UP Board Class 9 Social Science Geography | जलवायु
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 4 जलवायु
अध्याय 4. जलवायु
अभ्यास
NCERT प्रश्न
प्रश्न 1. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनें-
(i) नीचे दिए गए स्थानों में किस स्थान पर विश्व में सबसे अधिक वर्षा होती है?
(क) सिलचर
(ख) चेरापूँजी
(ग) मॉसिनराम
(घ) गुवाहाटी
उत्तर―(ग)
(ii) ग्रीष्म ऋतु में उत्तरी मैदानों में बहने वाली पवन को निम्नलिखित में से क्या कहा जाता
है?
(क) काल वैशाखी
(ख) व्यापारिक पवनें
(ग) लू
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर―(ग)
(iii) निम्नलिखित में से कौन-सा कारण भारत के उत्तर-पश्चिम भाग में शीत ऋतु में होने
वाली वर्षा के लिए उत्तरदायी है?
(क) चक्रवातीय अवदाब
(ख) पश्चिमी विक्षोभ
(ग) मानसून की वापसी
(घ) दक्षिण-पश्चिम मानूसन
उत्तर―(ख)
(iv) भारत में मानसून का आगमन निम्नलिखित में से कब होता है?
(क) मई के प्रारम्भ में
(ख) जून के प्रारम्भ में
(ग) जुलाई के प्रारम्भ में
(घ) अगस्त के प्रारम्भ में
उत्तर―(ख)
(v) निम्नलिखित में से कौन-सी भारत में शीत ऋतु की विशेषता है?
(क) गर्म दिन एवं गर्म रातें
(ख) गर्म दिन एवं ठण्डी रातें
(ग) ठण्डा दिन एवं ठण्डी रातें
(घ) ठण्डा दिन एवं गर्म रातें
उत्तर―(ग)
प्रश्न 2. निम्न प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए―
(i) भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कौन-कौन से कारक हैं?
(ii) भारत में मानसूनी प्रकार की जलवायु क्यों है?
(iii) भारत के किस भाग में दैनिक तापमान अधिक होता है एवं क्यों?
(iv) किन पवनों के कारण मालाबार तट पर वर्षा होती है?
(v) जेट धाराएँ क्या हैं तथा वे किस प्रकार भारत की जलवायु को प्रभावित करती हैं?
(vi) मानसून को परिभाषित कीजिए। मानसून में विराम से आप क्या समझते हैं?
(vii) मानसून को एक सूत्र में बाँधने वाला क्यों समझा जाता है?
उत्तर― (i) बहुत-से ऐसे कारक हैं जो भारत की जलवायु को प्रभावित करते हैं। इनमें से कुछ तो
भारतीय भौगोलिक सीमा के अन्दर ही हैं और कुछ इससे बाहर। इनमें मुख्य कारक
निम्नलिखित हैं―
(a) पश्चिमी विक्षोभ―ये विक्षोभ पूर्वी रोम सागरीय खण्ड के क्षेत्र में उत्पन्न होते हैं और पूर्व
की ओर बढ़ते हुए ईरान तथा पाकिस्तान के ऊपर से होते हुए भारत के क्षेत्रों, विशेषकर
पंजाब, हरियाणा और उत्तर-पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वर्षा करते हैं।
(b) आसपास के क्षेत्रों में वायुदाब की दशाएँ―आसपास के क्षेत्रों; जैसे-पूर्वी अफ्रीका,
ईरान, मध्य एशिया और तिब्बत में विद्यमान वायुदाब की दशाएँ भारत की जलवायु पर बहुत
प्रभाव डालती हैं। जोरदार मानसून अथवा शुष्क मौसम की परिस्थितियाँ इन देशों में विद्यमान
वायुदाब की दशाओं के कारण ही होती हैं।
(c) टाइफून―चीन सागर में उत्पन्न होने वाले टाइफूनों का भी भारत की मौसम सम्बन्धी
दशाओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
(d) वायु-धाराएँ अथवा जेट स्ट्रीम― क्षोभमण्डल की ऊपरी परतों में बहने वाली
वायु-धाराएँ भी भारत की जलवायु सम्बन्धी अवस्थाओं को प्रभावित करती हैं।
(e) उच्चावच―उच्चावच या ऊँचाई का भी किसी स्थान की जलवायु पर बड़ा गहरा प्रभाव
पड़ता है। जितना स्थान ऊँचा होगा उतना ही वह ठण्डा होगा और जितना वह नीचा होगा
उतने ही वह गर्म होगा क्योंकि 165 मीटर की ऊंचाई से तापमान 1°C गिर जाता है।
उदाहरण के रूप में, हम जैसे-जैसे हिमालय पर्वत के ऊँचे भागों की ओर चलते जाएँगे
वैसे-वैसे ऋतु ठण्डी होती जाएगी।
दूसरे, अपनी विशाल ऊँचाई के कारण, हिमालय चीन की ठण्डी हवाओं से भारत को बचाने
में एक बड़े अवरोधक का कार्य कर रहा है। अन्यथा भारत की जलवायु कहीं ठण्डी होती।
इसी प्रकार उच्चावच का वर्षा पर भी बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के रूप में
हिमालय पर्वत मानसून पवनों के लिए भी एक अवरोधक के रूप में कार्य करता है। वह
मानसून पवनों को भारत से बाहर नहीं जाने देता और उन्हें अपनी सारी वर्षा भारत में ही
बरसाने के लिए विवश करता है। यह उच्चावच के अन्तर का ही परिणाम है कि जहाँ
पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के मैदानी भागों में गर्मियों में इतनी तेज गर्मी पड़ रही होती है।
वहाँ इन्हीं के नैनीताल, मसूरी और दार्जिलिंग जैसे ऊँचे भागों में ठण्ड पड़ रही होती है।
इसके अतिरिक्त जब दक्षिण के निचले पहाड़ी भागों में गर्मी पड़ रही होती है तो ऊटी
(Ooty) जैसे स्थानों में ठण्ड होती है। ऐसे ही जब राजस्थान गर्म होता है माउंट आबू ठण्डा
होता है।
(f) स्थिति एवं विस्तार―जैसाकि हम पिछले अध्याय में पढ़ चुके हैं भारत 8°4′ उ० से 37°6′
उ० अक्षांश और 68°7′ से 97°25′ पू० देशान्तर के मध्य स्थित है। तीन ओर से यह समुद्र
द्वारा (बंगाल की खाड़ी, हिन्द महासागर और अरब सागर द्वारा) घिरा हुआ है। भारत का
आकार भी काफी बड़ा है। इन सभी कारकों ने भी भारत की जलवायु को अत्यधिक प्रभावित
किया है―
(क) क्योकि भारत भूमध्य रेखा के निकट स्थित है इसलिए इसकी जलवायु प्राय: गर्म हो गई है।
सिवाय दूर उत्तर-पश्चिम और पहाड़ी भागों के बाकी स्थानों पर इतनी शीत नहीं पड़ती।
(ख) उत्तर में हिमालय के स्थित होने के कारण चीन की ठण्डी हवाओं से भारत की रक्षा हो
सकी है। हिमालय के बिना भारत की जलवायु काफी ठण्डी होती।
(ग) तीन ओर से समुद्र से घिरा होने के कारण भारत के एक बड़े भाग की जलवायु सम हो
गई है। इसके अतिरिक्त समुद्र वाष्पकणों का एक महान स्रोत बन गए हैं जिन पर भारत
की बहुत कुछ वर्षा निर्भर करती है।
(घ) भारत के एक विशाल देश होने के परिणामस्वरूप भारत की जलवायु में विविधता
पायी जाती है। यहाँ एक ही समय में ठण्डे और गर्म दोनों प्रकार के प्रदेश मिल जाते हैं।
(g) मानसून पवनें (The Monsoons)―भारत में जलवायु को प्रभावित करने वाला एक अति
प्रबल कारक मानसून पवनें हैं। यद्यपि समूचे भारत उपमहाद्वीप में तापमान और वर्षा की
परिस्थितियाँ स्थान-स्थान पर भिन्न हैं, तथापि मानसून पवनों का चक्र सारे भारत को एक
सूत्र में बाँधने वाला प्रमुख कारक सिद्ध हुआ है।
(ii) मानसून शब्द अरबी भाषा के ‘मौसम’ से निकला है जिसका अर्थ है―ऋतु (Season)।
इस प्रकार मानसून उन मौसमी हवाओं को कहते हैं जो हवाई-योजना को बिलकुल बदल
देते हैं। शुष्क और गर्म स्थलीय हवाओं के स्थान पर समुद्री और वाष्पकणों से भरी हुई
हवाएँ बदल जाती हैं। ये मानसून पवनें हिन्द महासागर में भूमध्य रेखा को पार करते हो
दक्षिण-पश्चिम दिशा अपना लेती है।
चाहे इन मानसून पवनों का घटनाचक्र या अस्तित्व बहुत पुराना है परन्तु इनकी वास्तविक
प्रकृति का ज्ञान हाल में ही हुआ है। ऋतु ज्ञाताओं ने प्रशान्त महासागर और हिन्द महासागर
से उठने वाली हवाओं में खींचातानी का एक अद्भुत-सा मंजर या नजारा देखा है। इनमें
सदा रस्साकशी चलती रहती है। जब कभी उत्तरी गोलार्द्ध में प्रशान्त महासागर के विषुवतीय
भागों में उच्च दबाव होता है तब हिन्द महासागर के दक्षिणी भागों में दबाव कम होता है
और यह उलट-पलट चलता ही रहता है। इस प्रकार भूमध्य रेखा के आस-पास की हवाएँ,
विभिन्न दिशाओं में आती-जाती रहती हैं। इन हवाओं की अदला-बदली का मानसून पवनों
पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है।
मानसून पवनें प्राय: विषुवतीय प्रदेशों में 20° उत्तरी तथा 20° दक्षिणी अक्षांशों के बीच में
चलती हैं, परन्तु भारतीय उपमहाद्वीप में हिमालय की श्रृंखलाओं के कारण ये हवाएँ सारे
भारतीय उप-महाद्वीप को कोई दो से पाँच महीने तक अपने प्रभाव में लेती हैं और सारा
वातावरण वर्षा का बना देती हैं। भारत में 70% से 90% वर्षा इन्हीं मानसून हवाओं द्वारा ही
होती है। भारतीय उपमहाद्वीप का प्रत्येक भाग, चाहे वह स्थलीय भाग हो या जलीय भाग,
तीन से पाँच किलोमीटर की ऊँचाई तक, इन हवाओं से प्रभावित रहता है।
इन मानसून पवनों के सम्बन्ध में ऋतु सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त करना, इनकी प्रकृति के सम्बन्ध में
जानना तथा इनके कार्य करने के ढंग को जानना अब वैज्ञानिक रूप से सम्भव हो गया है।
ऐसा प्रशान्त महासागर और हिन्द महासागर में दो विशेष स्थानों के दबाव के अन्तर को
जानकर किया जा रहा है। ऐसे दो स्थान पूर्वी प्रशान्त महासागर में ताहिति का है और हिन्द
महासागर में डार्विन की बन्दरगाह है जो ऑस्ट्रेलिया में स्थित है। इन दो स्थानों के दबाव के
अन्तर से ही इन मानसून पवनों की मात्रा और गति का अनुमान लगाया जा सकता है। इस
ज्ञान से अनेक प्रकार के लाभ उपलब्ध हुए हैं। अनिश्चितता, निश्चितता में बदल गई है और
मानसून पवनों द्वारा होने वाली अधिक या कम वृष्टि का अधिक अच्छी तरह मुकाबला
किया जा सकता है।
(iii) भारत के राजस्थान राज्य के थार मरुस्थल में दिन और रात के तापमान में सबसे अधिक
अन्तर पाया जाता है। वहाँ दिन का तापमान 50°C तक पहुँच जाता है परन्तु रात के समय
वह घटकर 0°C और उससे भी अधिक गिर जाता है।
इसका मुख्य कारण यह है कि वहाँ के दिन के मौसम और रात के मौसम में
जमीन-आसमान का अन्तर होता है। दिन के समय जब रेत गरम हो जाती है तो उसका
तापमान उत्तरोत्तर बढ़ता चला जाता है परन्तु रात के समय, भूमि की अपेक्षा रेत जल्दी ठण्डी
हो जाती है और सारा वातावरण उत्तरोत्तर ठण्डा होता चला जाता है। इसलिए थार मरुस्थल
के दैनिक तापमान में बहुत अन्तर आ जाता है। पृथ्वी और जल न जल्दी से गरम होते हैं
और न जल्दी से ठण्डे इसलिए वहाँ के दैनिक तापमान में इतना अन्तर नहीं होता जितना कि
मरुस्थलीय भागों में होता है।
(iv) मालाबार तट (या पश्चिमी तट) पर दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों द्वारा वर्षा होती है
जबकि कोरोमण्डल तट (या पूर्वी तट) पर उत्तर-पूर्वी मानसून पवनों द्वारा वर्षा होती है।
(v) क्षोभमण्डल की ऊपरी परतों में बहने वाली वायु-धाराओं को प्राय: जेट स्ट्रीम के नाम से
पुकारा जाता है क्योंकि उनकी गति बड़ी तेज होती है। इन तेज चलने वाली वायु-धाराओं या
जेट स्ट्रीम का भारत की जलवायु पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है। शरद् ऋतु में पश्चिमी
क्षेत्रों से बहने वाली इन धाराओं द्वारा भारत के पश्चिमी भागों विशेषकर पंजाब और
हिमाचल में थोड़ी-बहुत वर्षा अवश्य हो जाती है। गरम ऋतु में उष्ण कटिबंधीय पूर्वी दिशा
से भारत की ओर आने वाली ये तेज वायु-धाराएँ या जेट स्ट्रीम भारत में दोनों वर्षा और
तूफान का कारण बनती हैं।
(vi) मानसून पवनों की परिभाषा―मानसून शब्द अरबी भाषा के शब्द ‘मौसम’ से निकला है,
जिसका अर्थ है―ऋतु (Season)। इस प्रकार मानसून मौसमी पवनें हैं जो विभिन्न ऋतुओं
में अपनी दिशाएँ बदलती रहती हैं।
मानसून पवनों के लक्षण या मानसून जलवायु की विशेषताएँ―भारत में होने वाली
90% वर्षा ग्रीष्म ऋतु की दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों से होती है और 10% शरद् ऋतु
की उत्तर-पूर्वी मानसून पवनों द्वारा। इन मानसून पवनों के निम्नलिखित हैं―
(a) जैसा कि ऊपर विवरण दिया जा चुका है कि मानसून पवनें बहुत शक्तिशाली और वेगशील
होती हैं। प्रायः उनके साथ गर्जन और बिजली का चमकना भी होता है। वे एक प्रकार से
तूफान के रूप में आती हैं इसलिए उनके आने को ‘मानसून का फटना’ कहते हैं।
(b) तमिलनाडु के पूर्वी तट को छोड़कर शेष भारत में होने वाली अधिकतर वर्षा ग्रीष्म ऋतु
की मानसून पवनों से ही प्राप्त होती है।
(c) यह वर्षा न तो लगातार होती है और न ही नियमित रूप से होती है।
(d) कुल वर्षा भी प्रतिवर्ष एक जैसी नहीं होती। किसी एक वर्ष में मानसून पवनों से वर्षा
की होने वाली मात्रा कम या अधिक इस बात पर निर्भर करती है कि बंगाल की खाड़ी
में बनने वाले निम्न दाब क्षेत्र कितने सबल होते हैं और कितने अन्तर के बाद बनते हैं।
(e) मानसून पवनों से होने वाली वर्षा का वितरण भी समान नहीं होता। कुछ क्षेत्रों में
अत्यधिक वर्षा होती है तो कुछ क्षेत्र बिल्कुल शुष्क रह जाते हैं।
(f) हिमालय पर्वत क्षेत्र में निम्न दाब के क्षेत्र बनने से पर्वतीय क्षेत्र में भारी वर्षा होती है
जिससे मैदानी क्षेत्रों में भयानक बाढ़ें आ जाती हैं या फिर लम्बे समय तक मैदानों में
अनावृष्टि की स्थिति बनी रहती है।
(g) मानसून वर्षा कभी बहुत जल्दी शुरू हो जाती है तो कभी बड़ी देर से। मानसूनी वर्षा में
कभी-कभी बड़ी लम्बी अवधि के कई अन्तराल आ जाते हैं। इसके अतिरिक्त कभी
मानसून पवनें जल्दी लौट जाती हैं और कभी देर तक स्थित रहती हैं। इन सभी कारणों
से कृषि कार्यों का कार्यक्रम बिगड़ जाता है और भारतीय कृषि वर्षा पर निर्भर
जुआ-मात्र बनकर रह जाती है।
मानसून के इन लक्षणों के कारण ही इसे मानसून पवनों की अस्थिर प्रकृति का जुआ कहा
जाता है।
(vii) भारत में जलवायु की विविधता होते हुए भी भारत अपनी जलवायु सम्बन्धी (मानसूनी)
एकता के लिए प्रसिद्ध है। हिमालय पर्वत और मानसून की नियमितता ने भारत की इस
एकता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
उत्तर-पश्चिम से उत्तर-पूर्व तक विस्तृत हिमालय पर्वतमाला एक मौसम सम्बन्धी अवरोधक
दीवार के समान खड़ी है। ये ऊँचे पर्वत सारे देश में उष्ण-कटिबन्धीय जलवायु का प्रभाव
प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए, लगभग सारा वर्ष और विशेष रूप से ग्रीष्म ऋतु में सारे
भारत में तापमान समान रूप से ऊँचा रहता है। हिमालय पर्वत हमारे देश को एक प्रकार से
बन्द बक्से का रूप प्रदान करता है जिसमें मानसून विविध प्रकार की लीलाएँ दिखाती रहती
हैं। इस भौगोलिक ढाँचे में मानसूनी एकता के दर्शन होते हैं जिसमें जीवन की ऋतु लय की
विशेषता है। सामान्य भूमि लक्षण, वनस्पति और प्राणी, कृषि कार्य और लोगों का जीवन इस
ऋतु लय से पूरी तरह प्रभावित है।
इसके अतिरिक्त विशाल भारतीय उप-महाद्वीप में व्याप्त मानसूनी-प्रभाव ने भारत को एक
विशिष्ट प्रकार की एकता प्रदान की है। कुछ अपवादों को छोड़कर भारत का प्रत्येक क्षेत्र
मानसूनी पवनों से वर्षा प्राप्त करता है और वह भी मुख्यत: ग्रीष्म ऋतु में। निःसन्देह यहाँ
कुछ ऐसे स्थान भी हैं जो वर्षा ऋतु में भी पानी के लिए तरसते रहते हैं। इसके अतिरिक्त
भारत में वर्षा 15 जून से 15 सितम्बर तक की अवधि में ही अधिकतर होती है। वर्ष के
अन्य महीने प्राय: सूखे ही रह जाते हैं। यही कारण है कि जल की प्यास इन महीनों में
लगभग सारे भारत में महसूस की जाती है। इस प्रकार मानसूनी पवनों का विचित्र व्यवहार
और अनिश्चितता लगभग सारे देश और यहाँ के लोगों को प्रभावित करती हैं। प्रायः सारे देश
में कभी अतिवृष्टि से बाढ़ का प्रकोप होता है और कभी अनावृष्टि से सूखे का। इसी कारण
मृदा के संरक्षण और जल के साधनों के संरक्षण की समस्या सब जगह विद्यमान है और इस
समस्या का समाधान ढूँढ़ना अनिवार्य बन गया है।
अतः हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि हिमालय और मानसून ने मिलकर भारत की
जलवायु पर आधारित भौगोलिक एकता को बनाए रखा है।
प्रश्न 3. उत्तर-भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा क्यों घटती जाती है?
उत्तर― ग्रीष्म ऋतु में मानसून पवनें बंगाल की खाड़ी और अरब सागर दोनों स्थानों से चलती हैं। ये
मानसून पवनें जो बंगाल की खाड़ी से शुरू होती है ब्रह्मपुत्र की घाटी और असम की पहाड़ियों में
जोरदार वर्षा लाती हैं। (उदाहरणत: चेरापूँजी जहाँ संसार में अधिकतम वर्षा 1,080 सेमी होती है, यहीं
स्थित है।) हिमालय पर्वत के अवरोधों के कारण ये पवनें पश्चिम की ओर मुड़ जाती हैं और गंगा की
घाटी के साथ-साथ ऊपर की ओर बढ़ती हैं। जैसे-जैसे ये पश्चिम की ओर बढ़ती हैं उनमें जलवाष्प
की मात्रा शुष्क होती जाती है और फलस्वरूप वे कम वर्षा लाती हैं। यही कारण है कि कोलकाता में
वर्षा 119 सेमी होती है तो पटना में 105 सेमी, इलाहाबाद में 76 सेमी तथा दिल्ली में केवल 56 सेमी।
दूसरे, पंजाब बंगाल की अपेक्षा समुद्र से काफी दूर है इसलिए भी वहाँ बंगाल के मुकाबले वर्षा कम
होती है।
ग्रीष्म ऋतु में ही मानसून पवनों की एक अन्य शाखा राजस्थान के ऊपर आ पहुँचती है किन्तु अरावली
पर्वत-श्रेणी इन पवनों की समानान्तर दिशा में स्थित है इसलिए यह पर्वत मानसून पवनों को रोक नहीं
पाता और परिणामस्वरूप राजस्थान लगभग शुष्क ही रह जाता है किन्तु जब यही जलवाष्प से भरी हुई
पवनें हिमाचल प्रदेश की पहाड़ियों से टकराती हैं तो भारी वर्षा करती हैं। यहीं पर बंगाल की खाड़ी से
आने वाली मानसून पवनों की दूसरी शाखा भी उनसे मिल जाती है। यही कारण है कि जैसे-जैसे हम
सिन्धु घाटी के साथ-साथ ऊपर की ओर बढ़ते हैं, वर्षा भी क्रमशः बढ़ती जाती है।, उदाहरणतः
राजस्थान शुष्क होता है किन्तु हिमाचल प्रदेश में भारी वर्षा होती है।
प्रश्न 4. कारण बताएँ―
(i) भारतीय उपमहाद्वीप में वायु की दिशा में मौसमी परिवर्तन क्यों होता है?
(ii) भारत में अधिकतर वर्षा कुछ ही महीनों में होती है।
(iii) तमिलनाडु तट पर शीत ऋतु में वर्षा होती है।
(iv) पूर्वी तट के डेल्टा वाले क्षेत्र में प्राय: चक्रवात आते हैं।
(v) राजस्थान, गुजरात के कुछ भाग तथा पश्चिमी घाट का वृष्टि छाया क्षेत्र सूखा प्रभावित
क्षेत्र है।
उत्तर― (i) उत्तर-पूर्वी मानसून हवाओं की दिशा ऋतुवत् विपरीत होने के कारण शरद् ऋतु में
(नवम्बर से अप्रैल तक) उत्तर-पूर्वी मानसून हवाएँ भारत के उत्तर-पूर्व से समुद्र की
ओर चलने लगती हैं परन्तु ग्रीष्म ऋतु के आते ही वे अपनी दिशा बदल लेती हैं और वे
समुद्र से भूमि की ओर चलने लगती हैं। इन उत्तर-पूर्वी हवाओं की दिशा बदलने के
मुख्य कारण इस प्रकार है―
(a) ऋतु के सर्दी से गर्मी में बदलने के कारण इन हवाओं की दिशा में भी अन्तर आ
जाता है।
(b) ग्रीष्म ऋतु में उत्तरी तथा उत्तर-पश्चिमी भारत के विभिन्न इलाकों में कम दबाव
में बनने लगता है, इसलिए अधिक दबाव (अर्थात् समुद्र) के इलाकों से हवाएँ
कम दबाव वाले इलाकों की ओर चलने लगती हैं।
उत्तर-पूर्वी मानसून पवनों की दिशा बदलने का भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर
प्रभाव―
(a) साधारणतया उत्तर-पूर्वी मानसून पवनें जो नवम्बर से अप्रैल के महीनों में चलती
हैं। भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर अर्थात् तमिलनाडु में सर्दियों में कुछ वर्षा करती
हैं परन्तु इन हवाओं की दिशा बदल लेने से भारत का दक्षिण-पूर्वी तट ग्रीष्म ऋतु
में शुष्क रह जाता है।
(b) दूसरे, इन हवाओं की दिशा बदल लेने से भारत के दक्षिण-पूर्वी तटों पर तापमान
बढ़ जाता है।
(ii) भारत में अधिकांश वर्षा केवल जून से सितम्बर तक के चार महीनों में होती है। इन महीनों में
वर्षा पवनें, जिन्हें हम दक्षिण-पश्चिमी पवनें कहते हैं, दो शाखाओं में अरब सागर और
खाड़ी बंगाल से उत्तर-पूर्व की दिशा में बहती हैं क्योंकि ये हवाएँ समुद्र की ओर से आती हैं
इसलिए ये भारत के बहुत-से भागों में वर्षा करती हैं। अरब सागर से उठने वाली पवनें जब
पश्चिमी घाट से टकराती हैं तो वे तटीय भागों में 300 सेमी वर्षा करती हैं। इसी प्रकार खाड़ी
बंगाल से उठने वाली पवनें असम, मेघालय आदि राज्यों में वर्षा करती हैं। मासिनराम
(Mawsynram) जहाँ संसार में सबसे अधिक वर्षा होती है इन्हीं भागों अर्थात् मेघालय में
स्थित है।
यह आगे बढ़ती हुई मानसून पवनें जो भारत में सबसे अधिक वर्षा करती हैं, वे केवल कुछ
महीनों तक सीमित हैं। इसी कारण भारत की अधिकांश वर्षा केवल कुछ महीनों तक (जून
से सितम्बर तक ही) सीमित है।
(iii) (a) जैसाकि हम पहले बता चुके हैं, भारत विशेषकर तमिलनाडु का पूर्वी तट ग्रीष्म ऋतु में
प्रायः शुष्क रहता है क्योंकि अरब सागर से उठने वाली दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनें
पश्चिमी घाट पर तो बहुत वर्षा करती हैं परन्तु पूर्वी तट पर पहुँचते-पहुँचते बिल्कुल
शुष्क हो जाती हैं। इस कारण चेन्नई में ग्रीष्म ऋतु में वर्षा नहीं होती।
(b) इसके विपरीत शीत ऋतु में स्थिति पूरी तरह इसके विपरीत होती है। शीत ऋतु में भारत
की मुख्य भूमि पर उच्च दाब का क्षेत्र होता है जबकि हिन्द महासागर पर निम्न दाब के
कारण पवनें भूमि से सागर की ओर आकृष्ट होती हैं। जब ये शुष्क पवनें बंगाल की
खाड़ी को पार करती हैं तो ये अपने में आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं। तदुपरान्त जब ये
आर्द्र पवनें तमिलनाडु के पूर्वी तट से टकराती हैं, तो पूर्वी तट पर चेन्नई में भरपूर वर्षा
करती हैं। इस प्रकार दक्षिणी भारत विशेषकर तमिलनाडु के पूर्वी तट पर गर्मियों की
अपेक्षा सर्दियों में अधिक वर्षा होती है।
(iv) अक्टूबर और नवम्बर के महीने गर्म ऋतु से शरद् ऋतु में बदलने वाले महीने होते है
इसलिए इन महीनों में वातावरण में बहुत अन्तर आता है। अक्टूबर के आधे पिछले भाग में
उत्तरी भारत के बहुत-से भागों में पारा नीचे गिरने लगता है इसलिए कम दाब की
परिस्थितियाँ जो वहाँ ग्रीष्म ऋतु के कारण थीं वह अब खाड़ी बंगाल की ओर बढ़ने लगती
हैं। ऐसा नवम्बर के महीने में होता है। इसी परिवर्तन के कारण अंडमान समुद्र में चक्रवाती
दबाव बनने लगता है। जब ये विषुवतीय चक्रवात तेजी से भारत के पूर्वी तट की ओर बढ़ने
लगते हैं तो एक तूफानी रूप ले लेते हैं। जब वे गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी के डेल्टाओं
तक पहुँचते हैं तो वे बहुत विनाश का कारण बनते हैं। इनसे जहाँ लाखों रुपयों की सम्पत्ति
नष्ट हो जाती है वहाँ बहुत-से लोग भी इनकी लपेट में आ जाते हैं।
(v) पश्चिमी राजस्थान या थार मरुस्थल में कम वर्षा―पश्चिमी राजस्थान या थार मरुस्थल
में इसलिए कम वर्षा होती है क्योंकि वहाँ अरब सागर से उठने वाली मानसून पवनों को
रोकने वाली कोई रुकावट या पहाड़ नहीं हैं। अरावली पर्वत-श्रेणी हवाओं के समानान्तर
चली गई है इसलिए वह हवाओं को नहीं रोकती और हवाएँ ऊपर से बिना वर्षा किए आगे
चली जाती हैं। दूसरे, ग्रीष्म ऋतु में पश्चिमी राजस्थान या थार मरुस्थल का तापमान इतना
अधिक होता है और कोई वर्षा नहीं करतीं। तीसरे, थार मरुस्थल में वृक्षों का अभाव है
इसलिए ऊपर से जाने वाली हवाएँ वहाँ ठण्डी नहीं हो पातीं और कोई वर्षा नहीं करतीं।
गुजरात तथा पश्चिमी घाट के वृष्टि छाया क्षेत्रों में या आन्तरिक दक्षिणी पठार में कम
वर्षा―गुजरात तथा पश्चिमी घाट के वृष्टिछाया क्षेत्रों या आन्तरिक दक्षिण पठार में इसलिए
वर्षा कम होती है क्योंकि यह भाग वृष्टि छाया में आ जाता है। पश्चिम में पश्चिमी घाट और
पूर्व में पूर्वी घाट वर्षा से लदी हवाओं को पहले ही रोक लेते हैं और जब तक हवाएँ आगे
बढ़ती हैं वे शुष्क हो जाती हैं इसलिए गुजरात तथा पश्चिमी घाट के वृष्टि छाया क्षेत्र या
दक्षिणी पठार के आन्तरिक भाग प्रायः शुष्क रह जाते हैं।
प्रश्न 5. भारत की जलवायु अवस्थाओं की क्षेत्रीय विभिन्नताओं को उदाहरण सहित
समझाएँ।
उत्तर― भारत की जलवायु को मानसून की जलवायु कहा जाता है, परन्तु इस साधारण ढाँचे में कुछ
क्षेत्रीय विषमताएँ भी पाई जाती हैं। ऐसा तापमान, वर्षण, वायुदाब पवनों और आर्द्रता के विभिन्न स्थानों
पर भिन्न-भिन्न होने के कारण है।
भारत की जलवायु में बहुत विषमता पाई जाती है जो निम्नलिखित उदाहरणों से और भी स्पष्ट हो जाती है―
(i) तापान्तर―तापमान का जलवायु पर गहरा प्रभाव पड़ता है। अतः तापमान में अन्तर के
फलस्वरूप अनिवार्य रूप से जलवायु में भी विविधता उत्पन्न हो जाती है। भारत में
राजस्थान और दक्षिण-पश्चिमी पंजाब जैसे ऐसे स्थान भी हैं जहाँ तापमान 55°C तक पहुँच
जाता है। दूसरी ओर जम्मू और कश्मीर में कारगिल के समीप डास जैसे ऐसे स्थान भी हैं
जहाँ तापमान 45°C तक नीचे चला जाता है।
(ii) वर्षावाहिनी पवनों की दिशा―वर्षावाहिनी हवाओं की दिशा का भी किसी स्थान की
जलवायु पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है। अरब सागर से उठने वाली हवाओं की दिशा
क्योंकि दक्षिण-पश्चिम होती है इसलिए उनकी एक शाखा सबसे पहले पश्चिमी घाट से
टकराती है और वहाँ बहुत वर्षा (कोई 250 सेन्टीमीटर वर्षा) करती है। इस प्रकार वहाँ की
जलवायु सुहावनी और सम बन जाती है। ये हवाएँ जब आगे बढ़ती हुई पूर्वी घाट तक
पहुँचती हैं तो वे वाष्पकणों से लगभग खाली हुई होती हैं इसलिए तमिलनाडु में वर्षा बहुत
कम होती हैं। परिणामस्वरूप पश्चिमी घाट की अपेक्षा उसकी जलवायु काफी गर्म होती है।
यह सब कुछ वर्षा करने वाली हवाओं की दिशा का ही परिणाम है।
(ii) वर्षण का रूप―इसी प्रकार वर्षण किस रूप में होता है, इसका भी जलवायु पर प्रभाव
पड़ता है। यदि यह बर्फ के रूप में पड़ेगा या ओलों के रूप में पड़ेगा तो निश्चित रूप में
जलवायु बहुत ठण्डी हो जाएगी। उदाहरण के रूप में, शरद् ऋतु में पश्चिमी दिशा से आने
वाले चक्रवातों, जिन्हें पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) कहते हैं, द्वारा पश्चिमी
भारत के कुछ भागों में वृष्टि होती है। इन चक्रवातों से पंजाब और हरियाणा के मैदानों में तो
थोड़ी-सी वर्षा होती है, परन्तु पश्चिमी हिमालय के कुछ भागों, विशेषकर जम्मू और कश्मीर
एवं हिमाचल प्रदेश में भारी बर्फबारी या हिम-वर्षा होती है। इस प्रकार जम्मू और कश्मीर
तथा हिमाचल प्रदेश में जलवायु पंजाब-हरियाणा के मैदानों की अपेक्षा काफी ठण्डी होती
है। इस प्रकार वृष्टि की प्रकृति का भी जलवायु पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
(iv) वर्षा की मात्रा―वर्षा में अन्तर के फलस्वरूप भी जलवायु में विविधता अनिवार्य रूप से
उत्पन्न हो जाती है। भारत में मासिनराम जैसे कुछ ऐसे स्थान भी हैं जहाँ 1,080 सेमी तक
वार्षिक वर्षा होती है। यह सम्भवतः संसार में अधिकतम वर्षा का स्थान है। दूसरी ओर भारत
में ऐसे स्थान भी हैं, विशेषत: राजस्थान में, जहाँ मुश्किल से साल-भर में 20 सेमी ही वर्षा
होती है। एक अनुमान के अनुसार मासिनराम में एक दिन में इतनी वर्षा हो जाती है जितनी
अरावली पर्वत के पश्चिम में आठ वर्ष में भी नहीं होती। देखा, भारत के विभिन्न भागों में
वर्षा के परिणामस्वरूप जलवायु में कैसी विविधता पाई जाती है।
(v) वर्षा की प्रवृत्ति अर्थात् वर्षा का वस्तुनिष्ठ वितरण―भारत में अधिकतर ऐसे प्रदेश हैं जहाँ
ग्रीष्म ऋतु में वर्षा होती है, परन्तु कुछ ऐसे प्रदेश भी हैं जो इस ऋतु में बिल्कुल शुष्क रह
जाते हैं। इसके विपरीत भारत में कुछ प्रदेश ऐसे भी हैं जहाँ केवल शरद् ऋतु में ही वर्षा
होती है। उदाहरण के रूप में, तमिलनाडु और आन्ध्र प्रदेश के तटीय भागों में केवल शरद्
ऋतु में ही वर्षा होती है; जबकि ग्रीष्म ऋतु में ये भाग बिल्कुल शुष्क रह जाते हैं। इस प्रकार
किस ऋतु में वर्षा होती है, इसका भी जलवायु पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार
तमिलनाडु और आन्ध्र प्रदेश में जब मई से जुलाई के महीनों में काफी गर्मी पड़ती है ठीक
उसी समय भारत के पश्चिमी तटों के साथ लगने वाले प्रदेशों; जैसे-केरल, कर्नाटक,
महाराष्ट्र आदि में जलवायु बड़ी मृदुल और शानदार होती है।
प्रश्न 6. मानसून अभिक्रिया की व्याख्या करें।
उत्तर― छात्र NCERT प्रश्न 2 के (ii) भाग का उत्तर देखें।
प्रश्न 7. शीत ऋतु की अवस्था एवं उसकी विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर― मानसून की विविधता के आधार पर भारत में सम्पूर्ण वर्ष को अग्रलिखित चार ऋतुओं में
बाँटा जा सकता है-
(i) शीत ऋतु, दिसम्बर से फरवरी।
(ii) ग्रीष्म ऋतु, मार्च से मई।
(iii) आगे बढ़ते मानसून की ऋतु, जून से सितम्बर।
(iv) पीछे हटते मानसून की ऋतु, अक्टूबर से नवम्बर।
(i) शीत ऋतु, दिसम्बर से फरवरी―शीत ऋतु लगभग दिसम्बर से फरवरी तक सारे भारत में
जारी रहती है। जनवरी सबसे ठण्डा महीना है। इन दिनों तापमान 10° सेग्रे और 25° सेग्रे के
बीच में घटता-बढ़ता रहता है। उत्तरी मैदान में तापमान 10° सेग्रे से 15° सेग्रे तक रहता है;
जबकि देश के दक्षिणी भागों में यह 25° सेग्रे तक होता है। ठण्डी जलवायु की दशाओं के
कारण उत्तरी मैदान में वायुदाब बढ़ जाता है। ठण्डी शुष्क पवनें उच्च दाब के क्षेत्रों से
विषुवतीय पेटी की निम्न दाब के क्षेत्रों की ओर चलती हैं। इन पवनों की दिशा गंगा के मैदान
में उत्तर-पूर्वी और बंगाल की खाड़ी पर उत्तर-पश्चिमी हो जाती है। इस ऋतु में केवल दो
क्षेत्रों में ही वर्षा होती है―पहले भारत का उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र जहाँ भूमध्यसागर से उठने
वाली पवनें वर्षा लाती हैं और दूसरे, तमिलनाडु के तटीय क्षेत्र जहाँ उत्तर-पूर्व से आने वाली
पवनें, जो बंगाल की खाड़ी से होकर आती हैं, वर्षा लाती हैं। देश के अन्य भागों में मौसम
सुहावना, आकाश निर्मल और धूप निखरी हुई होती है।
(ii) ग्रीष्म ऋतु, मार्च से मई―इस अवधि में गर्मी की पट्टी तेजी से दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ती
है। मार्च, अप्रैल और मई में सर्वोच्च तापमान दक्कन के पठार में 38° सेग्रे और गुजरात भारत में
43° सेग्रे और उत्तर-पश्चिमी भारत में 48° सेग्रे होता है। मई में ऊँचे तापमान के कारण थार के
मरुस्थल से छोटा नागपुर तक के लम्बे-चौड़े क्षेत्र में वायुदाब कम हो जाता है। इस कम दाब के
कारण नमी वाली हवाएँ अरब सागर से इस कम दाब वाले क्षेत्र की ओर बढ़ती हैं और
परिणामस्वरूप राजमहल और छोटा नागपुर की पहाड़ियों में, जो सतपुड़ा और विन्ध्याचल
पर्वत-श्रेणी के बीच में स्थित हैं, 150 सेमी के लगभग वर्षा करती है।
केरल और पश्चिमी घाट पर भी पूर्वी मानसून पवनों के कारण छीटें पड़ती हैं। असम और
बंगाल में भी शाम के समय गरज के साथ वर्षा होती है।
(iii) आगे बढ़ते मानसून की ऋतु, जून से सितम्बर―यह ऋतु जून से सितम्बर मास तक
होती है। इस ऋतु में दोनों अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी से मानसून पवनें दो शाखाओं
में भारत के उत्तरी भागों की ओर चलती हैं। इनके द्वारा प्राय: सारे उत्तरी भाग में खूब वर्षा
होती है। ये नमी वाली हवाएँ महासागरीय उच्च दाब वाले क्षेत्र (अर्थात् समुद्र) की ओर से
निम्न दाब वाले क्षेत्र (अर्थात् स्थल) की ओर चलती हैं तथा खूब वर्षा करती हैं। अरब
सागरीय शाखा पश्चिमी तट पर खूब वर्षा (कोई 300 सेमी) करती हैं, परन्तु जैसे-जैसे
हवाएँ उत्तर की ओर आगे बढ़ती हैं, कम वर्षा करती हैं। इस प्रकार कच्छ की खाड़ी में इन
हवाओं से केवल 40 सेमी ही वर्षा होती है। खाड़ी बंगाल की शाखा असम की पहाड़ियों में
खूब वर्षा (चेरापूंजी में 1,080 सेमी से अधिक) करती हुई जब पश्चिम की ओर बढ़ती हैं
तब वर्षा की मात्रा कम होती जाती है। इस प्रकार इन हवाओं द्वारा कलकत्ता में 119 सेमी,
इलाहाबाद में 76 सेमी और दिल्ली में 56 सेमी वर्षा होती है। इन मानसून पवनों द्वारा
आवश्यकता से अधिक वर्षा बाढ़ का कारण बन जाती है और आवश्यकता से कम वर्षा
सूखे का कारण बन जाती है। इस प्रकार भारत की वर्षा को ‘मानसून पवनों का जुआ’ कहा
जाता है।
(iv) पीछे हटते मानसून की ऋतु, अक्टूबर से नवम्बर―यह ऋतु अक्टूबर से नवम्बर मास
तक होती है। इस समय मानसून पवनें वापस चलना आरम्भ कर देती हैं। बंगाल की खाड़ी
से ऊपर उड़ती हुई ये पवनें पूर्वी तट की ओर बढ़ती हैं तथा वहाँ खूब वर्षा करती हैं।
इसलिए तमिलनाडु में अधिकतम वर्षा इन्हीं प्रत्यावर्तित मानसून पवनों से होती है। इस ऋतु
में होने वाली वर्षा तथा इनका वितरण निश्चित तथा समान नहीं होता।
प्रश्न 8. भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा एवं उसकी विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर― छात्र NCERT प्रश्न 2 के (vi) भाग का उत्तर देखें।
मानचित्र कौशल
प्रश्न 1. भारत के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित को दर्शाएँ―
(i) 400 सेमी० से अधिक वर्षा वाले क्षेत्र
(ii) 20 सेमी० से कम वर्षा वाले क्षेत्र
(iii) भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून की दिशा
उत्तर― (i) और (ii)
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. रबी की फसलों के लिए अत्यधिक लाभदायक वर्षा को…….कहा जाता है।
(क) महावट
(ख) आम्र-वर्षा
(ग) मानसून प्रस्फोट
(घ) अक्टूबर की गर्मी
उत्तर―(क) महावट
प्रश्न 2. पश्चिम बंगाल में तूफानों को……….कहा जाता है।
(क) कोरिऑलिस बल
(ख) काल वैशाखी
(ग) पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभ
(घ) जेट धाराएँ
उत्तर―(ख) काल वैशाखी
प्रश्न 3. किस ऋतु में आसमान प्रायः साफ रहता है, तापमान तथा आर्द्रता कम रहते हैं और
मन्द हवाएँ चलती है? तापमान दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ने पर घटता जाता है?
(क) बढ़ता मानसून (वर्षा ऋतु)
(ख) ग्रीष्म ऋतु (गर्मी)
(ग) शीत ऋतु (सर्दी)
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर―(ग) शीत ऋतु (सर्दी)
प्रश्न 4. सम जलवायु कहाँ पाई जाती है?
(क) सागर तट के पास
(ख) सागर तट से दूर
(ग) महाद्वीपों/देशों के आंतरिक हिस्सों में
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर―(क) सागर तट के पास
प्रश्न 5. किन क्षेत्रों में भूमध्यसागर से उत्पन्न होने वाले अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय
तूफानों को पश्चिमी विक्षोभ कहा जाता है?
(क) भारत
(ख) पाकिस्तान
(ग) अफगानिस्तान एवं नेपाल
(घ) ये सभी
उत्तर―(घ) ये सभी
प्रश्न 6. उत्तर भारत में शीत ऋतु का प्रारम्भ कब होता है?
(क) मार्च से
(ख) नवंबर के मध्य से
(ग) अक्टूबर से
(घ) जून के प्रारम्भ से
उत्तर―(ख) नवंबर के मध्य से
प्रश्न 7. भारत में जलवायु तथा मौसम को नियंत्रित करने वाले कारक हैं―
(क) वायु दाब एवं पवन तंत्र
(ख) कोरिऑलिस बल तथा ऊपरी वायु परिसंचरण
(ग) पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभ
(घ) ये सभी
उत्तर―(घ) ये सभी
प्रश्न 8. आई०टी०सी०जेड० का पूरा नाम क्या है?
(क) भारतीय उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र
(ख) अंत:उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र
(ग) अंत:उष्णकटिबंधीय जलवायु क्षेत्र
(घ) अंत:समशीतोष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र
उत्तर―(ख) अंत:उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र
प्रश्न 9. भारत में मानसून का आगमन कब होता है?
(क) जून के प्रारम्भ में
(ख) अगस्त में
(ग) सितंबर में
(घ) अक्टूबर के प्रारम्भ में
उत्तर―(क) जून के प्रारम्भ में
प्रश्न 10. कौन-से राज्यों का समूह आम्र वर्षा से संबंधित है?
(क) केरल तथा जम्मू-कश्मीर
(ख) गुजरात व राजस्थान
(ग) केरल तथा कर्नाटक
(घ) कर्नाटक तथा पश्चिम बंगाल
उत्तर―(ग) केरल तथा कर्नाटक
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. भारत में सबसे अधिक वर्षा कहाँ और क्यों होती है?
उत्तर― भारत में सबसे अधिक वर्षा मॉसिनराम में होती है जो भारत में ही नहीं विश्व में सबसे
अधिक वर्षा वाला स्थान है। यह स्थान गारो, खासी और जैतिया जैसी तीन पहाड़ियों से तीन ओर से
घिरा हुआ है जिसके कारण बंगाल की खाड़ी से चलने वाली मानसूनी पवनें तीनों पहाड़ियों से
टकराकर काफी वर्षा कराती हैं।
प्रश्न 2. एलनीनो क्या है?
उत्तर― ठंडी पेरू जलधारा के स्थान पर अस्थायी तौर पर गर्म जलधारा के विकास को एलनीनो का
नाम दिया गया है। एलनीनो स्पैनिश शब्द है, जिसका अर्थ होता है-बच्चा जो कि बे क्राइस्ट को व्यक्त
करता है क्योंकि यह धारा क्रिसमस के समय बहना शुरू करती है। एलनीनो की उपस्थिति समुद्र की
सतह के तापमान को बढ़ा देती है तथा उस क्षेत्र में व्यापारिक पवनों को शिथिल कर देती है।
प्रश्न 3. अंतःउष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र क्या है?
उत्तर― ये विषुवतीय अक्षांशों में विस्तृत गर्त एवं निम्न दाब का क्षेत्र होता है। यहीं पर उत्तर पूर्वी एवं
दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनें आपस में मिलती हैं। यह अभिसरण क्षेत्र विषुवत वृत्त के लगभग
समानांतर होता है, लेकिन सूर्य की आभासी गति के साथ-साथ यह उत्तर या दक्षिण की ओर खिसकता है।
प्रश्न 4. जलवायु और मौसम का अर्थ बताइए।
उत्तर― जलवायु―एक विशाल क्षेत्र में लंबी समयावधि (30 वर्ष से अधिक) में मौसम की
अवस्थाओं तथा विविधताओं का कुल योग ही जलवायु है।
मौसम―मौसम एक विशेष समय में एक क्षेत्र के वायुमंडल की अवस्था को बताता है।
प्रश्न 5. पश्चिमी विक्षोभ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर― भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान एवं नेपाल में भूमध्य सागर से उत्पन्न होने वाले अतिरिक्त
उष्णकटिबंधीय तूफानों को पश्चिमी विक्षोभ कहा जाता है जो सर्दियों के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप के
उत्तर पश्चिमी भागों में अचानक वर्षा एवं हिमपात का कारण बनते हैं।
प्रश्न 6. कोरिऑलिस बल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर― पृथ्वी के घूर्णन के कारण उत्पन्न आभासी बल को कोरिऑलिस बल कहते हैं। इस बल के
कारण पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर विक्षेपित हो जाती है। इसे
फेरेल का नियम भी कहा जाता है।
प्रश्न 7. वृष्टि छाया क्षेत्र और आम्र वर्षा का अर्थ बताइए।
उत्तर― वृष्टि छाया क्षेत्र―वह क्षेत्र होता है जो किसी पर्वत की पवनविमुखी ढलान पर पड़ता है।
आम्र वर्षा―तटीय कर्नाटक एवं केरल में बायीं से पूर्व मानसूनी वर्षा होती है जिसके कारण आम
जल्दी पक जाते हैं और प्राय: उसे आम्र वर्षा कहा जाता है।
प्रश्न 8. मानसून प्रस्फोट से क्या तात्पर्य है?
उत्तर― आर्द्रतायुक्त पवनों के जोरदार गर्जन व बिजली चमकने के साथ अचानक आगमन को
मानसून प्रस्फोट के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 9. ‘काल वैशाखी’ किसे कहा जाता है?
उत्तर― मई महीने में मौसम में कभी-कभी तीव्र हवाओं के साथ गरज वाली मूसलाधार वर्षा भी होती
है इसके साथ प्रायः हिमवृष्टि भी होती है। वैशाख के महीने में होने के कारण पश्चिम बंगाल में इसे
काल वैशाखी कहा जाता है।
प्रश्न 10. क्वार की उमस से क्या तात्पर्य है?
उत्तर― मानसून की वापसी होने से आसमान साफ एवं तापमान में वृद्धि हो जाती है। दिन का
तापमान उच्च होता है जबकि रातें ठंडी एवं सुहावनी होती हैं। स्थल अभी भी आर्द्र होता है। उच्च
तापमान एवं आर्द्रता वाली अवस्था के कारण दिन का मौसम असा हो जाता है। इसे सामान्यतः ‘क्वार
की उमस’ के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 11.दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनें किन्हें कहा जाता है?
उत्तर― गर्मी के दिनों में वायु की दिशा पूरी तरह से परिवर्तित हो जाती है। वायु दक्षिण में स्थित हिंद
महासागर के उच्च दाब वाले क्षेत्र से दक्षिण पूर्वी दिशा में बहते हुए विषुवत् वृत्त
पार कर दाहिनी
ओर मुड़ते हुए भारतीय उपमहाद्वीप पर स्थित निम्न दाब की ओर बहने लगती है। इन्हें दक्षिण-पश्चिम
मानसून पवनों के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 12.महाद्वीपीय अवस्था किसे कहते हैं?
उत्तर― समुद्र का जलवायु पर समकारी प्रभाव पड़ता है, जैसे-जैसे समुद्र से दूरी बढ़ती है यह
प्रभाव कम होता जाता है एवं लोग विषम मौसमी अवस्थाओं को महसूस करते हैं। इसे महाद्वीपीय
अवस्था कहते हैं।
प्रश्न 13.निमज्जन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर― जलवायु विज्ञान में यह हवा की नीचे जाने वाली गति है। भूगर्भ विज्ञान में इसका अभिप्राय
धरातल की सतह के नीचे धंसने की क्रिया से है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. दक्षिण दोलन किसे कहते हैं? इसकी एक प्रमुख विशेषता का उल्लेख कीजिए।
उत्तर― प्रायः जब उष्णकटिबंधीय पूर्वी दक्षिण प्रशांत महासागर में उच्च वायुदाब होता है तो
उष्णकटिबंधीय पूर्वी हिन्द महासागर में निम्न वायुदाब होता है। किन्तु कुछ निश्चित वर्षों में वायुदाब
परिस्थितियाँ विपरीत हो जाती हैं और पूर्वी प्रशांत महासागर में पूर्वी हिन्द महासागर की अपेक्षाकृत
निम्न वायुदाब होता है। दाब की अवस्था में इस नियतकालिक परिवर्तन की दक्षिणी दोलन के नाम से
जाना जाता है। दक्षिणी दोलन से जुड़ी एक महत्त्वपूर्ण विशेषता एल नीनो है। यह एक गर्म समुद्री
जलधारा है, जो पेरू की ठंडी धारा के स्थान पर प्रत्येक 2 या 5 वर्ष के अंतराल में पेरू तट से होकर
बहती है। दाब की अवस्था में परिवर्तन का संबंध एलनीनो से है।
प्रश्न 2. “हिमालय के समकारी प्रभाव के बावजूद तापमान, आर्द्रता एवं वर्षण में भिन्नता
बनी रहती है।” उदाहरण सहित व्याख्या करें।
उत्तर― उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में समुद्र के समकारी प्रभाव के बावजूद तापमान, आर्द्रता एवं
वर्षण में क्षेत्रीय भिन्नता बनी रहती है। ऐसा किसी स्थान की जलवायु को प्रभावित करने वाले छ:
कारकों के कारण हैं। ये हैं―अक्षांश, तुंगता, ऊँचाई, वायु दाब एवं पवन तंत्र, समुद्र से दूरी,
महासागरीय धाराएँ तथा उच्चावच लक्षण।
उदाहरणतः, गर्मियों में राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में, उत्तर-पश्चिमी भारत में तापमान 50°C होता है,
जबकि उसी समय देश के उत्तर में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में तापमान 20°C हो सकता है। सर्दियों
की किसी रात में जम्मू-कश्मीर के द्रास में तापमान -45 डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है, जबकि
तिरुवनंतपुरम में यह 22 डिग्री सेल्सियस हो सकता है।
प्रश्न 3. सर्दियों के दौरान भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में वर्षा का क्या कारण है?
उत्तर― शीत ऋतु के दौरान, उत्तर पूर्वी व्यापारिक पवनें प्रवाहित होती हैं। ये स्थल से समुद्र की ओर
बहती हैं इसलिए देश के अधिकतर भागों में मौसम शुष्क होता है। इस कारण मैदानों में शीतकालीन
वर्षा होती है, जबकि पहाड़ों में हिमपात होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस क्षेत्र में पवनें सागर से
समुद्र की ओर बहती हैं जो अपने साथ आर्द्रता लेकर आती हैं।
प्रश्न 4. भारत में उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय दोनों प्रकार की जलवायु पाई
जाती है। क्यों?
उत्तर― कर्क रेखा देश के मध्य भाग, पश्चिम में कच्छ के रन से लेकर पूर्व में मिजोरम, से होकर
गुजरती है। देश का लगभग आधा भाग कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित है, जो उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में
आता है। कर्क रेखा के उत्तर में स्थित शेष भाग उपोष्ण कटिबंध में आता है। इसलिए भारत की जलवायु
में उष्ण कटिबंधीय जलवायु एवं उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु दोनों की विशेषताएँ पाई जाती हैं। इसलिए
भारत में पूरे वर्ष उच्च तापमान बना रहता है और अधिकतर वर्षा गर्मियों में होती है। इस प्रकार की
जलवायु मुख्यत: दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया में पाई जाती है।
प्रश्न 5. भारत के पूर्वी तटीय क्षेत्र में क्या संभावित खतरे हैं?
उत्तर― पूर्वी तट के डेल्टा वाले क्षेत्र में प्राय: चक्रवात आते हैं। ऐसा इस कारण होता है क्योंकि
अंडमान सागर पर पैदा होने वाला चक्रवातीय दबाव मानसून एवं अक्तूबर-नवंबर के दौरान उपोष्ण
कटिबंधीय जेट धाराओं द्वारा देश के आंतरिक भागों की ओर स्थानांतरित कर दिया जाता है।
ये चक्रवात विस्तृत क्षेत्र में भारी वर्षा करते हैं।
ये उष्णकटिबंधीय चक्रवात प्रायः विनाशकारी होते हैं।
गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों के डेल्टा प्रदेशों में अक्सर चक्रवात आते हैं, जिसके कारण बड़े
पैमाने पर जान एवं माल की क्षति होती है।
कभी-कभी ये चक्रवात उड़ीसा, पश्चिम बंगाल एवं बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों में भी पहुँच जाते हैं।
कोरोमंडल तट पर अधिकतर वर्षा इन्हीं चक्रवातों तथा अवदाबों से होती है।
प्रश्न 6. “मानसून को उसकी अनिश्चितताओं के लिए जाना जाता है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर― मानसून को उसकी अनिश्चितताओं के लिए जाना जाता है। जब यह एक हिस्से में बाढ़ का
कारण बनता है, उसी समय यह किसी दूसरे भाग में अकाल का कारण बन सकता है। वर्षा का वितरण
भारतीय भूदृश्य में असमान है। मौसम के प्रारंभ में पश्चिम घाटों की पवनमुखी ढालों पर भारी वर्षा होती
है जो कि 250 सेमी से अधिक होती है। दूसरी ओर दक्कन के पठार के वृष्टि छाया क्षेत्रों तथा मध्य
प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, लेह में बहुत कम वर्षा होती है। देश के उत्तर-पूर्वी हिस्से में सर्वाधिक वर्षा
होती है।
प्रश्न 7. लौटती हुई मानसून के समय मौसम तथा इसकी विशेषताओं का उल्लेख
कीजिए।
उत्तर― लौटती हुई मानसून के समय मौसम तथा इसकी विशेषताएँ इस प्रकार हैं―
(i) यह अक्तूबर तथा नवंबर के मध्य होता है।
(ii) यह बरसात के गर्म मौसम से सर्दी के शुष्क मौसम में बदलाव का समय है।
(iii) दिन में आर्द्रता अधिक व तापमान उच्च होता है जबकि रातें ठण्डी और सुहानी होती हैं। इसे
सामान्यत: ‘क्वार की उमस’ के नाम से जाना जाता है।
(iv) अक्तूबर के उत्तरार्द्ध में, विशेषकर उत्तरी भारत में तापमान तेजी से गिरने लगता है। नवंबर
के प्रारंभ में, उत्तर-पश्चिम भारत के ऊपर निम्न दाब वाली अवस्था बंगाल की खाड़ी पर
स्थानांतरित हो जाती है। यह स्थानांतरण चक्रवाती निम्न दाब से संबंधित होता है, जोकि
अंडमान सागर के ऊपर उत्पन्न होता है।
(v) भारत के पूर्वी तट के डेल्टाई क्षेत्र में चक्रवात सामान्यत: आते रहते हैं। गोदावरी, कृष्णा एवं
कावेरी नदियों के सघन आबादी वाले डेल्टा प्रदेशों में अक्सर चक्रवात आते हैं, जिसके
कारण बड़े पैमाने पर जाने एवं माल की क्षति होती है।
(vi) कभी-कभी ये चक्रवात उड़ीसा (ओडिशा), पश्चिम बंगाल एवं बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों में
भी पहुँच जाते हैं। कोरोमंडल तट पर अधिकतर वर्षा इन्हीं चक्रवातों तथा अवदाबों से होती है।
प्रश्न 8. वृष्टि छाया क्षेत्र से आप क्या समझते हैं?
उत्तर― वृष्टि छाया क्षेत्र वह क्षेत्र होता है जो किसी पर्वत की पवनविमुखी ढलान पर पड़ता है। ऊँचे
पर्वत ठण्डी व गर्म पवनों के लिए अवरोध का काम करते हैं और यदि वे वर्षा करने वाली पवनों के
रोकने के लिए पर्याप्त ऊँचे हों तो वे वर्षा भी ला सकते हैं। पर्वत की पवनविमुखी ढाल सूखी रह जाती
हैं। उदाहरणतः पश्चिमी घाटों का पूर्वी ढाल वृष्टि छाया क्षेत्र है।
प्रश्न 9. निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट कीजिए―
(क) मौसम एवं जलवायु
(ख) दक्षिण-पश्चिमी मानसून और उत्तर-पूर्वी मानसून
उत्तर― (क) मौसम एवं जलवायु में निम्नलिखित अंतर हैं―
(ख) दक्षिण-पश्चिमी मानसून और उत्तर-पूर्वी मानसून में निम्नलिखित अंतर हैं―
प्रश्न 10. ग्रीष्म ऋतु की कुछ महत्त्वपूर्ण विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर― ग्रीष्म ऋतु मार्च में प्रारंभ होती है तथा मई तक रहती है। इसकी कुछ महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ
इस प्रकार हैं―
(i) लू―ये धूल भरी गर्म एवं शुष्क पवनें होती हैं, जो कि दिन के समय भारत के उत्तर एवं
उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में चलती हैं। कभी-कभी ये देर शाम तक जारी रहती हैं। इस हवा का
सीधा प्रभाव घातक भी हो सकता है।
(ii) धूल भरी आँधियाँ―उत्तरी भारत में मई महीने के दौरान सामान्यतः धूल भरी आँधियाँ
आती हैं। ये आँधियाँ अस्थायी रूप से आराम पहुँचाती हैं, क्योंकि ये तापमान को कम कर
देती हैं तथा अपने साथ ठंडी समीर एवं हल्की वर्षा लाती हैं।
(iii) गरज वाली मूसलाधार वर्षा―ग्रीष्म ऋतु के दौरान पौसम में कभी-कभी तीव्र हवाओं के
साथ गरज वाली मूसलाधार वर्षा भी होती है, इसके साथ प्रायः हिमवृष्टि भी होती है।
प्रश्न 11. मानसून के आगमन की विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर― मानसून के आगमन की विशेषताएँ इस प्रकार हैं―
(i) इसका प्रारंभ जून में होता है।
(ii) जून के प्रारंभ में उत्तरी मैदानों में निम्न दाब की अवस्था तीव्र हो जाती है। यह दक्षिणी
गोलार्द्ध की व्यापारिक पवनों को आकर्षित करता है। ये अपने साथ इस महाद्वीप में बहुत
अधिक मात्रा में नमी लाती हैं।
(iii) मौसम के प्रारंभ में पश्चिम घाट के पवनमुखी भागों में भारी वर्षा लगभग 250 सेमी से
अधिक होती है। दक्कन का पठार एवं मध्य प्रदेश के कुछ भागों में भी वर्षा होती है, यद्यपि
ये क्षेत्र वृष्टि छाया क्षेत्र में आते हैं।
(iv) इस मौसम की अधिकतर वर्षा खासी पहाड़ी के दक्षिणी शृंखलाओं में स्थित मासिनराम
विश्व में सबसे अधिक औसत वर्षा प्राप्त करता है।
(v) मानसून से संबंधित एक अन्य परिघटना है, वर्षा में विराम’। वर्षा में विराम का अर्थ है कि
मानसूनी वर्षा एक समय में कुछ दिनों तक ही होती है। मानसून में आने वाले ये विराम
मानसूनी गर्त की गति से संबंधित होते हैं।
(vi) मानसून को इसकी अनिश्चितता के कारण जाना जाता है। जब यह एक हिस्से में बाढ़ का
कारण बनता है, उसी समय यह किसी दूसरे भाग में अकाल का कारण बन सकता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. किसी क्षेत्र की जलवायु को नियंत्रित करने वाले छः प्रमुख कारकों पर चर्चा
कीजिए।
उत्तर― किसी भी क्षेत्र की जलवायु को नियंत्रित करने वाले छ: प्रमुख कारक हैं। ये हैं―अक्षांश,
तुंगता (ऊँचाई), वायुदाब एवं पवन तंत्र, समुद्र से दूरी, महासागरीय धाराएँ तथा उच्चावच लक्षण।
1. अक्षांश―
● पृथ्वी की गोलाई के कारण, इसे प्राप्त सौर ऊर्जा की मात्रा अक्षांशों के अनुसार अलग-अलग
होती है।
● तापमान विषुवत् वृत्त से ध्रुवों की ओर घटता जाता है।
● कर्क वृत्त देश के मध्य भाग, पश्चिम में कच्छ के रन से लेकर पूर्व में मिजोरम से होकर
गुजरती है। देश का लगभग आधा भाग कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित है, जो उष्ण कटिबंधीय
क्षेत्र में आता है। कर्क रेखा के उत्तर में स्थित शेष भाग उपोष्ण कटिबंध में आता है। इसलिए
भारत की जलवायु में उष्ण कटिबंधीय जलवायु एवं उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु दोनों की
विशेषताएँ पाई जाती हैं।
2. ऊँचाई―
● भारत के उत्तर में पर्वत हैं जिनकी औसत ऊँचाई लगभग 6,000 मीटर है। भारत का तटीय
क्षेत्र भी विशाल है, जहाँ अधिकतम ऊँचाई लगभग 30 मीटर है।
● हिमालय पर्वत मध्य एशिया से आने वाली सर्द हवाओं को इस उपमहाद्वीप में आने से रोकता
है। यही कारण है कि मध्य एशिया की अपेक्षा भारत में ठंड अपेक्षाकृत कम होती है।
● जैसे-जैसे हम पृथ्वी की सतह से ऊँचे स्थानों की ओर जाते हैं, वायुमंडल विरल होता जाता
है तथा तापमान गिरने लगता है इसलिए पहाड़ियाँ गर्मियों में अपेक्षाकृत ठण्डी होती हैं।
3. वायुदाब एवं पवनें― किसी भी क्षेत्र का वायुदाब एवं उसकी पवनें उस क्षेत्र की अक्षांशीय स्थिति एवं
ऊँचाई पर निर्भर करती हैं। इस प्रकार यह तापमान एवं वर्षण के पैटर्न को भी प्रभावित करती है।
4. सागरतट से दूरी―जैसे-जैसे सागरतट से दूरी बढ़ती है, इसका समकारी प्रभाव घटने लगता है।
इस प्रकार यह तापमान तथा वर्षण के पैटर्न को प्रभावित करती है। इसे महाद्वीपीय अवस्था (गर्मी
में बहुत अधिक गर्मी एवं सर्दी में बहुत अधिक ठंड) कहते हैं।
5. महासागरीय धाराएँ―सागर की ओर से आने वाली पवनों के साथ-साथ महासागरीय धाराएँ भी तटीय
क्षेत्रों की जलवायु की प्रभावित करते हैं। उदाहरणतः कोई भी तटीय क्षेत्र जहाँ गर्म या ठंडी जलधाराएँ
बहती हैं और वायु की दिशा समुद्र से तट की ओर हो, तब वह तट गर्म या ठंडा हो जाएगा।
6. उच्चावच―ऊँचे पर्वत ठंडी अथवा गर्म वायु को अवरोधित करते हैं। यदि उनकी ऊँचाई इतनी हो
कि वे वर्षा लाने वाली वायु के रास्तों को रोकने में सक्षम होते हैं, तो ये उस क्षेत्र में वर्षा का कारण
भी बन सकते हैं। पर्वतों के पवनविमुख ढाल अपेक्षाकृत सूखे रहते हैं।
प्रश्न 2. किसी विशेष स्थान की जलवायु को वायुदाब तथा पवन तंत्र किस प्रकार प्रभावित
करते हैं? इसमें कौन-से अन्य कारक सहयोग देते हैं?
उत्तर― पवनें उच्च वायुदाब क्षेत्र से निम्न वायु दाब क्षेत्र की ओर बहती हैं। सर्दियों में हिमालय के
उत्तर में उच्च वायुदाब क्षेत्र बना होता है। इसलिए ठण्डी शुष्क पवनें इस क्षेत्र से महासागरों की ओर
निम्न दाब क्षेत्रों की ओर दक्षिण दिशा में बहती हैं। गर्मियों में भीतरी एशिया तथा उत्तर-पश्चिमी भारत
में निम्न वायुदाब क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप, वायु दक्षिण में स्थित हिंद महासागर
के उच्च दाब वाले क्षेत्र से दक्षिण-पूर्वी दिशा में बहते हुए विषुवत् वृत्त को पार कर दाहिनी ओर मुड़ते
हुए भारतीय उपमहाद्वीप पर स्थित निम्न दाब की ओर बहने लगती हैं। इन्हें दक्षिण-पश्चिम मानसून
पवनों के नाम से जाना जाता है। ये पवनें कोष्ण महासागरों के ऊपर से बहती हैं, नमी ग्रहण करती है
तथा भारत की मुख्य भूमि पर वर्षा करती हैं। इस प्रदेश में, ऊपरी वायु परिसंचरण पश्चिमी प्रवाह के
प्रभाव में रहता है। भारत में होने वाली वर्षा मुख्यत: दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों के कारण होती हैं।
मानसून की अवधि 100 से 120 दिन के बीच होती है। इसलिए देश में होने वाली अधिकतर वर्षा कुछ
ही महीनों में केंद्रित हैं।
(i) कोरिऑलिस बल―भारतीय उपमहाद्वीप में पवनों की दिशा में मौसम के अनुसार परिवर्तन
कोरिऑलिस बल के कारण होता है। भारत उत्तर पूर्वी पवनों के क्षेत्र में स्थित है। ये पवनें
उत्तरी गोलार्द्ध के उपोष्ण कटिबंधीय उच्च दाब पट्टियों से उत्पन्न होती हैं। ये दक्षिण की
ओर बहती, कोरिऑलिस बल के कारण दाहिनी ओर विक्षेपित होकर विषुवतीय निम्न दाब
वाले क्षेत्रों की ओर बढ़ती हैं।
(ii) जेट धाराएँ―क्षोभमंडल में अत्यधिक ऊँचाई पर एक संकरी पट्टी में स्थित हवाएँ होती
हैं। इनकी गति गर्मी में 110 किमी प्रति घंटा एवं सर्दी में 184 किमी प्रति घंटा के बीच
विचलन करती है। हिमालय के उत्तर की ओर पश्चिमी जेट धाराओं की गतिविधियों एवं
गर्मियों के दौरान भारतीय प्रायद्वीप पर बहने वाली पश्चिमी जेट धाराओं की उपस्थिति
मानूसन को प्रभावित करती है। प्राय: जब उष्णकटिबंधीय पूर्वी-दक्षिण प्रशांत महासागर में
उच्च वायुदाब होता है तो उष्णकटिबंधीय पूर्वी हिन्द महासागर में निम्न वायुदाब होता है।
किन्तु कुछ निश्चित वर्षों में वायुदाब परिस्थितियाँ विपरीत हो जाती हैं और पूर्वी प्रशांत
महासागर में पूर्वी हिन्द महासागर की अपेक्षाकृत निम्न वायुदाब होता है। दाब की अवस्था में
इस नियतकालिक परिवर्तन को दक्षिणी दोलन के नाम से जाना जाता है। एलनीनो, दक्षिणी
दोहन से जुड़ा हुआ एक लक्षण है। यह एक गर्म समुद्री जल धारा है, जो पेरू की ठंडी धारा
के स्थान पर प्रत्येक 2 या 5 वर्ष के अंतराल में पेरू तट से होकर बहती है। दाब की अवस्था
में परिवर्तन का संबंध एलनीनो से है। इसलिए इस परिघटना को एंसो (ENSO) (एलनीनो
दक्षिणी दोलन) कहा जाता है।
हवाओं में निरंतर कम होती आर्द्रता के कारण उत्तर भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा
की मात्रा कम होती जाती है। बंगाल की खाड़ी शाखा से उठने वाली आर्द्र पवनें जैसे-जैसे
आगे, और आगे बढ़ती हुई देश के आंतरिक भागों में जाती हैं, वे अपने साथ लाई गई
अधिकतर आर्द्रता खोने लगती हैं। परिणामस्वरूप पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा धीरे-धीरे
घटने लगती है। राजस्थान एवं गुजरात के कुछ भागों में बहुत कम वर्षा होती है।
(iii) पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ एवं उष्ण कटिबंधीय चक्रवात―हिमालय के दक्षिण से बहने
वाली उपोष्ण-कटिबंधीय पश्चिमी जेट धाराएँ सर्दी के महीनों में देश के उत्तर एवं
उत्तर-पश्चिमी भागों में उत्पन्न होने वाले पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभों के लिए जिम्मेदार हैं।
भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान एवं नेपाल में भूमध्यसागर से उत्पन्न होने वाले अतिरिक्त
उष्णकटिबंधीय तूफानों को पश्चिमी विक्षोभ कहा जाता है जो सर्दियों के दौरान भारतीय
उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भागों में अचानक वर्षा एवं हिमपात का करण बनते हैं। यह
पश्चिमी विक्षोभों के कारण होने वाला गैर-मानसूनी वर्षण है। इन तूफानों को मिलने वाली
आर्द्रता का स्रोत भूमध्यसागर एवं अटलांटिक महासागर है।
मानचित्र कौशल
भारत के राजनैतिक रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित को नामांकित करते हुए स्थिति
दर्शाएँ―
1. तिरुवनंतपुरम,
2. चेन्नई,
3. जयपुर,
4. बेंगलूरु,
5. मुंबई,
6. कोलकाता,
7. शिलांग,
8. नागपुर।
उत्तर―
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