?
(क) टी०एन० शेषन
(ख) सुकुमार सेन
(ग) मनोहर गिल
(घ) यू०के० भामरी
                         उत्तर―(ख) सुकुमार सेन
 
प्रश्न 8. 2014 में किस दल की सरकार केन्द्र में आयी?
(क) कांग्रेस
(ख) भाजपा एवं सहयोगी
(ग) तीसरे मोचें
(घ) इनमें से कोई नहीं
                              उत्तर―(ख) भाजपा एवं सहयोगी
 
प्रश्न 9. भारत के चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति 6 वर्ष या कितने वर्ष की आयु तक होती है?
(क) 62
(ख) 63 
(ग)  64
(घ)  65
            उत्तर―(घ) 65
 
प्रश्न 10. लोकसभा में अनुसूचित जातियों के लिए कितनी सीटें आरक्षित है?
(क) 83
(ख) 84
(ग) 85
(घ) 86
           उत्तर―(ख)84
 
                              अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. लोकसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए कितनी सीटें आरक्षित है?
उत्तर―47 सीटें।
 
प्रश्न 2. ग्रामीण और शहरी निकायों में महिलाओं के लिए कितना आरक्षण है?
उत्तर― एक-तिहाई।
 
प्रश्न 3. ई०वी०एम० क्या है?
उत्तर― ई०वी०एम० (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) मतदान के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक
मशीन है। इसके ऊपर उम्मीदवारों के नाम और उनके चुनाव चिह्न बने होते हैं।
 
प्रश्न 4.मतपत्रों से वोटिंग कराने का क्या लाभ है?
उत्तर― मतपत्रों से वोटिंग कराने का मुख्य लाभ यह है कि इसमें किसी भी तरह की तकनीकी
गड़बड़ी (हैकिंग) करना सम्भव नहीं है।
 
प्रश्न 5. चुनाव कराने का दायित्व किसका है?
उत्तर― भारतीय निर्वाचन आयोग का।
 
प्रश्न 6. हमारी चुनाव प्रणाली में क्या चुनौतियाँ सामने आ रही हैं?
उत्तर― मतदाता सूची में फर्जी नाम डालना, व्यक्तियों के नाम गायब होना, धीमा मतदान कराया
जाना, EVM मशीनों के साथ छेड़छाड़ होना, चुनाव में ब्लैक मनी (काला धन) का उपयोग होना तथा
मतदाताओं को डरान-धमकाना इत्यादि हमारी चुनाव प्रणाली की प्रमुख चुनौतियाँ हैं।
 
प्रश्न 7. 1983 के आंध्र प्रदेश विधानसभा के चुनावों में तेलुगू पार्टी के नेता एन०टी०
रामाराव ने कौन-सा नारा दिया?
उत्तर― तेलुगू स्वाभिमान।
 
प्रश्न 8. 1971 में गरीबी हटाओ’ का नारा किसने दिया?
उत्तर― कांग्रेस पार्टी ने।
 
प्रश्न 9. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हेतु कोई एक उपाय बताइए।
उत्तर― किसी भी उम्मीदवार या पार्टी द्वारा वोट प्राप्त करने के लिए दिये लाने वाले किसी भी तरह
के प्रलोभन पर रोक लगाना।
 
                                    लघु उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए उपाय सुझाइए।
उत्तर― देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए एक निष्पक्ष और स्वतंत्र निर्वाचन आयोग
का गठन किया गया है। यह आयोग चुनावों से सम्बन्धित सभी गतिविधियों पर पैनी नजर रखता है। यह
किसी भी तरह की गड़बड़ी होने पर चुनाव को रद्द कर सकता है और पुन: चुनाव कराने का आदेश
जारी कर सकता है। इसके अलावा स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के कुछ प्रमुख उपाय निम्नवत् हैं―
(i) हर संभव यह प्रयत्न किया जाए कि मतदाता अपनी इच्छानुसार स्वतन्त्र रूप से अपना वोट
डाल सके।
(ii) हर चुनाव केन्द्र पर पुलिस की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि वोटरों पर कोई व्यक्ति या पार्टी
अनुचित दबाव न डाल सके और न कोई बोगस वोट डाल सके।
(iii) ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जिससे वोट प्राप्त करने के लिये कोई भी उम्मीदवार या पार्टी
किसी को कोई प्रलोभन न दे सके।
(iv) ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जिससे कोई भी व्यक्ति किसी पर अपना वोट किसी विशेष
उम्मीदवार को देने के लिये दबाव न डाल सके।
(v) चुनाव अभियान के समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि कोई भी दल, विशेषकर
सत्ता दल, किसी सरकारी वाहन का प्रयोग न कर सके।
(vi) यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कोई भी उम्मीदवार या उसका प्रतिनिधि वोटों की
हेराफेरी (Rigging) न कर सके।
(vii) किसी भी असामाजिक तत्त्व या आपराधिक लोगों का किसी भी चुनाव केन्द्र पर जाना
पूर्णतः प्रतिबन्धित होना चाहिए।
 
प्रश्न 2. हरियाणा के चुनाव पर प्रकाश डालिए।
उत्तर― हरियाणा में 1982 से कांग्रेस पार्टी की अगुवाई वाली सरकार थी। तब विपक्ष के एक नेता
चौधरी देवीलाल ने ‘न्याय युद्ध’ नामक आंदोलन का नेतृत्व किया एवं लोकदल नामक अपनी नई पार्टी
का गठन किया। उनकी पार्टी ने चुनाव में कांग्रेस के विरुद्ध अन्य विपक्षी दलों को मिलाकर एक मोर्चा
बनाया। अपने चुनाव प्रचार में देवीलाल ने कहा कि यदि उनकी पार्टी चुनाव जीती तो वे किसानों एवं
छोटे व्यापारियों के कर्ज माफ कर देंगे। उन्होंने वायदा किया कि यही उनकी सरकार का पहला कार्य
होगा।
लोग तब की सरकार से नाखुश थे। इसलिए 1987 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में लोग देवीलाल
के वायदे की तरफ आकर्षित हुए। अतः जब चुनाव हुए तो उन्होंने लोकदल एवं उसके सहयोगी दलों
के पक्ष में जमकर वोट दिए। लोकदल और उसकी सहयोगी पार्टियों को राज्य विधानसभा की 90 सीटों
में से 76 पर जीत मिली। लोकदल को अकेले ही 60 सीटें मिलीं एवं उसे स्पष्ट बहुमत मिला। कांग्रेस
के हाथ तब केवल 5 सीटें लगीं।
चुनावी नतीजों की घोषणा के पश्चात् तत्कालीन सरकार के मुख्यमंत्री ने पद छोड़ दिया। लोकदल के
नवनिर्वाचित विधायकों ने देवीलाल को अपना नेता चुना। राज्यपाल ने देवीलाल को नए मुख्यमंत्री के
रूप में कार्यभार संभालने का निमंत्रण दिया। चुनावी परिणामों की घोषणा के तीन दिन के अंदर वे
मुख्यमंत्री बन गए। मुख्यंमत्री पद की शपथ लेने के तत्काल पश्चात् उनकी सरकार ने एक आदेश जारी
करके छोटे किसान, खेतिहर मजदूर एवं छोटे व्यापारियों के बकाया ऋण को माफ कर दिया। जिससे
जनता उनसे किये गये वादे से खुश हो गई। उनकी पार्टी ने राज्य में चार वर्षों तक शासन किया। कुछ
कार्य ऐसे भी हुए जिनसे जनता नाराज भी हो गई। अगले चुनाव 1991 में हुए। इस बार उनकी पार्टी को
लोगों का समर्थन नहीं मिला। कांग्रेस पार्टी ने चुनाव जीता एवं सरकार बनाई।
 
प्रश्न 3. राजनीतिक प्रतिद्वन्द्विता लोकतंत्र हेतु क्यों आवश्यक है?
उत्तर― चुनावों में विभिन्न राजनीतिक दलों में प्रतिद्वंद्विता आना स्वाभाविक ही है। इस प्रतिद्वंद्विता में
अनेक दोष बताये जाते हैं परन्तु यदि सभी लोकतांत्रिक देशों ने इस राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता की व्यवस्था
को अपनाया है तो अवश्य इसमें कुछ गुण । इस व्यवस्था के पक्ष में राजनेताओं ने अनेक दलीलें
दी हैं। इनमें से कुछ मुख्य दलीलें निम्नवत् हैं―
(i) यदि प्रतिद्वंद्विता नहीं तो चुनाव बेमानी हो जाएँगे।
(ii) अपनी प्रतिद्वंद्विता के कारण विभिन्न दल जब अपनी अच्छाइयों और दूसरे दलों की बुराइयों
का बखान करते हैं तो वे मतदाओं की जानकारी में काफी वृद्धि करते हैं और राजनीतिक
रूप में उन्हें जागृत करते हैं।
(iii) प्रतिद्वंद्विता से मतदाताओं को विभिन्न उम्मीदवारों की अच्छाई-बुराई का पहले ही पता चल
जाता है और वे फिर सोचकर अपने मत का प्रयोग करते हैं।
(iv) इस आलोचना का राजनेताओं पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है। उन्हें अपनी खामियों का पता
चलता है और वे सोच लेते हैं कि यदि वे फिर सत्ता में आयेंगे तो वे उन खामियों को अवश्य
दूर करेंगे। इस प्रकार आलोचना ही सुधार का मुख्य कारण बनती है।
परन्तु यदि हमें राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को एक सफल व्यवस्था बनाना है तो हमें इसके विभिन्न दोषों को
दूर करना होगा। ऐसे ही कुछ प्रमुख दोष निम्नवत् हैं―
(i) सर्वप्रथम इससे पैदा होने वाली कटुता को दूर करना होगा।
(ii) एक-दूसरे पर लगाए गए झूठे आरोपों से बचना होगा।
(iii) लोगों को झूठे वायदे देकर उन्हें धोखा देने से राजनेताओं को बचना होगा।
(iv) राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का सबसे बड़ा दोष यह है कि बहुत-से योग्य व्यक्ति चुनाव के लिये
तैयार ही नहीं होते। यदि एक-दूसरे पर झूठे लांछन लगाने से राजनेता बचें तो ऐसे योग्य
लागों का भी फायदा उठाया जा सकता।
 
प्रश्न 4. चुनाव को लोकतांत्रिक मानने के क्या आधार हैं?
उत्तर― चुनाव को लोकतांत्रिक मानने के अनेक आधार हैं-
(i) प्रथम प्रत्येक नागरिक को मताधिकार के प्रयोग की अनुमति हो एवं प्रत्येक व्यक्ति के मत
का मूल्य समान हो।
 
(ii) चुनाव में जनता के लिए विकल्प हो। पार्टियों और प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने की आजादी
हो।
 
(iii) एक नियमित अंतराल पर चुनावों का आयोजन होना चाहिए।
 
(iv) लोग जिसे चाहें वास्तव में चुनाव उसी का होना चाहिए।
 
(v) चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग से होने चाहिए जिससे लोग अपनी पसन्द के उम्मीदवार को
चुन सके।
 
(vi) प्रत्येक व्यक्ति को मताधिकार की सुरक्षा प्रदान की जाये जिससे वह बिना डरे और लालच
में आये, अपना मतदान कर सके।
 
प्रश्न 5. चुनाव क्षेत्र क्या होता है?
उत्तर― चुनाव क्षेत्र, क्षेत्र के हिसाब से होते हैं। आप किसी राज्य की सभी सीटों के लिए मतदान
नहीं करते हैं। आपका घर जिस निर्वाचन क्षेत्र में आता है, आप उस क्षेत्र से खड़े प्रत्याशी का चयन
करते हैं। चुनाव क्षेत्रों का बँटवारा परिसीमन आयोग करता है। लोकसभा के लिए देश को 543
निर्वाचन क्षेत्रों में बाँटा गया है। प्रत्येक क्षेत्र से चुने गये प्रतिनिधियों को संसद सदस्य कहते हैं। हर वोट
का मूल्य बराबर हो। अत: हमारे संविधान में यह व्यवस्था है कि हर चुनाव क्षेत्र में मतदाताओं की
संख्या काफी हद तक समान हो।
प्रत्येक राज्य को उसकी विधानसभा की सीटों के आधार पर बाँटा गया है। इन सीटों से चुने गये
प्रतिनिधि विधायक कहलाते हैं। एक संसदीय क्षेत्र में अनेक विधानसभा क्षेत्र आते हैं। पंचायतों और
नगरपालिका के चुनावों में भी यही तरीका अपनाया जाता है। प्रत्येक पंचायत को कई वार्डों में बाँटा
जाता है। जो छोटे-छोटे निर्वाचन क्षेत्र हैं।
प्रत्येक वार्ड से पंचायत या नगरपालिका के लिए एक सदस्य का चुनाव होता है। कई बार निर्वाचन क्षेत्र
को सीट भी कहते हैं। क्योंकि हर क्षेत्र संसद या विधानसभा की एक सीट का प्रतिनिधित्व करता है।
यदि हम कहते हैं, लोकदल ने हरियाणा में 60 सीटें जीती हैं, तो इसका अर्थ है कि विधानसभा के 60
क्षेत्रों से लोकदल के 60 लोग जीतकर विधायक बने और विधान सभा पहुंँचे।
 
प्रश्न 6. मतदाता सूची क्या होती है?
उत्तर― किसी लोकतांत्रिक चुनाव में चुनाव से बहुत पहले ही मतदान की योग्यता रखने वाले लोगों
की सूची तैयार कर ली जाती है। इसे आधिकारिक रूप से मतदाता सूची (वोटर लिस्ट) कहा जाता है
तथा आम बोलचाल की भाषा में इसे वोटर लिस्ट कहा जाता है। यह एक महत्त्वपूर्ण कदम है क्योंकि
यह किसी लोकतांत्रिक चुनाव की पहली शर्त है। प्रत्येक नागरिक को अपना प्रतिनिधि चुनने के समान
अवसर मिलने चाहिए।
प्रत्येक व्यक्ति को चुनाव में उसे प्रभावित करने हेतु समान अधिकार मिलने चाहिए।
मतदाता सूची प्राय: प्रत्येक वर्ष नवीकृत की जाती है ताकि जो नागरिक उस वर्ष की 1 जनवरी को 18
वर्ष के हो गए हैं अथवा उस चुनाव क्षेत्र में आकर फिर निवास करने लगे हैं, उनके नाम इसमें शामिल
किए जा सकें तथा जो लोग उस चुनाव क्षेत्र से अन्यत्र प्रवास कर गए हैं अथवा मर गए हैं उनके नाम
मतदाता सूची से हटाए जा सकें।
 
                                     दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र क्या होते हैं? इनसे क्या लाभ होता है?
उत्तर― जब कुछ निर्वाचन क्षेत्र कुछ पिछड़े हुए वर्गो; जैसे—अनुसूचित जातियों, अनुसूचित
जनजातियों के लिए आरक्षित कर दिये जाते हैं तो ऐसी व्यवस्था को आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र कहा जाता है।
भारत में आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र की परिपाटी को अपनाने के अनेक लाभ हुए। इन लाभों को देखते हुए
भारत पक्ष में अनेक तर्क दिए जाते हैं, जिनमें से कुछ मुख्य निम्नवत् हैं―
(i) आरक्षित निर्वाचित क्षेत्र की परिपाटी ने हमारे लोकतंत्र को और भी लोकतांत्रिक बना दिया
है।
 
(ii) यदि आरिक्षत चुनाव क्षेत्र की परिपाटी न होती तो कमजोर समूहों के लोग, उचित संसाधनों
की कमी, शिक्षा के अभाव और सभी के साथ संपर्क स्थापित करने में अपनी असमर्थता के
कारण, लोकसभा और विधानसभाओं में पहुँच ही न पाते।
 
(iii) अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा अनेक पिछड़े वर्गों को हजारों साल शोषण
का शिकार बनना पड़ा है। इसलिये अब उनके लिए यदि आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र स्थापित
नहीं किए जाते तो वे अधिक संसाधनों वाले प्रभावशाली व्यक्तियों के सामने कभी टिक न
पाते। अब आरक्षित चुनाव क्षेत्र स्थापित करने से उनका लोकसभा और विधानसभाओं में
पहुँचना निश्चित हो गया है।
 
(iv) एक दलील यह भी दी जाती है कि आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र स्थापित हो जाने से ये पिछड़े
वर्गों के लोग किसी दूसरे का हिस्सा तो नहीं मार रहे। उन्हें यह सीटें उनकी आबादी के
आधार पर ही मिल रही हैं जो उनका पूरा अधिकार बनता है।
 
प्रश्न 2. चुनाव अभियान से आप क्या समझते हैं? अपने चुनाव अभियान के विषय में कोई
अनुभव लिखिए।
उत्तर― चुनाव अभियान से आशय एक ऐसी प्रक्रिया से है जिसमें प्रत्येक उम्मीदवार मतदाताओं को
अपने पक्ष में मत देने के लिए सहमत कराने का प्रयास करता है। उम्मीदवारों की अंतिम सूची की
घोषणा होना एवं मतदान की तारीख के बीच प्रायः दो सप्ताह का समय चुनाव प्रचार के लिए दिया
जाता है। इस अवधि में उम्मीदवार मतदाताओं से संपर्क करते हैं, राजनेता चुनावी सभाओं में भाषण देते
हैं और राजनीतिक पार्टियाँ अपने समर्थकों को सक्रिय करती हैं। राजनीतिक दलों के उम्मीदवार आज
घर-घर जाकर या नुक्कड़ सभाओं को करने में ज्यादा यकीन कर रहे हैं। इसी अवधि में अखबार और
टीवी चैनलों पर चुनाव से जुड़ी खबरें और बहसें भी होती हैं। अखबारों और स्थानीय चैनलों पर
उम्मीदवार अपने पक्ष में विज्ञापन प्रकाशित करते हैं। यह चुनाव अभियान केवल एक-दो सप्ताह का
नहीं होता अपितु राजनीतिक दल चुनाव होने के महीनों पहले से ही इसकी तैयारियां शुरू कर देते हैं।
 
चुनाव अभियान के तरीके
चुनाव से पूर्व राजनीतिक दल, उम्मीदवार, सदस्य चुनाव अभियान के अंतर्गत अनेक तरीके अपनाते हैं
जिनमें महत्त्वपूर्ण निम्नलिखित हैं―
(i) चुनाव घोषणा-पत्र–प्रत्येक प्रमुख दल और कभी-कभी निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव में
अपना-अपना घोषणा-पत्र जारी करते हैं।
 
(ii) चुनाव सभाएँ व जुलूस―पार्टी के सदस्य व उम्मीदवार चुनाव अभियान के अंतर्गत
सभाओं व जुलूस का आयोजन करके जनसाधारण से संपर्क स्थापित करके अपने उद्देश्यों
व नीतियों को स्पष्ट करते हैं।
 
(iii) भित्ति चित्र, पोस्टर व पर्चे―चुनाव अभियान के अंतर्गत अपनाए जाने वाले अन्य तरीके
भित्ति चित्र, पोस्टर व पर्चे हैं, जिनके द्वारा उम्मीदवार व पार्टी के चिह्न का प्रचार मतदाताओं
में किया जाता है।
 
(iv) झंडे एवं ध्वजाएँ―भिन्न-भिन्न पार्टियों के झंडों एवं ध्वजाओं को घरों, गैर-सरकारी
कार्यालयों, दुकानों, रिक्शा, स्कूटरों, ट्रकों व कारों पर लटका कर चुनाव प्रचार किया जाता है।
 
(v) लाउडस्पीकर व ग्रामोफोन―अनेक तरह के वाहनों के ऊपर लाउडस्पीकर एवं ग्रामोफोन
को लगाकर सड़कों व मौहल्लों में चुनाव अभियान के प्रचार का महत्त्वपूर्ण साधन अपनाया
जाता है।
 
प्रश्न 3. स्वतंत्र चुनाव आयोग पर प्रकाश डालिए।
उत्तर― भारत में निर्वाचन कराने वाली संस्था का नाम ‘निर्वाचन चुनाव आयोग’ है। इस आयोग का
सबसे बड़ा पदाधिकारी मुख्य निर्वाचन आयुक्त होता है। अक्टूबर, 1993 से दो और निर्वाचन आयुक्त
नियुक्त किये गये। अब ये तीन सदस्यीय आयोग बन गया है। इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय निर्वाचन
आयुक्तों सहित कुछ अन्य निर्वाचन आयुक्त भी होते हैं। निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा
छह वर्षों के लिए या 65 वर्ष की आयु तक, दोनों में जो पहले हो, की जाती है। प्रायः मुख्य निर्वाचन
आयुक्त को उसके पद से नहीं हटाया जा सकता, यद्यपि कुछ विशेष परिस्थितियों में सर्वोच्च न्यायालय
के न्यायाधीशों को हटाने वाली प्रक्रिया के अनुसार मुख्य निर्वाचन आयुक्त को हटाया जा सकता है।
सन् 1950 में सुकुमार सेन भारत के प्रथम मुख्य निर्वाचन आयुक्त नियुक्त हुए। भारत में निर्वाचन
आयोग को स्वतंत्र, निष्पक्ष और शक्तिशाली बनाया गया है। न्यायपालिका की तरह ही निर्वाचन आयोग
को भी स्वतंत्र एवं निष्पक्ष संस्था का स्थान दिया गया है। यद्यपि मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति
राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, परंतु वह राष्ट्रपति या संघीय कार्यपालिका के प्रति उत्तरदायी नहीं होता है।
निर्वाचन आयोग किसी भी सरकार के दबाव में कार्य नहीं करता एवं साथ ही चुनाव-सम्बन्धी सरकार
के किसी सुझाव को भी मानने के लिए यह बाध्य नहीं है।
 
निर्वाचन आयोग के अधिकार एवं कार्य
निर्वाचन आयोग के मुख्य अधिकार एवं कार्यों का वर्णन निम्न प्रकार से किया जा सकता है―
(i) संसद, राज्य विधानमंडलों, राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए मतदाताओं की
सूची तैयार करना।
(ii) विभिन्न चुनावों और उपचुनावों का पर्यवेक्षण करना।
(iii) चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन करना।
(iv) निर्वाचन कार्यक्रम निर्धारित करना; जैसे―नामांकन की तिथि, नामांकन वापस लेने की
तिथि एवं मतदान की तिथि निश्चित करना।
(v) मतदान के लिए नियमों का निर्माण करना, आवश्यक संख्या में मतदान केंद्रों की स्थापना
करना, पर्याप्त संख्या में मतदान अधिकारी की नियुक्ति करना, मतदान के परिणामों की
घोषणा करना।
(vi) राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों एवं मतदाताओं के लिए एक आचार-संहिता बनाना।
(vii) चुनाव-खर्च की सीमा निर्धारित करना और उम्मीदवारों द्वारा प्रस्तुत चुनाव-खर्च के लेखा
का निरीक्षण करना।
(viii) राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय तथा राज्यस्तरीय रूप में मान्यता देना एवं उनके लिए
चुनाव-चिह्न निर्धारित करना।
(ix) अपनी नीति एवं कार्यक्रमों के समुचित प्रसार के लिए राजनीतिक दलों द्वारा रेडियो एवं
टेलीविजन के प्रयोग का समय निर्धारित करना।
(x) विभिन्न चुनाव-चिह्नों की एक सूची प्रसारित करना जो निर्दलीय उम्मीदवारों को आवंटित
किया जा सके।
(xi) राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा भेजे गए निर्वाचन सम्बन्धी विवादों तथा याचिकाओं
का निपटारा करना।
 
प्रश्न 4. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए क्या चुनौतियाँ हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर― भारत में निर्वाचन सम्बन्धी अनेक चुनौतियाँ हैं। उन चुनौतियों का संक्षिप्त विवरण
निम्नांकित है―
(i) राजनीतिक दल ठोस सिद्धांतों पर आधृत नहीं―भारत में अधिकांश राजनीतिक दलों
का गठन ठोस सिद्धांतों पर नहीं हुआ है। अनेक दल संकीर्ण सिद्धांतों पर आधृत हैं एवं
सांप्रदायिकता को प्रोत्साहित करते हैं। प्रत्येक दल में नारेबाजों की संख्या बढ़ती जा रही है
जिससे जनता गुमराह हो जाती है एवं सही समय पर सही निर्णय नहीं ले पाती।
 
(ii) अनुशासन का अभाव―राजनीतिक दलों के लोगों में अनुशासन की कमी भी एक भयंकर
समस्या बन गई है। पार्टी के निर्णय की अवहेलना उसके सदस्यों द्वारा ही किया जाना एवं
नेताओं में मारपीट, कुर्सी, मेज चलनी आम बात हो गई है।
 
(iii) दल-बदल―देश के सामने चुनाव-सम्बन्धी सबसे बड़ी समस्या तो दल-बदल की है।
विभिन्न नेता अपना दल बदलते रहते हैं जिससे राजनीतिक अस्थिरता कायम रहती है।
दल-बदल विरोधी संविधान संशोधन अधिनियम, 1985 के बन जाने से बहुत हद तक
समस्या सुलझने की आशा थी, परन्तु देश में यह समस्या अभी भी बनी हुई है।
 
(iv) राजनीतिक दलों की भरमार―निर्वाचन सम्बन्धी सबसे बड़ी समस्या तो यह है कि देश में
राजनीतिक दलों की भरमार हो गई है। राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक दलों की संख्या थोड़ी है,
परंतु देश में अनेक क्षेत्रीय दलों का गठन हो चुका है। ये छोटे दल वोट कटुवा दल ही
बनकर रह गये हैं।
 
(v) खर्चीला चुनाव―आधुनिक युग में चुनाव खर्चीला हो गया है। उम्मीदवार अपनी जीत के
लिए पानी तरह पैसा बहाता है; अत: गरीब, परंतु योग्य व्यक्ति चुनाव में खड़ा होने की
हिम्मत नहीं कर पाता। लोगों में धन बाँटना, सामान बाँटना आम है। सबसे गलत शराब
बाँटना आम हो गया है।
 
(vi) बूथ-छापामारी―जिस उम्मीदवार के पास ताकत है, बोलबाला है, उसके लोग मतदान
केंद्रों (बूथों) पर छापामारी कर सारे मत अपने पक्ष में डलवाने में समर्थ हो जाते हैं। बूथ पर
मारपीट और संघर्षों की घटना तो आम बात है; कभी-कभी खून-खराबा एवं गोलीकांड
जैसी घटनाएँ भी हो जाती हैं। कई बार चुनाव कराने वाले पदाधिकारी भी आहत हो जाते हैं।
 
(vii) मताधिकार का दुरुपयोग―भारत में अनेक मतदाता मताधिकार का दुरुपयोग करते पाए
जाते हैं। देश में भुखमरी की समस्या इतने बड़े पैमाने पर व्याप्त है कि धन खर्च करके ऐसे
मतदाताओं का मत भी आसानी से खरीद लिया जाता है। जाति, वर्ग, सम्प्रदाय जैसी संकीर्ण
भावनाओं को उभारकर भी मत प्राप्त कर लिए जाते हैं। लोकतंत्रीय व्यवस्था में अधिकांश
लोग जाति, धर्म और अपने संकीर्ण स्वार्थ के आधार पर ही मतदान करते हैं। यही कारण है
कि चुनाव परिणाम पहले से ही अपेक्षित होते हैं।
 
(viii) जाति, धर्म पर टिकट―राजनीतिक दल जाति, धर्म के आधार पर ही टिकट देते हैं। केवल
कुछ दल अपवाद हैं। बहुत-से राजनीतिक दल तो पैसे लेकर टिकट बेचते हैं।
 
                                           ■

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *