UP Board Class 10 Political Science | जन-संघर्ष और आंदोलन

By | April 26, 2021

UP Board Class 10 Political Science | जन-संघर्ष और आंदोलन

UP Board Solutions for Class 10 sst Political Science Chapter 5 जन-संघर्ष और आंदोलन

अध्याय 5.                    जन-संघर्ष और आंदोलन
 
                          अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर
 
(क) एन०सी०ई० आर०टी० पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न
प्रश्न 1. दबाव-समूह और आंदोलन राजनीति को किस तरह प्रभावित करते हैं?
उत्तर―लोग सरकार से अपनी मांगों को मनवाने के लिए कई तरीके अपनाते हैं। लोग इसके लिए
संगठन बनाकर अपने हितों को बढ़ावा देने वाले काम करते हैं जिसे हित-समूह कहते हैं। कभी-कभी बिना
संगठन बनाए अपनी मांगों के लिए एकजुट होने का निर्णय करते हैं। ऐसे समूह को आंदोलन कहा जाता है।
ये हित-समूह या दबाव-समूह और आंदोलन राजनीति पर कई प्रकार से प्रभाव डालते हैं―
1. दबाव-समूह और आंदोलन अपने लक्ष्य तथा गतिविधियों के लिए जनता का समर्थन और सहानुभूति
प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। इसके लिए सूचना अभियान चलाना, बैठक आयोजित करना या अर्जी
दायर करने जैसे तरीकों का सहारा लिया जाता है। ऐसे अधिकतर समूह मीडिया को प्रभावित करने
का प्रयास करते हैं ताकि उनके मसलों पर मीडिया अधिक ध्यान दे।
2. ऐसे समूह अक्सर हड़ताल या सरकारी कामकाज में अड़चन डालने जैसे उपायों का सहारा लेते हैं।
दबाव-समूह एवं आंदोलनकारी समूह ऐसी युक्तियों का इस्तेमाल करते हैं कि सरकार उनकी मांगों
की ओर ध्यान देने के लिए बाध्य हो।
3. व्यवसाय समूह अक्सर पेशेवर ‘लॉबिस्ट’ नियुक्त करते हैं या महँगे विज्ञापनों को प्रायोजित करते हैं।
दबाव-समूह या आंदोलनकारी समूह के कुछ व्यक्ति सरकार को सलाह देने वाली समितियों और
आधिकारिक निकायों में शिरकत कर सकते हैं।
इस प्रकार, दबाव-समूह और आंदोलन दलीय राजनीति में सीधे भाग नहीं लेते, लेकिन वे राजनीतिक
दलों पर प्रभाव जमाना चाहते हैं।
 
प्रश्न 2. दबाव-समूहों और राजनीतिक दलों के आपसी संबंधों का स्वरूप कैसा होता है? वर्णन करें।
उत्तर―दबाव-समूह दलीय राजनीति में सीधे भाग नहीं लेते लेकिन वे चुनावों के समय तथा चुनावों के
पश्चात् राजनीतिक दलों पर प्रभाव जमाना चाहते हैं। दबाव-समूह राजनीतिक दलों के माध्यम से ही अपनी
माँगों को मनवाने का प्रयास करते हैं। दबाव-समूह और राजनीतिक दल के मध्य वाला रिश्ता कई रूप धारण
कर सकता है―
1. कुछ मामलों में दबाव-समूह राजनीतिक दलों द्वारा ही बनाए गए होते हैं या उनका नेतृत्व राजनीतिक
दलों के नेता करते हैं। कुछ दबाव-समूह राजनीतिक दल की एक शाखा के रूप में कार्य करते हैं;
जैसे― भारत के ज्यादातर मजदूर संगठन और छात्र संगठन या तो बड़े राजनीतिक दलों द्वारा बनाए
जाते हैं या उनसे सम्बन्धित होते हैं।
 
2. दबाव-समूह चुनावों के समय राजनीतिक दलों का आर्थिक सहयोग करते हैं तथा इस सहयोग के
बदले में चुनावों के पश्चात् यदि वह राजनीतिक दल सरकार में आता है तो उस पर ये दबाव डालकर
अपने हितों की पूर्ति के लिए नीतियाँ बनवाते हैं। इस प्रकार राजनीतिक दल व दबाव-समूह दोनों
एक-दूसरे के लिए अनिवार्य हैं।
 
3. अधिकांशत: दबाव-समूहों का राजनीतिक दलों से प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता। दोनों परस्पर विरोधी पक्ष
लेते हैं, फिर भी इनके मध्य संवाद कायम रहता है और सुलह करने की बातचीत चलती रहती है।
राजनीतिक दलों के ज्यादातर नए नेता दबाव-समूह या आंदोलनकारी समूहों से आते हैं।
 
प्रश्न 3. दबाव-समूहों की गतिविधियाँ लोकतांत्रिक सरकार के कामकाज में कैसे उपयोगी होती हैं?
उत्तर―दबाव-समूहों की गतिविधियाँ लोकतांत्रिक सरकार के कामकाज में निम्न प्रकार उपयोगी होती
है―
1. दबाव-समूह सरकार की नीतियों को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं।
2. किन्तु राजनीतिक पार्टियों के समान इसका लक्ष्य सत्ता पर प्रत्यक्ष नियंत्रण करने या उसमें भागीदारी
करने का नहीं होता।
3. लोकतंत्र में किसी बड़े संघर्ष के पीछे विभिन्न प्रकार के संगठन कार्य करते हैं।
4. ये संगठन अपनी भूमिका दो तरह से निभाते हैं―प्रथम, लोकतंत्र में किसी निर्णय पर प्रभाव डालने
पार्टी बनायी जाती है। द्वितीय, आंदोलन करते हैं, उदाहरण के तौर पर ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन
का एक जाना-पहचाना तरीका राजनीति में प्रत्यक्ष भागीदारी करने का होता है। इसके लिए दलका
5. इसके अन्य रास्ते हैं―एक संगठन बनाकर अपने हितों को बढ़ावा देने वाली गतिविधियाँ कर सकते
हैं। इसे हित-समूह अथवा दबाव-समूह कहते हैं।
6. उदाहरण के तौर पर हित-समूह एक शिक्षकों या व्यापार संघों के संगठन के रूप में आगे आकर
सरकार पर ऐसी नीति बनाने का दबाव डालते हैं जो समाज के अन्य वर्गों के लिए भी लाभदायक
सिद्ध हो।
 
प्रश्न 4. दबाव-समूह क्या हैं? कुछ उदाहरण बताइए।
उत्तर―समान आर्थिक हितों वाले वर्ग सरकार से अपनी माँगें मनवाने तथा हित पूरे करवाने के लिए
संगठन बनाकर सरकार पर दबाव डालने का काम करते हैं। इन्हें दबाव-समूह कहते हैं। ये दबाव-समूह
किसी खास वर्ग के हितों को बढ़ावा देना चाहते हैं। मजदूर संगठन, व्यावसायिक संघ और वकीलों, डॉक्टरों
और शिक्षकों के निकाय इस तरह के दबाव-समूह के उदाहरण हैं। ऐसे दबाव-समूहों का सरोकार पूरे
समाज का नहीं बल्कि अपने सदस्यों की बेहतरी और कल्याण करना होता है।
उदाहरण―बोलिविया का फेडेकोर’ है जिसने वहाँ जल के लिए हुए युद्ध में भाग लिया। इसमें स्थानीय
पेशेवर पर्यावरण एवं अभियन्ता शामिल थे। वे किसान संघों इत्यादि द्वारा समर्थित थे। भारत में अन्ना हजारे
का जन लोकपाल बिल के लिए आंदोलन इसका मुख्य उदाहरण है।
 
प्रश्न 5. दबाव-समूह और राजनीतिक दल में क्या अंतर है?
उत्तर―दबाव-समूह और राजनीतिक दल में निम्नलिखित अन्तर है―
 
 
दबाव-समूह                                         राजनीतिक दल
1. दबाव-समूह एक संगठन है। इसका     (क) राजनीतिक दल प्रत्यक्ष रूप से
निर्माण तब होता है जब एकसमान                राजनीतिक ताकत रखते हैं।
पेशे, हित, आकांक्षा या मत के लोग
एकसमान उद्देश्य को हासिल करने
के लिए एकजुट होते हैं।
 
2. दबाव-समूह के पास कोई            (ख) राजनीतिक दल लोगों का एक समूह
राजनीतिक सत्ता नहीं होती।                   है, जो साथ आकर चुनाव लड़ते हैं
                                                         और सफलता प्राप्त करके सरकार
                                                          बनाते हैं।
 
3. इसकी सदस्यता पेशा एवं रुचि के   (ग) इनके सदस्य लोगों के अनेक            
अनुसार सीमित होती है।                        समहों से आते हैं।
 
4. दबाव-समूह लोगों के प्रति जवाबदेह   (घ) राजनीतिक दल लोगों के प्रति
नहीं होते परंतु वे सामूहिक रूप से          जवाबदेह होता है परन्तु वह लोगों के
अपनी पसंद के लिए काम करते हैं।         लाभ के लिए काम करता है जो केवल
                                                         उन्हें मत देता है।
 
5. कोई भी इन्हें संगठन बनाने या नेता     (ड) देश के नागरिक उनके राजनीतिक दल
बनने के लिए मत नहीं देता।                         को मत देते हैं।
 
प्रश्न 6. जो संगठन विशिष्ट सामाजिक वर्गः जैसे-मजदूर, कर्मचारी, शिक्षक और वकील आदि के
हितों को बढ़ावा देने की गतिविधियाँ चलाते हैं उन्हें…………कहा जाता है।
उत्तर―दबाव-समूह।
 
प्रश्न 7. निम्नलिखित में किस कथन से स्पष्ट होता है कि दबाव-समूह और राजनीतिक दल में अंतर
होता है?
(क) राजनीतिक दल राजनीतिक पक्ष लेते हैं जबकि दबाव-समूह राजनीतिक मसलों की चिंता नहीं करते।
(ख) दबाव-समूह कुछ लोगों तक ही सीमित होते हैं जबकि राजनीतिक दल का दायरा ज्यादा लोगों तक
फैला होता है।
(ग) दबाव-समूह सत्ता में नहीं आना चाहते जबकि राजनीतिक दल सत्ता हासिल करना चाहते हैं।
(घ) दबाव-समूह लोगों की लामबंदी नहीं करते जबकि राजनीतिक दल करते हैं।
उत्तर― (ग) दबाव-समूह सत्ता में नहीं आना चाहते जबकि राजनीतिक दल सत्ता हासिल करना चाहते हैं।
 
प्रश्न 8. सूची-1 (संगठन और संघर्ष) का मिलान सूची-1 से कीजिए और सूचियों के नीचे दी गई
सारणी से सही उत्तर चुनिए―
सूची–I                                                      सूची–II
1. किसी विशेष तबके या समूह के हितो          (क) आंदोलन
को बढ़ावा देने वाले संगठन
 
2. जन-सामान्य के हितों को बढ़ावा देने           (ख) राजनीतिक दल
वाले संगठन
 
3. किसी सामाजिक समस्या के समाधान         (ग) वर्ग-विशेष के हित समूह
के लिए चलाया गया एक ऐसा संघर्ष
जिसमें सांगठनिक संरचना हो भी
सकती है और नहीं भी।
 
4. ऐसा संगठन जो राजनीतिक सत्ता पाने        (घ) लोक कल्याणकारी हित समूह
की गरज से लोगों को लामबंद करता
है।
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उत्तर―(ख) 1. ग, 2, घ, 3. क, 4. ख।
 
प्रश्न 9. सूची I का सूची II से मिलान करें जो सूचियों के नीचे दी गई सारणी में सही उत्तर हो, चुनें-
सूची I                                         सूची II
1. दबाव सूमह                             (क) नर्मदा बचाओ आंदोलन
2. लंबी अवधि का आंदोलन           (ख) असम गण परिषद्
3. एक मुद्दे पर आधारित आंदोलन   (ग) महिला आंदोलन
4. राजनीतिक दल                         (घ) खाद विक्रेताओं का संघ
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उत्तर― (अ) 1. घ, 2. ग, 3. क, 4. ख।
 
प्रश्न 10. दबाव-समूहों और राजनीतिक दलों के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
(क) दबाव-समूह समाज के किसी खास तबके के हितों की संगठित अभिव्यक्ति होते हैं।
(ख) दबाव-समूह राजनीतिक मुद्दों पर कोई-न-कोई पक्ष लेते हैं।
(ग) सभी दबाव-समूह राजनीतिक दल होते हैं।
अब नीचे दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनें―
(अ) क, ख और ग; (ब) क और ख; (स) ख और ग; (द) क और ग।
उत्तर― (ब) क और ख सही हैं।
 
प्रश्न 11. मेवात हरियाणा का सबसे पिछड़ा इलाका है। यह गुड़गाँव और फरीदाबाद जिले का हिस्सा
हुआ करता था। मेवात के लोगों को लगा कि इस इलाके को अगर अलग जिला बना दिया
जाये तो इस इलाके पर ज्यादा ध्यान जाएगा। लेकिन, राजनीतिक दल इस बात में कोई
रुचि नहीं ले रहे थे। सन् 1996 में मेवात एजुकेशन एंड सोशल आर्गेनाइजेशन तथा मेवात
साक्षरता समिति ने अलग जिला बनाने की मांग उठाई। बाद में सन् 2000 में मेवात विकास
सभा की स्थापना हुई। इसने एक के बाद एक कई जन-जागरण अभियान चलाए। इससे
बाध्य होकर बड़े दलों यानी कांग्रेस और इंडियन नेशनल लोकदल को इस मुद्दे को अपना
समर्थन देना पड़ा। उन्होंने फरवरी, 2005 में होने वाले विधान सभा के चुनाव से पहले ही कह
दिया कि नया जिला बना दिया जाएगा। नया जिला सन् 2005 की जुलाई में बना।
इस उदाहरण में आपको आंदोलन, राजनीतिक दल और सरकार के बीच क्या रिश्ता नजर आता है?
क्या आप ऐसा उदाहरण दे सकते हैं जो इससे अलग रिश्ता बताता हो?
उत्तर―इस उदाहरण में देखा गया कि मेवात को पृथक् जिला बनाने के लिए दबाव-समूह
और
आंदोलनों ने सरकार व राजनीतिक दलों को प्रभावित किया। जब चुनाव का समय आया तो राजनीतिक दलों
को दबाव-समूहों के समर्थन की जरूरत हुई। इसलिए इन्होने दबाव-समूहो की बात मानकर मेवात को
पृथक् जिला बना दिया। इससे मालूम होता है कि दबाव-समूह राजनीतिक दलो पर अपनी मांगें मनवाने के
लिए दबाव डालते हैं और राजनीतिक दल सरकार में आने के लिए दबाव समूहों का समर्थन चाहते हैं।
 
(ख) अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
 
                               बहुविकल्पीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. नेपाल लोकतंत्र की………… के देशों में से एक है।
(क) तीसरी लहर
(ख) प्रथम सोपान
(ग) अंतिम पायदान
(घ) इनमें से कोई नहीं
                            उत्तर―(क) तीसरी लहर
 
प्रश्न 2. किस नेपाल नरेश की रहस्यमयी हत्या हो गई थी?
(क) राजा ज्ञानेंद्र
(ख) राजा पद्मेश
(ग) राजा वीरेंद्र
(घ) राजा धीरेंद्र
                    उत्तर―(ग) राजा वीरेंद्र
 
प्रश्न 3. आंदोलनकारियों की चेतावनी का अंतिम दिवस था―
(क) 5 मार्च, 2006
(ख) 24 अप्रैल, 2006
(ग) 15 जनवरी, 2006
(घ) 3 मार्च, 2006
                          उत्तर―(ख) 24 अप्रैल, 2006
 
प्रश्न 4. लोकतंत्र की जड़ें किस प्रकार मजबूत होती हैं?
(क) परस्पर सामंजस्य द्वारा
(ख) जन-विरोधी गतिविधियों द्वारा
(ग) जन-आंदोलनों द्वारा
(घ) धरना प्रदर्शन द्वारा
                               उत्तर― (ग) जन-आंदोलनों द्वारा
 
प्रश्न 5. भारत के संविधान के अनुसार भारत एक देश है।
(क) धर्म-प्रधान
(ख) हिन्दू
(ग) धर्म-निरपेक्ष
(घ) धार्मिक
                उत्तर― (ग) धर्म-निरपेक्ष
 
प्रश्न 6. दबाव-समूह सरकारी नीतियों को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
(क) संगठन द्वारा
(ख) एकजुटता द्वारा
(ग) नियंत्रण द्वारा
(घ) इनमें से कोई नहीं
                            उत्तर― (ख) एकजुटता द्वारा
 
प्रश्न 7. नर्मदा बचाओ आंदोलन किससे संबंधित है?
(क) सतलज बाँध
(ख) हीराकुड बाँध
(ग) नागार्जुन बाँध
(घ) सरदार सरोवर बाँध
                                उत्तर―(घ) सरदार सरोवर बाँध
 
                               अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. नेपाल की राजधानी कौन-सी है?
उत्तर― नेपाल की राजधानी काठमाण्डू है।
 
प्रश्न 2. एस०पी०ए० ने किसको नेपाल का प्रधानमंत्री चुना?
उत्तर―एस०पी०ए० ने गिरिजा प्रसाद कोईराला को अन्तरिम सरकार का प्रधानमंत्री चुना?
 
प्रश्न 3. बहुराष्ट्रीय कम्पनी ने जलमूल्य कितना बढ़ा दिया?
उत्तर―बहुराष्ट्रीय कम्पनी ने जलमूल्य में चार गुणा वृद्धि कर दी।
 
प्रश्न 4. सन् 2006 में बोलिविया में किसे सत्ता प्राप्त हुई?
उत्तर― सन् 2006 में “सोशलिस्ट पार्टी” को सत्ता प्राप्त हुई।
 
प्रश्न 5. जन-आन्दोलन किस पर निर्भर होते हैं?
उत्तर―आन्दोलन अथवा जनसंघर्ष जनता की स्वतः भागीदारी पर निर्भर होता है।
 
प्रश्न 6. “बामसेफ’ (BAMCEF) क्या है?
उत्तर― “बामसेफ” BAMCEF (बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एम्पलाइज फेडरेशन)
सरकारी कर्मचारियों का एक संगठन है, जो जाति-पाँति के भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाता है।
 
प्रश्न 7. असम गण परिषद् क्या है?
उत्तर― विदेशी लोगों के विरुद्ध छात्रों का असम आन्दोलन असम गण परिषद् में परिवर्तित हो गया।
 
प्रश्न 8. भारत के लोकतंत्र को दबाव-समूह किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
उत्तर―दबाव-समूह के आन्दोलन राजनीति में भागीदारी तो नहीं करते अपितु उसे प्रभावित अवश्य
करते हैं।
 
प्रश्न 9. साधारण जनता प्रशासन से किस प्रकार अपनी आवश्यकताएँ बता सकती है?
उत्तर― साधारण जनता प्रशासन से अनेक अपेक्षाएँ तथा आकांक्षाएँ होती हैं जिन्हें वह आन्दोलनों द्वारा
व्यक्त करती है।
 
प्रश्न 10. सन्तुलित दृष्टिकोण क्या है?
उत्तर― सत्तारूढ़ दल द्वारा दबाव-समूह आन्दोलन को लोकतंत्र के आलोक में समझना तथा समाधान
करना सन्तुलित दृष्टिकोण है।
 
प्रश्न 11. दबाव-समूहों का निर्माण किस प्रकार होता है?
उत्तर― किसी विशेष समूह के हितार्थ अथवा किसी विशेष योजना के हितार्थ अथवा विरोध में
जन-समूहों द्वारा संगठन कर सत्तासीन दल पर दबाव बनाना दबाव-समूहों का निर्माण करना है।
 
                                     लघु उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. माओवादी बागी कौन थे?
उत्तर― जो चीनी क्रांति के महान नेता माओ की विचारधारा में विश्वास करते थे, माओवादी बागी
कहलाते थे। माओवादी बागी, मजदूरों और किसानों के शासन को स्थगित करने के लिए सशस्त्र क्रांति के
जरिए सरकार को उखाड़ फेंकना चाहते हैं।
 
प्रश्न 2. सरकार ने कोच बंबा शहर में जलापूर्ति के अधिकार किसको सौंप दिए?
उत्तर―सरकार ने कोच बंबा शहर में जलापूर्ति के अधिकार एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी को सौंप दिए।
 
प्रश्न 3. एस०पी०ए० से क्या तात्पर्य है?
उत्तर―संसद की सभी बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने मिलकर एक सप्तदलीय गठबंधन एस०पी०ए०
तैयार किया। एस०पी०ए० (सेवेन पार्टी एलाइंस) सप्तदलीय गठबंधन है।
 
प्रश्न 4. सामान्य नागरिक सत्ता में किस प्रकार की भागीदारी करता है?
उत्तर―सामान्य नागरिक विवेकपूर्ण निर्णय लेकर मतदान कर सत्ता में जागरूक भागीदारी कर सकते
हैं।
 
प्रश्न 5. “नर्मदा बचाओ” आंदोलन क्या है?
उत्तर―भारत में “नर्मदा बचाओ आन्दोलन” एक विशिष्ट मुद्दे को लेकर किया गया एक आंदोलन है।
इस आंदोलन का उद्देश्य नर्मदा नदी पर बाँध बनने को रोकना था। धीरे-धीरे इस आंदोलन का रूप व्यापक
होता गया।
 
प्रश्न 6. वर्ग-विशेषी हित-समूह क्या है?
उत्तर―किसी एक विषेष वर्ग के हित में दबाव बनाने वाले समूह को वर्ग-विशेषी हित समूह कहते हैं।
वर्ग-विशेषी हित-समूह महत्त्वपूर्ण भूमिकाओं का निर्वाह करते हैं।
 
                                  दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. नेपाल का लोकतन्त्र के लिए दूसरा आन्दोलन क्या था?
उत्तर―नेपाल भारत के उत्तर में बसा एक छोटा देश है। यहाँ पर 1990 के दशक में लोकतंत्र की
स्थापना हुई; किन्तु नेपाल नरेश पूर्व की भाँति ही राज्य का मुखिया बना रहा, जबकि सत्ता-संचालन
जन–प्रतिनिधियों द्वारा ही हो रहा था। इस प्रकार की प्रक्रिया जो आत्यंतिक राजतंत्र से संवैधानिक राजतंत्र के
उक्त संक्रमण परिस्थितियों में तत्कालीन राजा वीरेन्द्र ने स्वीकार कर लिया था। किन्तु इस शाही परिवार के
एक रहस्य हत्याकाण्ड के अन्तर्गत राजा वीरेन्द्र की हत्या कर दी गई।
नेपाल के नए नरेश ज्ञानेन्द्र लोकतांत्रिक शासन के विरुद्ध थे। उन्होंने लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार
की अलोकप्रियता का लाभ उठाया तथा तत्कालीन प्रधानमंत्री को अपस्थ करके जनता द्वारा निर्वाचित
सरकार को भंग कर दिया। इस असंवैधानिक प्रक्रिया के विरोध में एक व्यापक जन-आंदोलन हुआ जिसका
उद्देश्य सत्ता शासन राजा के हाथ से जनता को हस्तांतरित करना था। संसद की सभी बड़ी राजनीतिक पार्टियों
ने मिलकर एक सप्तदलीय गठबंधन (सेवेन पार्टी एलाइंस) तैयार किया। अनेक सामाजिक राजनीति संगठन
भी इनके साथ जुड़ गए। इसके अतिरिक्त बागी माओवादियों का भी इस आंदोलन को पूर्ण समर्थन प्राप्त
हुआ। जनता कपy का उल्लंघन कर सड़कों पर उतर आई। इतने बड़े जन-विरोध के समक्ष सुरक्षा बलों ने
घुटने टेक दिए। नेपाल नरेश ने कुछ सुविधाएँ देने का वादा किया, किन्तु आंदोलनकारी अपनी संविधान
सभा तथा संसद को पुनर्जीवित करने की मांगों पर अडिग रहे। अन्ततः नेपाल नरेश ने तीनों माँगों
जनबाधित होकर मान लिया। एस०पी०ए० ने गिरिराज प्रसाद कोईराला का अन्तरिम सरकार के प्रधानमंत्री
के रूप में चयन किया। संसद का स्वरूप पुनः लोकतांत्रिक हो गया। एस०पी०ए० (सेवेन पार्टी एलाइंस)
तथा माओवादियों के मध्य आम सहमति में संविधान सभा का निर्माण हुआ।
प्रस्तुत संघर्ष को नेपाल द्वारा लोकतंत्र के लिए द्वितीय आन्दोलन कहा गया। नेपाल निवासियों का यह
संघर्षपूर्ण आंदोलन विश्व में लोकतंत्र समर्थकों हेतु प्रेरणास्रोत बन गया।
 
प्रश्न 2. बोलविया के “जलयुद्ध आन्दोलन” से आप क्या समझते हैं?
उत्तर― जीवन एक संघर्ष है, जो लोकतंत्र की भावनाओं के साथ सतत् प्रवाहित रहता है। बोलिविया
लातिनी अमेरिका का देश है जो अन्य देशों के समान आर्थिक रूप से अधिक सक्षम नहीं है। बोलिविया के
लोगों को जल के निजीकरण के विरुद्ध जन-संघर्ष करना पड़ा जिसकी सफलता लोकतंत्र की जीवंतता तथा
जन-संघर्ष का आन्तरिक सम्बन्ध व्यक्त करती है। बोलिविया की सरकार पर विश्व-बैंक द्वारा दबाव बनाया
गया कि नगरपालिका द्वारा की जा रही जलापूर्ति का नियंत्रण उनसे वापिस ले लिया जाए। सरकार ने कोच
बंबा नगर में की जा रही जलापूर्ति के अधिकार एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी को प्रदान कर दिए। कम्पनी ने बिना
परिणामों पर विचार किए जल-मूल्य में चार-गुणा वृद्धि कर दी। अनेक लोगों का जल-मूल्य भुगतान
₹10,000 तक पहुँच गया, जबकि बोलिविया के साधारण व्यक्ति की मासिक आय का मात्र ₹ 5,000
प्रतिमाह था। फलत: जनाक्रोश बढ़ने लगा, जिसके कारण व्यापक जन-संघर्ष छिड़ गया। सन् 2000 के
जनवरी माह में श्रमिक वर्ग, सामुदायिक नेता तथा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने मिलकर एक गठबंधन का
प्रारूप तैयार किया। इस संगठन ने शहर में चार दिनों तक धरना, प्रदर्शन तथा हड़ताल की। जब सरकार वार्ता
के लिए तैयार हुई तभी हड़ताल वापिस ले ली गई; किन्तु परिणाम आशा के विपरीत आए। अत: संगठन ने
फिर शहर में चार दिनों तक धरना प्रदर्शन तथा हड़ताल की। फरवरी माह में पुनः आन्दोलन का आरम्भ
हुआ। इस बार पुलिस द्वारा आक्रामक दमनकारी शक्ति का प्रयोग किया गया। अप्रैल में पुनः विरोध
आन्दोलन प्रारम्भ हो गए। प्रशासन द्वारा “मार्शल ला” लगा दिया गया। किन्तु जनशक्ति के समक्ष बहुराष्ट्रीय
कम्पनियों के अधिकारी शहर छोड़कर भाग गए। प्रशासन को आन्दोलकारियों की सभी मांगें माननी पड़ी।
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की संधि को निरस्त कर जलापूर्ति का कार्यभार पुन: नगरपालिका के अधिकार क्षेत्र में
आ गया। जल-मूल्य पूर्व की भाँति हो गया। प्रस्तुत आन्दोलन को बोलिविया का “जलयुद्ध आन्दोलन” कहा
जाता है।
 
प्रश्न 3. लोकतंत्र में दबाव-समूह तथा आन्दोलनों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर―अधिकांश संगठन जन-समर्थन तथा दबाव-समूह के द्वारा प्रशासन की नीतियों को प्रभावित
करने का प्रयास करते हैं। दबाव-समूहों का निर्माण समान व्यवसाय, समान हितों, समान आकांक्षाओं तथा
उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु एकजुट होकर किये जाते हैं। कुछ आन्दोलन संगठित नहीं होते, परिस्थितिवश संगठित
हो जाते हैं। अधिकतर इस प्रकार की सामूहिक गतिविधियों को जन-आन्दोलन का नाम दे दिया जाता है.
यथा–’नर्मदा बचाओ’ आन्दोलन, ‘सूचना के अधिकार’ का आन्दोलन, ‘मद्य-निषेध’ आन्दोलन
‘महिला-सुरक्षा’ आन्दोलन, ‘पर्यावरण बचाओ’ आन्दोलन इत्यादि अनेकानेक आन्दोलन हैं जो अधिक
व्यापक नहीं होते किन्तु महत्त्वपूर्ण होते हैं। यह आन्दोलन जनमानस की स्वतः स्फूर्त भावनाओं पर निर्भर
होते हैं।
कुछ संगठन समाज के सर्वमान्य हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनकी सुरक्षा तथा संभवतया समाज के हितों
के लिए अत्यंत आवश्यक है। सम्भव है इस प्रकार के संगठनों का व्यक्तिगत हित-साधन न हो किन्तु इनकी
भावना ‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय’ रहती है। बोलिविया में जल के निजीकरण के विरुद्ध जो आन्दोलन
चला, उसका नेतृत्व किसी भी राजनीतिक दल ने नहीं किया। उक्त आन्दोलन का नेतृत्व “फेडेकोर”
(FEDECOR) नामक संगठन ने किया। इस जल आन्दोलन को सिंचाई पर निर्भर कृषक संघ, कारखाना
मजदूर संघ, कोच बंबा विश्वविद्यालय के छात्रों तथा अनेक वर्गों का समर्थन प्राप्त हुआ। नेपाल में इसी
प्रकार एस०पी०ए० (सेवेन पार्टी एलाइंस) द्वारा गठबंधन करके आन्दोलन में प्रतिनिधित्व किया। इस प्रकार
के आन्दोलनों का स्वरूप राजनीतिक न होकर समष्टिगत हितार्थ होता है। उदाहरणत: हम बँधुआ मजदूरी के
विरुद्ध आवाज उठाने वाले समूहों का नाम ले सकते हैं; जैसे-“बामसेफ” BAMCEF (बैकवर्ड एंड
माइनॉरिटी कम्युनिटीज एम्पलाइज फेडरेशन) को नामांकित किया जाता है। इस प्रकार के दबाव-समूह
सामाजिक कार्यक्षेत्रों में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं।
 
प्रश्न 4. दबाव-समूह तथा जन-आन्दोलन राजनीति को कैसे प्रभावित करते हैं?
उत्तर― मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। हमारी प्रत्येक गतिविधियों का समाज पर प्रभाव पड़ता है। हमारे
द्वारा किए गए सामूहिक क्रियाकलाप यदि एक संगठन अथवा गतिविधि का रूप लेते हैं तो उनका व्यापक
रूप आन्दोलन अथवा दबाव-समूह बन जाता है। इस प्रकार के समूह राजनीति को अनेक प्रकार से प्रभावित
करते हैं―
●  आन्दोलन तथा दबाव-समूह अपने लक्ष्य प्राप्ति एवं सम्बन्धित गतिविधियों के लिए जनमानस का
समर्थन तथा सहानुभूति प्राप्त करने हेतु भरसक प्रयत्न करते हैं। इस प्रकार के समूह जन-संचार
माध्यमों को भी प्रभावित करने की चेष्टा करते हैं, जिससे कि संचार माध्यमों द्वारा उनके आन्दोलनों को
अधिक लोकप्रियता प्राप्त हो सके।
● दबाव-समूह अधिकतर हड़ताल, धरना, प्रदर्शन तथा सरकारी कार्यों को बाधित करने के प्रयासों का
आश्रय लेते हैं।
● व्यापारी वर्ग अधिकृत व्यावसायिक “लाबिस्ट’ नियुक्त करते हैं अथवा बहुमूल्य विज्ञापनों को
प्रायोजित करते हैं। दबाव-समूह अथवा आन्दोलनकारी समूह के कुछ व्यक्ति प्रशासन के परामर्श
समीतियों तथा अधिकारी निकायों में प्रतिभागिता करते हैं।
● यद्यपि दबाव-समूह तथा जन-आन्दोलन दलीय राजनीति में प्रत्यक्ष रूप से प्रतिभागी नहीं होते किन्तु
राजनैतिक दलों को वह प्रभावित करना चाहते हैं। इस प्रकार के समूह किसी राजनीतिक दल से
सम्बन्धित नहीं होते किन्तु उनका भी एक राजनीतिक पक्ष होता है, एक विचारधारा होती है। अतः
अनेक रूपों में दबाव-समूह तथा राजनीति एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।
● अनेक कारणों से तो दबाव-समूहों का जन्म ही राजनीतिक दलों द्वारा होता है तथा कुछ दबाव-समूह
राजनीतिक दल की एक शाखा के रूप में ही कार्यरत हैं। भारत के अनेक मजदूर संगठन, छात्र संगठन,
कृषक आन्दोलन या तो बड़े-बड़े राजनीतिक दलों द्वारा ही बनाए जाते हैं या उनकी संबद्धता
राजनीतिक दलों से किसी-न-किसी प्रकार होती है?
● यदाकदा इस प्रकार के आन्दोलन राजनीतिक रूप में परिवर्तित भी हो जाते हैं; यथा-विदेशी लोगों के
छात्रों ने असम आन्दोलन का आरम्भ किया; जिसकी परिणति “असम गण परिषद्” के रूप में हुई।
● अधिकांश दबाव-समूहों तथा आन्दोलनों का राजनीतिक दलों से प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता। दोनों
परस्पर विरोधी होते हैं। दोनों दलों के मध्य संवाद स्थापित रहता है तथा आपसी सामंजस्य की वार्ता
जारी रहती है। राजनीतिक दलों के अधिकतर नवीन नेताओं का आविर्भाव दबाव-समूह तथा
आन्दोलनकारी समूहों में होता है।
 
प्रश्न 5. आंदोलन तथा दबाव-समूहों के प्रभाव किस प्रकार सकारात्मक हो सकते हैं?
उत्तर―जन-आंदोलन के विषय में अधिक सकारात्मक होते हैं। प्रथम दृष्टव्य के आधार पर तो ऐसा
आभास होता है कि किसी एक वर्ग के हितों की रक्षा करने वाले दबाव-समूह लोकतंत्र के लिए अहितकर हैं।
लोकतंत्र के अन्तर्गत किसी एक वर्ग की नहीं अपितु सभी हितों की सुरक्षा होनी चाहिए अथवा ऐसा भी प्रतीत
हो सकता है कि इस प्रकार के समूह सत्ता का उपयोग तो करना चाहते हैं किन्तु उत्तरदायित्व की भावना से
बचना भी चाहते हैं। चुनावी काल में सभी राजनीतिक दलों को जनता का सामना करना पड़ता है लेकिन इस
प्रकार के समूह जनता के उत्तरदायी नहीं होते। सम्भव है कि दबाव-समूहों को जन-समर्थन तथा धनार्जन की
सुविधा प्राप्त न हो लेकिन यह समूह अपने प्रभावपूर्ण विचारों के बल पर सत्तारूढ़ दल का तथा जनमानस
का दृष्टिकोण परिवर्तित करने में सफल हो जाते हैं, किन्तु यदि कुछ सन्तुलित दृष्टिकोण अपनाएँ तो स्पष्ट
होगा कि जड़ें और अधिक सुदृढ़ हुई हैं। प्रशासन के ऊपर दबाव डालना कोई अहितकर गतिविधि नहीं
अपितु लोकतांत्रिक प्रक्रिया के आधार पर एक सर्वमान्य अधिकार है। सामान्यतः प्रशासन धनिक वर्ग तथा
शक्तिशाली वर्ग के प्रभाव में आ जाता है। ऐसी स्थिति में जन-साधारण के हितों से सम्बन्धित आन्दोलन,
दबाव-समूह इस अनुचित दबाव के प्रतिकार में उपयोगी भूमिका का निर्वाह करते हैं तथा जनसाधारण की
समस्याओं तथा आवश्यकताओं से सरकार को परिचित कराते हैं। इस प्रकार इनकी भूमिका सकारात्मक
दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।

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