UP Board Class 9 Social Science Economics | संसाधन के रूप में लोग

By | April 15, 2021

UP Board Class 9 Social Science Economics | संसाधन के रूप में लोग

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

अध्याय 2.                      संसाधन के रूप में लोग
                                               अभ्यास
NCERT प्रश्न
प्रश्न 1. संसाधन के रूप में लोग’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर― भूमि, पूँजी और लोग किसी भी देश के महत्त्वपूर्ण संसाधन होते हैं क्योंकि इनके द्वारा ही
कोई देश अपनी प्रगति की रफ्तार को बनाए रख सकता है। परन्तु सभी संसाधनों में लोग या जनसंख्या
सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है, क्योंकि मानव संसाधन अन्य संसाधनों का, जैसे भूमि और पूँजी का तो
प्रयोग कर सकते हैं परन्तु भूमि और पूँजी अपने-आप में उपयोगी सिद्ध नहीं हो सकते। काफी समय
तक जब अफ्रीका में विभिन्न खनिज भूमि के अन्दर ही दबे रहे वे संसाधन न बन सके क्योंकि वहाँ के
लोग उनसे लाभ उठाना नहीं जानते थे। भूमि और दबी पूँजी तब ही संसाधन बन सकी जब वहाँ के
लोगों ने उनको खोदकर प्रयोग में लाना शुरू कर दिया।
कुछ लोग जनसंख्या को एक उपहार के स्थान पर बोझा ही मानते हैं। परन्तु उनकी यह धारणा सत्य
नहीं है। यदि उसी जनसंख्या पर शिक्षा, प्रशिक्षण और स्वास्थ्य सेवाओं के रूप में खर्च किया जायेगा तो
वे लोग अधिक उपयोगी और सुशिक्षित बनकर देश के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं और हर क्षेत्र में
देश को आगे ले जा सकते हैं। निवेश द्वारा मानव पूँजी को एक उत्पादक सम्पत्ति के रूप में बदला जा
सकता है।
जिस प्रकार भौतिक साधनों; जैसे―भूमि फर्नीचर, मशीनरी आदि पर निवेश करके उन्हें काफी उपयोगी
और लाभकारी बनाया जा सकता है उसी प्रकार मानव पूँजी की उपयोगिता को भी शिक्षा और स्वास्थ्य
आदि क्षेत्रों में व्यय करके काफी बढ़ाया जा सकता है। यदि लोग अधिक पढ़े-लिखे और स्वस्थ होंगे तो
वे देश का नाम ऊँचा कर सकते हैं और उसे चार चाँद लगा सकते हैं। ऐसे पढ़े-लिखे, सुशिक्षित और
स्वस्थ नागरिकों के कारण ही भारत भविष्य में एक विकसित देश (Developed Country) बन
सकता है।
 
प्रश्न 2. मानव संसाधन भूमि और भौतिक पूँजी जैसे अन्य संसाधनों से कैसे भिन्न है?
उत्तर― मानव संसाधन अन्य संसाधनों से जैसे भूमि और भौतिक पूँजी से, एक तरह से श्रेष्ठ है
क्योकि मानव संसाधन भूमि और पूँजी का प्रयोग तो कर सकता है परन्तु भूमि और पूँजी अपने आप
उपयोग नहीं हो सकते।
 
प्रश्न 3. मानव पूँजी निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका है?
उत्तर― मानव पूंजी के निर्माण में शिक्षा की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है―
(i) शिक्षा व्यक्ति को इस योग्य बनाती है कि वह अपना सर्वांगीण विकास कर सके।
 
(ii) शिक्षा एक व्यक्ति को इस योग्य बनाती है कि वह किसी कौशल में निपुण बन सके और
अच्छा वेतन प्राप्त कर सके।
 
(iii) शिक्षा मनुष्य को इस योग्य बनाती है कि वह शराबखोरी और जुआ आदि के व्यसनों से बच
सके, जो उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालते हैं।
 
(iv) शिक्षा इसलिए भी आवश्यक है क्योकि वह प्रत्येक व्यक्ति को इस योग्य बनाती है कि वह
अपने परिवार को सीमित रखे ताकि उसे भुखमरी का सामना न करना पड़े।
 
(v) शिक्षा एक व्यक्ति को अच्छे गुण अपनाने के योग्य बनाती है। ऐसा गुणी व्यक्ति ही देश का
एक अच्छा नागरिक बन सकता है।
 
प्रश्न 4. मानव पूँजी निर्माण में स्वास्थ्य की क्या भूमिका है?
उत्तर― मानव पूँजी निर्माण (विकास) में स्वास्थ्य की बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। स्वास्थ्य से हमारा
तात्पर्य केवल जीवित रहना ही नहीं है वरन् एक व्यक्ति की सर्वांगीण भलाई से है जिसमें शारीरिक
मानसिक, आर्थिक तथा सामाजिक आदि सभी पक्ष आ जाते हैं। स्वास्थ्य के क्षेत्र में व्यय किया गया धन
केवल किसी विशेष व्यक्ति का ही कल्याण नहीं करता वरन् इस द्वारा मानव संसाधन के क्षेत्र में भी
सुधार आता है और परिणामस्वरूप राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में लाभकारी प्रभाव देखने को
मिलते हैं। स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी केवल रोगों के निवारण पर ही जोर नहीं दिया जाता वरन् जनसंख्या
नियन्त्रण, परिवार कल्याण, खाद्य पदार्थों में मिलावट आदि रोकना तथा नशीले पदार्थों पर नियन्त्रण
रखने आदि पक्षों पर ध्यान दिया जाता है।
 
प्रश्न 5. किसी व्यक्ति के कामयाब जीवन में स्वास्थ्य की क्या भूमिका है?
उत्तर― विद्यार्थी उपर्युक्त प्रश्न 4 का उत्तर देखें।
 
प्रश्न 6. प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रकों में किस तरह की विभिन्न आर्थिक
क्रियाएँ संचालित की जाती हैं?
उत्तर― विभिन्न क्रियाकलापों को उत्पादों के आधार पर तीन प्रमुख क्षेत्रकों (Sectors) में बाँटा
जाता है-प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक।
 
प्राथमिक क्षेत्रक―इस क्षेत्रक में ऐसी क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं जो प्रकृति द्वारा प्रदान की गई वस्तुओं
के प्रयोग से सम्बन्धित होती हैं-कृषि, वानिकी, पशुपालन, मत्स्यपालन, मुर्गीपालन और खनिज आदि।
 
द्वितीयक क्षेत्रक―इस क्षेत्रक में वे क्रियाएँ आ जाती हैं जो कच्चे माल या प्राकृतिक उत्पादों को
उपयोगी वस्तुओं में बदलती हैं। इसमें सभी प्रकार के उद्योगों से सम्बन्धित क्रियाएँ आ जाती हैं;
जैसे-लकड़ी चीरने का काम करना, कागज बनाना, कपड़ा तैयार करना आदि।
 
तृतीयक क्षेत्रक―इस क्षेत्रक में सभी प्रकार की सेवाओं से सम्बन्धित क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं;
जैसे―व्यापार, संचार, परिवहन, बैंकिंग, बीमा, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन आदि सेवाएँ।
 
प्रश्न 7. आर्थिक और गैर-आर्थिक क्रियाओं में क्या अंतर है?
उत्तर― आर्थिक क्रियाएँ (Economic Activities)―जैसाकि हम ऊपर पढ़ चुके हैं कि वे सभी
क्रियाएँ जिनसे लोगों को आय होती है, आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं। साइकिल रिक्शा चलाना, मकानों
को साफ करना, सब्जी बेचना या खेतों, कारखानों, स्कूलों, अस्पतालों, बैंकों, होटलों आदि में काम
करना आदि सभी आर्थिक क्रियाएँ हैं।
 
गैर-आर्थिक क्रियाएँ (Non-Economic Activities)―ऐसी क्रियाओं को जिनसे कोई आय प्राप्त
नहीं होती उन्हें गैर-आर्थिक क्रियाएँ कहते हैं। धार्मिक स्थानों पर जाना और वहाँ बिना पैसों के सेवा
करना, अनपढ़ों को निःशुल्क पढ़ाना, रोगियों और दीन-दुखियों की बिना वेतन लिए हुए
सेवासुश्रूशा
करना आदि सभी गैर-आर्थिक क्रियाएँ हैं।
 
प्रश्न 8. महिलाएँ क्यों निम्न वेतन वाले कार्यों में नियोजित होती हैं?
उत्तर― इस बात में कोई भी अतिशयोक्ति नहीं कि महिलाएँ प्रायः कम वेतन वाले कार्यों में नियोजित
होती हैं। इसके कुछ मुख्य कारण इस प्रकार हैं―
(i) शिक्षा किसी की भी आमदनी को निश्चित करने वाला एक मुख्य कारक होता है। क्योंकि
महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा कम पढ़ी-लिखी होती हैं, इसलिए उनके मुकाबले में उन्हें कम
वेतन मिलता है।
 
(ii) शिक्षा के पश्चात् उच्च कौशल किसी भी व्यक्ति की आय को सुनिश्चित करने का एक
अन्य मुख्य कारक होता है। साधारणत: यह देखा गया है कि महिलाएँ प्राय: उच्च कौशल
प्राप्त नहीं होती इसलिये उन्हें कम वेतन मिलता है।
 
(iii) कुछ लोगों का यह भी कहना है कि महिलाएँ बहुत-से ऐसे कार्य नहीं कर सकती जिनमें
शारीरिक शक्ति की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रकार वे कठिन परिश्रम वाले कार्यों को
प्राप्त करने से वंचित रह जाती हैं। बाकी कार्यों में ऊंचे वेतन पाना महिलाओं के लिए कठिन
हो जाता है।
 
(iv) महिलाएँ प्राय: अपने घर के कार्यों से अधिक जुड़ी होती हैं इसलिये वे किसी भी नौकरी पर
इतना नियमित रूप से काम नहीं कर सकतीं इसलिये भी उन्हें कम वेतन दिया जाता है।
अन्यथा उच्च शिक्षा प्राप्त और उच्च-कौशल-प्राप्त महिलाओं को पुरुषों के बराबर ही
वेतन मिलता है।
 
प्रश्न 9. बेरोजगारी’ शब्द की आप कैसे व्याख्या करेंगे?
उत्तर― यदि किसी विशेष वर्ग के लोग काम करने के योग्य होते हैं और काम भी करना चाहते हैं
परन्तु उन्हें काम नहीं मिलता तो ऐसी अवस्था को बेरोजगारी कहा जाता है।
 
प्रश्न 10. प्रच्छन्न और मौसमी बेरोजगारी में क्या अंतर है?
उत्तर― एक विकसित देश में कार्यशील जनसंख्या के लिये पूर्ण रोजगार उपलब्ध कराना कठिन नहीं
होता क्योंकि उसका पूँजी-ढाँचा इतना पर्याप्त होता है कि वह पूर्ण श्रम-शक्ति को पूरी तरह खपा
सकता है। विकसित देशों में औद्योगिक उत्पादन इतना होता है कि वह विशाल श्रम-शक्ति के लिये
रोजगार के अवसर उत्पन्न कर सकता है। भारत एक विकासशील देश है और उसका पूर्ण
औद्योगीकरण अभी नहीं हुआ है। हमारा पूँजी-ढाँचा अभी इतना छोटा है कि वह कुल श्रम-शक्ति को
पूरी तरह नहीं खपा सकता। हमारी अर्थव्यवस्था अभी ग्रामीण है और मुख्यत: कृषि पर निर्भर करती है।
विभिन्न कारणों से भारत में विभिन्न प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है―संरचनात्मक बेरोजगारी,
प्रच्छन्न या गुप्त बेरोजगारी, मौसमी बेरोजगारी एवं चक्रीय बेरोजगारी।
प्रच्छन्न या गुप्त बेरोजगारी―भारत में किसान उत्पादन के लिए पुराने ढंग ही प्रयोग करते हैं क्योंकि
वे गरीब हैं और भूमि के स्वामी भी नहीं हैं। अगर खेती के आधुनिक तरीकों को अपनाया जाए तो ऐसी
स्थिति उत्पन्न हो सकती है जबकि भूमि के किसी टुकड़े पर एक परिवार के तीन सदस्यों के स्थान पर
दो सदस्य ही काम चला सकते हों। परन्तु इसके अभाव के कारण तीनों सदस्यों को उसी खेत पर काम
करना पड़ता है। इस प्रकार उत्पन्न हुई बेरोजगारी को गुप्त बेरोजगारी कहा जाता है। इसको मापा नहीं
जा सकता। इसको भूमि सुधारों की नीति अपनाकर दूर किया जा सकता है।
मौसमी बेरोजगारी― भारत में कृषि कार्य मौसमी होता है। यह पूरे वर्ष नहीं चलता रहता। किसान
प्राय: वर्ष भर में एक ही फसल उगाते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में खाली मौसम में किसानों और कृषि श्रमिकों के
पास कोई काम नहीं होता। इससे मौसमी बेरोजगारी उत्पन्न होती है।
 
प्रश्न11. शिक्षित बेरोजगारी भारत के लिए एक विशेष समस्या क्यों है?
उत्तर― शिक्षित बेरोजगारी भारत के लिए एक विशेष समस्या बनी हुई है। बहुत-से मैट्रिक पास,
स्नातक और उनसे भी अधिक पढ़े-लिखे एम०ए० पास लोग बेकार घूमते नजर आते हैं। ऐसे युवक
कोई भी रोजगार पाने में असमर्थ हैं। ऐसी परिस्थिति के लिए कोई-न-कोई कारण तो उत्तरदायी होगा।
इनमें से कुछ मुख्य निम्नलिखित हैं―
(i) शिक्षा-पद्धति में दोष―हमारी शिक्षा-पद्धति भी निःसन्देह दोषपूर्ण है, नहीं तो इतने वर्ष
स्कूल व कॉलेजों में पढ़कर हमारे युवक बेकार क्यों घूमें। हमें शिक्षा पद्धति में सुधार करके
इसे व्यवसायी और दस्तकारी-युक्त बनाना चाहिए ताकि प्रत्येक विद्यार्थी पढ़ने के उपरान्त
स्वयं छोटा-मोटा कार्य कर सके।
 
(ii) हमारे औद्योगिक और सेवा क्षेत्र की प्रगति सन्तोषजनक नहीं―इसमें सन्देह नहीं कि
हमारे औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों में कुछ प्रगति हुई है परन्तु यह प्रगति इतनी उत्साहजनक
नहीं इसलिए इन दोनों क्षेत्रों ने रोजगार के इतने साधन पैदा नहीं किए।
 
(iii) अव्यवस्थित तकनीकी विकास―जब जो उद्योगों के क्षेत्रों में नई तकनीक का विकास हो
रहा है उसके कारण कारीगरों को बहुत थोड़े रोजगार के अवसर मिले हैं। इतना अवश्य
हुआ है कि नई-नई मशीनों के आने से बहुत-से मजदूरों की छंटनी अवश्य हो गई।
परिणामस्वरूप बेरोजगारी की समस्या और विकट होती गई।
 
(iv) विदेशों में नौकरी पाने की कोई विशेष सुविधा न होना―हमारे बहुत-से पढ़े-लिखे
युवक नौकरी पाने के लिये विदेशों में जाने के लिये भी तैयार हैं परन्तु उन्हें विदेश जाने की
इतनी सुविधाएँ प्राप्त नहीं है। बहुत-से इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, यू०एस०ए० आदि विकसित
देशों ने वीजा देने में कई रुकावटें डाल रखी हैं जिनके कारण भी शिक्षित बेकारी की समस्या
और गहराती जा रही है।
 
प्रश्न12. आपके विचार से भारत किस क्षेत्रक में रोजगार के सर्वाधिक अवसर सृजित कर
सकता है?
उत्तर― आर्थिक क्रियाकलापों को तीन प्रमुख क्षेत्रकों (Sectors) में बाँटा जा सकता है―जो क्रमश:
प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रक हैं। प्रथम क्षेत्रक में, जिनमें कृषि, वानिकी पशुपालन,
मत्स्यपालन, मुर्गीपालन और खनिज आदि क्रियाएँ शामिल हैं। यह क्षेत्रक भारत की दो-तिहाई
जनसंख्या को रोजगार के अवसर प्रदान कर रहा है। द्वितीयक क्षेत्रक, जिसमें उत्खनन और विनिर्माण
की क्रियाएँ शामिल हैं। यह क्षेत्रक देश की कोई 10% कार्यरत जनसंख्या को रोजगार अवसर प्राप्त करा
रहा है। तृतीयक क्षेत्रक, जिसमें परिवहन, संचार, व्यापार, बैंकिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य, बीमा, पर्यटन की
क्रियाएँ शामिल हैं। यह क्षेत्रक देश की कोई 20% कार्यरत जनसंख्या को अपने में समाए हुए है।
कृषि के क्षेत्र में पहले ही भारत की एक बड़ी जनसंख्या का भाग है इसलिये इसमें और लोगों के समाने
की सम्भावना नहीं। वहाँ पर गुप्त बेरोजगारी के समाचार अकसर पढ़ने को मिलते हैं। ऐसे में अब
द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रकों में रोजगार के अधिक अवसर सृजित किये जा सकते हैं। द्वितीयक क्षेत्रक
में आम भारत की जनसंख्या का केवल अभी 10% भाग ही काम कर रहा है। अधिक-से-अधिक
कारखाने खोलकर अनेक लोगों को रोजगार के अधिक अवसर प्रदान किये जा सकते हैं। ऐसे में
उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ भारत के व्यापार में भी काफी वृद्धि हो सकती है।
तृतीयक क्षेत्रक में भी कुछ लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान किये जा सकते हैं। वहाँ व्यापार,
परिवहन, संचार, बैंकिंग, बीमा, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन आदि सुविधाओं का और विस्तार करके अनेक
लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान किये जा सकते हैं।
 
प्रश्न13. क्या आप शिक्षा-प्रणाली में शिक्षित बेरोजगारों की समस्या दूर करने के लिए कुछ
उपाय सुझा सकते हैं?
उत्तर― हर समस्या का कोई-न-कोई हल अवश्य होता है इसलिये शिक्षित बेरोजगारी की समस्या
का भी हल निकाला जा सकता है। यदि हम तनिक तसल्ली रखें और सूझ-बूझ से काम लें तो
शिक्षा-प्रणाली में कई प्रकार से सुधार करके हम इस समस्या की तीव्रता को अवश्य कम कर सकते हैं―
(i) हमारे स्कूलों में कई व्यावसायिक विषयों को पढ़ाने-सिखाने की व्यवस्था की जा सकती है
जिनसे पढ़े-लिखे युवकों को नौकरी पाने या फिर अपना काम शुरू करने में सुविधा हो
सकती है। ऐसे कुछ व्यावसायिक विषय टाइप-राइटिंग (Type-writing), स्टेनोग्राफी
(Stenography), कम्प्यूटर-ट्रेनिंग (Computer training) आदि हो सकते हैं जिनकी
बाजार में मांँग है और स्कूल से निकलते ही युवकों को काम मिल सकता है।
 
(ii) औद्योगिक प्रशिक्षण केन्द्र (I.T.I) खोले जाने चाहिये ताकि पढ़े-लिखे विद्यार्थियों को वहाँ
किसी व्यवसाय सम्बन्धी ट्रेनिंग दी जा सके। ऐसे कुछ व्यवसाय वैल्डर, फिटर, ड्राफ्टमैन,
इलैक्ट्रीशियन आदि के हो सकते हैं, ऐसे विशिष्ट दक्षताप्राप्त कामगारों को बेकारी का कोई
डर नहीं हो सकता। वे जब चाहे नौकरी प्राप्त कर सकते हैं या फिर अपना काम खोल सकते
हैं।
 
(iii) ऊँची शिक्षाप्राप्त विद्यार्थियों के लिए उच्च व्यावसायिक शिक्षा व प्रशिक्षण केन्द्र खोले जा
सकते हैं और अनेक इंजीनियर, डॉक्टर, नर्से, अध्यापक, कम्प्यूटर विशेषज्ञ, सर्जन आदि
तैयार किये जा सकते हैं, जिनकी देश एवं विदेशों में बड़ी माँग है।
 
प्रश्न14. क्या आप कुछ ऐसे गाँवों की कल्पना कर सकते हैं जहाँ पहले रोजगार का कोई
अवसर नहीं था, लेकिन बाद में बहुतायत में हो गया?
उत्तर― हमारे बहुत-से गाँवों में लोग अपने कपड़े स्वयं धोते हैं, कपड़े स्वयं सीते हैं और घर की
लीपा-पोती भी स्वयं कर लेते हैं। यदि उन्हें अपने बच्चों को थोड़ा-बहुत पढ़ाना होता है तो वे यह काम
स्वयं या गाँव वाले किसी आम पढ़े-लिखे सदस्य की सहायता से पूरा कर लेते हैं। कुछ लोग पढ़ाई के
लिये अपने बच्चों को आस-पास के कस्बे में भेज देते हैं। यदि कोई सिलाई का बड़ा काम करवाना हो
तो वे आस-पास के बड़े गाँवों या नगरों में जाकर पूरा करवा लेते हैं। यदि अपने परिवार की
आवश्यकताओं से अधिक अनाज पैदा हो जाए तो वे अपना फालतू अनाज आस-पास की मण्डियों में
बेच आते हैं। ऐसे में इन गांवों में रोजगार के अवसर प्रायः न के बराबर होते हैं।
परन्तु यदि वे थोड़ा-सा प्रयत्न करें तो उसी गाँव में जहाँ पहले रोजगार के कोई अवसर नहीं थे, वहाँ
रोजगार के अनेक अवसर पैदा किए जा सकते हैं―
(i) यदि वे अपने गाँव में कोई भी स्कूल खोल लें तो गाँव के अनेक पढ़े-लिखे लोगों को अपने
ही गाँव में अध्यापक के पद पर काम करने वालों को रोजगार के अवसर प्राप्त हो जाएंँगे।
(ii) इसी प्रकार गाँव की कोई लड़की या लड़का दर्जी के कार्य का शहर से प्रशिक्षण लेकर अपने
गाँव में ही दर्जी की दुकान खोल लेता है तो उस गाँव में दर्जी का काम करने वालों को
रोजगार के नए अवसर प्राप्त हो जाएंँगे।
(iii) इसी प्रकार यदि कोई किसान अपने ही गाँव में गन्ने से रस निकालने की मशीन लगाकर वहाँ
गुड़ आदि बनाना शुरू कर देता है तो ऐसे में गाँव के अनेक बेकार लोगों को रोजगार के नए
अवसर प्राप्त हो जाएंँगे।
(iv) इसी प्रकार यदि गाँव का कोई साहसी युवक एक टैक्सी या तीन-पहिया स्कूटर खरीदकर
गाँव के लोगों और उनके माल को आस-पास के गाँव तक लाना-ले-जाना शुरू कर देता है
तो उस गाँव में एक-दो ड्राइवरों को नए रोजगार के अवसर भी प्राप्त हो जाएंँगे।
इस प्रकार किसी भी गाँव में थोड़े-से सोच-विचार और थोड़े-से परिश्रम करने से रोजगार
के नए-नए अवसर पैदा किये जा सकते हैं।
 
प्रश्न15. किस पूँजी को आप सबसे अच्छा मानते हैं-भूमि, श्रम, भौतिक पूँजी और मानव
पूँजी? क्यों?
उत्तर― संसाधन मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं―प्राकृतिक संसाधन और मानव संसाधन। देश
की प्रगति के लिए इन दोनों प्रकार के संसाधनों का अपना महत्त्व है। प्राकृतिक संसाधनों; जैसे―कृषि,
खनिज,जल आदि के बिना कोई देश प्रगति नहीं कर सकता। परन्तु ये प्राकृतिक संसाधन बेकार ही पड़े
रहेंगे जब मानव अपनी प्रगति के लिए इनका उपयोग नहीं करता। अफ्रीका में जब मानव ने उनको खोद
निकाला और उनका विभिन्न उद्योगों में प्रयोग किया तो वे मूल्यवान प्राकृतिक संसाधन बन गए।
पूंजी का अंग हैं। परन्तु यदि प्राकृतिक संसाधनों और मानव संसाधनों की तुलना की जाएँ तो मानव
इस प्रकार यदि कृषि, खनिज, जल आदि प्राकृतिक पूँजी के अंग हैं तो जनसंख्या या लोग भी मानव
संसाधन और सभी संसाधनों; जैसे―भूमि और भौतिक पूँजी से बहुत श्रेष्ठ हैं क्योंकि मानव संसाधन
तो भूमि और अन्य भौतिक संसाधनों एवं पूँजी आदि का प्रयोग कर सकता है परन्तु भूमि, वन, जल
आदि प्राकृतिक संसाधन अपने आप में उपयोगी सिद्ध नहीं हो सकते। यदि हम जापान का उदाहरण लें
तो उसके प्राकृतिक संसाधनों; जैसे―कच्चे माल, खनिज आदि की कमी है परन्तु अपनी विकसित
मानव पूँजी के आधार पर उसने प्राकृतिक संसाधनों का आयात करके आशातीत उन्नति कर ली है।
जनसंख्या को यदि मानव पूँजी में बदलना हो तो हमें शिक्षा और स्वास्थ्य पर अधिक व्यय करना होगा
और दायित्व के स्थान पर उन्हें योग्य और उच्च शिक्षण प्राप्त नागरिकों के रूप में मूल्यवान पूँजी में
बदलना होगा। ऐसे नागरिक ही हमारी अर्थव्यवस्था के लिए एक मूल्यवान परिसंपत्ति के रूप में सिद्ध
हो सकते हैं।
 
                                   अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
 
                                    बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. निम्नलिखित विकल्पों में से कौन-सा उचित है?
(क) जनसंख्या एक दायित्व है न कि परिसंपत्ति
(ख) जनसंख्या न एक दायित्व है न ही परिसंपत्ति
(ग) जनसंख्या एक दायित्व नहीं अपितु परिसंपत्ति है
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
                             उत्तर―(ग) जनसंख्या एक दायित्व नहीं अपितु परिसंपत्ति है
 
प्रश्न 2. प्राथमिक क्षेत्रक में ……… क्रियाएँ शामिल हैं।
(क) विनिर्माण एवं उत्खनन
(ख) कृषि, वानिकी, पशुपालन, मुर्गी पालन, मत्स्य पालन एवं खनन
(ग) बैंकिंग, परिवहन, व्यापार, शिक्षा, बीमा
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
                         उत्तर―(ख) कृषि, वानिकी, पशुपालन, मुर्गी पालन, मत्स्य पालन एवं खनन
 
प्रश्न 3. किसी अर्थव्यवस्था का सर्वाधिक श्रम-अवशोषक क्षेत्रक कौन-सा है?
(क) कृषि
(ख) विनिर्माण
(ग) सूचना तकनीकी
(घ) बायोटेक्नोलोजी
                          उत्तर―(क) कृषि
 
प्रश्न 4. यदि कोई माँ बच्चों का ध्यान रख रही है और घर की चारदीवारी में घरेलू क्रियाएँ
कर रही है, वह किस प्रकार की क्रिया कर रही है?
(क) बाजार क्रिया
(ख) गैर-बाजार क्रिया
(ग) आर्थिक क्रिया
(घ) गैर-आर्थिक क्रिया
                              उत्तर―(घ) गैर-आर्थिक क्रिया
 
प्रश्न 5. महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा कम पैसे दिए जाते हैं क्योंकि……..
(क) महिलाओं को शारीरिक रूप से कमजोर समझा जाता है।
(ख) उनमें कौशल एवं शिक्षा की कमी होती है।
(ग) उन्हें अपने अधिकारों का ज्ञान नहीं होता।
(घ) उपरोक्त सभी।
                       उत्तर―(घ) उपरोक्त सभी।
 
प्रश्न 6. किस कारक पर जनसंख्या की गुणवत्ता निर्भर करती है?
(क) साक्षरता दर पर
(ख) जीवन प्रत्याशा से निरुपित किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य पर
(ग) किसी देश के लोगों द्वारा अर्जित कौशल निर्माण पर
(घ) उपरोक्त सभी
                       उत्तर―(घ) उपरोक्त सभी
 
प्रश्न 7.1951-2001 तक भारत में जीवन प्रत्याशा कितनी सीमा तक बढ़ी है?
(क) 37 वर्ष से 64 वर्ष तक
(ख)25 वर्ष से 68 वर्ष तक
(ग) 27 वर्ष से 54 वर्ष तक
(घ) 30 वर्ष से 60 वर्ष तक
                                   उत्तर―(क) 37 वर्ष से 64 वर्ष तक
 
प्रश्न 8. भारत में सन् 1951 में साक्षरता दर क्या थी?
(क) 18 प्रतिशत 
(ख) 50 प्रतिशत 
(ग) 60 प्रतिशत
(घ) 65 प्रतिशत
                     उत्तर―(क) 18 प्रतिशत
 
प्रश्न 9. हमारे संविधान में प्रावधान है कि राज्य सरकारें 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों को
सार्वभौतिक, निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराएगी। उस योजना का नाम क्या है?
(क) नवोदय विद्यालय अभियान 
(ख) सर्वोदय शिक्षा अभियान
(ग) सर्वशिक्षा अभियान
(घ) नवोदय विद्यालय
                            उत्तर―(ग) सर्वशिक्षा अभियान
 
प्रश्न10. प्रच्छन्न बेरोजगारी ……”क्षेत्र में गोचर होती है।
(क) शिक्षा
(ख) कृषि
(ग) विनिर्माण 
(घ) ये सभी
                उत्तर―(ख) कृषि
 
                          अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. सकल राष्ट्रीय उत्पाद का अर्थ बताइए।
उत्तर― एक देश की अर्थव्यवस्था के कुल वस्तुओं और सेवाओं के जोड़ की और विदेशों में शुद्ध
साधन आय के जोड़ को सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं।
 
प्रश्न 2. मानव पूँजी के घटक कौन-कौन से हैं?
उत्तर― शिक्षा, प्रशिक्षण और स्वास्थ्य सेवा मानव पूँजी के महत्त्वपूर्ण घटक हैं।
 
प्रश्न 3. मानव पूँजी क्या है?
उत्तर― मानव पूँजी कौशल और उनमें निहित उत्पादन के ज्ञान का स्टॉक है।
 
प्रश्न 4. मानव पूँजी निर्माण किसे कहते हैं?
उत्तर― मानव संसाधन को और अधिक शिक्षा तथा स्वास्थ्य द्वारा और विकसित किया जाता है, तब
हम इसे मानव पूँजी निर्माण कहते हैं।
 
प्रश्न 5. प्राथमिक क्षेत्रक किसे कहते हैं?
उत्तर― प्रकृति द्वारा प्रदत्त वस्तु को एकत्र करने या उपलब्ध कराने से जुड़ी क्रियाओं को प्राथमिक
क्षेत्रक में शामिल किया जाता है।
 
प्रश्न 6. द्वितीयक क्षेत्रक किसे कहते हैं?
उत्तर― वे क्रियाएँ जो कच्चे माल या प्राथमिक उत्पाद को और अधिक उपयोगी वस्तुओं में बदलती
हैं उन्हें द्वितीयक क्षेत्रक के अंतर्गत शामिल किया जाता है। उदाहरणत: उद्योग, विद्युत, बाँध, जल आदि।
 
प्रश्न 7. तृतीयक क्षेत्रक किसे कहते हैं?
उत्तर― इस क्षेत्रक में वे क्रियाएँ आती हैं जो आधुनिक कारखानों को चलाने या उपर्युक्त दोनों
क्षेत्रकों की क्रियाओं को सहारा देने के लिए तथा विभिन्न प्रकार की सेवाएँ शामिल हैं। उदाहरणत:
बैंकिंग, परिवहन, व्यापार, शिक्षा, बीमा आदि।
 
प्रश्न 8. शिशु मृत्यु-दर, जन्म-दर और मृत्यु-दर का अर्थ बताइए।
उत्तर― शिशु मृत्यु-दर-शिशु मृत्यु-दर से अभिप्राय एक वर्ष से कम आयु के शिशु की मृत्यु से
है।
जन्म-दर―जन्म-दर से अभिप्राय एक विशेष अवधि में प्रति एक हजार व्यक्तियों के पीछे जन्म लेने
वाले शिशुओं की संख्या से है।
मृत्यु दर―मृत्यु-दर से अभिप्राय एक विशेष अवधि में प्रति एक हजार व्यक्तियों के पीछे मरने वाले
लोगों की संख्या से है।
 
प्रश्न 9. 1951 में जीवन प्रत्याशा, शिशु मृत्यु-दर, साक्षरता क्या थी और 2000 ई० में
इसमें क्या बदलाव आया?
उत्तर― 1951 में जीवन प्रत्याशा 34 वर्ष थी जो कि 2011 में बढ़कर 68.89 वर्ष हो गई। 1951 में
शिशु मृत्यु दर 147 थी जो 2011 में घटकर 7.3 पर आ गई है। 1951 में साक्षरता दर 18% थी जो 
2011 में बढ़कर 74.04% हो गई है।
 
प्रश्न 10.शिक्षित बेरोजगारी किसे कहते हैं?
उत्तर― जब शिक्षित लोग अर्हता प्राप्त कर लेने एवं वांछित कौशल प्राप्त कर लेने के बावजूद
रोजगार नहीं खोज पाते तो उसे शिक्षित बेरोजगारी कहते हैं।
 
प्रश्न 11.”भारत में सभी राज्यों में स्वास्थ्य सेवाएँ एकसमान नहीं हैं।” समझाइए।
उत्तर― भारत में अनेक स्थान हैं जिनमें मौलिक स्वास्थ्य सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं है। केवल चार
राज्यों जैसे कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र में देश के कुल 181 मेडिकल कॉलेजों में से
81 मेडिकल कॉलेज हैं। दूसरी तरफ बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में निम्न स्वास्थ्य सूचक हैं
तथा यहाँ बहुत ही कम मेडिकल कॉलेज हैं।
 
                                   लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. जनसंख्या किसी अर्थव्यवस्था के लिए दायित्व नहीं अपितु एक परिसंपत्ति है; इसे
सिद्ध करने के लिए उदाहरण दीजिए।
उत्तर― कुछ लोग यह मानते हैं कि जनसंख्या एक दायित्व है न कि एक परिसंपत्ति। किन्तु यह सच
नहीं है। लोगों को एक परिसंपत्ति बनाया जा सकता है यदि हम उनमें शिक्षा, प्रशिक्षण एवं चिकित्सा
सुविधाओं के द्वारा निवेश करें। जिस प्रकार भूमि, जल, वन, खनिज आदि हमारे बहुमूल्य प्राकृतिक
संसाधन हैं उसी प्रकार मनुष्य भी एक बहुमूल्य संसाधन है। लोग राष्ट्रीय परिसंपत्तियों के उपभोक्ता
मात्र नहीं हैं अपितु वे राष्ट्रीय संपत्तियों के उत्पादक भी हैं। वास्तव में मानव संसाधन अन्य संसाधनों
जैसे कि भूमि तथा पूँजी की अपेक्षाकृत श्रेष्ठ हैं क्योंकि वे भूमि एवं पूँजी का प्रयोग करते हैं। भूमि एवं
पूँजी स्वयं उपयोगी नहीं हो सकते। हम जापान का उदाहरण दे सकते हैं। इस देश ने मानव संसाधन में
ही निवेश किया है क्योंकि इसके पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं था। लोगों ने अन्य संसाधनों जैसे कि
भूमि एवं पूँजी का दक्षतापूर्ण प्रयोग किया है। लोगों द्वारा विकसित दक्षता एवं तकनीक ने जापान को
एक धनी एवं विकसित देश बना दिया।
 
प्रश्न 2. यह सिद्ध करने के लिए एक उदाहरण दीजिए कि मानव पूँजी में निवेश
समृद्धशाली प्रतिफल देता है।
उत्तर― लोगों में शिक्षा, प्रशिक्षण एवं चिकित्सा सुविधाओं के द्वारा निवेश करने से जनसंख्या के एक
बड़े भाग को परिसंपत्ति में बदला जा सकता है। हम जापान का उदाहरण सामने रखते हैं। जापान के
पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं थे। इस देश ने अपने लोगों पर निवेश किया, विशेषकर शिक्षा और
स्वास्थ्य के क्षेत्र में। अंतत: इन लोगों ने अपने संसाधनों का दक्षतापूर्ण उपयोग करने के बाद नई
तकनीक विकसित करते हुए अपने देश को समृद्ध एवं विकसित बना दिया है। इस प्रकार मानव-पूँजी
अन्य सभी संसाधनों की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है।
 
प्रश्न 3. भारत में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की बेरोजगारियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर― भारत में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की बेरोजगारियाँ हैं―
(i) प्रच्छन्न बेरोजगारी-प्रच्छन्न बेरोजगारी में लोग नियोजित प्रतीत होते हैं जबकि वास्तव में
वे उत्पादकता में कोई योगदान नहीं कर रहे होते हैं। ऐसा प्रायः कृषि क्रिया से जुड़े परिवारों
के सदस्यों के साथ होता है।
 
(ii) मौसमी बेरोजगारी-मौसमी बेरोजगारी तब होती है जब वर्ष के कुछ महीनों के दौरान
लोग रोजगार नहीं खोज पाते। भारत में कृषि कोई पूर्णकालिक रोजगार नहीं है। यह मौसमी
है। इस प्रकार की बेरोजगारी कृषि में पाई जाती है।
 
(iii) शिक्षित बेरोजगारी-शिक्षित बेरोजगारी शहरों में एक सामान्य परिघटना बन गई है।
मैट्रिक, स्नातक, स्नातकोत्तर डिग्रीधारक अनेक युवा रोजगार पाने में असमर्थ हैं। एक
अध्ययन में यह बात सामने आई है कि मैट्रिक की अपेक्षा स्नातक एवं स्नातकोत्तर
डिग्रीधारकों में बेरोजगारी अधिक तेजी से बढ़ी है।
 
प्रश्न 4. बेरोजगारी के क्या परिणाम है?
उत्तर― बेरोजगारी के निम्नलिखित परिणाम हैं―
(i) बेरोजगारी जनशक्ति संसाधन की बर्बादी का कारण बनती है। जो लोग देश के लिए एक
परिसंपत्ति होते हैं वे देश के लिए दायित्व बन जाती हैं।
 
(ii) बेरोजगारी आर्थिक बोझ में वृद्धि करने की कोशिश करती है। बेरोजगारों की कार्यरत
जनसंख्या पर निर्भरता बढ़ जाती है।
 
(iii) किसी अर्थव्यवस्था के समग्र विकास पर बेरोजगारी का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
बेरोजगारी में वृद्धि मंदीग्रस्त अर्थव्यवस्था की सूचक है।
 
(iv) बेरोजगार युवा धोखेबाजी, चोरी, कत्ल एवं आतंकवाद जैसी समाजविरोधी गतिविधियों में
लिप्त हो सकते हैं।
 
(v) किसी व्यक्ति के साथ-साथ समाज की जीवन गुणवत्ता पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है
जो अंततः स्वास्थ्य स्तर में गिरावट एवं स्कूल प्रणाली में बढ़ती गिरावट का कारण बनती
है।
 
प्रश्न 5. भारत के लोगों की जीवन प्रत्याशा बढ़ाने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
उत्तर― भारत के लोगों की जीवन प्रत्याशा बढ़ाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं―
(i) बच्चों की संक्रमण से रक्षा, जच्चा बच्चा देखरेख एवं पोषण के कारण शिशु मृत्युदर में
कमी आई है। शिशु मृत्युदर जो सन् 1951 में 147 थी वह कम होकर 2015 में 37 रह
गई।
(ii) जनसंख्या के अल्प-सुविधा प्राप्त वर्गों पर विशेष ध्यान देते हुए स्वास्थ्य सेवाओं, परिवार
कल्याण एवं पोषण सेवाओं में सुधार। मृत्यु दर जो 1951 में 25 प्रति हजार थी वह 2015
में घटकर 6.5 प्रति हजार हो गई।
 
(iii) जीवन प्रत्याशा 2014 में बढ़कर 68.3 वर्ष हो गई है। आयु में वृद्धि होना आत्मविश्वास के
साथ जीवन की उच्च गुणवत्ता का सूचक है।
 
प्रश्न 6. भारत में शैक्षणिक उपलब्धियाँ क्या है?
उत्तर― पिछले 50 वर्षों में विशेष क्षेत्रों में उच्च शिक्षा देने वाले शिक्षण संस्थानों तथा
विश्वविद्यालयों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
● शिक्षा के योजना प्रारूप पर खर्च प्रथम योजना के 151 करोड़ से बढ़कर बारहवीं पंचवर्षीय
    योजना में 43,825 करोड़ हो गया।
● शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में खर्च 1951-52 में 0.64 प्रतिशत से     बढ़कर
2011-12 में 9.5 प्रतिशत हो गया।
● साक्षरता दर 1951 में 18 प्रतिशत से बढ़कर 2011 में 74.04 प्रतिशत हो गई।
 
प्रश्न 7. भौतिक पूँजी एवं मानव पूँजी में अंतर बताइए।
उत्तर― भौतिक पूँजी तथा मानव पूँजी निम्नलिखित अंतर हैं―
 
प्रश्न 8. बाजार क्रियाएँ किस प्रकार गैर-बाजार क्रियाओं से भिन्न हैं?
उतर― बाजार क्रियाएँ निम्न प्रकार गैर-बाजार क्रियाओं से भिन्न हैं―
                                     दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. निम्नांकित आरेख का अध्ययन कीजिए और नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर
दीजिए―
(क) क्या 1951 से जनसंख्या की साक्षरता-दर बढ़ी है?
(ख) किस वर्ष भारत में साक्षरता-दर सर्वाधिक रही?
(ग) भारत में पुरुषों में साक्षरता-दर अधिक क्यों है?
(घ) पुरुषों की अपेक्षा महिलाएँ कम शिक्षित क्यों हैं?
(ङ) आप भारत में लोगों की साक्षरता-दर का परिकलन कैसे करेंगे?
(च) 2011 में भारत की साक्षरता-दर के बारे में आपका पूर्वानुमान क्या है?
उत्तर― (क) हाँ, 1951 से जनसंख्या की साक्षरता दर में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि हुई है।
(ख) वर्ष 2001 में भारत की साक्षरता दर सबसे अधिक है।
(ग) इसका कारण यह है कि भारत एक पुरुष-प्रधान देश है। पुरुषों को परिवार के कमाने
वाले सदस्यों के रूप में देखा जाता है। इसलिए चाहे जैसी भी परिस्थितियाँ हो उसे
शिक्षा दी ही जाती है।
                         साक्षर लोगों की संख्या
(ङ) साक्षरता दर ——————————×100
                                   जनसंख्या
(च) 75%–82%
 
प्रश्न 2. “मानव पूँजी निर्माण में शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण निवेश है।” क्या आप इस कथन से
सहमत हैं? अपने उत्तर के लिए कारण बताइए।
उत्तर― मानव पूँजी निर्माण में शिक्षा महत्त्वूपर्ण भूमिका निभाती है। यदि जनसंख्या शिक्षित नहीं होगी
तो वह उत्तरदायित्व में बदल जाएगी। उचित शिक्षा प्रदान करके हम किसी बच्चे को अच्छी तरह
विकसित एवं कोई भी काम करने योग्य बना सकते हैं। इस प्रकार शिक्षा श्रम की गुणवत्ता में सुधार
करती है। इससे सकल उत्पादकता में वृद्धि होती है जो अर्थव्यवस्था की विकास दर में वृद्धि करती है।
बदले में यह व्यक्ति को वेतन एवं अन्य विकल्प प्रदान करती है। मानव संसाधन विकास में शिक्षा बहुत
महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शिक्षा एवं कौशल किसी व्यक्ति की आय को निर्धारित करने वाले मुख्य
कारक है। किसी बच्चे की शिक्षा और प्रशिक्षण पर किए गए निवेश के बदले में वह भविष्य में
अपेक्षाकृत अधिक आय एवं समाज में बेहतर योगदान के रूप में उच्च प्रतिफल दे सकता है। शिक्षित
लोग अपने बच्चों की शिक्षा पर अधिक निवेश करते पाए जाते हैं। इसका कारण यह है कि उन्होंने स्वयं
के लिए शिक्षा का महत्त्व जान लिया है।
 
प्रश्न 3. निम्नांकित तालिका का अध्ययन कीजिए और नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर
दीजिए
(क) 2013 से 2015 तक औषधालयों की संख्या में कितने प्रतिशत की वृद्धि हुई है?
(ख) 2013 से 2015 तक डॉक्टरों और नर्सिंगकर्मियों में कितने प्रतिशत की वृद्धि हुई है?
(ग) क्या आपको लगता है कि डॉक्टरों और नौं की संख्या में वृद्धि पर्याप्त है? यदि नहीं
तो क्यों?
(घ) किसी अस्पताल में आप और कौन-सी सुविधाएँ उपलब्ध कराना चाहेंगे?
उत्तर―(क) 1951 से 2001 तक औषधालयों की संख्या में प्रतिशत वृद्धि
                             23555 – 9209
                         = ———————–×100 = 155.78%
                                      9209
(ख) 1951 से 2001 तक डॉक्टरों में प्रतिशत वृद्धि
                              268700 – 61800
                            = ————————–×100 = 334.79%
                                         61800
1951 से 2001 तक नर्सिंग कर्मियों में प्रतिशत वृद्धि
                                  143887 – 18054
                               = —————————×100 =696.98%
                                             18054
(ग) भारत में डॉक्टरों और नसों की संख्या में प्रतिशत वृद्धि पर्याप्त नहीं है क्योकि देश की
जनसंख्या इसके मुकाबले बहुत अधिक है।
(घ) अस्पताल आधुनिक तकनीक से सुसज्जित होने चाहिए। डॉक्टरों और नौं की संख्या
पर्याप्त होनी चाहिए ताकि जरूरतमंद की उचित देखभाल हो सके।
 
प्रश्न 4. भारत में बच्चों में शिक्षा के प्रचार के लिए सरकार द्वारा क्या कदम उठाए गए हैं?
उत्तर― भारत में बच्चों में शिक्षा के प्रचार के प्रोत्साहन के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम इस
प्रकार हैं―
● हमारे संविधान में प्रावधान है कि राज्य सरकारें 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों को सार्वभौमिक,
नि:शुल्क शिक्षा उपलब्ध कराएंगी। हमारी केन्द्र सरकार ने वर्ष 2010 से 6 से 14 वर्ष तक की
आयु के सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा देने के लिए सर्व शिक्षा अभियान’ के नाम से एक योजना
प्रारंभ की है।
● लड़कियों की शिक्षा पर विशेष बल दिया गया है।
● प्रत्येक जिले में नवोदय विद्यालय जैसे विशेष स्कूल खोले गए हैं।
● उच्च विद्यालय के छात्रों को व्यावसायिक प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से व्यावसायिक पाठ्यक्रम
विकसित किए गए हैं।
● स्कूल उपलब्ध कराने के साथ ही यह लोगों को उनके बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित
करने एवं बीच में पढ़ाई छोड़ने को हतोत्साहित करने हेतु कुछ गैर-पारंपरिक उपाय कर रही है।
● उपस्थिति को प्रोत्साहित करने व बच्चों को स्कूल में बनाए रखने और उनके पोषण स्तर को
बनाए रखने के लिए दोपहर की भोजन योजना लागू की गई है।
● कामकाजी वयस्कों एवं खानाबदोश परिवारों के बच्चों के लिए रात्रि स्कूल एवं मोबाइल स्कूल
उपलब्ध कराए गए हैं।
● दसवीं पंचवर्षीय योजना ने इस योजना के अंत तक 18 से 23 वर्ष तक की आयु समूह के युवाओं
में उच्चतर शिक्षा हेतु नामांकन वर्तमान 6 प्रतिशत से बढ़ाकर 9 प्रतिशत करने का प्रयास किया।
● यह योजना दूरस्थ शिक्षा, औपचारिक, अनौपचारिक, दूरस्थ एवं सूचना प्रौद्योगिकी शिक्षण
संस्थानों के अभिसरण पर भी केंद्रित है।

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