UP Board Class 9 Social Science History | आधुनिक विश्व में चरवाहे

By | April 6, 2021

UP Board Class 9 Social Science History | आधुनिक विश्व में चरवाहे

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 1 भारत-आकार एवं स्थिति

                                                   अभ्यास
NCERT प्रश्न
प्रश्न 1. स्पष्ट कीजिए कि घुमंतू समुदायों को बार-बार एक जगह से दूसरी जगह क्यों
जाना पड़ता है? इस निरन्तर आवागमन से पर्यावरण को क्या लाभ हैं?
उत्तर― घुमंतू समुदायों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमने की निम्न कारणों से आवश्यकता
पड़ती है―
(i) घुमंतू समुदायों के अपने कोई निश्चित खेत नहीं होते जहाँ वे अपने पशुओं को चरा सकें,
इसलिए उन्हें अपने पशुओं के लिए नई चरागाहों की तलाश में इधर-उधर मारे-मारे फिरना
पड़ता है।
 
(ii) सर्दियों के समय जब पहाड़ों पर बर्फ पड़ रही होती है तो उन्हें पहाड़ों के निचले भागों की
ओर आना पड़ता है; जैसे-जम्मू और कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश के चरवाहे सितम्बर से
अप्रैल तक हिमालय के निचले भागों अर्थात् शिवालिक की पहाड़ियों में अपना समय व्यतीत
करते हैं।
 
(iii) जैसे ही अप्रैल शुरू होता है और पहाड़ों पर बर्फ पिघलने लगती है तो वे ऊपर के पहाड़ों 
की ओर प्रस्थान करते हैं और सितम्बर तक वहाँ अपने पशुओं के साथ रहते हैं।
 
(iv) जब सितम्बर में फिर पहाड़ बर्फ से ढकने शुरू हो जाते हैं तो ये चरवाहे भी निचले भागों की 
ओर चल देते हैं।
 
इस प्रकार चरवाहे ऋतु प्रवास के चक्कर में बंधे हैं और इन्हें निरन्तर ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर 
आना-जाना पड़ता है।
उनके निरन्तर आवागमन से पर्यावरण को होने वाले लाभ-चरवाहों के ऊपर-नीचे के निरन्तर
आवागमन से पर्यावरण को भी अनेक प्रकार से लाभ पहुँचता है―
 
(i) घुमंतू जीवन के कारण प्राकृतिक वनस्पति को फिर से उगने का मौका मिल जाता है। निरन्तर 
एक स्थान पर चराई करने से प्राकृतिक वनस्पति का बिल्कुल विनाश भी हो सकता है।
 
(ii) इस निरन्तर गमन से जो प्राकृतिक सन्तुलन बना रहता है उसके कारण पशुओं को एक
लम्बी अवधि के पश्चात् दोबारा वहाँ आने पर खूब पेट भर चारा मिल जाता है।
 
(iii) पशुओं के मल-मूत्र से मार्ग में आने वाले खेतों को भी उत्तम खाद मिल जाती है जिनसे
उनका उपजाऊपन बना रहता है। पशुओं को कटी हुई खेती के निचले भाग अर्थात् दूँठ खाने
को मिल जाते हैं।
 
(iv) चरवाहों ने किसानों को खेती के लिए उत्तम पशु उपलब्ध कराए हैं और कृषि-कार्य में वे
इस प्रकार काफी सहायता कर देते हैं और बदले में चरवाहों की अपनी आय भी बढ़ जाती
है और उनका आपसी मेल-जोल भी बढ़ जाता है।
 
प्रश्न 2. इस बारे में चर्चा कीजिए कि औपनिवेशिक सरकार ने निम्नलिखित कानून क्यों
बनाए? यह भी बताइए कि इन कानूनों से चरवाहों के जीवन पर क्या असर
पड़ा?
• परती भूमि नियमावली
• वन अधिनियम
• अपराधी जनजाति अधिनियम
• चराई-कर
उत्तर― परती भूमि नियमावली―अंग्रेज सरकार चरागाहों की खेती की जमीन को अनुत्पादक
मानती थी। यदि वह भूमि जुताई योग्य कृषि भूमि में बदल दी जाए तो खेती का क्षेत्रफल
बढ़ने से सरकार की आय में और बढ़ोतरी हो सकती थी। इसके साथ ही इससे जूट
(पटसन), कपास, गेहूँ और अन्य खेतिहर चीजों के उत्पादन में भी वृद्धि हो जाती जिनकी
इंग्लैंड में बहुत अधिक जरूरत रहती थी। सभी चरागाहों को अंग्रेज सरकार परती भूमि
मानती थी क्योंकि उससे उन्हें कोई लगान नहीं मिलता था। इसी बात को ध्यान में रखते हुए
उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य से देश के विभिन्न भागों में परती भूमि विकास के लिए नियम
बनाए जाने लगे। इन नियमों की सहायता से सरकार गैर-खेतिहर जमीन को अपने अधिकार
में लेकर कुछ विशेष लोगों को सौंपने लगी। इन लोगों को विभिन्न प्रकार की छूट प्रदान की
गई और ऐसी भूमि पर खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इनमें से कुछ लोगों को
इस नई जमीन पर बसे गाँव का मुखिया बना दिया गया। इस तरह कब्जे में ली गई ज्यादातर
जमीन चरागाहों की थी जिनका चरवाहे नियमित रूप से इस्तेमाल किया करते थे। इस तरह
खेती के फैलाव से चरागाह सिमटने लगे जिसने चरवाहों के जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव
डाला।
•वन अधिनियम―उन्नीसवीं सदी के मध्य तक अलग-अलग प्रातों में विभिन्न वन
अधिनियम बनाए गए, जिसके अनुसार जंगलों को दो श्रेणियों में बाँट बदया गया―
 
(i) आरक्षित वन―कुछ जंगल जो वाणिज्यिक रूप से कीमती लकड़ी जैसे कि
देवदार एवं साल के पेड़ पैदा करते थे उन्हें ‘आरक्षित’ घोषित कर दिया गया था।
चरवाहों का इन जंगलों में प्रवेश वर्जित था।
 
(ii) संरक्षित वन―इन वनों में चरवाहों को कुछ पारंपरिक अधिकार दिए गए थे
लेकिन उनकी आवाजाही पर फिर भी बहुत-से प्रतिबंध लगे हुए थे। चरवाहों को
सरकार से अनुमति लेनी पड़ती थी। सरकार ने इन नियमों को इसलिए लागू
किया क्योंकि यह सोचती थी कि इनके पशु वन की जमीन पर मौजूद छोटे पौधों
को कुचल देते हैं और कोंपलों को खा जाते हैं। अब चरवाहों के लिए अपने
पशुओं को वन-क्षेत्र में चराना बहुत कठिन हो गया। उनके पशुओं के लिए
पर्याप्त चारा खोजना भी कठिन हो गया था। जंगलों में प्रवेश करने से पहले उन्हें
सरकार से अनुमति लेनी पड़ती थी और अगर वे समय-सीमा का उल्लंघन करते
थे तो उन पर जुर्माना लगा दिया जाता था।
 
•अपराधी जनजाति अधिनियम―अंग्रेज सरकार खानाबदोश लोगों को संदेह की दृष्टि
से देखती थी और उनके घुमक्कड़पन के कारण उनका अनादर करती थी। वे गाँव-गाँव
जाकर बेचने वाले कारीगरों व व्यापारियों और अपने रेवड़ के लिए हर साल नए-नए
चरागाहों की तलाश में रहने वाले, हर मौसम में अपनी रिहाइश बदल लेने वाले चरवाहों पर
यकीन नहीं कर पाते थे। इसलिए औपनिवेशिक सत्ता खानाबदोश कबीलों को अपराधी
मानती थी। 1871 में औपनिवेशिक सरकार ने अपराधी जनजाति अधिनियम (Criminal
Tribes Act) पारित किया। इस कानून ने दस्तकारों, व्यापारियों और चरवाहों के बहुत सारे
समुदायों को अपराधी समुदायों की सूची में रख दिया। वैध परमिट के बिना ऐसे समुदायों
को उनके अधिसूचित गाँवों से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी। ग्राम्य पुलिस उन पर
निरंतर नजर रखती थी।
इस अधिनियम ने उन्हें कुदरती और जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया। इस अधिनियम के
परिणामस्वरूप खानाबदोश समुदायों को उनके अधिसूचित गाँवों से बाहर निकलने की
अनुमति नहीं थी और उन्हें कुछ खास अधिसूचित गाँवों/बस्तियों में बस जाने का आदेश
दिया गया था। यह अधिनियम इन खानाबदोश समुदायों की घुमंतू क्रियाओं पर बहुत घातक
प्रहार था।
• चराई-कर―अंग्रेज सरकार ने उन्नीसवीं सदी के मध्य में चराई कर की शुरुआत की।
ऐसा इसका राजस्व बढ़ाने के लिए किया गया था। भूमि, नदी के जल, नमक, व्यापार के
सामान और यहाँ तक कि पशुओं पर भी कर लगा दिया गया था। किसी चराई क्षेत्र में घुसने
से पहले किसी भी चरवाहे को अपना पास दिखाना पड़ता था और प्रत्येक पशु के लिए कर
अदा करना पड़ता था। उसके पशुओं की संख्या पर उसके द्वारा अदा किया गया कर उसके
पास पर अंकित कर दिया जाता था। 1850 से 1880 के दशकों के बीच कर एकत्र करने
के अधिकारों की ठेकेदारों में बोली लगा दी गई। वे ठेकेदार चरवाहों से अधिक कर वसूलने
की कोशिश करते थे। 1880 तक सरकार चरवाहों से सीधे कर वसूलने लगे। अपनी आय
बढ़ाने के लिए औपनिवेशिक सरकार ने पशुओं पर भी कर लगा दिए। परिणामस्वरूप
चरवाहों को चरागाहों में चरने वाले प्रत्येक जानवर के लिए कर देना पड़ता था। चरवाहों
को उच्च दरों पर कर देने कारण भी बहुत नुकसान होता था जो कि ठेकेदार अपने निजी
लाभ के लिए उनसे वसूल करते थे। यह उनके लिए बहुत अधिक नुकसानदायक सिद्ध हुई।
 
प्रश्न 3. मासाई समुदाय के चरागाह उससे क्यों छिन गए? कारण बताएँ।
उत्तर― अकेले अफ्रीका में संसार के चरवाहों की अधिक-से-अधिक संख्या रहती है। इन चरवाह
समूहों में वहाँ के मासाई कबीले का नाम भी आता है जो मोटे तौर पर पूर्वी अफ्रीका के निवासी हैं। 
वे दक्षिणी कीनिया (South Kenya) से लेकर उत्तरी तंजानिया (North Tanzania) तक एक 
लम्बे-चौड़े भाग में रहते हैं। धीरे-धीरे इन लोगों से पशु चराने के अधिकार निरन्तर छिनते चले गए।
ऐसा होने के मुख्य कारण इस प्रकार हैं―
 
(i) यूरोपीय साम्राज्यवादी शक्तियाँ, विशेषकर अंग्रेजों और जर्मन निवासियों, की बन्दर-बाँट के
कारण मासाई दो शक्तियों में बँटकर रह गए। कीनिया पर अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया
जबकि तंजानिया जर्मनी का उपनिवेश बनकर रह गया। इस बाँट से लोगों को अपने बहुत-से
भागों से हाथ धोना पड़ा।
 
(ii) श्वेत जातियों के कीनिया और तंजानिया में आते ही अच्छे स्थानों को पाने की उनमें होड़-सी
लग गई। अच्छी भूमियाँ सब साम्राज्यवादी लोगों ने छीन लीं, बाकी बंजर और बेकार भूमियाँ
मासाई लोगों के लिए छोड़ दी गईं। इस प्रकार मासाई लोगों के अच्छे चरागाह उनके हाथ से
निकल गए।
 
(iii) कीनिया में अंग्रेजों ने मासाई लोगों को दक्षिणी भागों की ओर धकेल दिया, जबकि तंजानिया में 
जर्मन लोगों ने उन्हें उत्तरी तंजानिया की ओर धकेल दिया। अब वे अपने घर में ही बेगाने बनकर रह 
गए, अपनी चरागाहों से वंचित और अपनी जन्म-भूमि से दूर।
 
(iv) हर साम्राज्यवादी देश की भाँति अंग्रेज और जर्मन लोग हर ऐसी भूमि को बेकार मानते थे
जहाँ से उन्हें कोई आय न होती हो और कोई भूमिकर प्राप्त न होता हो। इसलिए 19वीं
शताब्दी के अन्त में उन्होंने बहुत-सी ऐसी बेकार भूमि स्थानीय किसानों में बाँट दी ताकि वे
वहाँ पर खेती करें। फिर क्या था मासाई लोगों की चरागाहों पर भी इन स्थानीय किसानों ने
कब्जा कर लिया और वे हाथ मलते ही रह गए।
 
(v) कुछ चरागाहों को आरक्षित वनों में बदल लिया गया और कितने आश्चर्य की बात है कि
मासाई लोगों को ही इन आरक्षित स्थानों में घुसने की मनाही कर दी गई। अब ऐसे आरक्षित
स्थानों से वे न लकड़ी काट सकते थे और न ही अपने पशुओं को उनमें चरा सकते थे। जो
कल चरागाहों के मालिक थे वे अब परदेशी बनकर रह गए।
 
प्रश्न 4. आधुनिक विश्व ने भारत और पूर्वी अफ्रीकी चरवाहा समुदायों के जीवन में जिन
परिवर्तनों को जन्म दिया उनमें कई समानताएँ थीं। ऐसे दो परिवर्तनों के बारे में
लिखिए जो भारतीय चरवाहों और मासाई गड़रियों, दोनों के बीच समान रूप से
मौजूद थे।
उत्तर― दोनों भारत और पूर्वी अफ्रीका के प्रदेश काफी समय तक (18वीं शताब्दी के मध्य से 20वीं 
शताब्दी के मध्य तक) यूरोपीय उपनिवेशवादियों के अधिकार में रहे। इनमें से तो बहुत सारे भारत 
और पूर्वी अफ्रीका के भाग एक ही देश अर्थात् इंग्लैंड के अधीन रहे इसलिए भारतीय चरवाहों और 
अफ्रीकी पशुपालकों पर एक-जैसे कानून लादने से जो परिवर्तन देखने को मिले उनमें समानता होना 
तो स्वाभाविक ही था।
ऐसे दो परिवर्तनों का ब्यौरा नीचे दिया जा रहा है जिनमें काफी समानताएँ पाई जाती हैं―
 
(i) चराने वाली भूमि का नुकसान―भारत में चरागाह-भूमियाँ कुछ विशेष लोगों को सौंप दी
गईं ताकि वे उन्हें कृषि-भूमि में बदल लें। अधिकतर ये ऐसी भूमियाँ थीं जिन पर चरवाहे
लोग अपने पशुओं को चराते थे। इस परिवर्तन का अर्थ था-चरागाहों का ह्रास जो अपने
साथ चरवाहों के लिए अनेक समस्याएँ ले आया।
इसी प्रकार मासाई लोगों की चरागाह भूमियाँ न केवल श्वेत यूरोपियों द्वारा हड़प ली गईं
बल्कि उनमें से बहुत-सी स्थानीय किसानों के हवाले कर दी गई ताकि उन्हें कृषि योग्य बना
सकें। इस प्रकार दोनों ही स्थानों पर साधारण भूमि को कृषि भूमि में बदलने के कारण
चरागाहों की संख्या में कमी आई।
 
(ii) वनों का आरक्षण―दोनों भारत और अफ्रीका में वन क्षेत्रों को आरक्षित क्षेत्रों में बदल
दिया गया और वहाँ के निवासियों को वहाँ से बाहर निकाल दिया गया। अब ये चरवाहे न
इन वनों में घुस सकते थे, न वहाँ अपने पशु चरा सकते थे और न ही वे वहाँ से लकड़ी
काट सकते थे। अधिकतर ये आरक्षित वन वही स्थान थे जो चरवाह जातियों के लिए
चरागाहों का काम देते थे। इस प्रकार वनों के आरक्षण से चरागाहों के क्षेत्र में निरन्तर कमी
आती गई।
 
                                       अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. उन्नीसवीं सदी के मध्य में औपनिवेशिक सरकार ने चराई कर क्यों प्रारंभ किया?
(क) अपने राजस्व में वृद्धि करने के लिए।
(ख) पशुओं के रेवड़ वाले लोगों को चरागाहों में प्रवेश से रोकने हेतु।
(ग) उपरोक्त (क) और (ख) दोनों।
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
                                उत्तर―(ग) उपरोक्त (क) और (ख) दोनों।
 
प्रश्न 2. अफ्रीका में कितने लोग अपनी आजीविका के लिए किसी-न-किसी तरह चरवाहा
गतिविधियों पर आश्रित हैं?
(क) 2 करोड़ 20 लाख से कम 
(ख) 2 करोड़ 20 लाख से अधिक
(ग) 1 करोड़ 20 लाख से अधिक 
(घ) 1 करोड़ 20 लाख से कम
                                    उत्तर―(ख) 2 करोड़ 20 लाख से अधिक
 
प्रश्न 3. यूरोपीय साम्राज्यवादी शक्तियों ने जब अफ्रीका को विभिन्न उपनिवेशों में बाँट
दिया तो मासाई लोगों ने चरागाहों का कितने प्रतिशत हिस्सा गँवा दिया?
(क) 50% 
(ख)49% 
(ग) 80
(घ)60%
           उत्तर―(घ) 60%
 
प्रश्न 4. यूरोपीय साम्राज्यवादी शक्तियों ने अफ्रीका को विभिन्न उपनिवेशों में कब बाँटा?
(क) 1805 में
(ख) 1882 में 
(ग) 1885 में
(घ) 1815 में
                  उत्तर―(ग) 1885 में
 
प्रश्न 5. सेरेन्गेटी राष्ट्रीय पार्क कहाँ है?
(क) केन्या में
(ख) तंजानिया में 
(ग) सूडान में
(घ) जिम्बाब्वे में
                    उत्तर―(ख) तंजानिया में
 
प्रश्न 6. …….. के कारण खानाबदोश कबीलों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना
पड़ता था।
(क) मौससी बदलावों
(ख) उनकी घुमंतू प्रवृत्ति
(ग) उनकी गरीब पृष्ठभूमि
(घ) ये सभी
               उत्तर―(क) मौससी बदलावों
 
प्रश्न 7. ‘धंगड़ किस राज्य का एक महत्त्वपूर्ण चरवाहा समुदाय है?
(क) हिमाचल प्रदेश
(ख) महाराष्ट्र
(ग) जम्मू व कश्मीर
(घ) राजस्थान
                  उत्तर―(ख) महाराष्ट्र
 
प्रश्न 8. चरवाहों के जीवन में औपनिवेशिक शासन के दौरान बहुत बदलाव आए। ये
बदलाव क्या है/है?
(क) उनकी चरागाहें सिकुड़ गईं।
(ख) उनके आवागमन को नियंत्रित किया गया था।
(ग) उन्हें बढ़ा हुआ राजस्व देना पड़ता था।
(घ) उपरोक्त सभी।
                         उत्तर―(घ) उपरोक्त सभी।
 
प्रश्न 9. अपराधी जनजाति अधिनियम कब पारित किया गया?
(क) 1889 में 
(ख) 1871 में 
(ग) 1878 में 
(घ) 1870 में
                   उत्तर―(ख) 1871 में
 
प्रश्न 10. पुष्कर राजस्थान का एक प्रसिद्ध स्थान है जहाँ प्रत्येक वर्ष ……..का आयोजन
होता है।
(क) हाथी मेला
(ख) पशु मेला
(ग) भैंस मेला
(घ) ऊँट मेला
                  उत्तर―(घ) ऊँट मेला
 
प्रश्न 11.मासाई पशुपालक मुख्यतः………..रहते हैं।
(क) पूर्व अफ्रीकामें 
(ख) पश्चिम अफ्रीका
(ग) दक्षिण अफ्रीका
(घ) उत्तर अफ्रीका
                       उत्तर―(क) पूर्व अफ्रीका
 
प्रश्न 12. मासाई मारा राष्ट्रीय पार्क………….में स्थित है।
(क) तंजानिया
(ख) केन्या
(ग) सूडान
(घ) दक्षिण अफ्रीका
                          उत्तर―(ख) केन्या
 
प्रश्न 13. ‘मासाई शब्द का उद्गम ‘मा’ शब्द से हुआ है; मा-साई, जिसका अर्थ है-
(क) मेरे लोग
(ख) माता और लोग
(ग) उनके लोग
(घ) कबीलाई लोग
                        उत्तर―(क) मेरे लोग
 
प्रश्न 14.निम्नलिखित चरवाहा खानाबदोशों में से कौन पहाड़ों में नहीं पाया जाता?
(क) गद्दी गड़रिये
(ख) राइका
(ग) गुज्जर बक्करवाल
(घ) भोटिया
                उत्तर―(घ) भोटिया
 
प्रश्न15. मारू राइका की बस्ती को…… नाम से जाना जाता है।
(क) ढंडी
(ख) मंडी
(ग) मंडच
(घ) बुग्याल
               उत्तर―(क) ढंडी
 
 
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. काफिला और परंपरागत अधिकार का अर्थ बताएँ।
उत्तर―काफिला-जब बहुत-से परिवार एक साथ यात्रा करते हैं तो उनके समूह को काफीला
कहते हैं।
परंपरागत अधिकार―परंपरा और रीति-रिवाज के आधार पर मिलने वाले अधिकार, परंपरागत
अधिकार कहलाते हैं।
 
प्रश्न 2. भारत के विभिन्न भागों में स्थित प्रमुख चरवाहों के नाम लिखें।
उत्तर― गुज्जर बकरवाल जम्मू कश्मीर के घुमन्तू चरवाहे, गद्दी हिमाचल प्रदेश के घुमन्तू चरवाहे,
धंगर महाराष्ट्र के घुमंतू चरवाहे, कुरूमा, कुरूबा तथा गोल्ला कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के चरवाहे, 
बंजारे उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के घुमन्तू चरवाहे, राइका राजस्थान 
के घुमन्तू चरवाहे आदि प्रमुख हैं।
 
प्रश्न 3. बंजारे कौन थे? किन्हीं चार राज्यों के नाम बताइए जहाँ वे पाये जाते थे।
उत्तर― बंजारे एक घुमन्तू चरवाहे हैं। ये लोग बहुत दूर-दूर तक चले जाते थे और रास्ते में अनाज
और चारे के बदले गाँव वालों को खेत जोतने वाले जानवर और दूसरी चीजें बेचते जाते थे। वे जहाँ 
भी जाते अपने जानवरों के लिए अच्छे चरागाहों की खोज में रहते।
 
प्रश्न 4. औपनिवेशिक शासन के दौरान चरवाहों की जिंदगी में किस तरह बदलाव आए?
उत्तर― औपनिवेशिक शासन के दौरान चरवाहों की जिंदगी में गहरे बदलाव आए। उनके चरागाह
सिमट गए, इधर-उधर आने-जाने पर बंदिशें लगने लगीं और उनसे जो लगान वसूल किया जाता था 
उसमें भी वृद्धि हुई। खेती में उनका हिस्सा घटने लगा और उनके पेशे और हुनरों पर भी बहुत बुरा असर पड़ा।
 
प्रश्न 5. नोमड़ लोग कौन हैं?
उत्तर― नोमड़ वे लोग हैं जो एक स्थान पर नहीं रहते, अपितु अपनी आजीविका कमाने के लिए एक जगह 
से दूसरी जगह जाते रहते हैं। भारत के कई हिस्सों में हम प्रायः खानाबदोश चरवाहों को उनके बकरियों और 
भेड़ों या ऊँटों और पशुओं के साथ घूमते हुए देखते हैं।
 
प्रश्न 6. 1871 का अपराधी जनजाति अधिनियम के बारे में व्याख्या करें।
उत्तर― औपनिवेशिक सरकार खानाबदोश कबीलों को अपराधी की नजर से देखती थी। भारत की 
औपनिवेशिक सरकार द्वारा सन् 1871 में अपराधी जनजाति अधिनियम पारित किया गया। इस 
अधिनियम ने दस्तकारों, व्यापारियों और चरवाहों के बहुत सारे समुदायों को अपराधी समुदायों की 
सूची में रख दिया। बिना किसी वैध परमिट के इन समुदायों को उनकी विशिष्ट ग्रामीण बस्तियों से 
बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी।
 
प्रश्न 7. भाबर और बुग्याल शब्द को परिभाषित करें।
उत्तर― भाबर―गढ़वाल और कुमाऊँ के इलाके में पहाड़ियों के निचले हिस्से के आसपास पाए
जाने वाला शुष्क या सूखे जंगल का इलाका।
बुग्याल―ऊंँचे पहाड़ों में स्थित घास के मैदान को बुग्याल कहा जाता है।
 
प्रश्न 8. रबी, खरीफ और दूंठ का अर्थ बताएँ।
उत्तर― रबी―जाड़ों की फसलें जिनकी कटाई मार्च के बाद शुरू होती है। रबी फसलें, गेहूँ, जौ,
चना, सरसों आदि प्रमुख हैं।
 
खरीफ―जून, जुलाई में बोई जाने वाली और सितंबर-अक्टूबर में कटने वाली फसलें; 
जैसे―चावल, जूट, कपास, बाजरा ज्वार आदि प्रमुख हैं।
 
ढूँठ―फसलों की कटाई के बाद जमीन में रह जाने वाली उनकी जड़ें ढूँठ कहलाती हैं।
 
प्रश्न 9. भोटिया, शेरपा और और किन्नौरी किस तरह के चरवाहे थे?
उत्तर― हिमालय पर्वतीय भागों में रहने वाले भोटिया, शेरपा और किन्नौरी समुदाय के लोग अपने
मवेशियों को चराने का काम मौसमी बदलावों के हिसाब से खुद को ढालते थे और अलग-अलग
इलाकों में पड़ने वाले चरागाहों का बेहतरीन इस्तेमाल करते थे। जब एक चरागाह की हरियाली 
खत्म हो जाती थी या इस्तेमाल के काबिल नहीं रह जाती थी तो वे किसी और चरागाह की तरफ चले जाते थे।
 
प्रश्न 10. गोल्ला, कुरूमा और कुरूबा चरवाही के अतिरिक्त किस तरह के व्यवसाय करते
थे?
उत्तर― गोल्ला समुदाय के लोग गाय-भैंस पालते थे जबकि कुरूमा और कुरूबा समुदाय
भेड़-बकरियाँ पालते थे और हाथ के बुने कम्बल बेचते थे। ये लोग जंगलों और छोटे-छोटे खेतों 
के आसपास रहते थे। वे अपने जानवरों की देखभाल के साथ-साथ कई दूसरे काम-धंधे भी करते थे।
 
प्रश्न 11. अफ्रीका के प्रमुख चरवाहों के नाम और वे किस तरह के मवेशियों को पालते हैं, के
बारे में बतलाएँ।
उत्तर― विश्व की आधी से अधिक चरवाही जनसंख्या अफ्रीका में निवास करती है। इनमें बेदुईन्स, 
बरबेर्स, मसाई, सोमाली, बोरान और तुर्काना जैसे समुदाय भी शामिल हैं। इनमें से अधिकतर अब 
अर्ध-शुष्क घास के मैदानों या सूखे रेगिस्तानों में रहते हैं जहाँ वर्षा आधारित खेती करना बहुत कठिन है। 
ये ऊँट, बकरी, भेड़ व गधे जैसे पशु पालते हैं और दूध, मांस, पशुओं की खाल व ऊन आदि बेचते हैं।
 
प्रश्न 12.जम्मू और कश्मीर के गुज्जर बकरवाल समुदाय के लोग पर्वतीय भागों की ऋतु के
अनुसार अपने मवेशियों के चरागाह किस प्रकार बदल लेते हैं?
उत्तर― गुज्जर बकरवाल सर्दी-गर्मी के हिसाब से अलग-अलग चरागाहों में जाते हैं। जाड़ों में जब 
ऊँची पहाड़ियाँ बर्फ से ढंक जातीं तो वे शिवालिक की निचली पहाड़ियों में आकर डेरा डाल लेते। 
अप्रैल के अंत तक वे उत्तर दिशा में जाने लगते गर्मियों के चरागाहों के लिए। इस सफर में कई 
परिवार काफिला बनाकर साथ-साथ चलते थे।
 
प्रश्न 13.उन्नीसवीं सदी के मध्य तक आते-आते देश के विभिन्न प्रांतों में वन अधिनियम
की आड़ में सरकार ने किस तरह के कदम उठाए?
उत्तर― वन अधिनियम की आड़ में सरकार ने ऐसे कई जंगलों को आरक्षित वन घोषित कर दिया
जहाँ देवदार या साल जैसी कीमती लकड़ी पैदा होती थी। इन जंगलों में चरवाहों के घुसने पर पाबंदी 
लगा दी गई। कई जंगलों को संरक्षित घोषित कर दिया गया। इन जंगलों में चरवाहों को चरवाही के 
कुछ परंपरागत अधिकार तो दे दिए गए लेकिन उनकी आवाजाही पर फिर भी बहुत सारी बंदिशें लगी रहीं।
 
प्रश्न 14. गच्छी चरवाहे किस तरह अपने मवेशियों को चराते हैं?
उत्तर―हिमाचल प्रदेश के गद्दी चरवाहे मौसमी उतार-चढ़ाव का सामना करने के लिए इसी तरह
सर्दी-गर्मी के हिसाब से अपनी जगह बदलते रहते थे। वे भी शिवालिक की निचली पहाड़ियों में अपने 
मवेशियों को झाड़ियों में चराते हुए जाड़ा बिताते थे। अप्रैल आते-आते वे उत्तर की तरफ चल पड़ते 
और पूरी गर्मियाँ लाहौल और स्पीति में बिता देते। जब बर्फ पिघलती और ऊँचे दरें खुल जाते तो 
उनमें से बहुत सारे ऊपरी पहाड़ों में स्थित घास के मैदानों में जा पहुंँचते थे।
 
प्रश्न 15. अफ्रीका में गरीब चरवाहों का जीवन मुखियाओं से किस प्रकार भिन्न था?
उत्तर― मुखियाओं के पास नियमित आमदनी थी जिससे वे जानवर, सामान और जमीन खरीद
सकते थे। वे युद्ध एवं अकाल की विभीषिका को झेलकर बचे रह सकते थे। उन्हें जब चरवाही एवं 
गैर-चरवाही दोनों तरह की आमदनी हाती थी और अगर उनके जानवर किसी वजह से घट जाते तो 
वे और जानवर खरीद सकते थे। किन्तु ऐसे चरवाहों का जीवन इतिहास अलग था जो केवल अपने 
पशुओं पर ही निर्भर थे। प्रायः उनके पास बुरे समय में बचे रहने के लिए संसाधन नहीं होते थे। 
युद्ध एवं अकाल के दिनों में वे अपना लगभग सब कुछ गंवा बैठते थे।
 
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. वन अधिनियमों ने भारतीय चरवाहों के जीवन को किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर― विभिन्न वन अधिनियमों ने भारतीय चरवाहों के जीवन को निम्न प्रकार प्रभावित किया―
 
(i) उन्हें उन जंगलों में जाने से रोक दिया गया जो पहले मवेशियों के लिए महत्त्वपूर्ण चारे का
स्रोत था।
 
(ii) जिन क्षेत्रों में उन्हें प्रवेश की छूट दी गई वहाँ भी उनके आने-जाने पर कड़ी नजर रखी जाती
थी। जंगलों में दाखिल होने के लिए उन्हें परमिट लेना पड़ता था। जंगल में उनके प्रवेश और
वापसी की तारीख पहले से तय होती थी और वे जंगल में बहुत कम ही दिन बिता सकते थे।
 
(iii) अब चरवाहे किसी जंगल में ज्यादा समय तक नहीं रह सकते थे भले ही वहाँ चारा कितना
ही हो। उन्हें इसलिए निकलना पड़ता था क्योंकि अब उनकी जिंदगी वन विभाग द्वारा जारी
किए गए परमिटों के अधीन थी। परमिट में पहले ही लिख दिया जाता था कि वह कानूनन
कब तक जंगल में रहेंगे। अगर वे समय-सीमा का उल्लंघन करते थे तो उन पर जुर्माना लगा
दिया जाता था।
 
प्रश्न 2. चरवाहों ने बदलते नियमों का सामना किस प्रकार किया?
उत्तर― चरवाहों ने बदलते नियमों का सामना निम्न प्रकार किया―
 
(i) कुछ चरवाहों ने अपने रेवड़ों में जानवरों की संख्या कम कर दी, क्योंकि अधिक जानवरों के
    लिए पर्याप्त चरागाहें नहीं बची थीं।
 
(ii) जब पुराने चरागाहों पर वापसी करना कठिन हो गया तो कुछ चरवाहों ने नए चरागाह खोज
लिए। जैसे कि राइका लोग जो कि अपनी भेड़ें चराने के लिए सिंधु नदी के किनारे स्थित
सिंध में नहीं जा सकते थे क्योंकि पाकिस्तान और भारत का विभाजन हो गया था।
 
(iii) अपेक्षाकृत धनी कुछ चरवाहों ने अपने घुमंतू जीवन को छोड़ते हुए जमीनें खरीदकर एक
स्थान पर रहना शुरू कर दिया। वे स्थाई किसान बन गए और नियमित रूप से खेती करने
लगे जबकि कुछ व्यापार करने लगे।
 
(iv) कुछ गरीब चरवाहे जिंदा रहने के लिए सूदखोरों से ब्याज पर कर्ज लेकर दिन काटने लगे।
कई बार ये अपने मवेशी भी गवाँ बैठते और मजदूर बन जाते। तथापि, चरवाहे न केवल
जीवित बच रहे हैं अपितु हाल के दशकों में कई जगह तो उनकी संख्या में वृद्धि भी हुई है।
 
प्रश्न 3. भारत के खानाबदोशों का पहाड़ों में आवागमन का वर्णन कीजिए।
उत्तर― भारत के खानाबदोशों का पहाड़ों में आवागमन निम्नलिखित है―
 
(i) जम्मू और कश्मीर के गुज्जर बकरवाल समुदाय के लोग भेड़-बकरियों के बड़े-बड़े रेवड़
रखते थे। वे वर्ष में सर्दी-गर्मी के हिसाब से अलग-अलग चरागाहों में जाने लगे। गर्मियों में
गुज्जर पशुपालक बुग्याल कही जाने वाली ऊँची चरागाहों में चले जाते जबकि जाड़ों में
भाबर के सूखे जंगलों में आकर डेरा डाल लेते।
 
(ii) हिमाचल प्रदेश के गद्दी समुदाय के लोग भी इसी तरह मौसम के हिसाब से अपनी जगह
बदलते रहते थे। वे भी शिवालिक की निचली पहाड़ियों में अपने मवेशियों को झाड़ियों में
चराते हुए अपनी सर्दियाँ बिताते थे। अप्रैल आते-आते वे उत्तर की तरफ चल पड़ते और
पूरी गर्मियाँ लाहौल और स्फीति में बिता देते। जब बर्फ पिघलती और ऊँचे दरें खुल जाते तो
उनमें से बहुत सारे ऊपरी पहाड़ों में स्थित घास के मैदानों में जा पहुँचते थे। सितंबर तक वे
दोबारा वापस चल पड़ते।
 
(iii) गर्मी एवं सर्दी की चरागाहों के मध्य बारी-बारी आने-जाने की यह विशेषता भोटिया, शेरपा
और किन्नौरी समुदाय सहित हिमालय के कई चरवाहा समुदायों में पाई जाती थी।
 
प्रश्न 4. राइका कहाँ पाए जाते हैं? उनके रहने के तरीके पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर― राइका समुदाय राजस्थान के मरुस्थल में पाए जाते थे। उनके क्षेत्र में बरसात बहुत कम 
और अनिश्चित थी। इसलिए वे खेती के साथ-साथ चरवाही का काम भी करते थे। मानसून के दौरान 
बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर और बीकानेर के राइका अपने पैतृक गाँवों में रहते जहाँ चरागाहें उपलब्ध थीं। 
अक्तूबर तक जब ये चरागाहें शुष्क हो जातीं, वे अन्य चरागाहों और पानी की तलाश में निकल जाते और 
मानसून आने पर वापस अपने गाँव आ जाते।
राइका का एक समूह―जिसे मरु (मरुस्थल) राइका कहते थे, ऊँट पालते थे और दूसरा समूह
भेड़-बकरियाँ पालता था।
 
प्रश्न 5. औपनिवेशिक सरकार के द्वारा मुखिया क्यों नियुक्त किए जाते थे? वे किस प्रकार
का जीवन बिताते थे?
उत्तर― औपनिवेशिक सरकार ने विभिन्न मासाई उप-समुदायों के मुखिया नियुक्त किए जिन्हें
कबीलों के मामलों का दायित्व सौंपा गया था।
समय बीतने के साथ ही औपनिवेशिक सरकार द्वारा नियुक्त किए गए मुखिया माल इकट्ठा करने लगे। 
उनके पास नियमित आमदनी थी जिससे वे जानवर, सामान और जमीन खरीद सकते थे। वे अपने गरीब 
पड़ोसियों को लगान चुकाने के लिए कर्ज देते थे। उनमें से अधिकतर मुखिया बाद में शहरों में जाकर बस 
गए और व्यापार करने लगे। अब वे युद्ध एवं अकाल की विभीषिका को झेल कर बचे रह सकते थे। 
उन्हें अब चरवाही एवं गैर-चरवाही दोनों तरह की आमदनी होती थी और अगर उनके जानवर किसी 
वजह से घट जाते तो वे और जानवर खरीद सकते थे।
 
प्रश्न 6. औपनिवेशिक सरकार द्वारा अफ्रीकी चरवाहों पर क्या प्रतिबंध लगाए गए?
उत्तर― औपनिवेशिक सरकार द्वारा अफ्रीकी चरवाहों पर निम्नलिखित प्रतिबंध लगाए गए-
 
(i) औपनिवेशिक सरकार ने उनके आने-जाने पर विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध लगा दिए।
 
(ii) चरवाहा समुदायों को विशेष रूप से निर्धारित स्थानों पर निवास करने के लिए बाध्य किया
गया।
 
(iii) बिना किसी वैध परमिट के इन समुदायों को उनकी विशिष्ट ग्रामीण बस्तियों से बाहर
निकलने की अनुमति नहीं थी।
 
(iv) वे सर्वश्रेष्ठ चरागाहों से कट गए और एक ऐसी अर्ध-शुष्क पट्टी में रहने पर मजबूर कर
दिया गया जहाँ सूखे की आशंका हमेशा बनी रहती थी।
 
(v) मासाई लोगों के रेवड़ चराने के विशाल क्षेत्रों को शिकारगाह बना दिया गया। इन आरक्षित
जंगलों में चरवाहों का आना मना था।
 
(vi) मूल निवासियों को भी पास जारी किए गए थे जिन्हें दिखाए बिना उन्हें प्रतिबंधित क्षेत्रों में
प्रवेश करने नहीं दिया जाता था।
 
प्रश्न 7. मासाई समुदाय के चरागाहों पर बार-बार पड़ने वाले अकालों का क्या प्रभाव
पड़ा?
उत्तर― अकाल प्रत्येक जगह रहने वाले लोगों के जीवन को प्रभावित करता है। जब बरसात नहीं 
हो पाती तो चरागाहें सूख जाती हैं, और यदि जानवरों को ऐसे स्थानों पर न ले जाया जाए जहाँ चारा 
उपलब्ध हो तो अवश्य ही सारे जानवर मारे जाएंगे। किन्तु औपनिवेशिक प्रशासन में मासाई लोगों को 
प्रतिबंधित क्षेत्रों में रहने के लिए बाध्य किया गया। विशेष परमिट के बिना ये लोग इनकी सीमाओं के 
बाहर नहीं जा सकते थे। 1933 और 1934 में पड़े दो साल के भयंकर सूखे में मासाई आरक्षित क्षेत्र के 
आधे से अधिक जानवर मर चुके थे।
जैसे-जैसे चरने की जगह सिकुड़ती गई, सूखे के दुष्परिणाम भयानक रूप लेते चले गए। बार-बार आने 
वाले बुरे सालों की वजह से चरवाहों के जानवरों की संख्या में लगातार गिरावट आती गई।
 
प्रश्न 8. पूर्व-औपनिवेशिक काल में मासाई समुदाय किस प्रकार विभाजित था?
उत्तर― पूर्व-औपनिवेशिक काल में मासाई समुदाय दो श्रेणियों में बँटे हुए थे―वरिष्ठ जन
(ऐल्डर्स) और यौद्धा (वॉरियर्स) वरिष्ठ जन शासन चलाते थे।
वरिष्ठ जन शासन करते थे और समुदाय से जुड़े मामलों पर विचार-विमर्श करने और अहम फैसले 
लेने के लिए समय-समय पर सभा करते थे।
योद्धाओं में अधिकतर नौजवान होते थे जिन्हें मुख्य रूप से लड़ाई लड़ने और कबीले की हिफाजत 
करने की जिम्मेदारी दी जाती थी। वे समुदाय की रक्षा करते थे और दूसरे कबीलों के मवेशी छीनकर 
लाते थे। चरवाहा समुदाय में हमले का अर्थ था पशुओं का चुराना या छीन लेना। मासाई लोगों के लिए 
उनके जानवर ही उनकी संपत्ति का सूचक थे। मासाई योद्धा मर्दानगी साबित करने व अन्य चरवाहा 
समुदायों पर श्रेष्ठता दिखाने के लिए अन्य चरवाहा समूहों के जानवरों को चुराते थे या युद्ध में बहादुरी 
का प्रदर्शन करते थे। जहाँ जानवर ही संपत्ति हो वहाँ हमला करके दूसरों के जानवर छीन लेना एक 
महत्त्वपूर्ण काम होता था।
 
प्रश्न 9. चर्चा कीजिए कि औपनिवेशिक सरकार ने भारत में परती भूमि नियमावली क्यों
लागू की? परती भूमि नियमावली ने चरवाहों के जीवन को कैसे बदला?
उत्तर― औपनिवेशिक सरकार सभी चरागाहों को खेती की जमीन में बदलना चाहती थी क्योंकि
औपनिवेशिक सरकार बिना खेती की जमीन को ‘बेकार’ मानती थी। यदि इस जमीन को खेती की 
जमीन में बदल दिया जाए तो इसके परिणामस्वरूप भू-राजस्व भी बढ़ता और जूट (पटसन), कपास, 
गेहूँ जैसी फसलों के उत्पादन में भी वृद्धि हो जाती। सभी चरागाहों को अंग्रेज सरकार परती भूमि मानती 
थी क्योंकि उससे उन्हें कोई लगान नहीं मिलता था। उन्नीसवीं सदी के मध्य से देश के विभिन्न भागों में 
परती भूमि विकास के लिए नियम बनाए जाने लगे। इन नियमों की सहायता से सरकार गैर-खेतिहर 
जमीन को अपने अधिकार में लेकर कुछ विशेष लोगों को सौंपने लगी। इन लोगों को विभिन्न प्रकार की 
छूट प्रदान की गई और ऐसी भूमि पर खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इनमें से कुछ लोगों को 
इस नई जमीन पर बसे गाँव का मुखिया बना दिया गया। इस तरह कब्जे में ली गई ज्यादातर जमीन वास्तव 
में चरागाहों की थी जिनका चरवाहे नियमित रूप से इस्तेमाल किया करते थे। इस तरह खेती के फैलाव से 
चरागाह सिमटने लगे जिसने चरवाहों के जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव डाला।
 
प्रश्न10. आरक्षित वनों एवं संरक्षित वनों के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर― आरक्षित वनों एवं संरक्षित वनों के बीच अंतर निम्नलिखित हैं―

                                          दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. भारत के विभिन्न भागों में पाए जाने वाले खानाबदोश चरवाहों के बारे में संक्षेप में
लिखिए।
उत्तर― खानाबदोश चरवाहे भारत के विभिन्न भागों में पाए जाते थे; जैसे-पहाड़ों, पठारों, मैदानों
एवं मरुस्थल में।
पहाड़ों में―
(i) जम्मू एवं कश्मीर के गुज्जर बकरवाल बकरियों व भेड़ों के बड़े-बड़े रेवड़ रखते हैं। वे वर्ष
भर गर्मी व सर्दी में अपने चरागाहों के बीच घूमते रहते हैं। गुज्जर चरवाहे सर्दियों में भाबर
के सूखे जंगलों की तरफ और गर्मियों में ऊपरी घास के मैदानों-बुग्याल-की तरफ चले
जाते थे।
 
(ii) हिमाचल प्रदेश के गद्दी गड़रियों का भी आवागमन का इसी जैसा मौसम आधारित
आवागमन चक्र था। वे भी अपनी सर्दियाँ शिवालिक की छोटी पहाड़ियों में अपने जानवरों
को झाड़ियाँ चराते हुए बिताते हैं। अप्रैल आते-आते वे उत्तर की तरफ चल पड़ते और
गर्मियाँ लाहौल और स्फीति में बिताते।
 
(iii) जब बर्फ पिघलती और ऊँचे दर खुल जाते तो उनमें से बहुत सारे ऊपरी पहाड़ों में स्थित
घास के मैदानों में जा पहुँचथे। सितंबर तक वे दोबारा वापस चल पड़ते।
 
पठारों में―
(i) धंगर महाराष्ट्र का एक महत्त्वपूर्ण चरवाहा समुदाय है। उनमें से अधिकतर गड़रिये कंबल
बुनने वाले और अन्य भैंस पालने वाले हैं। वे बाजरे एवं चावल जैसी खरीफ एवं रबी की
फसलें उगाते हैं।
 
(ii) गोल्ला, कुरुमा और कुरूबा समुदाय कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में रहते थे। गोल्ला समुदाय
के लोग पशु पालते थे। कुरुमा और कुरूबा समुदाय भेड़-बकरियाँ पालते थे और हाथ के
बुने कम्बल बेचते थे। ये छोटे-छोटे खेत जोतते थे और छोटे-मोटे व्यापार में भी लगे रहते थे।
 
मैदानों में―
चरवाहों में एक विख्यात नाम बंजारों का भी है। वे उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं
महाराष्ट्र के गाँवों में पाए जाते थे। ये लोग अपने जानवरों के लिए अच्छे चारे की खोज में बहुत दूर-दूर 
तक चले जाते थे। रास्ते में अनाज और चारे के बदले गाँव वालों को खेत जोतने वाले 
जानवर और दूसरी चीजें बेचना इनका काम था।
 
मरुस्थल में―
राजस्थान के मरुस्थल में राइका समुदाय निवास करता था। उनके क्षेत्र में बरसात बहुत कम और
निश्चित थी। मानसून के दौरान बाडमेर, जैसलमेर, जोधपुर और बीकानेर के राइका अपने पैतृक 
गाँवों में रहते जहाँ चरागाहें उपलब्ध थीं। अक्टूबर तक जब ये चरागाहें शुष्क हो जाती तब वे अन्य 
चरागाहों और पानी की तलाश में निकल जाते और अगले मानसून आने पर वापस अपने गाँव आ जाते। 
राइका का एक समूह-जिसे (मरुस्थल) राइका कहते थे, ऊँट पालते थे और दूसरा समूह भेड़-बकरियाँ पालता था।
 
प्रश्न 2. अफ्रीका में चरवाही पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर― विश्व की आधे से अधिक चरवाही जनसंख्या अफ्रीका में निवास करती है। आज भी
अफ्रीका के लगभग सवा दो करोड़ लोग रोजी-रोटी के लिए किसी-न-किसी तरह की चरवाही
गतिविधियों पर ही आश्रित हैं। इनमें बेदुईन्स, बरबेर्स, मासाई, सोमाली, बोरान और तुर्काना जैसे
जाने-माने समुदाय भी शामिल हैं। इनमें से अधिकतर अब अर्ध-शुष्क घास के मैदानों या सूखे
रेगिस्तानों में रहते हैं जहाँ वर्षा आधारित खेती करना बहुत कठिन है। यहाँ के चरवाहे गाय, बैल, ऊँट, 
बकरी, भेड़ व गधे पालते हैं। ये लोग दूध, मांस, पशुओं की खाल व ऊन आदि बचते हैं। कुछ चरवाहे व्यापार 
और यातायात संबंधी काम भी करते हैं। कुछ लोग आमदनी बढ़ाने के लिए चरवाही के साथ-साथ खेती भी 
करते हैं। कुछ लोग चरवाही से होने वाली मामूली आय से गुजर नहीं हो पाने पर कोई भी धंधा कर लेते हैं।
अफ्रीक चरवाहों का जीवन औपनिवेशिक काल एवं उत्तर-औपनिवेशिक काल में बहुत अधिक बदल गया है। 
उन्नीसवीं सदी के अंतिम सालों से ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार पूर्वी अफ्रीका में भी स्थानीय किसानों को 
अपनी खेती के क्षेत्रफल को अधिक-से-अधिक फैलाने के लिए प्रोत्साहित करने लगी। जैसे-जैसे खेती का 
प्रसार हुआ वैसे-वैसे चरागाह खेतों में तब्दील होने लगे। ये चरवाहों के लिए ढेरों कठिनाइयाँ लेकर आए। 
उनका जीवन बहुत कठिन बन गया।
 
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